DNA ANALYSIS: चीन के साथ सीमा विवाद पर PM मोदी के सख्‍त संदेश के समझिए मायने
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DNA ANALYSIS: चीन के साथ सीमा विवाद पर PM मोदी के सख्‍त संदेश के समझिए मायने

प्रधानमंत्री ने गलवान घाटी में शहीद 20 जवानों की वीरता को याद करते हुए कहा कि हमारे वीर जवान उन्हें सबक सिखा कर गए. जिन्होंने भारत माता की तरफ आंख उठाकर देखा था. 

DNA ANALYSIS: चीन के साथ सीमा विवाद पर PM मोदी के सख्‍त संदेश के समझिए मायने

नई दिल्ली: गलवान घाटी में चीन के साथ सीमा विवाद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अब तक दो बार महत्वूर्ण बयान दे चुके हैं. पहला महत्वपर्ण बयान दो दिन पहले दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत के सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. आज उन्होंने देश को एक बार फिर भरोसा दिलाया है भारत की एक इंच जमीन भी किसी दूसरे के कब्जे में नहीं है.

चीन के मामले में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में बड़ी बात कही कि भारत की सीमा में ना तो कोई घुसा है और ना ही हमारी कोई पोस्ट, किसी के कब्जे में है. प्रधानमंत्री ने गलवान घाटी में शहीद 20 जवानों की वीरता को याद करते हुए कहा कि हमारे वीर जवान उन्हें सबक सिखा कर गए. जिन्होंने भारत माता की तरफ आंख उठाकर देखा था. 

प्रधानमंत्री ने सभी दलों के नेता से कहा कि देश की रक्षा के लिए, जमीन से लेकर आसमान तक, हमारी सेनाओं को जो करना है, जो कदम उठाना है, वो कदम उठाए जा रहे हैं. आज देश के पास वो क्षमता है कि हमारी एक इंच जमीन की तरफ आंख उठाकर भी कोई देख नहीं सकता. प्रधानमंत्री का ये संदेश किसी चेतावनी की तरह है कि भारत की सेनाएं सीमा पर अलग-अलग सेक्टर्स में, एक साथ मूव करने में सक्षम हैं. प्रधानमंत्री ने ये भी कहा कि देश ने अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए बॉर्डर पर इंफ्रास्ट्रक्टर बनाने को प्राथमिकता दी है. इससे सीमा पर हमारी पेट्रोलिंग की क्षमता भी बढ़ गई है. पेट्रोलिंग बढ़ने की वजह से ही सीमा पर हो रही गतिविधियों के बारे में समय पर पता चलता है. पहले जिन इलाकों तक सैनिकों की पहुंच नहीं थी या उनकी नजर नहीं पड़ती थी, उन इलाकों तक पेट्रोलिंग हो रही है. चीन का नाम लिए बिना प्रधानमंत्री ने कहा कि सीमा पर जिन लोगों को पहले कोई पूछता नहीं था, रोकता-टोकता नहीं था, उन लोगों को अब हमारे जवान कदम-कदम पर रोकते हैं, टोकते हैं और इसी से दूसरे लोग परेशान हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा कि हम शांति चाहते हैं लेकिन हम अपनी संप्रभुता पर खतरा नहीं आने देंगे.

इसके अलावा उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात ये कही कि ये विवाद इसलिए है क्योंकि सीमा पर भारत की सतर्कता बढ़ी है. सीमा के पास इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण की वजह से सेना तक साजो सामान पहुंचाने में आसानी हुई है. उन्होंने ये भी कहा कि भारत ने कभी किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं किया है आज भी कोई भी दबाव भारत को सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्टर के निर्माण से नहीं रोक सकता. अब आपको ये समझना चाहिए कि प्रधानमंत्री जो बातें कह रहे हैं और सीमा पर भारत की तैयारियों को लेकर जो आत्मविश्वास उनके मन में है, उसकी वजह क्या है? 

