अमेरिका के अखबार The New York Times में 16 फरवरी को एक फुल पेज एड छपा है, जो भारत में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में है. आइए जानते हैं कि इस विज्ञापन में क्या लिखा गया है.
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नई दिल्ली: DNA में आज हम आपको किसानों के 1 करोड़ 80 लाख रुपये वाले विज्ञापन के बारे में बताएंगे. ये विज्ञापन किसानों के हितों के नाम पर अमेरिका के अखबार The New York Times में छपा है. 16 फरवरी को इस समाचार पत्र में एक पूरे पेज का विज्ञापन प्रकाशित किया गया है. विज्ञापन भारत में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में है.
इस विज्ञापन को एक NGO ने छपवाया है और समर्थन के तौर पर 70 से ज्यादा संस्थाओं और व्यक्तियों के हस्ताक्षर भी इस विज्ञापन पर मौजूद हैं. इनमें से से किसी भी व्यक्ति का सीधे तौर पर भारत और भारत के किसान से कोई संबंध नहीं है. किसानों के नाम पर छापे गए इस विज्ञापन में ऐसे कई नाम मौजूद हैं जिन्हें देखकर आप समझ सकते हैं कि किसान के नाम पर 1 करोड़ 80 लाख रुपये वाली कागजी हमदर्दी का मकसद क्या है.
विज्ञापन में समर्थन के तौर पर एमनेस्टी इंटरनेशनल की अमेरिकी ब्रांच का नाम लिखा है. वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल जो भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर भारत विरोधी प्रोपेगेंडा चलाती है. प्रवर्तन निदेशालय ने मंगलवार को यानी कल ही एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की दो संस्थाओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में बैंक में जमा 17 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति जब्त की है.
इसी विज्ञापन में Signatory यानी समर्थन के तौर पर काउंसिल ऑफ अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस संस्था का भी नाम है. ये संस्था अमेरिका की है. ये संस्था अमेरिका में मुसलमानों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करने का दावा करती है. काउंसिल ऑफ अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस कश्मीर की आजादी की वकालत करती है. अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के वक्त भी ये संस्था काफी सक्रिय थी. इस संस्था पर अमेरिका में रहते हुए आतंकवादी संगठन हमास को वित्तीय मदद करने के आरोप लगे हुए हैं. अमेरिका में इसकी जांच जारी है.
किसानों को समर्थन देने वाले इस विज्ञापन के प्रकाशन का खर्च जिस एनजीओ ने उठाया है, अब हम आपको उसके बारे में बताते हैं. Justice For Migrant Women नाम के एक NGO ने इस विज्ञापन के लिए 2 लाख 46 हज़ार 562 डॉलर खर्च किए हैं. भारतीय रुपयों में ये रकम 1 करोड़ 80 लाख है. न्यूयॉर्क टाइम्स में पूरे पेज का ब्लैक एंड व्हाइट विज्ञापन प्रकाशित करने की यही कीमत है. इस संस्था की संचालक Monica Ramirez नाम की महिला हैं. ये मीना हैरिस की करीबी हैं.
मीना हैरिस पिछले कई दिनों से भारत के किसानों के समर्थन में ट्वीट कर रही हैं. इन ट्वीट्स में भारत की सरकार की मंशा पर शक जताया गया है. मीना हैरिस भारत में भयावह माहौल होने की बात कर रही हैं.
To the farmers of India, We rise alongside you in peaceful protest in the defense of democratic values & for the protection of human rights. #FarmersProtest pic.twitter.com/24p9867MoI
— Monica Ramirez (@MonicaRamirezOH) February 16, 2021
अब आप ज़रा सोचिए, अमेरिका में बैठे लोगों को ऐसा कौन सा दर्द हुआ कि 1 करोड़ 80 लाख खर्च करके किसानों को समर्थन का संदेश लिखवाया गया है. हमदर्दी वाली इस चिट्ठी के बहाने भारत की स्थिरता पर निशाना साधा जा रहा है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये हमने आपको इस चिट्ठी के हमदर्दों के नाम और उनके परिचय पत्र बता कर साफ कर दिया है.
अमेरिका पिछले कई वर्षों से भारत पर कृषि सब्सिडी खत्म करने का दबाव बना रहा है. अमेरिका का मानना है कि भारत में किसानों को जो सब्सिडी मिलती है उससे इंटरनेशनल मार्केट में उसके जैसे देशों को नुकसान होता है. सब्सिडी की वजह से भारतीय कृषि उत्पादों की लागत कम होती है, इसलिए उसके दाम भी कम होते हैं. एक ओर अमेरिका को किसानों को मिलने वाली सब्सिडी की राहत से दिक्कत है और दूसरी तरफ वहीं कुछ लोगों को किसानों से हमदर्दी है. दोनों ही बातों में निशाने पर भारत का अहित है.
