DNA ANALYSIS: Zee News के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी से जानें कोरोना के सबक, ऐसी होती है प्री और पोस्ट कोविड जिंदगी
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DNA ANALYSIS: Zee News के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी से जानें कोरोना के सबक, ऐसी होती है प्री और पोस्ट कोविड जिंदगी

Coronavirus: आप सब ज़िंदगी में बहुत बार बीमार हुए होंगे, बहुत बार आपको सर्दी, ज़ुकाम, बुखार या बहुत लोगों को इससे बड़ी-बड़ी बीमारियां हुईं होंगी. बहुत सारे लोगों की सर्जरी भी हुई होगी और फिर हम उसमें से निकल आते हैं और धीरे-धीरे उसे भूल जाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि जो लोग कोविड से संक्रमित हुए हैं वो जीवन भर उस दौर को भूल नहीं पाएंगे.

DNA  ANALYSIS: Zee News के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी से जानें कोरोना के सबक, ऐसी होती है प्री और पोस्ट कोविड जिंदगी

नई दिल्ली: कल14 जून को मैं पूरे 27 दिन यानी 648 घंटों के बाद DNA में आपके साथ मौजूद रहा और मैं आपसे कई बातें शेयर करना चाहता हूं.

  1. महामारी ने करोड़ों लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है.
  2. जब आप कोविड के बाद वाले अध्याय को शुरू करते हैं तो आपकी बहुत सारी विचारधाराएं बदल जाती हैं.
  3. इस बीमारी ने सिखाया कि कौन हमारे साथ मन से जुड़ा है. 

We Always Work For a Better Tomorrow, But When Tomorrow Comes, Instead of Enjoying, We Again Think For A Better Tomorrow, Lets Have A Better Today

जीवन आज, अभी और इसी वक्त में

यानी हम हमेशा ये कहते हैं कि कल को बेहतर बनाएंगे और इस कल को बेहतर बनाने के लिए हम अपने आज को भी भुला देते हैं, लेकिन जब वही कल, हमारा आज बन जाता है तो हम फिर उसके बाद के कल की चिंता करने लगते हैं और आज में कभी नहीं जी पाते. यानी हम कल के लिए हमेशा अपने आज को भूल जाते हैं. लेकिन कोरोना वायरस ने हमें ये सिखाया है कि जीवन आज, अभी और इसी वक्त में है.

17 मई को जब DNA समाप्त करते हुए मैंने आपसे कहा था कि अब आपसे हमारी मुलाक़ात होगी कल रात 9 बजे, तब मुझे इस बात का जरा सा भी आभास नहीं था कि कल क्या होने वाला है. हम अक्सर जब वर्तमान में भविष्य की योजना बना लेते हैं, तब इसका अनुमान लगाना संभव नहीं होता और ये हर किसी के लिए एक जैसा है. हम कल क्या करने वाले हैं और कल क्या होगा, उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता लेकिन फिर भी हम योजनाएं बनाते हैं.

18 मई को जब पहली बार मेरी तबीयत बिगड़ी और मेरे शरीर में कोरोना के लक्षण दिखे, तब भी मैं उस समय DNA करने के बारे में सोच रहा था. मेरा कोरोना का टेस्ट हुआ था और मुझे उम्मीद थी कि रिपोर्ट निगेटिव आएगी क्योंकि, मैं अपना काफी ध्यान रख रहा था और वैक्सीन की दोनों डोज भी लगवा चुका था, लेकिन फिर मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई और मैं 12 दिनों तक अस्पताल में रहा. ये 12 दिन, एक घड़ी के जैसे थे. समय का कांटा जैसे जैसे घूम रहा था और वक्त घट रहा था, वैसे वैसे मेरी चिंता भी बढ़ रही थी. इस दौरान मैंने कई बातें महसूस कीं.

इनमें सबसे पहला था वो दर्द, जिससे कोरोना से संक्रमित होने वाला हर मरीज और उसके करीबी रिश्तेदार और दोस्त गुजरते हैं.

भारत में कोरोना वायरस की दो लहर आ चुकी हैं और इन दोनों लहरों में अब तक 2 करोड़ 95 लाख लोग संक्रमित हुए हैं.

हर एक व्यक्ति के जीवन में औसतन 10 लोग ऐसे होते हैं, जो उससे जुड़ी घटनाओं से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं.

