DNA ANALYSIS: गैंगस्टर विकास दुबे के क्रिमिनल अतीत का विश्लेषण
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DNA ANALYSIS: गैंगस्टर विकास दुबे के क्रिमिनल अतीत का विश्लेषण

ऐसी अफवाहें भी हैं कि विकास दुबे नोएडा की फिल्म सिटी में स्थित किसी न्यूज चैनल भी पहुंच सकता है और किसी टीवी शो के दौरान लाइव सरेंडर कर सकता है. 

DNA ANALYSIS: गैंगस्टर विकास दुबे के क्रिमिनल अतीत का विश्लेषण

नई दिल्ली: कोरोना वायरस हमारे बीच से कभी ना कभी जरूर खत्म हो जाएगा, लेकिन समाज के उस इंसानी वायरस का अंत कब होगा, जो नेताओं और पुलिस की सांठगांठ वाली सामाजिक लैब्स में तैयार किया जाता है, और जहां से विकास दुबे जैसे अपराधी जन्म लेते हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाला अपराधी विकास दुबे छह दिन से फरार है.

विकास दुबे को आखिरी बार हरियाणा के फरीदाबाद में देखा गया. लेकिन पुलिस के छापे से पहले ही विकास दुबे फरीदाबाद से भी गायब हो गया. उत्तर प्रदेश पुलिस, हरियाणा पुलिस और दिल्ली पुलिस की कई टीमें, विकास दुबे की तलाश कर रही हैं. बताया जा रहा है कि वो अब दिल्ली या नोएडा की किसी अदालत में सरेंडर करने की कोशिश में जुटा है.

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टीवी शो के दौरान सरेंडर कर सकता है विकास दुबे
ऐसी अफवाहें भी हैं कि विकास दुबे नोएडा की फिल्म सिटी में स्थित किसी न्यूज चैनल भी पहुंच सकता है और किसी टीवी शो के दौरान लाइव सरेंडर कर सकता है. इसलिए फिल्म सिटी को भी चारों तरफ से घेर लिया गया है और बिना चेकिंग के किसी भी गाड़ी को अंदर नहीं आने दिया जा रहा. हमारा मानना है किसी अपराधी को ऐसा कोई प्लेटफॉर्म नहीं मिलना चाहिए. जैसे हम आतंकवादियों का कोई पक्ष सामने नहीं रखते वैसे ही ये मौका विकास दुबे जैसे अपराधियों को भी नहीं मिलना चाहिए और अगर कोई ऐसा करता है तो आप इसे मीडिया का पतन भी कह सकते हैं.

विकास दुबे को खुद के एनकाउंटर का डर है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में पुलिस ने आज सुबह उसके रिश्तेदार अमर दुबे को एक एनकाउंटर में मार दिया. अमर दुबे, विकास दुबे का राइट हैंड माना जाता था और उसके गिरोह का शूटर था. इसके अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस ने बुधवार को विकास दुबे के एक और करीबी श्यामू बाजपेई को भी गिरफ्तार किया है.

अपराधी को किसका सरंक्षण?
लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आठ-आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद भी, विकास दुबे जैसे अपराधी को सिस्टम अब तक हाथ नहीं लगा पाया. इतना भारी भरकम पुलिस सिस्टम, छह दिन बाद भी विकास दुबे को पकड़ नहीं सका. अब आप सोचिए कि इस अपराधी की पकड़ कितनी मजबूत होगी, क्योंकि इतने दिनों तक कोई अपराधी बिना किसी सरंक्षण के बच नहीं सकता है, वो भी तब जब कई राज्यों की पुलिस 24 घंटे उसकी तलाश में जुटी हैं.

विकास दुबे के आपराधिक इतिहास की जो कहानी सामने आई है, वो नेताओं, पुलिस और अपराधियों के उसी अपवित्र गठबंधन की कहानी है, ऐसी कहानी हम अक्सर फिल्मों और आजकल वेब सीरीज के जरिए देखते हैं. लेकिन इस कहानी के कोई पात्र काल्पनिक नहीं हैं. सवाल तो ये है कि हमारे सिस्टम का ये अपवित्र गठबंधन कब टूटेगा? कब तक विकास दुबे जैसे अपराधियों को समाज में जगह मिलती रहेगी?

