Nikita Tomar Murder Case: फरीदाबाद की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने निकिता तोमर हत्याकांड में तीन आरोपियों में से दो आरोपियों को दोषी करार दिया है. हमारे देश में अक्सर ये कहा जाता है कि यहां अदालत में तारीख तो मिल जाती है, लेकिन न्याय मिलने में बरसों लग जाते हैं. हालांकि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ और इसलिए ये फैसला काफी महत्वपूर्ण है.
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नई दिल्ली: निकिता तोमर हत्याकांड मामले में अदालत का फैसला आ गया है और कोर्ट ने आरोपी तौसीफ़ और उसके दोस्त रेहान को दोषी मान लिया है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस मामले में न्याय के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा और अदालत ने हत्याकांड के सिर्फ 4 महीने और 29 दिन में ही सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुना दिया.
आपको याद होगा जब पिछले वर्ष 26 अक्टूबर को हरियाणा के फरीदाबाद में 20 वर्षीय निकिता तोमर की हत्या कर दी गई थी, तो हमारे देश के कई नेता ख़ामोश रहे थे. ये वही नेता हैं, जिन्होंने हाथरस कांड में पीड़ित और आरोपियों की जाति पर खूब राजनीति की थी और हाथरस को राजनीतिक पर्यटन का केन्द्र बना दिया था, लेकिन जब निकिता तोमर की हत्या हुई तो ये नेता पूरी तरह ख़ामोश रहे.
जब इस मामले में अदालत का फ़ैसला आ गया है तो हम इन नेताओं की ख़ामोशी पर भी सवाल उठाएंगे और इसके साथ ही आज हम न्याय की बदलती गति का भी विश्लेषण करेंगे क्योंकि, हमारे देश में अक्सर ये कहा जाता है कि यहां अदालत में तारीख तो मिल जाती है, लेकिन न्याय मिलने में बरसों लग जाते हैं. हालांकि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ और इसलिए ये फैसला काफी महत्वपूर्ण है. सबसे पहले आपको इसकी अहम बातें बताते हैं-
-फरीदाबाद की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने निकिता तोमर हत्याकांड में तीन आरोपियों में से दो आरोपियों को दोषी करार दिया है. इनमें पहला है तौसीफ, जिसने निकिता को गोली मारी थी और दूसरा आरोपी है उसका दोस्त रेहान, जो इस पूरी वारदात में शामिल था और तौसीफ की मदद कर रहा था. अदालत ने अजहरुद्दीन नाम के आरोपी को बरी कर दिया है. जिस पर ये आरोप था कि उसने हत्या के लिए तौसीफ को पिस्तौल दी थी.
-तौसीफ और रेहान को India Penal Code यानी IPC की धारा 302 यानी हत्या, धारा 34 एक ही मकसद के लिए कई लोगों द्वारा किया गया अपराध, धारा 120-B आपराधिक षड्यंत्र, धारा 366 जबरन शादी के लिए अपहरण करना, धारा 511 मकसद में नाकाम होने पर भी समान सज़ा और धारा 364 यानी हत्या के लिए अपहरण के मामले में दोषी ठहराया है.
-निकिता तोमर की हत्या पिछले साल 26 अक्टूबर को की गई थी और वो सिर्फ 20 साल की थी. वो ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करके एक दिन IAS ऑफिसर बनना चाहती थी, लेकिन तौसीफ के एक तरफा प्यार ने उसे हमेशा के लिए उसके परिवार से दूर कर दिया.
-निकिता की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने तौसीफ से शादी करने से इनकार कर दिया था और उस समय निकिता के परिवार ने इस पूरे मामले को धर्म परिवर्तन और लव जेहाद से जुड़ा बताया था. परिवार का आरोप था कि तौसीफ, निकिता से शादी करके उसका जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराना चाहता था और इसके लिए वो उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश भी कर चुका था और उसका पीछा भी किया करता था.