2014 में जब मौजूदा सरकार पहली बार सत्ता में आई तब प्रधानमंत्री मोदी ने जो शुरुआती फैसले किए थे उनमें से एक महत्वपूर्ण फैसला बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) द्वारा बनाई जा रही उन सड़कों को मंजूरी देने का था. जिनका निर्माण LAC से 100 किलोमीटर के दायरे में किया जाना था. इस मंजूरी का असर ये हुआ की सड़कों के निर्माण में बाधा बनने वाली अफसरशाही दूर हो गई और केंद्र सरकार से मंजूरी लेने जैसी लंबी चौड़ी प्रक्रियाओं पर भी ब्रेक लग गया और BRO तेजी से सड़क निर्माण के काम में जुट गया. अब इन महत्वपूर्ण सड़कों में से करीब 75 प्रतिशत का काम लगभग पूरा हो चुका है.

इसके बाद वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने BRO को और शक्तिशाली बना दिया और BRO के डायरेक्टर जनरल यानी DG को कई तरह के अधिकार सौंप दिए गए. इसके साथ ही भारत-चीन सीमा के करीब बनने वाली 66 सड़कों के निर्माण का रास्ता साफ हो गया.

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इन सारी कोशिशों का जो नतीजा हुआ उसे आपको कुछ आंकड़ों की मदद से समझना चाहिए. 2008 से 2017 के बीच भारत और चीन की सीमा के पास प्रति वर्ष करीब 230 किलोमीटर लंबी सड़कों की कटिंग और फॉर्मेटिंग का काम हो रहा था, जो 2017 से 2020 के बीच बढ़कर 470 किलोमीटर प्रति वर्ष हो गया.

इसी तरह 2008 से 2017 के बीच सड़कों की सर्फेसिंग करने की रफ्तार 170 किलोमीटर प्रति वर्ष थी. जो 2017 से 2020 के बीच बढ़कर 380 किलोमीटर प्रति वर्ष हो गई.

पहाड़ी रास्तों पर सड़कों को जोड़ने के लिए सुरंगों की भी आवश्यक्ता होती है. 2008 से 2014 के बीच ऐसी सिर्फ एक सुरंग का निर्माण हुआ था. जबकि 2014 से 2020 के दौरान 6 सुरंगे बना ली गईं और करीब 19 सुरंगों के निर्माण की योजना पर अभी काम चल रहा है.

इसी तरह 2008 से 2014 के बीच 7 हजार 270 मीटर लंबे ब्रिज बनाए गए थे. 2014 से 20 के बीच 14 हज़ार 450 मीटर पुलों का निर्माण किया गया.

2008 से 2014 के बीच सीमा पर 3 हजार 610 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण हुआ जबकि 2014 से 2020 के बीच 4 हजार 764 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गईं. 

इस भारी निर्माण के लिए अच्छे खासे बजट की भी जरूरत होती है और उसका भी पूरा ध्यान रखा गया. 12 वर्षों में ये बजट 3300 करोड़ रुपये से बढ़कर 11 हजार 800 करोड़ रुपये हो गया.

चीन के मामले पर शुक्रवार को प्रधानमंत्री के साथ साढ़े तीन घंटे तक सर्वदलीय बैठक हुई. इस बैठक में जो बातें निकलकर आई हैं, उससे देश को पता चल गया कि इस संकट के वक्त कौन देश के साथ है और कौन देश के साथ नहीं है. ज्यादातर विपक्षी दलों ने कहा है कि वो सरकार के साथ हैं. सिर्फ कांग्रेस और वामपंथी दल ही सरकार पर सवाल उठा रहे हैं. उनकी मंशा है कि सरकार को किसी भी तरह से घेरा जाए और ऐसे सवाल किए जाएं, जिनका कम से कम इस वक्त तो कोई मतलब नहीं है.

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जैसे कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि सरकार बताए कि चीन के सैनिकों ने कौन सी तारीख को घुसपैठ की थी? सरकार को घुसपैठ के बारे में कब पता चला? क्या सरकार को सैटेलाइट तस्वीरें नहीं मिलीं? क्या कोई खुफिया जानकारी नहीं मिली? ये सब बातें सोनिया गांधी ने सर्वदलीय बैठक में कीं और ये कहा कि सर्वदलीय बैठक तो पहले हो जानी चाहिए थी और अब तक सरकार सबको अंधेरे में रख रही है.

