DNA ANALYSIS: भारत की परंपराएं और संस्कार Corona Virus के सामने दीवार बन गई हैं!
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DNA ANALYSIS: भारत की परंपराएं और संस्कार Corona Virus के सामने दीवार बन गई हैं!

किसी भी महामारी को हराने में सबसे बड़ा योगदान विज्ञान का होता है. लेकिन विज्ञान को जब परंपराओं का साथ मिलता है तो ये काम थोड़ा और आसान हो जाता है.

DNA ANALYSIS: भारत की परंपराएं और संस्कार Corona Virus के सामने दीवार बन गई हैं!

किसी भी महामारी को हराने में सबसे बड़ा योगदान विज्ञान का होता है. लेकिन विज्ञान को जब परंपराओं का साथ मिलता है तो ये काम थोड़ा और आसान हो जाता है. ऐसा ही Corona Virus के साथ भी हो रहा है. पूरी दुनिया में करोड़ों लोग Corona virus के डर से अपने घरों में कैद हैं. लेकिन भारत की कुछ परंपराएं और संस्कार Corona Virus के सामने दीवार बनकर खड़े हो गए हैं. नमस्कार को कैसे पूरी दुनिया अपना रही है और ये भारतीय परंपरा कैसे Corona Virus से बचाव का सबसे बड़ा उपाय बन गई है ये हम आपको DNA में दिखा चुके हैं. लेकिन अब हम बताएंगे कि कैसे सिर्फ नमस्कार वाला संस्कार ही Corona को नहीं हरा सकता.

बल्कि इससे बचने के लिए हमें उन भारतीय परंपराओं को फिर से जीवित करना होगा जो हज़ारों वर्षों से स्वस्थ जीवन की सीख देती आई हैं.जिन परंपराओं से हमने हाथ धो लिया है आज उन परंपराओं से हाथ मिलाने का समय है. भारतीय परंपराओं में साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है. इसलिए Corona Virus ही नहीं ज्यादातर बीमारियों को दूर रखने का सबसे अच्छा उपाय है साफ सफाई यानी स्वच्छता का ध्यान रखना.

ये स्वच्छता सिर्फ आपके घऱ की नहीं बल्कि आपके शरीर और मन की भी होनी चाहिए. और आपको अपने आस पास के पर्यावरण और समाज को स्वच्छ रखने की दिशा में भी काम करना चाहिए. अपने शरीर की साफ सफाई का ध्यान रखें. आयुर्वेद कहता है कि भोजन करने से पहले और भोजन करने के बाद अपने हाथों को अच्छे तरीके से साफ करें. Corona Virus से बचने की सलाह देने वाले विशेषज्ञ भी बार बार कह रहे हैं कि आप जितनी बार साबुन से हाथ धोएंगे Corona Virus का खतरा उतना ही कम हो जाएगा.

आपने गौर किया होगा कि किसी अनुष्ठान या पूजा के दौरान बार-बार जल से हाथ की शुद्धि कराई जाती है. इसी तरह मंत्र का उच्चारण करते समय भी जल के छींटे डाले जाते हैं. और इस दौरान जो मंत्र पढ़ा जाता है उसे स्वस्ति-वाचन कहा जाता है. स्वस्ति का अर्थ होता है- कल्याण हो. यानी शुद्धीकरण के दौरान जल का इस्तेमाल करते हुए, हम संसार के कल्याण की कामना करते हैं. इतना ही नहीं, पूजा या यज्ञ को शुरू करने से पहले मंत्र पढ़ते हुए हम आचमन भी करते हैं. आचमन के दौरान मंत्र पढ़ते हुए जल ग्रहण करना होता है. माना जाता है कि इससे मन की शुद्धि होती है. आप इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि शुद्धता को लेकर जल को हमारी परंपरा में कितना महत्व दिया गया है.

भारतीय परंपराओं में शाकाहार को भी बहुत अहमियत दी गई है. आपने शाकाहार से होने वाले रोगों के बारे में शायद ही कभी सुना होगा. जबकि मांसाहार से होने वाले रोगों की सूचि बहुत लंबी है. हम ये तो नहीं कह रहे कि आप अपने खान-पान की आदत बदल दें. लेकिन कम से कम Corona Virus के दौर में आप मांसाहार से दूर रहकर. ऐसे रोगों से तो बच ही सकते हैं. जो Corona Virus के मरीज़ों के लिए स्वस्थ होने के सफर को मुश्किल बना देते हैं. इन रोगों में Diabetes, Hypertension, Obesity और दिल से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं. जिन लोगों को ये रोग पहले से हैं. Corona Virus के खिलाफ उनकी लड़ाई काफी मुश्किल हो जाती है.

इसके अलावा आप अपने घर और घर के आसपास..साफ सफाई पर भी ध्यान दें. क्योंकि ज्यादातर संक्रामक रोगों के फैलने की शुरुआत गंदगी से होती है. आप चाहे तो जीवन में सत्य मेव जयते की तरह स्वच्छ मेव जयते के विचार को भी शामिल कर सकते हैं. Social Networking के दौर में आपके हज़ारों दोस्त तो बन जाते हैं.

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लेकिन इस Virtual दोस्ती और Virtual रिश्तों के चक्कर में आप अपने परिवार और समाज को पूरा समय नहीं दे पाते. लेकिन Corona Virus की वजह से दुनिया के करोड़ों लोगों ने बाहर निकलना बंद कर दिया है. इसे Social distancing कहा जाता है.यानी बाहरी लोगों के संपर्क में आने से बचना .