यानी इस हिसाब से देखें तो भारत में लगभग 3 करोड़ लोगों को कोरोना हुआ, लेकिन इस महामारी का सामना 30 करोड़ लोगों ने किया.

इसी तरह इस वायरस की दोनों लहरों में अब तक 3 लाख 74 हजार मौतें हुई हैं और जब किसी व्यक्ति की मृत्यु कोरोना से होती है तो उसके अंतिम संस्कार में अधिकतम 20 लोग शामिल होते हैं. इस हिसाब से देखें तो कोरोना से मौत तो 4 लाख से कम हुईं है, लेकिन इस दर्द से लगभग 75 लाख लोग सीधे तौर पर गुजरे हैं.

महामारी ने करोड़ों लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया

कहने का मतलब ये है कि इस महामारी ने करोड़ों लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया है और इन लोगों में अब मैं भी शामिल हो गया हूं. जब मैं 12 दिनों तक अस्पताल के कोविड वार्ड में भर्ती था, तब मुझे यही लगता था कि जैसे मृत्यु वार्ड के बाहर चक्कर लगा रही है और कभी भी किसी का नम्बर आ सकता है. कई बार ऐसा भी हुआ, जब अस्पताल में रात के समय हलचल बढ़ जाती थी और मन घबराने लगता था.

इस माहौल में मेरे लिए और वहां भर्ती किसी भी मरीज़ के लिए खुद को सम्भाल पाना आसान नहीं था. ऐसा लगता था कि मृत्यु हर समय हम पर नज़र रख रही है और किसी भी पल वो अंदर आकर हमें ले जाएगी. कई लोग थे, जो घर से अस्पताल आए लेकिन जिंदा घर नहीं लौटे. ये सबसे मुश्किल समय था. हालांकि इस मुश्किल समय में कुछ लोग थे, जो हमें बचाने की पूरी कोशिश कर रहे थे.

ये लोग हैं अस्पताल के डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ. इस कोरोना काल में जब लोग घर में बंद हैं और वायरस से खुद को और अपनों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, तब अस्पताल के डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ कोविड के बीच रहते हुए काम कर रहे हैं और ये बात मैंने अस्पताल में रहते हुए महसूस की. कोरोना के मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर्स PPE किट में आते थे और मैं उन्हें देख भी नहीं पाता था, लेकिन वो हमारी देखभाल कर रहे थे.

भारत में कुल 69 हजार सरकारी और प्राइवेट अस्पताल हैं और इन अस्पतालों में 12 लाख डॉक्टर्स काम करते हैं और इस महामारी में यही डॉक्टर्स एक जवान की तरह कोरोना रूपी दुश्मन से लड़ रहे हैं. इस दौरान कई डॉक्टरों को कोरोना भी हुआ, कई डॉक्टरों की इसकी वजह से जान भी गई, लेकिन इन मौतों के डर से कोई डॉक्टर अपने कर्तव्य को नहीं भूला. आज भी ये डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स कोरोना को हराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

कौन हमसे मन से जुड़ा है?

इस बीमारी में मैंने और मेरे जैसे करोड़ों लोगों ने एक और बात सीखी है. इस महामारी से ये समझ में आया कि कौन हमसे मन से जुड़ा हुआ है.

आप सब ज़िंदगी में बहुत बार बीमार हुए होंगे, बहुत बार आपको सर्दी, ज़ुकाम, बुखार या बहुत लोगों को इससे बड़ी-बड़ी बीमारियां हुईं होंगी. बहुत सारे लोगों की सर्जरी भी हुई होगी और फिर हम उसमें से निकल आते हैं और धीरे-धीरे उसे भूल जाते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि जो लोग कोविड से संक्रमित हुए हैं वो जीवन भर उस दौर को भूल नहीं पाएंगे और उनके परिवार भी उसे भूल नहीं पाएंगे.

कोविड से पहले और कोविड के बाद

इसलिए ये एक नया अध्याय है और आप अपने जीवन को इसी मुताबिक, दो हिस्सों में बांट सकते हैं. प्री-कोविड और पोस्ट कोविड यानी कोविड से पहले और कोविड के बाद. मैं भी आज अपने जीवन का वो अध्याय शुरू कर रहा हूं जो पोस्ट कोविड अध्याय है.

