Farmers Protest: प्रियंका गांधी ने 7 फरवरी को सुबह 9 बजकर 8 मिनट पर एक ट्वीट किया था और इसके 10 मिनट बाद इस ट्वीट को डिलीट भी कर दिया था.
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नई दिल्ली: आज हम ट्विटर को ये चुनौती देना चाहते हैं कि वो फेक न्यूज़ फैलाने के लिए कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा का अकाउंट सस्पेंड कर दे और इस कार्रवाई में जरा भी देर नहीं होनी चाहिए.अगर ट्विटर ऐसा नहीं करता तो इससे ये बात साबित हो जाएगी कि फेक न्यूज़ को लेकर उसकी नीति पूरी तरह से दिखावटी है और ट्विटर ऐसे लोगों को बढ़ावा दे रहा है जिन्हें लगता है कि वो फेक न्यूज़ फैलाकर आसानी से बच सकते हैं और प्रियंका गांधी वाड्रा ने ऐसा ही किया है.
प्रियंका गांधी ने 7 फरवरी को सुबह 9 बजकर 8 मिनट पर एक ट्वीट किया था और इसके 10 मिनट बाद इस ट्वीट को डिलीट भी कर दिया था. प्रियंका गांधी वाड्रा को लगा था कि उनकी ये चोरी पकड़ी नहीं जाएगी और ऐसा करके वो फेक न्यूज़ भी फैला देंगी. लेकिन हम आज कहना चाहते हैं कि उनकी चोरी पकड़ी जा चुकी है और ट्विटर को उनका अकाउंट सस्पेंड करने में जरा भी देर नहीं लगानी चाहिए.
इस ट्वीट में उन्होंने कुछ तस्वीरें शेयर की थीं, जिनमें कुछ लोग सेना के जवानों के साथ नजर आ रहे हैं. उन्होंने ये दावा किया था कि ये जवान छुट्टी मिलते ही सीधे दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचे हैं. जहां किसानों का प्रदर्शन चल रहा है. अगर आप ध्यान से इस ट्वीट को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये झूठ इतने सुंदर तरीके से लिखा था कि इस पर लोगों ने आसानी से यकीन कर लिया.
हालांकि जब हमारी टीम ने इन तस्वीरों के पीछे का सच जानने की कोशिश की तो हमें पता चला कि ये एक बहुत बड़ी फेक न्यूज़ थी. असल में ये तस्वीरें दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की नहीं थीं. ये तस्वीरें पंजाब के लुधियाना की थीं. लेकिन इन तस्वीरों का इस्तेमाल फेक न्यूज़ फैलाने के लिए किया गया और सबसे अहम प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस फेक न्यूज़ को ट्वीट करने के बाद कुछ देर में डिलीट भी कर दिया.
हालांकि वह जब तक इस ट्वीट को हटातीं, तब तक ये तस्वीरें आग की तरह फैल चुकी थीं क्योंकि, 7 फरवरी को ही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से भी ये फेक न्यूज़ फैलाई गई और इस ट्वीट को अब तक हटाया नहीं गया है.
वो भी तब जब ये तस्वीरें 6 फरवरी को लुधियाना के बस स्टैंड पर खींची गई थीं और इन तस्वीरों की सच्चाई ये है कि ये जवान पहली बार ड्यूटी पर जा रहे थे और उन्हें बस स्टैंड तक छोड़ने के लिए खुद घरवाले उनके साथ वहां गए थे.
इससे ये साबित होता है कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने इतनी बड़ी फेक न्यूज़ फैलाई और ट्विटर ने भी इस पर कोई एक्शन नहीं लिया है. इसलिए आज हम ट्विटर से ये मांग करते हैं कि जिस तरह अमेरिका में फेक न्यूज़ फैलाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट हमेशा के लिए सस्पेंड कर दिया गया था. ठीक वैसी ही कार्रवाई प्रियंका गांधी वाड्रा पर भी होनी चाहिए. जब ये तस्वीरें खींची गई थीं, तब यहां कुछ लोग मौजूद थे. आप इन्हें चश्मदीद भी कह सकते हैं. इनकी बात सुनकर आपको मालूम होगा कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने कैसे देश को गुमराह करने की कोशिश की.