-तौसीफ की कई कोशिशों के बाद भी जब निकिता ने अपना फैसला नहीं बदला तो उसने उसकी जान ले ली. पिछले साल 26 अक्टूबर को हुए इस हत्याकांड का एक CCTV भी तब सामने आया था, जिसे Zee News ने ही सबसे पहले आपको दिखाया था. इसमें तौसीफ खुलेआम निकिता को गोली मारते हुए दिख रहा है और उसके साथ उसका दोस्त रेहान भी है, जिसे अदालत ने दोषी माना है.
-सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस मामले में फरीदाबाद पुलिस ने घटना के 11 दिन बाद ही 6 नवम्बर को 700 पेज की एक चार्जशीट दाख़िल कर दी थी, जिसमें लिखा है कि जब तौसीफ निकिता की हत्या करने के लिए उसके कॉलेज के पास पहुंचा तो उसकी पिस्तौल में सिर्फ एक ही गोली थी. यानी ये पहले से तय था कि ये गोली निकिता को पास से मारी जाएगी और फिर ये दोनों वहां से फरार हो जाएंगे
-आपको याद होगा जब इस हत्याकांड ने देश के लोगों को रोष से भर दिया था, तब हमने ये ख़बर प्रमुखता से दिखाई थी और DNA में हमने लगातार इस हत्याकांड को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे. तब हमने इसके पीछे के मेवात मॉडल को भी आपके सामने रखा था.
-असल में उस समय तौसीफ और रेहान निकिता तोमर की हत्या करने के बाद मेवात में जा कर छिप गए थे, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें वहां से गिरफ़्तार किया था. तब हमने दोषी तौसीफ के परिवार की राजनीतिक जड़ों के बारे में भी आपको जानकारी दी थी. हमने बताया था कि तौसीफ़ के चचेरे भाई हरियाणा के नूंह से कांग्रेस के विधायक हैं, जिनका नाम आफताब अहमद है और वो हरियाणा की कांग्रेस सरकार में परिवहन मंत्री भी रह चुके हैं.
-इसके अलावा आफताब अहमद के पिता खुर्शीद अहमद भी कांग्रेस से 5 बार विधायक और 1 बार सांसद रहे हैं और हरियाणा की पूर्व सरकारों में तीन बार मंत्री भी बन चुके हैं.
-यही नहीं आफताब अहमद के दादा चौधरी कबीर अहमद भी दो बार विधायक रहे हैं जबकि तौसीफ़ के एक चाचा जावेद अहमद ने हरियाणा के पिछले विधान सभा चुनाव में BSP की टिकट पर सोहना सीट से चुनाव लड़ा था. यानी तौसीफ़ एक राजनैतिक खानदान से आता है और इसीलिए अदालत का ये फ़ैसला काफ़ी महत्वपूर्ण है.
Zee News ने न सिर्फ़ इस ख़बर को प्रमुखता से दिखाया, बल्कि हमने उन नेताओं की खामोशी पर भी सवाल उठाए, जिन्हें हाथरस की ज़मीन तो जातिगत राजनीतिक के लिए काफ़ी उपजाऊ लग रही थी. लेकिन इस मामले में वो चुप थे. आज जब अदालत ने तौसीफ़ और रेहान को निकिता तोमर की हत्या के लिए दोषी मान लिया है, तो इन नेताओं की खामोशी पर सवाल उठाना भी ज़रूरी है.
आज आपको ये भी समझना चाहिए कि अदालत का ये फ़ैसला इतना महत्वपूर्ण क्यों है और इसे समझने के लिए सबसे पहले आपको इस पूरे मामले की टाइमलाइन को जानना होगा, जो न्याय की बदली गति के बारे में बताती है.