जब आप कोविड के बाद वाले अध्याय को शुरू करते हैं तो आपकी बहुत सारी विचारधाराएं बदल जाती हैं, बहुत सारी सोच बदल जाती है. दस-पंद्रह दिन या एक महीने का ये जो दौर है, ये इतने सबक सिखाकर जाता है, जो आपके अनुभव को इतना रिच बना देता है कि अब जीवन भर आपको इसका लाभ मिलता है और इसी के बारे में आज मैं आपको बता रहा हूं.

ऐसा नहीं है कि मैं पहली बार बीमार हुआ था या लोग पहली बार बीमार हुए हैं. इससे पहले भी लोग अस्पताल गए है और इलाज कराया है. हालांकि तब आपके परिचित आपको देखने के लिए फूल और फल के साथ आते थे. Get Well Soon के कार्ड्स भेजते थे.

लेकिन इस बीमारी में तो ऐसा संभव ही नहीं है. लोग न तो मिल सकते हैं और न ही फूल, कार्ड्स और फल लेकर मरीज से मिलने के लिए जा सकते हैं. ऐसे में इस बीमारी ने सिखाया कि कौन हमारे साथ मन से जुड़ा है. जब मैं कोरोना से संक्रमित हुआ तो मेरे पास ऐसे कुछ लोग थे, जो खतरे के बावजूद मेरी मदद करना चाहते थे और इसके पीछे उनका कोई स्वार्थ नहीं था न ही कोई औपचारिकता थी.

असल में ये मन का जुड़ाव था. आज के दौर में जब ऑर्गेनिक सब्जियों और फलों की खूब मांग है, ऑर्गेनिक रिश्तों का महत्व भी कोरोना वायरस ने हमें सिखाया है. इससे हमें पता चला है कि रिश्तों में एक दूसरे के प्रति शुद्ध भावनाओं का क्या अर्थ होता है.

जहां इस महामारी से पहले लोग स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देते थे, अनुशासन का महत्व नहीं समझते थे और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लेते थे, वो लोग अब इनका महत्व समझने लगे हैं और ये बदलाव मेरे जैसे करोड़ लोगों में आया है.

आज मैं जो आपको कहानी बता रहा हूं, ये कहानी सिर्फ मेरी नहीं है, बल्कि ये मेरे जैसे करोड़ों लोगों की कहानी है, जो अस्पताल गए, जिन्होंने अस्पताल में भर्ती अपने लोगों की सेवा की और उनमें से कई लोगों ने अपनों को खो दिया.

हिन्दू धर्म में कहा गया है कि मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है. यानी कुछ क्षण में खत्म हो जाता है, लेकिन ये भी सच है कि ये कुछ क्षण मनुष्य के हाथ में ही होते हैं कि वो उन्हें कैसे जीना चाहता है. 27 साल के करियर में पहली बार हुआ, जब 27 दिनों तक मैं अपने काम से दूर रहा. हालांकि इस दौरान मैंने 27 बार सूर्य का उदय और सूर्य को अस्त होते हुए देखा. पहले मैं कभी इसके लिए समय नहीं निकाल पाया था. इससे ये भी पता चला कि एकांत में बहुत ताकत है.

वर्ष 1817 में जब दुनिया की पहली साइकिल बनी थी, तब उसमें ब्रेक नहीं थे, लेकिन इसके बावजूद लोगों ने इस साइकिल को क्रांतिकारी खोज माना और यूरोप के देशों में साइकिल का इस्तेमाल काफ़ी बढ़ गया, लेकिन ब्रेक नहीं होने की वजह से ये साइकिल दुर्घटनाओं की वजह बनने लगी और इन्हें चलाने में जोखिम बढ़ गया. हालांकि इसके कई दशकों के बाद इंसान ने ब्रेक के महत्व को समझा और साइकिल में ब्रेक का विकल्प मिलने लगा.

तब ब्रेक वाली साइकिलों ने लोगों को ये संदेश दिया कि लाइफ का हैंडल और ब्रेक आपके हाथ में होना चाहिए और ब्रेक हमेशा बुरा नहीं होता. कई बार ब्रेक नई शुरुआत को एक रूप देता है और मैं भी एक ऐसी ही शुरुआत आज से कर रहा हूं.

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