Coronavirus: कोरोना वायरस से मौतों का भयानक सिलसिला लोगों को डरा रहा है और देशभर के अलग अलग हिस्सों से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिन पर यकीन करना मुश्किल है.
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नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस से हालात कितने गंभीर हो चुके हैं. भारत के कितने घरों में अंधेरा छाया हुआ है. कितने परिवार इस वायरस की वजह से बर्बाद हो चुके हैं. कितने लोगों को इसने निराश कर दिया और मौत और लापरवाही के सामने हम कितने बेबस खड़े हैं.
आज हम एक वीडियो की बात करेंगे, जो हालात की गंभीरता को बयां कर रहा है. ये वीडियो झारखंड की राजधानी रांची के सदर अस्पताल से आया है, जहां एक मरीज अस्पताल के बाहर इलाज के लिए एक घंटे तक तड़पता रहा और फिर उसने वहीं दम तोड़ दिया. ये सब वहां तब हुआ, जब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता खुद अस्पताल के निरीक्षण के लिए पहुंचे हुए थे, लेकिन इस दौरान पवन गुप्ता नाम के एक मरीज ने अस्पताल के बाहर ही स्ट्रेचर पर लेटे लेटे दम तोड़ दिया और परिवार के लिए ये पल बहुत मुश्किल था.
रांची के इस सरकारी अस्पताल में जब मरने वाले व्यक्ति की बेटी ने झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री से इस पर सवाल पूछा तो उनके पास भी इसका कोई जवाब नहीं था. आरोप तो यहां तक है कि जब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री वहां पहुंचे तो अस्पताल का पूरा स्टाफ उनके स्वागत में जुट गया और मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया.
कई मरीजों के परिवारों ने आरोप लगाया कि स्वास्थ्य मंत्री के वहां पहुंचने पर मरीजों को अस्पताल में भर्ती भी नहीं किया गया, जिसकी वजह से लोग अस्पताल के बाहर स्ट्रेचर और व्हीलचेयर पर बैठकर ऑक्सीजन लेते नजर आ. सोचिए स्वास्थ्य मंत्री के स्वागत में पूरा अस्पताल जुट गया और आम लोगों को मरने के लिए इस तरह छोड़ दिया गया और जब इस पर जवाबदेह लोगों से सवाल पूछा गया तो वो कहते हैं कि ये क्रोध, ये गुस्सा सिर्फ अपनों की मौत का है. लेकिन हमारा मानना है कि ये क्रोध सिस्टम की नाकामी का भी है और इसे आप इस बेटी के आंसुओं से समझ सकते हैं, जिसने अपने पिता को सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि, उन्हें अस्पताल में भर्ती ही नहीं किया.
वर्ष 1978 में एक फिल्म आई थी मुकद्दर का सिकंदर और इस फिल्म के एक गाने के बोल थे-
रोते हुए आते हैं सब
हंसता हुआ जो जाएगा
जिंदगी तो बेवफा है
एक दिन ठुकराएगी
मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी
इन लाइनों को पढ़कर ऐसा लगता है कि जैसे ये गाना आज ही के लिए लिखा गया था. ये गाना गाया है किशोर कुमार ने. इसे लिखा है, अनजान ने और इस फिल्म का निर्देशन प्रकाश मेहरा ने किया था.
मुकद्दर का अर्थ होता है, भाग्य या किस्मत और सिकंदर है एक प्रसिद्ध यूनानी सम्राट, जिसने विजयी होने की नई परिभाषा लिखी.
यानी कुल मिला कर एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी किस्मत पर विजय प्राप्त कर ली हो और आज मुकद्दर का सिकंदर वही है जो कोरोना वायरस के इस दौर में भी खुद को जीवित रख पाए क्योंकि, महामारी के इस दौर में मृत्यु का साम्राज्य अब चारों तरफ फैल चुका है और पहली बार मृत्यु लोगों से ये कह रही है कि प्रतीक्षा कीजिए क्योंकि आप कतार में हैं? यानी अब मृत्यु भी कतार में यानी पंक्ति में खड़ी है और इसी वेटिंग लिस्ट का आज हम आपके लिए विश्लेषण करेंगे.
कहा जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है यानी एक क्षण में खत्म होने वाला होता है और मृत्यु अटल सत्य है और ये सत्य Permanent Marker से लिखा होता है, जिसे इंसान चाह कर भी नहीं मिटा सकता, लेकिन मृत्यु अब एक नया सत्य लिख रही है और ये सत्य कतार में खड़ा हो कर जीवन की कीमत भी हमें बता रहा है.
