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नई दिल्ली: डीएनए (DNA) में अब बात प्रदूषण (Pollution) की बात करते हैं. जिस नोएडा से हम DNA का प्रसारण करते हैं. वो फिलहाल दुनिया की सबसे प्रदूषित जगह है. ऐसा इसलिए क्योंकि नोएडा में शुक्रवार की शाम 6 बजे तक एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air Quality Index) 780 था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के मुताबिक एक दिन में AQI 15 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इस हिसाब से नोएडा की हवा मानकों से भी 52 गुना ज्यादा प्रदूषित हैं.
WHO का मानना है कि साल में औसत AQI 45 से ज्यादा नहीं होना चाहिए, इस हिसाब से भारत में शायद इक्का दुक्का जगह ही ऐसी होंगी, जहां कि हवा को शुद्ध माना जा सकता है. बीते शुक्रवार यानी कल शाम के 6 बजे तक सिर्फ आंध्रपदेश का अमरावती और कर्नाटक का चिक-बालापुर ही ऐसे शहर थे जहां AQI 10 के आस पास था.
यहां तक कि उत्तर भारत के किसी हिल स्टेशन (Hill Station) पर भी मानकों के मुताबिक शुद्ध हवा नहीं है. अगर आप वीकेंड पर ये सोच कर पहाड़ों पर जा रहे हैं कि वहां आपको शुद्ध हवा मिलेगी तो जहां हैं वहीं रहिए क्योंकि नैनिताल और मसूरी में आज का AQI WHO के मानकों से 10 गुना ज्यादा खराब है. वहीं शिमला का AQI तो 6 गुना ज्यादा खराब है. दिल्ली और आस-पास के सभी शहरों की हवा, सुरक्षित श्रेणी के मुकाबले 40 से 50 गुना ज्यादा दूषित है. आप इसे उत्तर भारत में प्रदूषण का आपातकाल भी कह सकते हैं.
मार्च 2020 में भारत में जब कोरोना वायरस के सिर्फ 500 मामले थे तब पूरे देश में लॉकडाउन (Lock Down) लगा दिया गया था. लेकिन जब शहरों का AQI 999 तक पहुंच चुका है तो कोई इसे आपातकाल मानने को तैयार नहीं है. भारत में इस समय जितना प्रदूषण है उसे आप लॉकडाउन (Lockdown) के लिए आदर्श स्थिति कह सकते हैं. सिर्फ दिल्ली में प्रदूषण की वजह से हर साल 55 हजार लोगों की मौत होती है, जबकि 1984 में भोपाल गैस त्रासदी की वजह से 25 हज़ार लोग मारे गए थे.
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इसलिए दिल्ली और उत्तर भारत के प्रदूषण को एक त्रासदी की तरह ही देखना चाहिए, लेकिन अफसोस ये है कि ना तो भोपाल गैस कांड के दोषियों को सज़ा हो पाई और ना ही आज के इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करना आसान है. क्योंकि इसके लिए कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा का पूरा सिस्टम जिम्मेदार है.
हालांकि दुनिया के दूसरे देशों में प्रदूषण की समस्या को बहुत गंभीरता से लिया जाता है. उदाहरण के लिए 2016 में जब फ्रांस की राजधानी पेरिस (Paris) का AQI 114 पहुंच गया था तो वहां वाहनों से लेकर फैक्ट्रियों तक की रफ्तार रोक दी गई थी, यानी एक तरह का शट डाउन कर दिया गया था.
प्रदूषण कम करने के लिए तरह-तरह के सुधार किए गए और अब पेरिस में औसत AQI 35 के आस पास रहता है. अब समझिए कैसे 114 के AQI पर पेरिस में सारी व्यावसायिक गतिविधियां (Commercial Activities) रोक दी गईं जबकि उत्तर भारत में अगर AQI घटकर 114 भी हो जाए तो लोग खुद को सौभाग्यशाली समझेंगे.
इसी तरह 2019 में Hong Kong में AQI 400 तक पहुंच गया था, इसके बाद पूरे Hong Kong को Shut Down कर दिया गया और आज वहां का AQI 60 के आस पास है.
सत्तर, अस्सी, नब्बे और दो हज़ार के दशक तक भारत में चुनाव बिजली पानी और सड़क के मुद्दे पर लड़े जाते थे. लेकिन किसी ने हवा जैसे बुनियादी अधिकार को कभी मुद्दा नहीं बनाया, बिजली आ गई, सड़कें बन गई, पानी भी उपलब्ध हो गया. लेकिन इन सबके बीच हवा चली गई. चुनावों के दौरान अक्सर कहा जाता कि देश में इस नेता कि उस पार्टी की हवा चल रही है. कोई पार्टी चुनाव में इस वादे के साथ नहीं उतरती कि उसकी जीत के बाद देश में साफ और शुद्ध हवा चलने लगेगी.
