भारत के खिलाफ ग्‍लोबल साजिश, समझिए Farmers Protest के अंतरराष्‍ट्रीयकरण की पूरी कहानी
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भारत के खिलाफ ग्‍लोबल साजिश, समझिए Farmers Protest के अंतरराष्‍ट्रीयकरण की पूरी कहानी

Farmers Protest: दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 70 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है और अब इस आंदोलन का रिमोट कंट्रोल भारत से दूसरे देशों में शिफ्ट हो गया है और इन्हीं देशों से अब इस आंदोलन को नियंत्रित किया जा रहा है. 

भारत के खिलाफ ग्‍लोबल साजिश, समझिए Farmers Protest के अंतरराष्‍ट्रीयकरण की पूरी कहानी

नई दिल्‍ली:  आज हम कुछ तस्वीरों की बात करेंगे. इनमें पहली तस्वीर रिआना की है, जो अमेरिका की मशहूर पॉप सिंगर हैं.  दूसरी तस्वीर स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग की है और तीसरी तस्वीर एडल्‍ट फिल्‍म इंडस्‍ट्री में काम कर चुकी अमेरिका की एक मॉडल मिया खलीफा की है. 

  1. ब्रिटेन की मेंबर ऑफ पार्लियामेंट क्लाउडिया वेब किसान आंदोलन को लेकर ब्रिटिश संसद में बहस कराना चाहती हैं. 
  2. इसके लिए लेबर पार्टी की सांसद क्‍लाउडिया वेब ने एक सिग्‍नेचर कैंपेन भी चलाया.
  3. क्‍लाउडिया का दावा है कि सिग्‍नेचर कैंपेन को अब तक एक लाख से ज्यादा लोग समर्थन दे चुके हैं.  

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दुनिया की इन तीन बड़ी शख्सियतों में इतनी असमानताएं हैं कि इन्हें किसी एक विषय पर साथ देखने के बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. लेकिन किसान आंदोलन इन तीनों को एक साथ ले आया और इससे ये बात साबित होती है कि इस आंदोलन के पीछे बहुत बड़ी ताकत का हाथ है. 

6 पन्नों के डॉक्‍यूमेंट में देश को बदनाम करने का पूरा प्‍लान

ये ताकत कितनी बड़ी है और इसकी साजिश कितनी खतरनाक है. इसका पूरा चिट्ठा हमारे पास है.  ये 6 पन्नों का डॉक्‍यूमेंट है और इस डॉक्‍यूमेंट में भारत को किसान आंदोलन के नाम पर बदनाम करने का पूरा प्‍लान लिखा हुआ है. आप चाहें तो इसे भारत के खिलाफ विदेशी ताकतों का साजिश पत्र भी कह सकते हैं. 

6 पन्नों के इस डॉक्‍यूमेंट में क्या लिखा है. वो आपको जानना चाहिए. सबसे पहले इस दस्तावेज के दूसरे पन्ने पर लिखे-अर्जेंट एक्‍शन प्‍लान के बारे में जानिए. 

इसमें लिखा है कि चार और पांच फरवरी को बड़ा ट्विटर अभियान चलाया जाएगा और ये अभियान Twitter Storm नाम से होगा. 

फिर लिखा है - 13 और 14 फरवरी को विदेशों में भारतीय दूतावास और सरकारी संस्थानों के आस पास बड़े प्रदर्शन किए जाएंगे. यानी ये भी पहले से ही तय था. 

इस दस्‍तावेज में लिखा है, 26 जनवरी के लिए जो प्‍लान तैयार किया गया था पूरी दुनिया और भारत में बिल्कुल वैसा ही हुआ है. 

इसमें एक खास ईमेल एड्रेस  Scrap Farmers Act @ Gmail. Com पर किसानों के समर्थन में फोटो और वीडियो भेजने की बात कही गई है. 

साथ ही इसमें हैशटैग Ask india why के साथ डिजिटल स्ट्राइक करने की बात भी लिखी है और भारत के प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री के अलावा International Monetary Fund, World Trade Organization और वर्ल्‍ड बैंक को इसमें टैग करके कृषि बिल का विरोध करने की अपील की गई है. 

26 जनवरी को भारत और विदेशों में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना है. ये भी इसमें लिखा है और इससे ये बात साबित होती है कि 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा संयोग नहीं, बल्कि एक प्रयोग था. 