कतार, एक ऐसा शब्द है, जो भारत के लोगों में बचपन से ही बस जाता है. किसी भी बच्चे के जन्म के बाद पहली कतार जन्म प्रमाण पत्र बनवाने से शुरू होती है. फिर स्कूल के लिए हम लाइन में लगते हैं. नौकरी के लिए लाइनों में लगते हैं, राशन के लिए लाइनों में लगते हैं, बैंक की लाइनों में लगते हैं. ट्रेन की लाइनों में लगते हैं और ये कतार कभी हमारा पीछा नहीं छोड़ती. एक स्टडी के मुताबिक, भारत में औसतन एक व्यक्ति अपने जीवन के लगभग 10 वर्ष अलग अलग कतार में खड़े रहते हुए बिता देता है.
लेकिन अब इसका भी विस्तार हो गया है और अब मृत्यु ने भी इंसानों को कतार में लाकर खड़ा कर दिया है.
भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है और 14 अप्रैल को आए मामलों के साथ नए मरीजों की संख्या 1 लाख 84 हजार बढ़ गई है. मरीजों के साथ मौत के मामले भी बढ़ रहे हैं और पिछले एक दिन में इस बीमारी से 1 हजार 27 लोगों की मौत हुई है.
मौतों का ये भयानक सिलसिला आज लोगों को डरा रहा है और देशभर के अलग अलग हिस्सों से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं, जिन पर यकीन करना मुश्किल है. भोपाल में इतनी लाशें आ रही हैं कि अब श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां ख़त्म हो गई हैं.
सोचिए, जिन लोगों के शव इस श्मशान घाट पर लाए गए, क्या उन्होंने ऐसी कभी कल्पना भी की होगी कि जिस दिन उनके जाने का समय होगा, उस दिन श्मशान घाट में लकड़ियां खत्म हो जाएंगी और अंतिम संस्कार इंतजार की दहलीज पर खड़ा रहेगा.
हमारे देश में ज्योतिषी ये तो बता देते हैं कि मृत्यु कब आएगी, लेकिन मृत्यु और मोक्ष के बीच का जो सफर है, वो भी इसके बारे में कभी बता नहीं पाते.
राजकोट में अंतिम संस्कार के लिए 30-30 घंटे तक लोगों को इंतज़ार करना पड़ रहा है और इसी तरह का इंतजार का सूरत में भी देखनो को मिल रहा है, जहां इसकी वजह से अब श्मशान घाटों पर लाशों का अम्बार लग गया है. अस्पतालों से श्मशान घाटों पर इतनी लाशें पहुंच रही हैं कि कई लाशों को लकड़ी के गोदामों में रखा गया है. यानी जहां कल तक अंतिम संस्कार की लकड़ियां होती थीं, वहां अब लकड़ियां खत्म हो गई हैं और उनकी जगह इन लाशों ने ले ली है.
गरुड़ पुराण से लेकर शिव पुराण तक सभी में बताया गया है कि जो दुनिया में आया है उसे अपने शरीर को छोड़कर एक न एक दिन जरूर जाना पड़ता है क्योंकि, यह पृथ्वी मृत्यु लोक है और यहां पर मृत्यु का साम्राज्य है. लेकिन मृत्यु का जो साम्राज्यवाद हम अभी देख रहे हैं, शायद ही उससे पहले किसी ने देखा हो. कहते हैं कि जीवन तभी तक है, जब तक मृत्यु नहीं है, लेकिन जब मृत्यु इस तरह से आती है, तो कष्ट और भी बढ़ जाता है.
इंसान ने जीवन में क्या पाया. इसका अंदाजा अब तक इसी बात से लगाया जाता था कि उसके अंतिम संस्कार में कितने लोग शामिल हुए हैं, लेकिन कोरोना वायरस ने इस बात तो भी गलत साबित कर दिया है.
मौजूदा परिस्थितियों ने क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे. जैसी कहावत को चरितार्थ कर दिया है. जीवन भर लोग धन संपत्ति के साथ साथ इस बात की भी चिंता करते हैं कि जब उनकी मृत्यु आए तो ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हो, लेकिन इस महामारी ने साबित कर दिया कि आप चाहे कोई भी योजना बना लें. समय हर योजना को बदलाव की कसौटी पर परखना जानता है.
हिंदू धर्म में जन्म से मृत्यु तक कुल 16 संस्कार बताए गए हैं. इनमें आखिरी यानी 16वां संस्कार है. मृत्यु के बाद होने वाले संस्कार, जिनमें सूर्यास्त के बाद किसी भी शव का दाह संस्कार करना शास्त्रों के विरुद्ध माना गया है. मान्यता है कि अगर सूर्यास्त के बाद अगर किसी शव का दाह संस्कार किया जाता है तो उस व्यक्ति की आत्मा को परलोक में कष्ट भोगना पड़ता है और अगले जन्म में ऐसे व्यक्ति को अंग दोष भी हो सकता है.