-निकिता तोमर की हत्या पिछले साल 26 अक्टूबर को हरियाणा के फरीदाबाद में हुई थी और महत्वपूर्ण बात ये है कि इस हत्याकांड के 11 दिन बाद ही 6 नवम्बर को पुलिस ने 700 पन्नों की चार्जशीट कोर्ट में दाख़िल कर दी थी और इसके बाद 12 नवंबर को ये केस फरीदाबाद की फास्ट ट्रैक कोर्ट में लिस्ट हो गया था और 1 दिसंबर से कोर्ट ने इस मामले में Day To Day यानी हर दिन सुनवाई शुरू कर दी थी.
-इस पूरी कार्यवाही के दौरान 55 गवाह अदालत में पेश हुए, जिनमें से तीन लोग चश्मदीद थे, जिन्होंने ये पूरी वारदात अपनी आंखों के सामने देखी थी. इनमें निकिता की दोस्ती भी थी, जो हत्याकांड के दौरान उसी के साथ मौजूद थी. उसे तब घटना के CCTV फुटेज में भी देखा गया था.
-बड़ी बात ये है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सिर्फ़ 113 दिन में इस केस की सुनवाई पूरी कर अपना फ़ैसला सुना दिया और तौसीफ़ और रेहान को दोषी करार दिया. यानी इस मामले में न्याय के लिए पीड़ित पक्ष को लंबा इंतज़ार नहीं करना पड़ा और इसे आप न्याय की बदलती गति का एक बड़ा उदाहरण भी मान सकते हैं. वो इसलिए क्योंकि, हत्याकांड के 149 दिन यानी 3 हज़ार 576 घंटों में ही पुलिस ने भी अपना काम किया और अदालत ने भी इस केस में अपना फ़ैसला दे दिया. अमूमन अदालत में ऐसा नहीं होता और लोगों की ये शिकायत भी रहती है कि कोर्ट के चक्कर कभी ख़त्म नहीं होते.
-हमारे ही देश में न्यायिक व्यवस्था को लेकर ये कटाक्ष भी किया जाता है कि यहां पिज्जा तो 30 मिनट में आ जाता है, लेकिन इंसाफ 30 वर्षों में भी कई बार नहीं मिल पाता और यही वजह है कि इस फैसले ने न्याय की गति को बदल दिया है. इससे ये भी पता चलता है कि अब भारतीय अदालतों में न्याय ने तीव्र यानी तेज गति हासिल कर ली है और इसे आप चाहें तो इन आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.
-National Crime Records Bureau के मुताबिक, 2019 तक भारतीय अदालतों में महिलाओं के ख़िलाफ अपराध के 90 प्रतिशत मामले लम्बित थे यानी अगर मान लें कि 100 मामले थे तो उनमें से 10 में ही फैसला आया. अब आप समझ गए होंगे कि क्यों हम ये कह रहे हैं कि इस मामले में जल्द फैसला आना न्यायिक व्यवस्था में तेज़ी को दर्शाता है.
हमारे देश की राजनीति काफ़ी असंवेदनशील हो चुकी है. जब इस देश में हाथरस जैसा कोई कांड होता है तो विपक्षी पार्टियों के नेता उस जगह पर अपनी दुकानें सजा लेते हैं और वो जगह राजनीतिक पर्यटन का केन्द्र बन जाती है. लेकिन जब किसी निकिता तोमर की हत्या होती है और आरोपी एक विशेष धर्म से होते हैं, तो मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है और हमारे देश के नेताओं की सोच सिलेक्टिव हो जाती है. हमें लगता है कि अपराध को लेकर इस तरह का राजनीतिक भेदभाव सही नहीं है. महिलाओं के ख़िलाफ चाहे कहीं भी अपराध हो, उसे प्रमुखता से उठाया जाना चाहिए.
Zee News ऐसा ही करता है और यही वजह है जब निकिता तोमर हत्याकांड में अदालत ने अपना फ़ैसला सुना दिया है, तो आप भी उन नेताओं को पहचानें, जो अपने फायदे के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं और महिला अपराध जैसे संगीन मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर उनकी गंभीरता खत्म कर देते हैं.