भारत के बड़े उद्योगपतियों की कंपनियों और दफ्तरों  के बाहर प्रदर्शन करें. ये भी इस दस्‍तावेज में लिखा हुआ है. 

दस्तावेज में ये भी बताया गया कि किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए आप क्या करें. 

लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश 

26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर देश की राजधानी दिल्ली में क्या हुआ था. आप सब जानते हैं.  तब भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई थी और इस साजिश पत्र से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि ये सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी साजिश थी और ये साजिश अब भी भारत के खिलाफ काम कर रही है.

ब्रिटेन की सांसद का सिग्‍नेचर कैंपेन 

अमेरिका की पॉप स्‍टार रिआना, एनवॉयरमेंटल एक्टिविस्‍ट  ग्रेटा थनबर्ग और पॉर्न स्टार मिया खलीफा के बाद अब ब्रिटेन की मेंबर ऑफ पार्लियामेंट क्लाउडिया वेब किसान आंदोलन को लेकर ब्रिटिश संसद में बहस कराना चाहती हैं.  इसके लिए लेबर पार्टी की सांसद क्‍लाउडिया वेब ने एक सिग्‍नेचर कैंपेन भी चलाया.  क्‍लाउडिया का दावा है कि सिग्‍नेचर कैंपेन को अब तक एक लाख से ज्यादा लोग समर्थन दे चुके हैं.  इसलिए अब किसान आंदोलन का मुद्दा ब्रिटिश पार्लियामेंट में बहस के योग्य है क्योंकि, यूके की संसद के नियमों के मुताबिक 1 लाख से ज्‍यादा दस्तखत वाला कोई भी पिटीशन संसद में बहस के योग्य हो जाता है. 

ब्रिटेन की एक सांसद क्‍लाउडिया वेब ने ट्विटर पर ये दावा किया कि भारत में लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ एक लाख हस्ताक्षर हो चुके हैं और अब ब्रिटेन की संसद में भी इस पर बहस होगी. यानी भारत के खिलाफ जो विदेशी ताकतें काम कर रही हैं, वो अब धीरे धीरे एक्‍सपोज होने लगी हैं.  ब्रिटेन में ये नियम है कि अगर किसी भी मुद्दे पर 1 लाख से अधिक लोग जुड़ते हैं, तो इसपर वहां की संसद में बहस होती है.  वहां पर इस सिग्‍नेचर कैंपेन  को गुरचरण सिंह नाम के एक व्यक्ति ने शुरू किया था.  इस व्यक्ति ने ब्रिटेन की सरकार से भारत में किसानों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने की मांग की. कुल मिलाकर भारत को बदनाम करने के लिए ये ऑनलाइन कैंपेन शुरू किया गया. 

विदेश मंत्री एस जयशंकर का ट्वीट 

भारत के खिलाफ चलाए जा रहे इंटरनेशनल प्रोपेगेंडा पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया है. उन्होंने कहा है कि भारत को निशाना बनाकर चलाए जा रहे अभियान कभी सफल नहीं होंगे. हमें खुद पर विश्वास है, हम अपने दम पर खड़े रहेंगे.  भारत इस साजिश को कामयाब नहीं होने देगा. 

यानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 70 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है और अब इस आंदोलन का रिमोट कंट्रोल भारत से दूसरे देशों में शिफ्ट हो गया है और इन्हीं देशों से अब इस आंदोलन को नियंत्रित किया जा रहा है. 

किसान आंदोलन एक प्रोडक्‍ट बन कर रह गया

ये ठीक उस मार्केटिंग स्‍ट्रैटजी की तरह है, जिसमें किसान आंदोलन एक प्रोडक्‍ट बन कर रह गया है और इस प्रोडक्‍ट को बड़े-बड़े सेलिब्रिटीज एंडोर्स कर रहे हैं यानी इसका प्रचार कर रहे हैं. यहां बता दें कि जब कोई सेलिब्रिटी किसी प्रोडक्ट का प्रचार करता है तो इसे मार्केटिंग की भाषा में Profit Making Strategy कहते हैं. 