लेकिन कोरोना वायरस ने जीवन और मृत्यु से जुड़ी इन परम्पराओं को भी बदल दिया है. गुजरात के भरूच और उत्तर प्रदेश के मथुरा में इस समय हर घंटे चिताएं जल रही हैं और इन चिताओं का कोई हिसाब नहीं है क्योंकि, वेटिंग लिस्ट ही इतनी लम्बी है. आज अगर किसी व्यक्ति की कोरोना से मौत होती है और उसका कुछ ही घंटों में अंतिम संस्कार हो जाता है तो उस व्यक्ति से ज़्यादा भाग्यशाली कोई नहीं होगा. हालांकि मृत्यु ये मौक़ा इस बार किसी को नहीं दे रही है क्योंकि, मृत्यु कभी भेदभाव नहीं करती.
झारखंड की राजधानी रांची की कुछ तस्वीरें आई हैं, जहां 12 शव पूरे एक दिन अंतिम संस्कार के लिए कतार में लगे रहे. वहां इन शवों को रखने के लिए जगह भी नहीं बची थी, जिसकी वजह से कुछ शवों को एंबुलेंस से उतारा ही नहीं गया. ये तस्वीरें आपको देश में उपजे इस संकट की गंभीरता बता सकती हैं.
लखनऊ, राजकोट, दिल्ली, नांदेड़ और दुर्ग से भी ऐसी ही तस्वीरें सामने आई हैं, जहां अंतिम संस्कार के लिए लम्बी लम्बी लाइनें लगी हैं और ये इंतजार है कि खत्म होने में काफी समय ले रहा है. हमें लगता है कि मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के लिए ऐसा इंतजार और भी कष्टदायी है.
कोरोना वायरस ने जीवन और मृत्यु के द्वंद को सामने ला दिया हैं. जीवन पाबंदियों में है तो मोक्ष की आकांक्षा कतार में खड़ी दिखती है. शास्त्रों में कहा गया है कि जन्म के साथ ही मृत्य की यात्रा शुरू हो जाती है. मृत्यु ही शाश्वत सत्य है और इसे टाला नहीं जा सकता. जैसे-जैसे आपके जीवन का एक-एक दिन बीतता है. वैसे वैसे आप मृत्यु के और करीब पहुंचते जाते हैं. मृत्यु शब्द सुनकर सब डर जाते है और कोई इस पर बात नहीं करना चाहता, लेकिन कोरोना वायरस ने आज इस पर सभी को बात करने के लिए मजबूर कर दिया है क्योंकि, इस तरह की विचलित करने वाली तस्वीरें आज हम सबके सामने हैं.
हमारा मक़सद यही है कि आप जीवन के मूल्य को पहचानें और ये समझें कि हालात अच्छे नहीं है.
हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी इंसान बार-बार अलग अलग योनियों में जन्म लेता है और इसे ही संसार कहा जाता है. जन्म और मृत्यु के इस बंधन से छूटने का नाम ही मोक्ष है, लेकिन आज मोक्ष भी इंतजार की पंक्ति में खड़ा है.
इस्लाम में भी माना गया है कि मृत्यु शरीर और आत्मा को अलग कर देती है और मृत्यु के बाद दूसरी दुनिया का सफर शुरू होता है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि ये सफर कतार से और इंतजार से शुरू होता है, जो आज के नए सच को भी बयान करता है.
इसी तरह ईसाई धर्म में भी स्वर्ग और नर्क की कल्पना की गई है. जिसके मुताबिक अच्छे कर्म करने वाले लोग मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाते हैं और बुरे कर्म करने वाले लोग नर्क में जाते हैं, लेकिन अब किसी ने अच्छे कर्म किए हों या बुरे कर्म किए हों और उनके कर्म के खाते में चाहे कितने ही पुण्य जमा क्यों न हो, लेकिन ये कतार उनका अटल सत्य है.
सूरत से आई तस्वीरें और भी भयावह हैं. वहां एक श्मशान घाट पर हर घंटे इतने अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं कि इसकी तपन से चिमनी भी वहां गलने लगी है. मृत्यु को लेकर हमारे देश ने इस तरह की कतार शायद पहली बार देखी है, लेकिन अब हम आपको बताते हैं कि ये जो कतार है, ये जो लाइनें हैं. वो कैसे भारत के लोगों के DNA में हैं.
एक रिसर्च के मुताबिक़ भारत में हर व्यक्ति को औसतन हर दूसरे काम के लिए कतार में खड़ा होना पड़ता है. लोग अपने जीवन के औसतन 10 साल लाइनों में खड़े रहते हुए बिता देते हैं.
-अस्पतालों में डॉक्टरों को दिखाने के लिए लोगों को हर बार औसतन डेढ़ से दो घंटे का इंतजार करना पड़ता है.
-अकेले दिल्ली में बसों में चढ़ने के लिए लोगों को हर बार 70 मिनट इंतजार करना होता है.