इसी तरह से वामपंथी दल चीन की आलोचना करने की बजाय इस मामले में अमेरिका को बीच में ले आए. कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानी CPI के नेता डी राजा ने ये कह दिया कि भारत को अमेरिका अपने गुट में खींचने की कोशिश कर रहा है, इससे भारत को बचना चाहिए. CPM के नेता सीताराम येचुरी चीन के साथ पंचशील सिद्धांतों पर जोर देने के लिए कह रहे थे. यानी जब चीन के खिलाफ देश में गुस्सा है, तो ये नेता चीन पर नरम दिख रहे हैं.

कांग्रेस और वामपंथी दलों की सोच तो देश को साफ दिख गई, लेकिन इनको छोड़कर बाकी विपक्ष के नेता डटकर सरकार के साथ दिखे और सोनिया गांधी जैसे नेताओं को इन्होंने आइना भी दिखाया है, जैसे एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार. उन्होंने तो एक तरह से राहुल गांधी को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की अहमियत समझा दी. राहुल गांधी ये सवाल उठा रहे हैं कि सैनिकों को निहत्थे क्यों भेजा गया था. शरद पवार ने ये कहा कि सैनिक निहत्थे रहेंगे या हथियार के साथ, ये अंतरराष्ट्रीय समझौतों से तय होता है. शरद पवार रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं और इस नाते बात बहुत महत्वपूर्ण है.

शरद पवार की तरह ही शिवसेना के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी खुलकर सरकार के साथ दिखे. उद्धव ठाकरे ने कहा कि चीन के आगे भारत मजबूर नहीं बल्कि मजबूत है. हम सब एक हैं और प्रधानमंत्री के साथ हैं. उद्धव ने यहां तक कह दिया कि आंखें निकालकर हाथ में दे देना ये हमारी सरकार की ताकत है. अब आप सोचिए कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे, दोनों ही कांग्रेस के सहयोगी हैं, महाराष्ट्र में सरकार चला रहे हैं, लेकिन जब देश का मामला आया, तो दोनों ने राजनीति नहीं की और देशहित की बात की.

इसी तरह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत जीतेगा और चीन हारेगा. ममता बनर्जी ने ये महत्वपूर्ण बात कही कि हमें इस वक्त एक आवाज में बोलना, सोचना और काम करना चाहिए.

बीएसपी की अध्यक्ष मायावती ने भी सरकार का समर्थन किया और कहा कि ये वक्त राजनीति का नहीं है. समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि चीन के सामानों पर 300 प्रतिशत ड्यूटी लगा देनी चाहिए.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान से चीन बौखलाया है. जेडीयू के अध्यक्ष और बिहार नीतीश कुमार ने भी कहा कि चीन के सामान देश के लिए बड़ी समस्या हैं. लोकजनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने कहा कि पूरा देश प्रधानमंत्री के साथ खड़ा है और उनकी ओर देख रहा है.

अब सोचिए कांग्रेस और वामपंथी दलों को छोड़कर, हर दल, फिर चाहे वो सरकार में हो, या फिर विपक्ष में हो, सबने एक तरह से यही कहा कि ये वक्त चीन से डटकर मुकाबला करने का है. राजनीति करने का वक्त नहीं है. अब तो देश के सामने कांग्रेस और वामपंथी दलों का असली चेहरा सामने आ गया है. ये दल चीन के खिलाफ नहीं, अपनी ही सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं.

होना तो ये चाहिए था कि इस संकट के वक्त में पूरे देश की एक आवाज होती. ये राजनीति तो बाद में भी हो सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भारत के बारे में चीन में तो एक राय है, वहां पर कोई दुविधा नहीं, वहां पर कोई मतभेद नहीं है. लेकिन हमारे यहां मतभेद भी है, दुविधा भी है और राजनीति भी हो रही है.

ये दुर्भाग्य की बात है कि आज देश की दो सबसे पुरानी पार्टियां इस सर्वदलीय बैठक में अलग थलग पड़ गईं. एक है कांग्रेस पार्टी और दूसरी है कम्यूनिस्ट पार्टी.

