उपासना का पर्व, इस बदलाव पर गर्व; ये है देश की परंपरा में आए सुखद बदलाव की कहानी
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उपासना का पर्व, इस बदलाव पर गर्व; ये है देश की परंपरा में आए सुखद बदलाव की कहानी

भारत (India) में महिलाओं को आदर और सम्मान के नजरिये से देखा जाता है. वहीं नाइजीरिया (Nigeria), अफगानिस्तान (Afghanistan) और पाकिस्तान (Pakistan) जैसे देशों में कट्टरपंथी मानसिकता के लोगों का दबदबा है वहां महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय है. भारत में महिलाओं की स्थिति हर मोर्चे पर लगातार मजबूत हो रही है. 

उपासना का पर्व, इस बदलाव पर गर्व; ये है देश की परंपरा में आए सुखद बदलाव की कहानी

नई दिल्ली: पाकिस्तान (Pakistan) के आतंकवादी मस्जिदों में ट्रेनिंग लेते हैं. वैसे तो ये वहां की परंपरा का हिस्सा है. वहीं भारत (India) अनेकता में एकता यानी विरोधाभासों का देश है लेकिन कभी-कभी यही विरोधाभास सुखद बदलाव की वजह बन जाते हैं. पूरा देश इन दिनों नवरात्रि (Navratri) का त्योहार मना रहा है. इस दौरान मां दुर्गा (Goddess Durga) यानी शक्ति के 9 रूपों की पूजा की जाती है. 

  1. देश में आए एक सुखद बदलाव की कहानी
  2. दुर्गा पूजा पंडाल में महिला पुजारियों की एंट्री
  3. कई देशों में महिलाओं की स्थिति काफी खराब

दुर्गा पूजा की धूम

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में इस त्योहार को दुर्गा पूजा (Durga Puja) कहा जाता है. जहां मां दुर्गा (Maa Durga) को समर्पित बड़े बड़े पंडाल (Puja Pandal) बनाए जाते हैं. पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन अब तक विरोधाभास ये था कि इन पंडालों में दुर्गा पूजा सिर्फ पुरुष पुजारी ही करा सकते थे.

कभी किसी महिला पुजारी को इन पंडालों में दुर्गा पूजा कराने का अवसर नहीं मिला. इस बार पश्चिम बंगाल में ये प्रथा बदल गई है. कोलकाता की 66 पल्ली दुर्गा पूजा कमेटी ने इस बार दुर्गा पूजा के लिए 4 महिला पुजारियों को नियुक्त किया है.

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भारत में वैसे भी महिला पुजारियों या पुरोहितों की संख्या ना के बराबर है. ज्यादातर छोटे और बड़े मंदिरों में मुख्य पुजारी पुरुष ही हैं. ऐसे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए करीब 10 साल पहले पश्चिम बंगाल में चार महिला पुजारियों ने शुभम अस्तु नाम से एक संगठन बनाया. जिससे जुड़ी महिलाएं गृह प्रवेश और विवाह शादी जैसे कार्यक्रमों में पूजा कराने लगीं. हालांकि इन्हें कभी किसी दुर्गा पंडाल में पूजा कराने का अवसर नहीं मिला. वहीं पिछले साल जब कोलकाता के 66 पल्ली दुर्गा पूजा कमेटी के पुजारी की मृत्यु हो गई तो कमेटी ने फैसला किया कि क्यों ना इस बार महिला पुजारियों के हाथों से ये पूजा कराई जाए. इसके बाद नंदिनी भौमिक, रुमा रॉय, सिमान्ती बनर्जी, और पॉलोमी चक्रवर्ती को ये अवसर मिला.

यानी डीएनए के इस एडिशन में बात उस पंडाल की जहां की पुजारियों को देखकर भारत की हर महिला को गर्व महसूस होगा.

देवी दुर्गा मातृ शक्ति स्वरूपा हैं.

दुर्गा को आदि काल से मां कह कर संबोधित किया जाता है.

मां दुर्गा जगतजननी हैं.

ऐसे में मां दुर्गा की पूजा के अधिकार से बेटियों को वंचित कैसे रखा जा सकता है.