गणित में कोण यानी एंगल्‍स का एक सिद्धांत होता है.  आपने भी शायद इसके बारे में पढ़ा होगा.  इसमें जब कोई रेखा अपने एक सिरे को स्थिर रख कर घूमती हुई अपनी स्थिति में परिवर्तन करती है तो इसे ही कोण कहते हैं और हमें लगता है कि कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन का कोण भी बदल गया है और आप चाहें तो इसे विषम कोण कह सकते हैं. यानी जब परिस्थितियां विषम यानी खिलाफ होने लगती हैं, तो विषम कोण बनता है.  किसान आंदोलन भारत के खिलाफ ऐसा कोण बनाता हुआ ही नजर आ रहा है और इससे खुश होने वाले लोगों को भी आज आपको पहचानना चाहिए. 

क्‍या है पूरा मामला?

इसके लिए पहले आपको ये समझना होगा कि पिछले 24 घंटे में क्या क्या हुआ? तो पिछले 24 घंटे में ये बात पूरी तरह स्पष्ट हो गई कि किसान आंदोलन का रिमोट कंट्रोल भारत से दूसरे देशों के पास पहुंच चुका है और इसे आप कुछ ट्वीट्स के जरिए समझ सकते हैं. 

पहला ट्वीट अमेरिका की मशहूर पॉप सिंगर रिआना का है, जिन्होंने भारत में प्रदर्शन स्थलों पर इंटरनेट सेवाएं बंद करने से जुड़ा एक आर्टिकल शेयर करते हुए लिखा कि हम इसके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं? उन्होंने किसानों के आंदोलन के समर्थन में हैशटैग Farmers Protest पर भी ट्वीट किया. 

ट्विटर पर रिआना के 10 करोड़ से ज्‍यादा फॉलोअर्स हैं और 2012 में फोर्ब्‍स ने रिआना को दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर सेलिब्रिटी माना था. इसमें सबसे अहम ये है कि जब वो किसी कंपनी या उसके प्रोडक्ट को एंडोर्स करने के लिए कोई पोस्ट करती हैं, तो उन्हें इसके बदले में 3 करोड़ 27 लाख रुपये मिलते हैं. अब आप समझ सकते हैं कि ये किसान आंदोलन के समर्थन से ज्‍यादा असल में एक मार्केटिंग स्‍ट्रैटजी का हिस्सा है. जिसमें किसान आंदोलन एक प्रोडक्‍ट बन कर रह गया है. 

यहां एक समझने वाली बात ये भी है कि रिआना का जन्म अमेरिका में नहीं, बल्कि बार्बाडोस में हुआ था, जो प्रशांत महासागर के कैरिबियन द्वीप पर स्थित है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बार्बाडोस ने भारत से कोरोना वायरस की दो लाख वैक्सीन मांगी हैं और भारत किसी भी पल ये वैक्सीन बार्बाडोस को भेज सकता है. सोचिए रिआना के देश को भारत एक तरफ वैक्सीन भेज रहा है और दूसरी तरफ रिआना भारत के खिलाफ किसान आंदोलन को एंडोर्स कर रही हैं. 

दूसरा ट्वीट स्वीडन की एक पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग का है.  इस ट्वीट में ग्रेटा ने लिखा है कि हम भारत में किसान आंदोलन  के साथ एकजुटता से खड़े हैं और सबसे अहम ग्रेटा ने भी वही आर्टिकल शेयर करते हुए ट्वीट किया है, जिस आर्टिकल को रिआना ने भी शेयर किया था.

ग्रेटा थनबर्ग दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए जानी जाती हैं और इसके लिए उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की भी आलोचना की थी.

लेकिन हमारा यहां सवाल ये है कि क्या ग्रेटा थनबर्ग को ये पता है कि जिन किसानों का उन्होंने समर्थन किया, वही किसान सीमित संसाधनों की वजह से भारत में पराली जला कर प्रदूषण फैलाते हैं और पिछले दिनों किसानों ने सरकार के सामने ये मांग भी रखी थी कि पराली जलाने पर कार्रवाई के नियमों को खत्म कर देना चाहिए और सरकार ने किसानों के दबाव में आकर ये मांगें मान भी ली थीं. 

अब यहां दो अहम बातें हैं, पहली तो ये कि अगर ग्रेटा थनबर्ग इन सबके के बारे में जानती हैं तो क्या पर्यावरण के लिए उनका प्रेम झूठा और दिखावटी है? और दूसरी बात ये कि अगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं है तो फिर उन्होंने बिना रिसर्च किए ही आंदोलन कर रहे किसानों को अपना समर्थन कैसा दे दिया. 