विकास दुबे का करीब 30 वर्ष का आपराधिक इतिहास रहा है, और इन 30 वर्षों में उसे, अपने अपराधों से तरक्की ही तरक्की मिली है. आप सोचिए कि कैसे कानपुर के एक गांव का सामान्य व्यक्ति, आज 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति का मालिक है. 60 से ज्यादा आपराधिक मामले होने के बावजूद, विकास दुबे का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया.

विकास दुबे को बचाते रहे नेता?
ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि अपने फायदे के लिए नेता उसे बचाते थे, पुलिस भी उससे डरती थी, इसी संरक्षण और डर ने विकास दुबे को मनमानी करने की इजाजत दी और उसके अपराध बढ़ते चले गए. किसी को डराना-धमकाना हो, किसी की हत्या करना हो, जमीन पर अवैध कब्जा करना हो, ठेके दिलाने में कमिशन लेना हो या फिर कारोबारियों से अवैध वसूली करना हो. यही करते हुए विकास दुबे 30 वर्षों में बड़ा गैंगस्टर बन गया.

लेकिन सिस्टम की आंखें तब खुलीं, जब इसी विकास दुबे और उसके साथियों ने कानपुर के अपने गांव में एक डीएसपी सहित 8 पुलिसकर्मियों की सुनियोजित तरीके से हत्या कर दी. ये पुलिसकर्मी विकास दुबे को गिरफ्तार करने गए थे, लेकिन इन्हें अपने ही पुलिस विभाग के उन साथियों से धोखा मिला, जो तन्ख्वाह तो पुलिस विभाग से लेते थे लेकिन नौकरी विकास दुबे की करते थे, उन्होंने विकास दुबे को पहले से ही सावधान कर दिया था.

आम तौर पर पुलिसवालों के मुखबिर होते हैं, जो अपराध और अपराधियों के बारे में सूचना देते हैं, लेकिन जब पुलिसवाले ही अपराधियों के मुखबिर बन जाएं, तो आप सोचिए किस हद तक हमारे सिस्टम का अपराधीकरण हो चुका है? कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के इस मामले में यही हुआ है. बुधवार को ऐसे दो पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया, जिन पर विकास दुबे की मदद करने का आरोप है.

इनमें से एक नाम है- इंस्पेक्टर विनय तिवारी और दूसरा नाम है- सब इंस्पेक्टर केके शर्मा. विनय तिवारी उस चौबेपुर पुलिस थाना के प्रभारी थे, जहां के बिकरू गांव में विकास दुबे और उसके साथियों ने 2 जुलाई की रात को 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी. ये पुलिसकर्मी अवैध वसूली के एक मामले में विकास दुबे को गिरफ्तार करने के लिए गए थे.

विनय तिवारी और केके शर्मा पर शक है कि उन्होंने ही विकास दुबे को सूचना दे दी थी कि पुलिस की टीम, उसे गिरफ्तार करने आ रही है. जब पुलिस की टीम बिकरू गांव जा रही थी, तो थाना प्रभारी विनय तिवारी ने इलेक्ट्रिसिटी ऑफिस में फोन करके गांव की बिजली सप्लाई कटवा दी थी. अंधेरे का फायदा उठाकर और पुलिस टीम को चारों तरफ से घेर कर विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस के हथियारों से ही पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी.

यहां सबसे हैरानी की बात ये है कि विनय तिवारी और केके शर्मा भी उस टीम के साथ थे, जो 2 जुलाई को विकास दुबे को गिरफ्तार करने के लिए गई थी. लेकिन एनकाउंटर के दौरान जब विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस की टीम पर हमला किया, तो विनय तिवारी और केके शर्मा इन गुंडों से लड़ने की बजाय वहां से भाग गए.

इंस्पेक्टर विनय तिवारी की मिलीभगत
अपराधी विकास दुबे से इंस्पेक्टर विनय तिवारी की मिलीभगत का शक तब हुआ, जब डीएसपी देवेंद्र मिश्रा की एक चिट्ठी सामने आई थी. देवेंद्र मिश्रा के ही नेतृत्व में पुलिस की टीम, विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई थी. और 2 जुलाई को हुई इसी गोलीबारी में देवेंद्र मिश्रा की जान चली गई थी. देवेंद्र मिश्रा ने उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF के DIG अनंत देव से विनय तिवारी की शिकायत की थी.

उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि विकास दुबे पर कई संगीन मामले दर्ज हैं, इसमें अवैध वसूली का एक मामला 13 मार्च को दर्ज हुआ था, जो गैर जमानती अपराध था. लेकिन फिर भी विकास दुबे पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सिर्फ यही नहीं जब इस केस का अपडेट पूछा गया तो पता चला कि इंस्पेक्टर विनय तिवारी ने विकास दुबे के खिलाफ FIR से गंभीर धाराएं हटाकर मामूली धाराएं लगा दी हैं.

शहीद डीएसपी देवेंद्र मिश्रा ने चार महीने पहले आगाह कर दिया था कि इंस्पेक्टर विनय तिवारी और अपराधी विकास दुबे आपस में मिलते-जुलते हैं और अगर ये तौर तरीके नहीं बदले गए तो गंभीर घटना घट सकती है. लेकिन देवेंद्र मिश्रा की चेतावनी और उनकी चिट्ठी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. खुद DIG अनंत देव पर विकास दुबे के करीबियों से संबंध होने का आरोप है.

ये सब सामने आने के बाद STF में तैनात DIG अनंत देव को उनके पद से हटा दिया गया है. कई पुलिसकर्मियों को निलंबित किया गया है, और इस मामले में करीब 20 पुलिसकर्मियों की संदिग्ध भूमिका की जांच की जा रही है, कि ये पुलिसकर्मी कैसे विकास दुबे के इशारे पर काम कर रहे थे. यानी विकास दुबे जैसे अपराधी को बचाने वाले अब खुद फंस गए हैं. 

विकास दुबे के पास भी अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं, जिस पुलिस को वो कठपुतली की तरह नचा रहा था, वही पुलिस अब विकास दुबे के पीछे लग चुकी है. इसी पुलिस से बचकर वो भाग रहा है. 

आज नहीं तो कल, विकास दुबे पुलिस की पकड़ में आ जाएगा, लेकिन सवाल तो ये है, क्या वो अपवित्र गठबंधन कभी टूट पाएगा, जिसमें विकास दुबे जैसे अपराधियों को सरंक्षण मिलता है. क्योंकि जिन नेताओं ने, जिन पुलिस अधिकारियों ने, जिन रसूखदार लोगों ने विकास दुबे को अब तक बचाया है, वो भी एक तरह से समाज के अपराधी हैं.

1992 में की पहली हत्या 
विकास दुबे ने 1992 में पहली हत्या की थी, इसके बाद डर फैलाकर, उसने अपने इलाके में पकड़ बनाई. इससे वो नेताओं की नजर में आ गया. वोट के लिए नेता, अपराधियों को भी संरक्षण देने से नहीं हिचकते, और यही विकास दुबे के साथ भी हुआ. वो अपनी सुविधा के हिसाब से अपना नेता और अपनी पार्टी बदलता रहा.

नेताओं के लिए काम करना, किसी की जमीन पर कब्जा कर लेना, व्यापारियों से अवैध वसूली करना, इस तरह से विकास दुबे, स्थानीय नेताओं का चहेता बन गया. विरोधी नेता को कमजोर करने या उसे खत्म करने के लिए भी नेता, विकास दुबे का इस्तेमाल करते थे. जैसे वर्ष 2001 में विकास दुबे ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के एक दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की कानपुर में एक थाने के अंदर हत्या कर दी थी.

2001 में जब विकास दुबे ने संतोष शुक्ला की हत्या की थी, तब थाने में करीब 30 पुलिसकर्मी मौजूद थे, लेकिन विकास दुबे के खिलाफ अदालत में गवाही देने की हिम्मत किसी में भी नहीं हुई. ऐसी घटनाओं से विकास दुबे जैसे अपराधियों का मनोबल और बढ़ जाता है और यही हुआ. कई राजनैतिक दलों में अच्छी पकड़ होने की वजह से विकास दुबे कुछ दिन जेल में रहता और फिर छूट जाता था.

विकास दुबे का फरार होना सिर्फ पुलिस के लिए नहीं पूरी उत्तर प्रदेश सरकार के लिए भी चुनौती है. क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस वादे के साथ सत्ता में आए थे कि वो अपराधियों को किसी तरह की छूट नहीं देंगे. किसी को बख्शा नहीं जाएगा. शुरुआत में उन्हें बहुत सफलता मिली भी लेकिन इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. 

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