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सदियों से ये परंपरा चली आ रही है कि पंडालों में देवी दुर्गा की प्रतिमा की पूजा अर्चना का दायित्व पुरुष पंडितों को दिया जाता है. वो ही विधि-विधान से देवी की पूजा करते आए हैं. लेकिन क्रांति की भूमि बंगाल ने इस दुर्गा पूजा में बेटियों को पूजा की जिम्मेदारी देकर एक नया इतिहास लिखा है. ये दक्षिण कोलकाता का 66 पल्ली दुर्गा पूजा पंडाल है. जहां देवी की भव्य प्रतिमा स्थापित है. इस पंडाल में पूजा की जिम्मेदारी पहली बार चार महिला पुजारियों को दी गई है. जिनके नाम हैं नंदिनी भौमिक, रूमा रॉय, सेमंती बनर्जी और पौलोमी चक्रवर्ती

इस पूजा पंडाल के पुजारी के देहांत के बाद पूजा समिति के सामने नया पुजारी चुनने का प्रश्न आ गया. दुर्गा पूजा आयोजन समिति ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए चार महिला पुजारियों पर भरोसा जताया है. जहां पर सदियों से दुर्गा पूजा पंडालों की उपासना पर पुरुषों का वर्चस्व है. पहली बार नारी शक्ति को इसका अवसर मिला है. नंदिनी भौमिक उन चार पुजारियों में शामिल हैं जो यहां मां दुर्गा की आराधना करेंगी. नंदिनी भौमिक और उनकी सहयोगी महिला पुजारी पिछले 10 साल से पूजा पाठ में संलग्न हैं. लेकिन ये पहला मौका है, जब उन्हें किसी बड़े दुर्गा पूजा पंडाल में पुरुष पुजारियों की जगह षष्ठी से लेकर दशमी तक पूजा का मौका मिला है.

'इस समाज में महिलाओं की स्थिति सही नहीं'

भारत में महिलाओं को वो सम्मान दिया जा रहा है, जिसकी वो हकदार हैं लेकिन दुनिया में इस्लाम को मानने वाले समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है. इसे समझने के लिए आप नाइजीरिया से आई एक तस्वीर देखिए. लेकिन ध्यान रखिएगा ये तस्वीरें आपको विचलित भी कर सकती हैं.

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इस्लामिक स्कूल में छात्रा की पिटाई

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फोटो साभार: (Twitter)

ये तस्वीर नाइजीरिया के एक इस्लामिक स्कूल की है. जहां इसी स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर्स इस लड़की को कोड़े मार रहे हैं. इस लड़की की गलती ये थी कि इसने शराब पी ली थी. अब चूंकि इस्लाम में शराब पीने की इजाजत नहीं है. इसलिए जैसे ही स्कूल के इन टीचर्स को ये बात पता चली तो उन्होंने इस लड़की को कोड़े मारकर सजा देना शुरू कर दिया. इस लड़की की शिकायत इसके पिता ने ही की थी. उसने ही स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर्स को कहा था कि वो उसकी बेटी को सज़ा दें.

कहा जा रहा है कि ये लड़की जिन चार लड़कों के साथ शराब पी रही थी. उन्हें भी इसी तरह से कोड़े मारकर सजा दी गई. शराब पीना सही है या नहीं इसका फैसला हम आप पर छोड़ते हैं. लेकिन कट्टरपंथ के नशे में डूबकर इस तरह का अत्याचार करना बिल्कुल सही नहीं हो सकता.

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अर्थव्यवस्था के मामले में नाइजीरिया अफ्रीका का सबसे बड़ा देश है. इसे अफ्रीका के विकास का इंजन भी कहा जाता है. पूरी दुनिया को इस मामले में नाइजीरिया से बहुत उम्मीद है. इसके बावजूद पिछले कुछ सालों में यहां कट्टरपंथ काफी तेजी से बढ़ा है. बोको हरम जैसे आतंकवादी संगठन नाइजीरिया में सक्रिय हैं. नाइजीरिया की 54% आबादी इस्लाम को मानती है.

हालांकि कुछ साल पहले तक वहां मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या लगभग बराबर हुआ करती थी. अब हालात बदले तो नाइजीरिया में मुसलमानों की जनसंख्या ईसाइयों के मुकाबले ज्यादा हो चुकी है. इस विषय को लेकर बहुत सारे विशेषज्ञों का मानना है कि बहुसंख्यक मुसलमानों के बहाने नाइजीरिया में कट्टर इस्लाम को बढ़ावा दिया जा रहा है.

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