DNA ANALYSIS: प्रणब मुखर्जी ने PM मोदी को दी थी ये सलाह, जानिए किताब ‘The Presidential Years 2012-2017' की 7 बड़ी बातें
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DNA ANALYSIS: प्रणब मुखर्जी ने PM मोदी को दी थी ये सलाह, जानिए किताब ‘The Presidential Years 2012-2017' की 7 बड़ी बातें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)  की विदेश नीति की पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) ने अपनी किताब में काफी तारीफ की है. वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री पद के शपथ समारोह में सार्क देशों के नेताओं को बुलाना Out Of The Box Idea था.  प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय ने विदेश नीति के बड़े बड़े एक्‍सपर्ट्स को भी आश्चर्य में डाल दिया था.

DNA ANALYSIS: प्रणब मुखर्जी ने PM मोदी को दी थी ये सलाह, जानिए किताब ‘The Presidential Years 2012-2017' की 7 बड़ी बातें

नई दिल्‍ली:  अब मैं आपको एक ऐसी किताब के बारे में जानकारी देना चाहता हूं जिसे देश के हर उस नागरिक को जरूर पढ़ना चाहिए, जिसे राजनीति में जरा भी रुचि है.  इस किताब का नाम है , ‘The Presidential Years, 2012-2017’. इसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee)  ने लिखा था. मंगलवार को ही बुक रिलीज हुई है.  हालांकि पूर्व राष्ट्रपति के पुत्र अभिजीत मुखर्जी ने इस किताब को प्रकाशित करने पर आपत्ति की थी और कहा था कि इस किताब को बिना उनकी इजाजत के लोगों के सामने न लाया जाए. 

197 पेज की इस किताब में 11 चैप्‍टर्स  हैं. ये किताब मैंने (ज़ी न्‍यूज़ के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी ) पढ़ी और मुझे इसमें पांच साल में देश के कई बड़े फैसलों  और घटनाओं पर बहुत अच्छी जानकारी मिली है, उनमें से 7 बड़ी बातें मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूं.  इन बातों को सुनने के बाद देश की राजनीति, सरकार और कुछ प्रमुख व्यक्तियों के बारे में आपका नजरिया बदल सकता है. 

सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल

सबसे पहले आपको इस किताब के पेज नंबर 20 और 21 पर लिखी गयी बात बताना चाहता हूं.  इसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाए गए हैं. 

प्रणब मुखर्जी का मानना है कि सोनिया गांधी पार्टी के मामलों को ठीक से नहीं संभाल पाईं.  डॉ. मनमोहन सिंह लंबे समय तक सदन से दूर रहे जिसकी वजह से सांसदों का पार्टी से संपर्क टूट गया.  मुश्किल समय में पार्टी नेतृत्व को जो कुशलता दिखानी चाहिए थी. वो नहीं हुआ.  महाराष्ट्र के नेतृत्व संकट को सोनिया गांधी ने सही ढंग से नहीं संभाला. 

वर्ष 2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी तोहफे में कैसे मिल गई और 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी को कैसे हासिल किया. प्रणब मुखर्जी ने दोनों प्रधानमंत्रियों के बारे में बहुत ही ईमानदारी से लिखा है. प्रणब मुखर्जी ने बतौर राष्ट्रपति दो वर्ष डॉक्टर मनमोहन सिंह और तीन वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बिताए. उन्होंने दोनों प्रधानमंत्रियों के बारे में क्या लिखा है आपको बताते हैं. 

वर्ष 2014 के आम चुनाव के बारे में प्रणब मुखर्जी लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी पर देश की जनता ने भरोसा जताया लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी थी. 

चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद प्रणब मुखर्जी कांग्रेस और बीजेपी नेताओं द्वारा दिए फीडबैक के बारे में भी लिखते हैं. कांग्रेस के नेताओं ने किसी भी गठबंधन को बहुमत न मिलने का अनुमान लगाया.  विपक्ष के नेता भी बीजेपी की जीत को लेकर आश्वस्त नहीं थे. सिर्फ़ पीयूष गोयल अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने की बात कही थी. 

पीएम मोदी की विदेश नीति की तारीफ  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने काफी तारीफ की है.  वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री पद के शपथ समारोह में सार्क देशों के नेताओं को बुलाना Out Of The Box Idea था.  प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय ने विदेश नीति के बड़े बड़े एक्‍सपर्ट्स को भी आश्चर्य में डाल दिया था. पर किताब की ये जानकारी मीडिया ने आपको नहीं बताई. उसकी जगह आपको ये हेडलाइन देखने को मिली होगी कि प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाहौर यात्रा को गैैर जरूरी बताया. वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री अफगानिस्‍तान से लौटते वक्त लाहौर में रुके थे और नवाज़ शरीफ़ से मुलाकात की थी.

नोटबंदी के बारे में अहम बात 

किताब के पेज नंबर 156 में नोटबंदी के बारे में बहुत अहम बात लिखी गई है.  8 नवंबर 2016 को देश में नोटबंदी लागू की गई. उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना हुई कि उन्होंने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से नोटबंदी पर सलाह नहीं ली.  विपक्षी दलों के नेताओं को जानकारी नहीं दी जबकि प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में नोटबंदी के निर्णय में बरती गई गोपनीयता की तारीफ की है.  पेज नंबर 157 पर भी काफी दिलचस्प जानकारी है.  1970 के दशक में प्रणब मुखर्जी ने नोटबंदी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सलाह दी थी. हालांकि इंदिरा गांधी ने उनके सुझाव को स्वीकार नहीं किया था. 

पीएम मोदी को दी ये सलाह 

2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राज्यों में भी कांग्रेस पार्टी चुनाव हारने लगी.  कांग्रेस ने लगातार मिल रही हार के लिए ईवीएम को जिम्मेदार बता दिया. अपनी किताब में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वर्ष 2017 के एक मौके का जिक्र किया है.  जब विपक्षी दलों के नेताओं ने ईवीएम में गड़बड़ी को लेकर उन्हें ज्ञापन सौंपा था और प्रणब मुखर्जी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज कर दिया था. 

किताब के पेज नंबर 9 पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रणब मुखर्जी ने सलाह भी दी है.  वो लिखते हैं कि संसद की कार्यवाही ठीक से चले इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को पूर्व प्रधानमंत्रियों से सीखना चाहिए.  उन्हें संसद में अधिक समय बिताना चाहिए और विरोध की आवाज को सुनना चाहिए. 

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