Coronavirus Vaccine: अमेरिका ने ऐसे नियम बनाएं हैं, जिसकी वजह से दुनियाभर में वैक्सीन का प्रोडक्शन स्लो हो गया है. अमेरिका ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि, वो पहले अपने यहां वैक्सीन स्टॉक को मेंटेन करना चाहता है.
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नई दिल्ली: आज डीएनए में हम वैक्सीन राष्ट्रवाद की बात करेंगे. इस समय दुनिया के अधिकतर देश कोरोना वायरस की वैक्सीन की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जो वैक्सीन की जमाखोरी कर रहे हैं.
अमेरिका ने तो ऐसे नियम बनाएं हैं, जिसकी वजह से दुनियाभर में वैक्सीन का प्रोडक्शन स्लो हो गया है क्योंकि, अमेरिका ने इसी वर्ष फरवरी में Defence Production Act लागू किया, जिसके तहत वहां की फार्मा कंपनियां जरूरी दवाओं के कच्चे माल को दूसरे देश में नहीं भेज सकती हैं.
अमेरिका ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि, वो पहले अपने यहां वैक्सीन स्टॉक को मेंटेन करना चाहता है. उसके बाद दूसरे देशों को देने की मंशा है. ये एक तरह का वैक्सीन राष्ट्रवाद है, जिसमें वो अपने देश पर पहले ध्यान दे रहा है. अमेरिका की इस सोच की वजह से वैक्सीन बनाने के लिए हमें जरूरी कच्चा माल नहीं मिल रहा है, जिससे मार्च महीने से ही हमारे देश में वैक्सीन का निर्माण स्लो हो गया है.
असल में भारतीय वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां अमेरिका से वैक्सीन के लिए जरूरी Adjuvant आयात करती हैं. इनका प्रयोग वैक्सीन को प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है. हालांकि हम इसके विकल्प पर काम करने लगे हैं, लेकिन हमें इसे बनाने में कम के कम छह महीने लग जाएंगे, लेकिन समस्या ये है कि तब तक हम वैक्सीन बनाने का काम तेज नहीं कर सकते हैं.
कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ अदर पूनावाला ने अमेरिका के राष्ट्रपति से कच्चे माल पर लगी रोक हटाने का आग्रह किया है और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेश (Antonio Guterres) भी वैक्सीन की जमाखोरी नहीं करने को दूसरे देशों से कह चुके हैं, फिर भी इन देशों की सोच अभी बदली नहीं है.
इस महामारी के बीच जब अमेरिका और यूरोप की बड़ी दवा कंपनियां वैक्सीन का प्रोडक्शन करके मुनाफा बटोरने में लगी हैं, तब ब्राजील ने दुनिया के सामने एक ऐसी मिसाल पेश की है, जिसे इस संकट की घड़ी में हर देश को अपनाना चाहिए. वहां की सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस की वैक्सीन को पेटेंट फ्री कर दिया है. इसका मतलब हुआ, अब ब्राजील में दवा कंपनियां कोरोना वायरस की सस्ती वैक्सीन बना सकती हैं और इस फैसले की पूरी दुनिया में खूब चर्चा हो रही है.
हालांकि ब्राजील के लिए ये फैसला लेना इतना आसान नहीं था. वहां की दवा कंपनियां वैक्सीन को 20 सालों के लिए पेटेंट कराना चाहती थी, लेकिन सरकार ने उनका साथ नहीं दिया और ऐसा निर्णय किया, जिससे कोरोना वायरस की वैक्सीन देश के हर नागरिक को आसानी से मिल सके.
ब्राज़ील कोई बहुत अमीर देश नहीं है. 15 अप्रैल तक यहां 1 करोड़ 34 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जो कि दुनिया में संक्रमण के मामले में तीसरे नंबर पर है और इस समय वहां इलाज के लिए जेनेरिक दवाईयों की बहुत ज्यादा जरूरत है, जो बहुत सस्ती होती हैं. लेकिन दवा कंपनियों को पेटेंट दवाओं से ज़्यादा मुनाफा होता है. इसलिए वो नहीं चाहती थी कि वैक्सीन पेटेंट फ्री हो, इसलिए वो कोर्ट तक पहुंच गईं. हालांकि कोर्ट ने वही फैसला दिया, जो लोगों के हिता में था. यानी ये कंपनियां कानूनी लड़ाई हार गईं.
यहां एक बड़ी बात ये है कि भारत बहुत पहले ही कोरोना वायरस की वैक्सीन्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट फ्री करने की मांग कर रहा है और WHO ने भी इस पर सहमति जताई है, लेकिन दुनिया के कई दूसरे देश ऐसी पहल नहीं कर रहे हैं, जिससे अभी भी वैक्सीन के दामों में काफी अंतर है.
एक लाइन में कहें तो इस खबर का सार ये है कि जब पूरी दुनिया ही कोरोना वायरस से संघर्ष कर रही है और सभी लोगों को वैक्सीन की जरूरत है तो फिर इस पर से पेटेंट हटा क्यों नहीं लिया जाता. अगर वैक्सीन पर पेटेंट हट जाएगा तो कोई भी देश इसे बना सकेगा और इन देशों को मुट्ठीभर कंपनियों के आगे झुकना नहीं पड़ेगा और हमारा तो यही मानना है कि वैक्सीन जान बचाने के लिए ये मुनाफा कमाने की वैक्सीन नहीं हैं.
हमारे देश की एक अजीब बात ये है कि जब वैक्सीनेशन सेंटर्स पर कोरोना के टीकों की कोई कमी नहीं थी तो हमारे देश के लोग वैक्सीन लगवाना ही नहीं चाहते थे, लेकिन अब जब वैक्सीन की कमी है तो देशभर में इसके लिए अस्पतालों और टीका केन्द्रों पर लोगों की भीड़ लगी हुई है.