-और ये लाइनें सड़कों से लेकर राशन की दुकानों और यहां तक कि अदालतों तक इसी तरह चलती रहती है और आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है.
-वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों की लाइनें लगी हुईं हैं. पटना, दिल्ली, मुंबई और पुणे से ऐसी कई तस्वीरें सामने आई हैं.
-अस्पतालों में भर्ती मरीजों से मिलने के लिए उनके अपने लाइनों में लगे हुए हैं.
-कोरोना का टेस्ट कराने के लिए लोग लाइन में लगे हुए हैं. अहमदाबाद में गाड़ियों में लोग टेस्ट कराने के लिए आ रहे हैं.
-इसके अलावा अस्पताल में भर्ती होने के लिए भी लाइनें लगी हुई हैं.
-अहमदाबाद में 1200 बेड के एक अस्पताल के बाहर 108 एंबुलेंस खड़ी है और इन सभी एंबुलेंस में मरीज हैं, जो अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
इसके अलावा इस महामारी के डर से अपने घर लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की भी लम्बी लाइनें रेलवे स्टेशन्स और बस अड्डों पर दिख रही हैं. दिल्ली के आनंद विहार से ऐसी ही तस्वीरें सामने आई हैं, जहां लोग कतार में खड़े हैं. इसके अलावा मुंबई में ट्रेन से अपने घर लौटने वाले मजदूरों की भीड़ है. यानी आज इस संकट काल में हर कोई अपनी अपनी कतार में खड़ा है.
कोरोना संक्रमण का ये वो दौर है जब जिंदगी और मौत के बीच फासला कम हो गया है, लेकिन इनके बीच एक खास संबंध है और वो संबंध है एक कतार का.
-इसमें पहली जिंंदगी की कतार है. लोग संक्रमण काल से अपनी आम जिंदगी वापस पाने के लिए वैक्सीन की कतार में लगे हैं.
-दूसरी जिंदगी बचाने की कतार है. वायरस से अपनी जिंदगी बचाने के लिए लोग कर्मभूमि छोड़कर जन्मभूमि की ओर भाग रहे हैं.
-और सबसे अंत में मोक्ष पाने की कतार. शवदाह गृहों में भी लंबी कतारें हैं क्योंकि, शवों को जलाने की जगह कम पड़ गई है.
इन कतारों की तस्वीरें आज की सच्चाई है, जिसको बदल पाना फिलहाल बहुत मुश्किल है. कहते हैं, मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है और मोक्ष का रास्ता हिंदू धर्म में शवदाह से शुरू होता है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए बहुत भी लंबी कतारें लगी हैं. शवों को भी जलने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है.
कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत कितनी तेज़ी से बढ़ी है. इसका अंदाजा आप देश के शवदाह गृहों की इन कतारों से लगा सकते हैं. गुजरात के भरूच में भी चिताएं एक कतार में जल रही हैं. बारी बारी आने वाले शवों के लिए यहां पर मोक्ष के कई द्वार बने हैं, जहां अग्नि धधक रही है. सूरत में तो हालात ये हैं कि शवों को जमीन पर रखने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी मुश्किल लग रहा है.
शवदाह गृहों में काम करने वाले लोगों को 24 घंटे काम करना पड़ रहा है क्योंकि, हर घंटे कई शव यहां अंतिम संस्कार के लिए लाए जा रहे है. झारखंड से भी तस्वीरें सामने आई हैं, जहां शवदाह गृहों में शवों के जलाने की जगह कम पड़ गई है.
कोरोना संक्रमण इस दौर में मोक्ष पाने से ज्यादा लंबी कतारें जिंदगी वापस पाने के लिए अस्पतालों में लगी हैं. हर दिन सैकड़ों की संख्या में मरीज़ अस्पताल पहुंच रहे हैं. देश में नए कोरोना मरीजों के आने की गिनती 1 लाख 84 हजार पहुंच चुकी है और जिन मरीजों की हालत बहुत खराब है उनको अस्पताल ले जाना पड़ रहा है, लेकिन अस्पताल मेँ भर्ती होने के लिए भी कतार बहुत लंबी है.
अहमदाबाद के एक अस्पताल के बाहर एंबुलेंस की लंबी कतार है. हर एंबुलेंस में एक मरीज है जिसकी हालत बहुत खराब है. उसको बचाना बहुत जरूरी है, लेकिन अस्पताल में इतनी भी जगह नहीं है कि इन मरीजों को तुरंत बेड नसीब हो जाए.
ये इंतजार कुछ मिनट या चंद घंटों का हो तो भी गनीमत समझिए. दिन से रात हो जा रही है, लेकिन एंबुलेंस में लेटकर जिंदगी वापस पाने की जद्दोजहद कर रहे मरीज तड़पकर रह गए हैं, लेकिन जगह नहीं मिल पा रही.