1962 के युद्ध में सिर्फ सीमा पर दुश्मन ही नहीं थे, घर के अंदर ही दुश्मन बैठे थे. ये दुश्मन भारत के वामपंथी थे, जो चीन के वामपंथियों को अपना भाई समझते थे और भारत-चीन युद्ध में चीन का समर्थन कर रहे थे. जब 1962 का युद्ध हुआ था, तो भारत के वामपंथियों के एक वर्ग ने ये कहते चीन का समर्थन किया था कि ये युद्ध नहीं बल्कि एक समाजवादी देश और एक पूंजीवादी देश के बीच का संघर्ष है. ये तब हो रहा था जब भारत के वामपंथी उस वक्त देश के मुख्य विपक्षी थे. कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया CPI मुख्य विपक्षी पार्टी थी.

उस वक्त पूरा देश हमलावर चीन को खदेड़ने की बात कर रहा था लेकिन भारत के वामपंथी ये मानने को तैयार नहीं थे कि सीमा पर चीन ने हमला किया था. उनका मानना था कि उग्र रवैया भारत का था और हमलावर भारत है. जब पूरा देश अपनी सेना के जवानों के लिए खून दे रहा था, तो कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया इसका विरोध कर रही थी. सेना के जवानों को खून देने को CPI पार्टी विरोधी गतिविधि मानती थी.

यहां तक कि कई वामपंथी नेता चीन के समर्थन में रैलियां कर रहे थे. 1962 के युद्ध में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया CPI चीन का इस तरह से समर्थन कर रही थी, कि तत्कालीन सरकार को इस पार्टी के नेताओं को जेल भेजना पड़ा था.

ये भारत के कम्यूनिस्टों की चीन के कम्यूनिस्टों के प्रति ऐसी वफादारी थी, जिसमें देश के साथ गद्दारी करने में भी हिचक नहीं हुई.

वैसे ये बात हम लगातार कह रहे हैं कि अगर युद्ध हुआ, तो फिर चीन की सेना, भारत के सामने टिक नहीं पाएगी. और ये बात सिर्फ हम नहीं मानते, बल्कि खुद चीन के रक्षा विशेषज्ञ ये मानते हैं कि लद्दाख जैसे पहाड़ी इलाकों में भारतीय सेना से ताकतवर दूसरा कोई नहीं है. चीन के एक रक्षा विशेषज्ञ ने कुछ दिन पहले कहा था कि भारत की सेना पहाड़ों पर लड़ने के लिए सबसे बड़ी, सबसे अनुभवी, सबसे ताकतवर सेना है और जिसके पास सबसे घातक हथियार भी हैं.

इसमें भी जिस तरह से भारतीय वायुसेना की तैयारी दिख रही है, उससे तो चीन को बहुत डर लग रहा होगा. क्योंकि अगर सिर्फ वायुसेना की ताकत की ही तुलना करें तो चीन के Western Theatre Command के पास 157 लड़ाकू विमान हैं, जबकि चीन के खिलाफ भारत के 270 लड़ाकू विमान तैनात हैं. यानी अगर युद्ध के हालात बने तो फिर चीन के लिए भारतीय वायुसेना का सामना करना बहुत ही मुश्किल होगा. आपको ये भी याद दिला दें कि 1962 के युद्ध में भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, नहीं तो युद्ध का नतीजा कुछ और होता.

चीन को इस बात का भी अहसास है, कि भारत उसे जवाब जरूर देगा. इसी डर से चीन बेचैन है. शुक्रवार को ही ये खबरें भी आईं कि चीन के हैकर्स भारतीय रेलवे के सिस्टम में सेंध लगा कर महत्वपूर्ण जानकारियां लेने की कोशिश कर रहे हैं. इस पर खुफिया एजेंसियों ने रेलवे को अलर्ट किया है. ऐसा कहा जा रहा है कि चीन ये पता लगाना चाहता है कि भारत सीमा के लिए रेलवे के जरिए किस तरह का मूवमेंट कर रहा है. 

चीन ऐसी हरकतें सिर्फ भारत के साथ नहीं कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया भी आजकल चीन का दुश्मन बन गया है. वहां पर भी एक बड़ा साइबर अटैक हुआ है और सरकारी जानकारियां चुराने की कोशिश की गईं. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया है. यानी चीन अब अपनी हरकतों से पूरी दुनिया के लिए एक ऐसा खतरा बन गया है, जिसे अब भी अगर दुनिया ने नहीं समझा, तो इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. 

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