Remdesivir एंटी वायरल दवाई है, जिसकी कालाबाजारी और जमाखोरी की जा रही है. ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा करने वाले कौन लोग हैं? ये दवाई कितनी उपयोगी है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ें आज का DNA ANALYSIS
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नई दिल्ली: हमारे देश में अच्छे लोग भी हैं और बुरे लोग भी हैं. अच्छे लोग आज भी ज्यादा हैं और बुरे लोग मुट्ठीभर हैं, लेकिन ये मुट्ठी भर बुरे लोग आज जरूरी दवाइयों की जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे हैं. इस समय देश मे ऑक्सीजन के बाद अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा मांग है तो वो है Remdesivir Injection. इसलिए बता दें कि देश में इस दवा की कमी का संकट कैसे खड़ा हुआ? और इसे लेकर किए जा रहे दावे कितने सही हैं? यानी ये दवा कोरोना मरीजो को सही करती भी है या नहीं. आज सरल भाषा में इसके बारे में बताया जा रहा है. सबसे पहले जानते हैं इसकी कीमत के बारे में.
इस समय भारत में अलग अलग कम्पनियां Remdesivir Injection का उत्पादन कर रही हैं. इसकी एक Vial की कीमत 899 रुपये से लेकर 5400 रुपये तक है, लेकिन बहुत से लोगों को 20 हजार रुपये खर्च करने पर भी इसकी एक Vial नहीं मिल रही है. जिन दुकानों पर ये दवाई उपलब्ध भी है, वहां लोगों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी हैं. सोचने वाली बात है कि अचानक से देश में इस दवाई की मांग इतनी क्यों बढ़ गई?
Remdesivir एंटी वायरल दवाई है. एंटी वायरल का मतलब है कि ये दवाई शरीर में संक्रमित कोशिशकाओं को ठीक करने और Virus Replication को रोकने का काम करती है. सरल शब्दों में कहें तो जब वायरस शरीर में फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है तो वायरस से लड़ने के लिए और नुकसान को रोकने के लिए ये दवाई दी जाती है. भारत सरकार ने पिछले साल ही कोरोना मरीजों पर इस दवा के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी.
Remdesivir है एक जीवन रक्षक दवा
हालांकि, यहां दो बातों को समझना जरूरी है. पहली ये कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि ये दवा संक्रमित मरीजों को ठीक कर देती है. इसकी अब तक किसी भी रिसर्च में पुष्टि नहीं हुई है. World Health Organization ने भी ये बात मानी है. WHO का कहना है कि Remdesivir एक जीवन रक्षक दवा है, इसके ठोस सबूत नहीं मिले हैं. अब भी इस पर रिसर्च चल रही है.
इसके बावजूद देश में Remdesivir दवा की मांग काफी ज्यादा है. दो तरह के लोग इसे खरीदने के लिए लम्बी-लम्बी लाइनों में लगे हुए हैं. पहले वो लोग, जिनके परिवार का कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है और डॉक्टरों ने ये दवाई उन्हें लिखी है. दूसरे वो लोग, जो इस डर से ये दवाई खरीद रहे हैं कि अगर कल को उन्हें या उनके परिवार में किसी व्यक्ति को कुछ हुआ तो उनके पास ये दवाई होनी चाहिए.
अब जब लोग इस दवाई को खरीदने के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार हैं तो इसकी कालाबाजारी भी हो रही है और लोग जमाखोरी भी कर रहे हैं. इस वजह से देश में इस दवाई की कमी नहीं है, कमी है इसे लेकर लोगों में जागरुकता की. भारत सरकार ने बताया है कि देश में Remdesivir दवाई का उत्पादन प्रति महीने 38 लाख से बढ़कर 74 लाख शीशियों तक पहुंच गया है. यानी उत्पादन क्षमता लगभग दोगुनी हो गई है, लेकिन इसके बावजूद ये दवाई बाजार से गायब है. इसकी कालाबाजारी हो रही है और लोग जमाखोरी भी कर रहे हैं.
इसे आप मेरठ की एक घटना से समझ सकते हैं. वहां Remdesivir की कालाबाजारी करने के आरोप में 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जो इस दवाई की एक शीशी 30 हजार रुपये तक बेच रहे थे. इनमें एक अस्पताल के वॉर्ड में ड्यूटी करने वाला कर्मचारी, एक गार्ड और एक बाउंसर भी शामिल हैं. इन लोगों ने जो किया, उसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते. मेरठ के इस अस्पताल में शोभित जैन नाम का एक मरीज भर्ती था, जिसे ये इंजेक्शन लगाया जाना था. परिवार ने किसी तरह ये दवाई अस्पताल को उपलब्ध करा कर दे दी, लेकिन इन लोगों ने मरीज को Distilled Water का इंजेक्शन लगा दिया और Remdesivir दवाई बाजार में 30 हजार रुपये में बेच दी. इसी के कुछ देर बाद उस मरीज की भी मौत हो गई. इन लोगों के स्वार्थ ने एक मरीज को मार दिया. ऐसा नहीं है कि स्वार्थ का ये संक्रमण सिर्फ मेरठ तक सीमित है.
देशभर में पुलिस ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर रही है जो इस दवाई की कालाबाजारी कर रहे हैं. आज इस स्थिति को देखकर वर्ष 1953 में आई अभिनेता दिलीप कुमार की फिल्म फुटपाथ याद आती है, जिसमें उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाई थी, जो अपने स्वार्थ के लिए लोगों की जान ले लेता है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि जब शहर में बीमारी फैल रही होती है तो दिलीप कुमार दवाई की जमाखोरी कर लेते हैं और लोगों को मरने देते हैं. इसके बाद जब उन्हें ये अहसास होता है कि ऐसा करके उनके शरीर से लाशों की बू आने लगी है तो वो बिखर जाते हैं.
आज भी हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है. इसलिए हम चाहते हैं कि आज आप 68 साल पुरानी इस फिल्म का ये दृश्य ज़रूर देखें.. क्योंकि इस दृश्य में आज का इंसान छिपा हुआ है, जिसका स्वार्थ किसी का भी जान ले सकता है.
इस समय कई राज्यों में नकली Remdesivir दवाई भी बेची जा रही है. इसलिए आपको कुछ ऐसी बातें बताते हैं, जिनकी मदद से आप नकली और असली दवाई में अंतर कर सकते हैं. नकली दवाई में Remdesivir के आगे Rx नहीं लिखा होता. Rx लैटिन भाषा का एक चिन्ह होता है, जिसका अर्थ होता है Take यानी लेना. डॉक्टर भी अपने पर्चे में दवाइयों के आगे Rx लिखते हैं. यानी वो ये दवाइयां आपको लेने के लिए कह रहे होते हैं.
नकली Remdesivir दवाई में vial. शब्द का पहला लेटर Capital में नहीं होता. इसके अलावा इसमें Spelling की भी कई गलतियां होंगी, यानी शाब्दिक गलतियां होंगी. असली और नकली Remdesivir दवाई में अंतर करने का सबसे आसान तरीका है, आप इसके पीछे लिखी गई बातों को ज़रूर पढ़ें. नकली दवाई में पीछे Red Warning Label नहीं होता. असली में ये आपको ये लिखा मिलेगा. इसकी मदद से आप नकली Remdesivir खरीदने से खुद को बचा सकते हैं.