किसानों के इस धरने की वजह से देश की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी खतरा पैदा हो गया है. जहां-जहां ये धरना चल रहा है, उसके आस पास के शहरों की अर्थव्यवस्था को इससे बहुत नुकसान हुआ है.
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नई दिल्ली: दूसरे देशों के साथ लगी भारत की सीमाओं पर तो शांति है, लेकिन देश के ही कुछ राज्यों के बॉर्डर्स बहुत अशांत हैं. असम और मिजोरम की तरह दिल्ली के टिकरी बॉर्डर से भी हिंसा की खबर आई है. इस बॉर्डर पर किसान पिछले 8 महीनों से धरना दे रहे हैं. किसानों ने ये हिंसा तब की, जब इसी धरने में शामिल एक किसान नेता ने खालिस्तान की आलोचना करने की हिम्मत दिखाई.
इसी महीने की 21 तारीख को किसान नेता रूलदू सिंह ने अपने एक भाषण में खालिस्तानी आतंकवादी भिंडरावाले की निंदा की थी. इसके बाद 26 जुलाई को किसानों के एक गुट ने उनके टेंट पर हमला कर दिया. इस हमले में कई लोग घायल हो गए. इतना ही नहीं, रुलदू सिंह को 15 दिनों के लिए किसान आंदोलन से भी बाहर कर दिया गया.
अब संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि इस किसान नेता ने भड़काऊ भाषण दिया था. इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है, लेकिन इस किसान नेता की गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने इशारों-इशारों में भिंडरावाले की भी निंदा की और प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठन Sikh For Justice के नेता गुर पतवंत सिंह पर भी युवाओं को भड़काने के आरोप लगाए और इसी बात को लेकर उन पर और उनके टेंट पर हमला कर दिया गया.
अब आप विडंबना देखिए कि इसी किसान आंदोलन के मंच से देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्द कहे जाते हैं, उन्हें जान से मारने की धमकी दी जाती है और खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते हैं, लेकिन एक आतंकवादी की निंदा इन लोगों से बर्दाश्त नहीं होती और यही बात अब इस आंदोलन की सच्चाई बन गई है.
किसानों के इस धरने की वजह से देश की सुरक्षा ही नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी खतरा पैदा हो गया है. जहां-जहां ये धरना चल रहा है, उसके आस पास के शहरों की अर्थव्यवस्था को इससे बहुत नुकसान हुआ है. इसलिए अब हम इस आंदोलन की वजह से हरियाणा को हुए 20 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का विश्लेषण करेंगे.
टिकरी बॉर्डर से सिर्फ साढ़े तीन किलोमीटर दूर हरियाणा का एक शहर है, जिसका नाम है बहादुरगढ़.
आप में से ज्यादातर लोगों को शायद ये बात पता नहीं होगी कि भारत में हर साल जितने भी Non leather Shoes यानी बिना चमड़े वाले जूते बनते हैं. उनमें से 60 प्रतिशत का उत्पादन बहादुरगढ़ में ही होता है, लेकिन किसान आंदोलन की वजह से इनका उत्पादन घटकर सिर्फ 10 प्रतिशत रह गया है और इस उद्योग को अब तक 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है.
अब इस उद्योग से अपनी रोजी रोटी चलाने वाले लोगों को आशंका है कि अगर किसान टिकरी बॉर्डर से नहीं हटे तो इस पूरी इंडस्ट्री पर चीन की कंपनियों का कब्जा हो जाएगा. Confederation of Indian Footwear Industries के मुताबिक, बहादुरगढ़ में वर्ष 2006 में फुटवियर इंडस्ट्री की बड़े पैमाने पर शुरुआत हुई थी. इससे पहले भारत में 80 प्रतिशत Non Leather Shoes, चीन से बनकर आते थे, लेकिन वर्ष 2020 तक इसमें चीन की हिस्सेदारी घटकर सिर्फ 2 प्रतिशत रह गई थी. यानी ये Made In china पर Make In India की एक बड़ी जीत थी.
लेकिन अब किसानों के धरने की वजह से स्थितियां एक बार फिर से चीन के पक्ष में चली गई हैं. बहादुरगढ़ में इस समय जूतों का निर्माण करने वाली फैक्ट्रियों की संख्या 12 हजार से ज्यादा है, जिनसे करीब साढ़े सात लाख लोगों को रोजगार मिलता है. आंदोलन से पहले बहादुरगढ़ की इन फैक्ट्रियों में हर रोज 16 लाख जूते बनाए जाते थे, जबकि हर साल यहां की फैक्ट्रियों में 60 करोड़ जूतों का निर्माण होता था.