देखने में आपको ये साधारण अखबार का साधारण विज्ञापन लग सकता है. लेकिन ऐसा है नहीं. ये दुनिया के प्रतिष्ठित और सबसे महंगे अखबारों में से एक अमेरिका के The New York Times में 16 फरवरी को छपा फुल पेज एड यानी पूरे पेज का विज्ञापन है. ये विज्ञापन भारत के किसानों के बारे में है. सबसे पहले आपको विस्तार से ये बताते हैं कि ये विज्ञापन क्या कह रहा है-
WE-FARMERS, ACTIVISTS, AND CITIZENS OF THE WORLD- STAND IN SOLIDARITY WITH FARMERS IN INDIA PROTESTING TO PROTECT THEIR LIVELIHOOD.
हम दुनिया के किसान, एक्टिविस्ट और नागरिक भारत के किसानों के साथ हैं जो अपनी आजीविका को बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. इस विज्ञापन में कहा गया है कि भारत के बड़े कॉरपोरेट किसानों की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं. ये भी कहा गया है कि किसान तीनों कृषि कानूनों का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये उनके लिए जीवन और मरण का प्रश्न है.
अब हम आपको ये बताते हैं कि ये विज्ञापन किसने दिया है. विज्ञापन वाले पेज पर आखिरी लाइन में लिखा है कि इस विज्ञापन का पैसा JUSTICE FOR MIGRANT WOMEN नाम के एनजीओ ने दिया है. JUSTICE FOR MIGRANT WOMEN एनजीओ Monica Ramirez नाम की महिला का है. ये खुद को महिला शरणार्थियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक्टिविस्ट बताती हैं. मोनिका माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर खुद को मीना हैरिस की दोस्त और बहन बताती हैं. मीना हैरिस अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी हैं.
इससे पहले कि हम आपको ये बताएं कि अमेरिका के अखबार के इस पेज पर भारत के किसान कैसे पहुंचे हैं. आप ये जान लीजिए कि इस विज्ञापन की कीमत क्या है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की वेबसाइट के मुताबिक, अगर कोई विज्ञापन फुल पेज छपता है तो उसके लिए 1 लाख 78 हज़ार 733 डॉलर खर्च करने होंगे, जो कि भारतीय रुपयों में लगभग 1 करोड़ 30 लाख है. अगर विज्ञापन को इंटरनेशनल एडिशन के साथ साथ एशिया और यूरोप में भी पहुंचाना है तो 67 हज़ार 929 डॉलर अलग से लगेंगे. यानी इस विज्ञापन की कीमत हुई 2 लाख 46 हज़ार 562 डॉलर. भारतीय रुपयों के मुताबिक देश के अन्नदाता को समर्पित इस विज्ञापन की कीमत 1 करोड़ 80 लाख रुपए बनती है.
किसानों के नाम पर भारत को अस्थिर करने का इंटरनेशनल एजेंडा अब किसी से छिपा नहीं है. विज्ञापन का समर्थन करने वालों में एमनेस्टी इंटरनेशनल की अमेरिका ब्रांच समेत तमाम ऐसे नाम शामिल हैं जो भारत में मानवाधिकारों के नाम पर सरकार विरोधी प्रोपेगेंडा चला रहे हैं.
भारत द्वारा कृषि क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी का अमेरिका पिछले कई दशकों से विरोध कर रहा है. विरोध के पीछे अमेरिका का तर्क है कि भारत अपने किसानों को सब्सिडी देता है जिससे उनकी फसल की लागत कम आती है. इस वजह से भारतीय किसान का उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में बाकी देशों के मुकाबले सस्ता होता है और कीमत के लिहाज से प्रतियोगिता में भारत आगे निकल जाता है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका के कई सेलेब्रिटीज और NGO कृषि कानूनों के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैलाने में व्यस्त हैं. पहले टूलकिट और अब न्यूयॉर्क टाइम्स का विज्ञापन इसी कड़ी का हिस्सा है. लेकिन अब किसान आंदोलन के पीछे छिपे एजेंडे का सच देश के सामने आ चुका है. इसलिए दिल्ली के तीनों बॉर्डर पर अब न किसान हैं और न उनके हमदर्द. मुट्ठीभर आंदोलनजीवियों की टुकड़ियां मोर्चे पर तैनात हैं और किसान खेत में लौट चुका है.