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नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी राज्य असम (Assam) और मिजोरम (Mizoram) की सीमा पर दोनों राज्यों की पुलिस के बीच खूनी संघर्ष हुआ है. इस झड़प में असम की पुलिस (Assam Police) के 6 जवान मारे गए हैं वहीं दोनों राज्यों की पुलिस के कई जवान घायल हो गए. ये संघर्ष काफी पुराना है जो दोनों राज्यों के बीच के सीमा विवाद (Border Dispute) से जुड़ा है. इसलिए इस विश्वेषण के जरिए आपको सीमा विवाद की प्रष्ठभूमि समझने में आसानी होगी.
इससे पहले आपने पुलिस को अपराधियों और आतंकवदियों से लड़ते देखा होगा. लेकिन दो राज्यों की पुलिस का आपस में लड़ना दुर्भाग्यपूर्ण है. अचानक से ये विवाद इतना बढ़ जाएगा इसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की होगी. दोनों पक्षों ने हिंसा के लिए एक-दूसरे की पुलिस को जिम्मेदार ठहराया और केंद्र के हस्तक्षेप की मांग की.
सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस की शुरुआत मिजोरम के मुख्य मंत्री Zor Mathanga (ज़ोर मथंगा) ने हिंसक झड़प का एक वीडियो ट्वीट करते हुए की. उन्होंने अपनी पोस्ट में देश के गृहमंत्री को भी टैग किया. इसके जवाब में असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने भी ट्वीट करते हुए लिखा कि मिजोरम की पुलिस असम की पुलिस को उसकी जमीन से हटाना चाहती है. उन्होंने भी गृहमंत्री अमित शाह को टैग करते हुए ये आरोप लगाया कि मिजोरम के कोलासिब जिले के एसपी ने धमकी दी है कि ना तो मिजोरम की पुलिस पीछे हटेगी और ना ही वहां के नागरिक. यानी अब इस हिंसा में मिजोरम के नागरिक भी शामिल हो गए हैं.
दरअसल असम और मिजोरम का बॉर्डर लगभग 164 किलोमीटर लंबा है. ये बॉर्डर मिजोरम के Aizawl, कोलासिब, मामित और असम के काचर, हेल कांडी और करीमगंज जिलों से होकर गुजरता है. ये सीमा विवाद इसी बॉर्डर के पास मौजूद गुटगुटी गांव के पास तब शुरू हुआ जब मिजोरम की पुलिस ने यहां कुछ अस्थाई कैंप बना लिए.
असम पुलिस का कहना है कि ये कैंप उनके राज्य की जमीन पर बनाए गए हैं. वहीं मिजोरम पुलिस का दावा है कि ये इलाका उनका है जिस पर असम पुलिस दावा कर रही है. बात बढ़ी तो दोनों राज्यों की पुलिस ने एक दूसरे पर फायरिंग की जिसमें असम पुलिस के 6 जवान घायल हो गए और सिलचर जिले के SP को भी इस दौरान चोटें आई. इतना ही नहीं इस विवाद में कई गाड़ियां भी तोड़ दी गई और इस हिंसा में मिजोरम की तरफ से कई आम नागरिक भी शामिल हो गए.
असम और मिजोरम के बीच ये सीमा विवाद 146 वर्ष पुराना है. साल 1875 में अंग्रेजों ने मिजोरम और असम के काचर के बीच सीमा का निर्धारण किया था. तब मिजोरम को लुशाई हिल्स कहा जाता था. पहले उत्तर पूर्व में सिर्फ मणिपुर, त्रिपुरा और असम राज्य हुआ करते थे. मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश पहले असम का हिस्सा हुआ करते थे. जिसे ग्रेटर असम कहते थे. हालांकि अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से तब North East Frontier Agency कहलाते थे जो ग्रेटर असम से अलग थे.
इस इलाके में अलग जन जातियों के लोग रहते थे. जिनकी भाषा, संस्कृति और पहचान एक दूसरे से अलग रही. इसी आधार पर आजादी के बाद मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश असम से अलग होकर अलग राज्य बन गए.
मिजोरम की सरकारों का दावा है कि आजादी के बाद हुए सीमा के निर्धारण की वजह से उनके बहुत सारे Mizo भाषा बोलने जिले असम का हिस्सा बन गए हैं. वहीं साल 2005 में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक Boundry Commision बनाने के लिए कहा था. ताकि इस विवाद का हल निकाला जा सके. लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ खास काम नहीं हुआ है.
असम में करीब 3 करोड़ 12 लाख लोग रहते हैं. असम में अलग अलग जातियों के लोग रहते हैं. इनमें बोडो, मिसिंग, सोनोवाल, कचारी, तीवा अहोम जैसी जातियों के लोग भी हैं तो बंगाली और हिंदी बोलने वाले भी अच्छी खासी संख्या में है. मिजोरम की कुल आबादी 12 लाख है. यहां मिज़ो जाति का वर्चस्व है. जिनकी जनसंख्या में हिस्सेदारी 74 प्रतिशत है. इनके बाद दूसरी प्रमुख कम्युनिटी चकमा है जिनकी संख्या मिजोरम की आबादी का 9 प्रतिशत है. मिजोरम में एक छोटी जनसंख्या बंगाली भाषा बोलने वाले लोगों की भी है.
मिजोरम का 700 किलोमीटर लंबा बॉर्डर म्यांमार और बांग्लादेश से भी लगता हैं. इसलिए ये राज्य सुरक्षा की दृष्टि से बहुत संवेदनशील है. म्यांमार की सरकार के तख्तापलट के बाद से बड़ी संख्या में रिफ्यूजी भी मिजोरम पहुंच रहे हैं.
कुल मिलाकर इस पूरे सीमा विवाद को करीब 150 साल हो चुके हैं. लेकिन इसका अभी तक कोई हल नहीं निकाला जा सका है. अब आप सोचिए जब हम दो राज्यों के बीच सीमा विवाद का हल इतने वर्षों में नहीं निकाल पाए हैं तो फिर पड़ोसी देशों के साथ ऐसे विवादों का हल होने में कितना समय लगेगा.
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट (Mizo National Front) और बीजेपी गठबंधन की सरकार है, जिसके पास राज्य की 40 में से 27 सीटें हैं. जबकि बीजेपी का यहां सिर्फ एक ही विधायक है.