देश में 1 मई 1961 को दहेज उत्पीड़न रोकने का कानून बना था और इसका उद्देश्य था, दहेज की वजह से महिलाओं के उत्पीड़न और मौत को रोका जा सके. कानून तो बन गया, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सका.
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नई दिल्ली: अब हम एक ऐसे वीडियो का विश्लेषण करेंगे, जो काफी संवेदनशील है और देशभर में काफी वायरल है. ये वीडियो आपने शायद देखा भी हो. इसे अहमदाबाद में आयशा नाम की एक महिला ने आत्महत्या करने से पहले रिकॉर्ड किया था. वीडियो में दहेज उत्पीड़न से परेशान आयशा अपनी बात कह रही हैं और इसके बाद वह आत्महत्या कर लेती हैं.
हम ये कहना चाहते हैं कि आत्महत्या समाधान नहीं समस्या है. दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे हम बातचीत से हल नहीं कर सकते हैं, लेकिन आयशा ये नहीं समझ सकीं और अब वो हमारे बीच नहीं हैं. आयशा के पति आरिफ खान को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है लेकिन उसे अपनी पत्नी की मौत का कोई गम नहीं है. कोई पछतावा नहीं है. हालांकि आयशा के पिता अपनी बेटी के लिए परेशान हैं.
इस मामले ने देश में एक बार फिर दहेज प्रथा के प्रति लोगों को जगा दिया है. इस पर AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का एक भाषण बहुत चर्चा में है. वैसे तो हम उनकी राजनीति का विरोध करते हैं क्योंकि, वो समाज को बांटने वाली राजनीति करते हैं लेकिन आज हम उनके भाषण की तारीफ करेंगे.
देश में 1 मई 1961 को दहेज उत्पीड़न रोकने का कानून बना था और इसका उद्देश्य था, दहेज की वजह से महिलाओं के उत्पीड़न और मौत को रोका जा सके. कानून तो बन गया, लेकिन उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सका. लोग इसका गलत इस्तेमाल करने लगे और बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों को फंसाया जाने लगा.
इसी का नतीजा था कि देश की संसद को वर्ष 1983, 1984, 2005 और 2014 में इस कानून में संशोधन करने पड़े. वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, दहेज उत्पीड़न के 47 हजार केस दर्ज हुए, लेकिन सजा केवल 13 प्रतिशत केस में मिली. वर्ष 2006 से 2017 के बीच दहेज उत्पीड़न के पेंडिंग केस की संख्या पिछले सालों की तुलना में करीब ढाई गुना बढ़ गई.