​DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर क्या फारूक अब्दुल्ला ने देशद्रोह किया?
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​DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर क्या फारूक अब्दुल्ला ने देशद्रोह किया?

फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर से नेशनल कॉफ्रेंस पार्टी के सांसद हैं और उन्होंने संविधान की शपथ ली हुई है. ये शपथ उन्होंने उसी संसद भवन में ली थी जिसने अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने का फैसला लिया था. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या फारूक अब्दुल्ला ने ऐसा बयान देकर देशद्रोह किया है? 

​DNA ANALYSIS: अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर क्या फारूक अब्दुल्ला ने देशद्रोह किया?

नई दिल्ली: अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के उस बयान का विश्लेषण करते हैं जिसमें उन्होंने चीन से मदद मांगी है. फारूक़ अब्दुल्ला ने कहा है कि चीन अनुच्छेद 370 और 35-A हटाए जाने के खिलाफ है और इसे दोबारा लागू करने में वो उनकी मदद करेगा. फारूक अब्दुल्ला के इस बयान से एक बात साफ हो गई है कि अब उन्हें पाकिस्तान से कोई उम्मीद नहीं बची है. शायद इसलिए उन्होंने इस बार चीन पर दांव खेला है. फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर से नेशनल कॉफ्रेंस पार्टी के सांसद हैं और उन्होंने संविधान की शपथ ली हुई है. ये शपथ उन्होंने उसी संसद भवन में ली थी जिसने अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने का फैसला लिया था. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या फारूक अब्दुल्ला ने ऐसा बयान देकर देशद्रोह किया है?

कश्मीर नीति पर अब्दुल्ला परिवार ने हमेशा से भारत सरकार को धोखे में रखा
क्या देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर कुछ भी बोलने की इजाजत है. जिस तरह से गांधी परिवार को देश में राजनीति की फर्स्ट फैमिली कहा जाता है. उसी तरह अब्दुल्ला परिवार को भी कश्मीर की फर्स्ट पॉलिटिकल फैमिली कहा जा सकता है. कश्मीर नीति को लेकर अब्दुल्ला परिवार ने हमेशा से भारत सरकार को धोखे में रखा है. पाकिस्तान के प्रति अब्दुल्ला परिवार की नीति हमेशा नरम रही है. धारा 370 हटने के बाद अब्दुल्ला परिवार को पाकिस्तान से मदद की बहुत उम्मीद थी. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान पूरी तरह असफल रहा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में धारा 370 हटाने का मुद्दा उठाया लेकिन हर जगह उन्हें मायूसी हाथ लगी. उल्टे पाकिस्तान को पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर में विरोध का सामना करना पड़ रहा है. पाकिस्तान की दुनिया में दुर्गति देखकर फारूक अब्दुल्ला समझ चुके हैं कि अब पाकिस्तान से उन्हें कोई मदद नहीं मिलने वाली. शायद इसलिए फारूक अब्दुल्ला ने इस बार चीन से विनती की है. आज़ादी के बाद जिस तरह केंद्र में गांधी परिवार अधिकतर समय सत्ता में रहा है, कुछ उसी तरह जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार सत्ता में रहा है.

इस तरह की बौखलाहट को क्या समझा जाए?
26 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद करीब 3 दशक तक अब्दुल्ला परिवार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद पर रहा है. फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला करीब 13 वर्ष जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे. फारूक अब्दुल्ला 3 बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इनके पुत्र उमर अब्दुल्ला जनवरी 2009 से जनवरी 2015 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

फारूक अब्दुल्ला केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी रहे हैं, लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर जिस दिशा में बढ़ रहा है, उसमें परिवारवाद की राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं बची है. पाकिस्तान से मिलने वाली मदद बंद चुकी है. ऐसे में इस तरह की बौखलाहट को क्या समझा जाए? क्या हमारा हमारा संविधान अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी बोलने की इजाजत देता है?

फारूक अब्दुल्ला सुरक्षा भारत से लेते हैं. बंगला भारत से लेते हैं. तनख्वाह भारत से लेते हैं. सारी सुख-सुविधाएं भारत से लेते हैं, लेकिन समर्थन चीन और पाकिस्तान का करते हैं. ये अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग है.

वो सांसद रह चुके हैं उन्हें संसद से सैलरी मिलती है. उन्हें सरकार के खर्च पर सुरक्षा मिलती है. उन्हें उनकी सरकारी गाड़ियों का खर्चा मिलता है. फिर वो ऐसा बयान कैसे दे सकते हैं?

 

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