लेकिन अब ये उत्पादन या तो ठप हो चुका है या फिर बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है. इसका कारण ये है कि टिकरी बॉर्डर पर किसानों के धरने की वजह से अब इन फैक्ट्रियों से जूतों को दिल्ली तक पहुंचाने में 9 से 10 घंटे का समय लग जाता है, जबकि पहले इसमें सिर्फ एक से 2 घंटे का समय लगता था.
किसानों ने टिकरी बॉर्डर पर करीब 11 किलोमीटर लंबे रास्ते को घेरा हुआ है, इसलिए अब ट्रकों को दिल्ली पहुंचने के लिए 23 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. ये ट्रक दिन भर बॉर्डर पर खड़े रहते हैं और शाम को ही इन्हें बहादुरगढ़ से निकलने की इजाजत दी जाती है. इसकी वजह से ट्रांसपोर्ट की लागत भी 4 गुना बढ़ गई है.
इतना ही नहीं हिंसा के डर की वजह से इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर भी यहां आने से बचने लगे हैं.
अब इससे परेशान होकर Bahadurgarh Chamber Of Commerce and Industries ने देश के प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी है और टिकरी बॉर्डर खुलवाने की अपील की है, लेकिन किसानों की जिद देखकर लगता है कि साढ़े सात लाख लोगों की रोजी रोटी पर आया संकट जल्द दूर नहीं होगा.
मशहूर अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने कहा था कि सच जब तक अपने जूते के फीते बांधता है, तब तक झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है.
ठीक इसी तरह नए कृषि कानूनों के नाम पर फैलाया गया झूठ पिछले 8 महीने में दुनिया के कई चक्कर लगा चुका है, जबकि सच जूते के फीते बांधना तो दूर, जूतों की फैक्ट्री से भी बाहर नहीं निकल पाया है.
आज हमने इसी सच को आप तक पहुंचाने के लिए बहादुरगढ़ के जूता उद्योग पर एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. आप इस रिपोर्ट से समझेंगे कि जब किसी देश में आंदोलन का आधार झूठ बन जाता है, तो कैसे दुश्मन देश इसका फायदा उठाने लगते हैं.
भारत के जूतों के बाजार पर चीन के कब्जे की आहट एक बार फिर से सुनाई देने लगी है. भारत में बिना चमड़े के बने जूतों में से 60 प्रतिशत हरियाणा के बहादुरगढ़ में तैयार किए जाते हैं. 2006 में हरियाणा की जूता फैक्ट्रियों ने इस उद्योग को चीन के हाथों से छीन लिया था, लेकिन किसान आंदोलन की वजह से ये उद्योग अब किसी पुराने जूते की तरह ही चरमराने लगा है.
इन फैक्ट्रियों में बनने वाले जूते पहनकर ही देश के ज्यादातर लोग सर्दी, गर्मी और बरसात का सामना करते हैं, लेकिन किसान आंदोलन की वजह से साढ़े सात लाख लोगों को रोजगार देने वाले इस उद्योग के पांव तले जमीन और जूते दोनों खिसक गए हैं.
बहादुरगढ़ की 12 हजार फैक्ट्रियां किसान आंदोलन से पहले हर रोज 16 लाख जूतों का निर्माण किया करती थी. तब सालाना टर्न ओवर 25 से 30 हजार करोड़ रुपये हुआ करता था, लेकिन पिछले 9 महीने में प्रोडक्शन और टर्न ओवर दोनों घटकर 10 प्रतिशत रह गए हैं. फैक्ट्रियों में मजदूर भी नहीं आ रहे क्योंकि, एक तो उन्हें तीन गुना लंबी दूरी तय करनी पड़ती है और दूसरा वो किसान आंदोलन में हिंसा की आशंका से डरे रहते हैं.
फैक्ट्री मालिक टिकरी बॉर्डर खुलने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन इस इंतजार ने अब तक 2 हजार फैक्ट्रियों पर ताला लगवा दिया है. नतीजा ये है कि इस उद्योग को चलाने वालों की लागत चार गुना बढ़ चुकी है और बैंक से लिए कर्ज पर लगने वाला ब्याज भी लगातार बढ़ रहा है.
इन फैक्ट्रियों में जो छोड़ा बहुत माल तैयार हो भी पाता है, वो भी टिकरी बॉर्डर बंद होने की वजह से ट्रैफिक जाम में फंसकर रह जाता है, जो दिल्ली इन ट्रक चालकों के लिए कभी 1 घंटा दूर हुआ करती थी, वो अब 8 से 10 घंटे दूर हो गई है.
अब डर इस बात का है कि कहीं जूतों के उद्योग पर फिर से चीन की कंपनियों का कब्जा न हो जाए और अगर ऐसा हो गया तो Made In India एक बार फिर Made In China से हार जाएगा. इसलिए अपने हक के लिए लड़ रहे किसानों को एक बार इस उद्योग से जुड़े लोगों के जूतों में अपने पैर डालकर इनका दर्द महसूस करना चाहिए.