इन दोनों बातों को समझने के बाद एक गंभीर सवाल ये भी उठता है कि फिर क्यों न ये माना जाए कि किसानों के आंदोलन को मिल रहा ये समर्थन सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, पूरी तरह से प्रायोजित है और मार्केटिंग कंपनियां अपनी कमाई और भारत की बदनामी के लिए ग्रेटा थनबर्ग और रिआना जैसी सेलिब्रिटीज का इस्तेमाल कर रही हैं. 

रिआना और ग्रेटा की तरह अमेरिका की एक मॉडल और पॉर्नस्‍टार मिया खलीफा भी इसमें पीछे नहीं है. उन्होंने किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए एक ट्वीट किया है कि ''भारत में मानवाधिकार उल्लंघनों पर ये क्या चल रहा है? उन्होंने नई दिल्ली के आसपास के इलाकों में इंटरनेट काट दिया है?''

भारतीय किसानों के प्रति मिया खलीफा की हमदर्दी दिखावटी क्यों है, इसे आप 2015 में उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट से समझ सकते हैं. इस ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि वो भारत की जमीन पर कभी पैर रखना नहीं चाहेंगी. सोचिए जिस व्यक्ति को कल तक भारत से इतनी नफरत थी, उसके मन में किसानों के लिए उमड़ा ये प्रेम सच्चा कैसे हो सकता है?

भीड़ को बनाया गया प्रोपेगेंडा का हिस्सा

मार्केटिंग की भाषा में समझें तो अब किसी मुद्दे पर समर्थन जुटाने का ये नया तरीका बन गया है.  जैसे कोई सेलिब्रिटी किसी ब्रांड को एंडोर्स करता है, ठीक वैसे ही अब इन सेलिब्रिटीज का इस्तेमाल ऐसे मुद्दों के लिए भी होने लगा है, जिसमें भीड़ को उस प्रोपेगेंडा का हिस्सा बनाया जाता है, जिसकी डोर मुट्ठीभर लोगों के हाथों में होती है. किसान आंदोलन के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ है. 

ये आंदोलन जब शुरू हुआ था तब इसका मकसद था कृषि कानूनों को रद्द कराना लेकिन जिस दिन से इस आंदोलन ने झूठ के हाईवे पर चलना शुरू किया उस दिन से ही ये आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया और 26 जनवरी को हम इस भटके हुए आंदोलन का असली चेहरा भी देख चुके हैं.

आज की परिस्थितियों से समझें तो किसान आंदोलन का न सिर्फ अंतरराष्‍ट्रीयकरण हो चुका है, बल्कि इस आंदोलन पर पैसों की बरसात हो रही है. मार्केटिंग कंपनियां इस आंदोलन को अच्छा दिखाने के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं और ये ठीक वैसा ही है जैसे स्वास्थ्य के लिए खराब माने जाने वाले प्रोडक्‍ट्स का भी इस तरह  प्रचार किया जाता है, जैसे ये प्रोडक्‍ट्स आपकी जिंदगी बदल देंगे. लेकिन जब आप इन प्रोडक्‍ट्स को इस्तेमाल करते हैं तो इन कंपनियों की पोल खुल जाती है. 

आज भारत सरकार की तरफ से भी इस पर एक बयान जारी किया गया है. इसमें लिखा है कि हम अपील करते हैं कि इस तरह के विषयों पर प्रतिक्रिया देने से पहले तथ्यों का पता लगाया जाए और इन मुद्दों को अच्छे से समझा जाए. सोशल मीडिया पर सनसनीखेज हैशटैग लगाने और कमेंट करने का लालच न तो पूरी तरह से सही है और न ही जिम्मेदाराना है, खासकर तब जब ऐसा जाने-माने और अन्य लोग करते हैं. ये बयान सरकार की तरफ से आया है.

मुट्ठीभर लोगों को फायदा पहुंचा रहीं मार्केटिंग कंपनियां 

आज आपको उन कंपनियों की Chronology भी समझनी चाहिए, जो मुट्ठीभर लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए काम करती हैं. 

दुनियाभर में ऐसी लाखों कम्पनियां हैं, जो Lobbying का काम करती हैं. यानी ये कंपनियां किसी परछाई की तरह होती हैं. जिन्हें आप अदृश्य ताकतें भी कह सकते हैं. ऐसी कंपनियां ही किसी एक विषय पर हजारों-लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठा करती हैं और उस विषय पर लोगों का ध्यान खींचा जाता है और ऐसा करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं. 

एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में अमेरिका में लोगों का ध्यान अपनी नीतियों और विषयों की तरफ आकर्षित करने के लिए लगभग 25 हज़ार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. अब आप समझ सकते हैं कि ये व्यापार कितना बड़ा है.

इतिहास में हुई कुछ गलतियां

इस विषय पर हम लगातार आपको सावधान करते हैं और हमने कभी भी अपनी जिम्म्मेदारी से बचने की कोशिश नहीं है और आज भी हम आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण रिसर्च निकाल कर लाए हैं, जो आपको इतिहास में हुई गलतियों के बारे में बताएगी और आप ये समझ पाएंगे कि क्यों भारत सदियों तक गुलाम बना रहा. इसे अब आप कुछ उदाहरणों से समझिए. 

पहला उदाहरण है जयचंद का.  ऐसा कहा जाता है कि जयचंद ने दिल्ली की सत्ता के लालच में पृथ्वी राज चौहान के खिलाफ मोहम्मद गोरी  का साथ दिया था और वर्ष 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गोरी को अपनी सेना देकर पृथ्वीराज को हरा दिया था. 

जयचंद को लगता था कि उसने मोहम्मद गोरी की मदद करके दिल्ली की सत्ता में अपनी कील ठोक दी है. लेकिन उसकी ये सोच गलत साबित हुई और युद्ध जीतने के बाद मोहम्मद गोरी ने राजा जयचंद को भी मार दिया. 

दूसरा उदाहरण राजा मान सिंह का है.  15वीं सदी में जब महाराणा प्रताप भारत को आजाद कराने के लिए दर दर भटक रहे थे और देश को मुगलों से बचाने की कोशिश कर रहे थे. तब उस समय राजा मान सिंह मुगलों के साथ जाकर खड़े हो गए थे. वो मुगलों की सेना के प्रमुख थे और आमेर के भी राजा थे.  वर्ष 1576 में लड़े गए हल्दी घाटी के युद्ध में राजा मान सिंह मुगल सेना के सेनापति भी बने थे और तब महाराणा प्रताप ने राजा मान सिंह को मार कर उन्हें उनकी गद्दारी की सजा दी थी. 

तीसरा उदाहरण है मीर जाफर का,  मीर जाफर संयुक्त बंगाल का पहला नवाब था, जिसने 1757 के प्लासी युद्ध में सिराज उद दौल्ला को हराने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद ली थी.  यानी मीर जाफर भारत के खिलाफ जाकर अंग्रेजों की गोद में बैठ गया था. 

इससे मीर जाफर वर्ष 1757 से 1760 तक बंगाल का नवाब बना रहा. लेकिन अंग्रेजों ने उसके साथ वही किया, जो उसने अपने लोगों के साथ किया था. मीर जाफर को हटाने के लिए अंग्रेजों ने एक और आक्रमणकारी का सहारा लिया, जिसका नाम था मीर कासिम.

मीर कासिम वर्ष 1760 से 1763 के बीच अंग्रेजों की मदद से ही बंगाल का नवाब बना था. लेकिन मीर कासिम जब तक समझ पाता कि उसने अंग्रेजों का साथ देकर गलती की है, तब तक उसे भी मार दिया गया. 

मीर जाफर और मीर कासिम जैसे शासकों की वजह से ही भारत गुलामी की बेड़ियों में फंसता चला गया.  लेकिन आंतरिक मामलों में बाहरी ताकतों से मदद लेने की ये परंपरा यही नहीं रुकी. 

इसी तरह ग्वालियर के राजा जयाजी राव सिंधिया ने 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों का साथ दिया था. उनकी सेना और अंग्रेजों की सेना ने रानी लक्ष्मीबाई के खिलाफ युद्ध किया. जिसमें लक्ष्मी बाई वीरगति को प्राप्त हुईं. युद्ध के बाद अंग्रेजों ने सिंधिया को ग्वालियर का महाराजा होने की मान्यता दी. 

यानी इतिहास के पन्नों में दर्ज ये घटनाएं बताती हैं कि जब भी भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी ताकतों की घुसपैठ हुई, तब तब भारत को नुकसान हुआ. 

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