हो सकता है कि इस कोरोना काल में आप भी बाहर निकलने से बच रहे हों या आपको भी आपकी कंपनी ने घर से काम करने के लिए कह दिया गया हो. इसलिए आपको इस समय का सदुपयोग करना चाहिए. आप ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिताएं और Social Networking की जो दीवारें रिश्तों के बीच खड़ी हो गई है.

उन्हें गिराकर एक बार फिर से रिश्तों की Battery को चार्ज करें. हो सकता है कि जब आप दोबारा काम पर लौटें तो आपके असली रिश्तों की Networking Virtual रिश्तों के मुकाबले ज्यादा बेहतर हो चुकी हो. यहां आप एक और बात का ध्यान ज़रूर रखें. किसी भी रोग को सिर्फ दवाएं नहीं बल्कि आपकी इच्छाशक्ति भी हराती है. और इच्छाशक्ति उसी के पास होती है जिसका मन शांत होता है और संतुलित होता है.

इसलिए अगर आप घर पर ही रहने को मजबूर हैं तो ध्यान यानी Meditation को अपनी दिनचर्या में शामिल ज़रूर करें. इससे ना सिर्फ आपका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होगा..बल्कि संकट की घड़ी में आप मजबूती के साथ..चुनौतियों का सामना कर पाएंगे.

और आपको Minima-lism की आदत को भी अपनाना चाहिए. हिंदी में इसका अर्थ होता है अपरिग्रह यानी उतने ही संसाधन जमा करना जितने की आपको आवश्यक्ता है. क्योंकि मन में विचार उतने ही होने चाहिए जिनसे आपकी सकारत्मकता बनी रहे और घर में सामान उतने ही होना चहिए जितने की आपको ज़रूरत है. Corona Virus जैसे संकट हमें अपना जीवन जीने का तरीका बदलने की भी नसीहत दे रहे हैं.

और सबसे ज़रूरी बात ये है कि साधारण व्यक्ति के मन में विचारों का प्रवाह बहुत तेज़ी से होता है और जब तक आप दूषित विचारों को Quarantine यानी अच्छे विचारों से अलग थलग नहीं करेंगे. तब तक आप अपने भविष्य की दशा और दिशा भी तय नहीं कर पाएंगे. इसलिए इस अवसर का भरपूर फायदा उठाएं. और डरने की बजाय समय का सदुपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करें. कुल मिलाकर..आप हाथ मिलाने की बजाय लोगों को नमस्कार करें. साबून से हाथ धोते रहें. साफ सफाई की परंपरा का पालन करें. परिवार को समय दें और विचारों और वस्तुओं का ज़रूरत से ज्यादा संग्रहण करने से बचें.

कुल मिलाकर आप हाथ मिलाने की बजाय लोगों को नमस्कार करें. साबून से हाथ धोते रहें. साफ सफाई की प्राचीन भारतीय परंपरा का पालन करें. परिवार को समय दें और नकारात्मक विचारों और वस्तुओं का ज़रूरत से ज्यादा संग्रह करने से बचें. जब आप प्रकृति का अनुशासन मानने से इनकार करने लगते हैं, तब वो मजबूर होकर अपने तरीके से अधिकार और आज़ादी मांगने लगती है.

वेदों को दुनिया के इतिहास का पहला लिखित दस्तावेज माना जाता है. और इन्हीं वेदों में से एक है- अथर्व वेद. जिसमें कहा गया है कि - पृथ्वी हमारी माता है, और हम इसके पुत्र हैं. इसी तरह ऋगवेद में कहा गया है कि मनुष्यों पर प्रकृति मां का आशीर्वाद बना रहे. और पृथ्वी के संसाधन हमेशा भरे रहें.

ये तो वैदिक काल के उदाहरण हुए. थोड़ा और आगे बढ़ें तो मध्य काल में लिखे गए राम चरित मानस में कहा गया है कि पृथ्वी के अलावा जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पांच तत्वों से हमारे शरीर का निर्माण हुआ है. और आधुनिक काल में खुद महात्मा गांधी ने कहा कि पृथ्वी के पास हमारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तो संसाधन हैं, लेकिन लालच को पूरा करने के लिए नहीं हैं.

वैदिक परंपरा से लेकर आधुनिक काल तक ये उदाहण हमने इसलिए दिए ताकि आपको पता चल सके कि प्रकृति का हमारे शरीर और जीवन से गहरा रिश्ता है. दुनिया में ऐसी कोई सभ्यता नहीं है, जिसने अपने ग्रह को मां का दर्जा दिया हो. ऐसी कोई संस्कृति नहीं है, जिसमें भोजन से पहले भी मंत्र पढ़ा जाता है और कहा जाता है कि ईश्वर हमें बुराइयों से मुक्त करें. लेकिन, हमने शुरू से ही पर्यावरण की पूजा की है.

सूर्य, नदी, पर्वत, पेड़ और अन्न ये सब हमारे लिए पूजनीय होते हैं. यहां तक कि जानवरों में भी हम देवता का वास मानते हैं. और कुल मिलाकर पर्यावरण के संपूर्ण चक्र का सम्मान करते हैं. लेकिन, इन नैतिक मूल्यों को भूलने की वजह से समय-समय पर प्रकृति हमारी रफ्तार पर ब्रेक लगाती है. और हमें भूल सुधार का मौका देती है. जलवायु परिवर्तन को हमने सेमिनार और भाषणों का विषय बना कर छोड़ दिया. यही वजह है कि प्रकृति समय-समय पर अपने तरीके से पर्यावरण को सुधारने का अभियान शुरू कर देती है.

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