उत्तर भारत में प्रदूषण के हालात पर हमने एक रिपोर्ट तैयार की है. इसे पढ़कर अगर आप दिल्ली या आस पास के शहरों में नहीं रहते तो खुद को खुशकिस्मत समझेंगे और अगर आप इन इलाकों में रहते हैं तो आपको अपनी किस्मत पर रोना आएगा. जमीन से आसमान तक प्रदूषण की परतों मे लिपटे उत्तर भारत में कोई कहे कि आपका स्वागत है. तो आपको कैसा लगेगा? World Health Organization के नए मानकों को आधार बनाया जाए तो दिल्ली और इसके आस पास के शहरों की हवा मानकों से 52 गुना ज्यादा प्रदूषित है.
क्या दिल्ली, क्या गाजियाबाद और क्या नोएडा, कहने को तो ये शहर देश की अर्थव्यवस्था का इंजन है. लेकिन इस इंजन से निकल रहा है जहरीला धुआं और प्रदूषण की पटरी पर दौड़ते इन शहरों की मंजिल स्मॉग (Smog) में कहीं दिखाई नहीं देती है. चीन से एक वायरस इस देश में आया तो देशभर में लॉकडाउन लग गया वो वायरस भी सांसों पर भारी था और ये प्रदूषण भी सांसों का दुश्मन है..लेकिन लॉकडाउन तो छोड़िए इस पर लगाम लगाने की फुर्सत भी किसी के पास नहीं हैं.
इन शहरों में रहने का मतलब है कि सांसें जहीरीली लीजिए और पानी भी ऐसा पीजिए जो आपके शरीर को रोगों का घर बना दें. दिल्ली में झाग उगलती यमुना नदी के पानी की जांच जब ज़ी न्यूज़ (Zee News) ने एक लैब से कराई तो पता चला कि ये पानी तो पीने और नहाने लायक कत्तई नहीं है. लोगों के घरों में दिल्ली जलबोर्ड की बदौलत जो पानी आ रहा है वो भी इतना ही खतरनाक है.
अगर आप उत्तर भारत में रहते हैं तो अफसोस कीजिए कि आप यहां क्यों रहते हैं और अगर आप यहां नहीं रहते तो खुशियां मनाइये कि आप नर्क से अभी कोसों दूर हैं. इस देश में पहले बिजली पानी और सड़क पर चुनाव होते थे. बिजली अब अक्सर आती है, पानी के हालात आप देख चुके हैं. सड़कों की कहानी हम आगे बयां करेंगे लेकिन समय है हवा साफ करने वालों को वोट देने का जो हवा अच्छी देगा कायदे से चुनावी हवा उसी की होनी चाहिए
गलती सिर्फ सिस्टम की भी नहीं है, भारत के लोग भी अक्सर नियम कायदों की परवाह नहीं करते फिर चाहे बात प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों की हो या कोरोना वायरस के डर के बीच लाखों की भीड़ जुटाने की. इसे समझने के लिए अब आप बिहार के औरंगाबाद के एक वाकये के बारे में समझना होगा. दरअसल छठ पर्व के दौरान औरंगाबाद के प्रशासन से सिर्फ उन लोगों को घाट पर आने की इजाजत दी थी जिन्हें कोरोना की दोनों वैक्सीन लग चुकी है. लेकिन इस आदेश के बावजूद करीब 10 लाख लोग इस घाट पर एक साथ जुट गए.
ये हाल तब है जब भारत में संक्रमण के नए मामले एक बार फिर से बढ़ने लगे हैं. एक्सपर्ट्स ने पहले ही इस बात की आशंका जताई था कि त्योहारों के बाद नए मामलों में वृद्धि हो सकती है. हमारे देश में लोग चेतावनियों की परवाह करते ही कहां है. जो बिहार के औरंगाबाद में हुआ, वही हाल दिल्ली का भी था.
जहां यमुना के कई घाटों पर लोगों को छठ पर्व मनाने की इजाजत नहीं दी गई थी, क्योंकि यमुना का पानी इन दिनों बहुत जहरीला है. लेकिन यहां भी लोगों की अच्छी खासी भीड़ जुटी, लोगों ने ना तो कोरोना की परवाह की और ना ही यमुना में फैली गंदगी की. कुल मिलाकर आप कह सकते हैं कि भारत में प्रदूषण और कोरोना के मुद्दे पर सब मिले हुए हैं. क्योंकि किसी को इन चुनौतियों की परवाह नहीं है.