अब हम एक और तस्वीर की बात करेंगे, जो 24 अगस्त वर्ष 1608 की है. ये वो दिन था जब समुद्र के रास्ते ग्रेट ब्रिटेन से ईस्ट इंडिया कंपनी का जहाज सूरत के एक बदंरगाह पर पहुंचा था और तब शायद किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी अपने देश से 20 गुना बड़े देश और उस समय दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी पर शासन करेगी. लेकिन उम्मीदों के विपरीत ऐसा हुआ और भारत पर अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक राज किया.
ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के लिए आई थी और उस समय भारत दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक था. यहां कई रियासतें थीं और दिल्ली के तख्त पर मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की हुकूमत थी. अंग्रेजों ने भारत पर शासन करने के लिए व्यापार को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया और उस समय के राजाओं और मुगल शासकों की खातिरदारी करने लगे और उन्हें महंगे तोहफों से नवाजा जाने लगा.
यहीं से अंग्रेजों की जड़ें भारत में मजबूत होनी शुरू हुईं और फिर वर्ष 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद भारत पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया और अंग्रेजों ने 190 वर्षों तक भारत को अपना गुलाम बना कर रखा और हमें लगता है कि आज एक बार फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा है.
आज इंटरनेट के रास्ते भारत के हर छोटे-बड़े शहर और गांवों में कई टेक्नोलॉजी कंपनियों के जहाज पहुंच चुके हैं और ये कंपनियां नेटवर्किंग के नाम पर वही कर रही हैं, जो अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया ने व्यापार के नाम पर किया था.
ये आपको बोलने की आजादी देने के नाम पर और लोगों को एक दूसरे से जोड़ने के नाम पर भारत जैसे देशों को निगल जाना चाहती हैं और हमें लगता है कि ये सभी वो लक्षण हैं, जिन्हें पहचानने में भारत से 413 वर्ष पहले भी एक बड़ी गलती हुई थी. इसलिए आज हम इन्हीं कंपनियों का विश्लेषण करेंगे और आपको ये भी बताएंगे कि कैसे इन कंपनियों ने अब भारत के संवैधानिक मूल्यों को चुनौती देना शुरू कर दिया है. इसे समझने के लिए सबसे पहले आपको भारत सरकार और ट्विटर के बीच जो गतिरोध पैदा हुआ है, उसे समझना होगा और इसे हम आपको सिर्फ 5 पॉइंट्स में समझाने की कोशिश करेंगे-
पहली बात, केंद्र सरकार ने ट्विटर को तीन अलग अलग आदेशों में 1,435 ट्विटर अकाउंट बंद करने को कहा था क्योंकि, इन अकाउंट्स के जरिए किसान आंदोलन को लेकर भड़काऊ मैसेज और लोगों के बीच फेक न्यूज़ फैलाई जा रही थी.
दूसरी बात, सरकार के आदेश के तहत ट्विटर को इन अकाउंट्स को बंद करना था. लेकिन काफी समय तक इन आदेशों पर अमल नहीं हुआ. यानी ट्विटर ने भारत सरकार के आदेश को भी गंभीरता से नहीं लिया. ये ठीक उसी तरह है जैसे एक किराएदार मकान मालिक को ही ये चुनौती देने लगे कि वो उसकी कोई बात नहीं मानेगा और जो मन में आएगा, वो करेगा.
तीसरी बात, सरकार ने जब इस पर नाराजगी जताई तो ट्विटर का भी इस पर जवाब आया और सबसे अहम बात ये है कि ट्विटर ने सरकार द्वारा बताए गए सभी अकाउंट्स पर कार्रवाई करने से मना कर दिया. अब आप खुद सोचिए इन कंपनियों का साहस एक संवैधानिक सरकार को भी चुनौती देने लगा है.
चौथी बात, ट्विटर ने खुद ये तय कर लिया कि जिन लोगों ने फेक न्यूज़ फैलाई, हिंसा को बढ़ावा दिया और भड़काऊ मैसेज शेयर किए वो सब लोग निर्दोष हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं बनती.
पांचवीं बात, 1,435 लोगों में से सिर्फ 500 लोगों के अकाउंट्स को बंद किया गया है और बाकी लोगों पर ट्विटर ने ये कहते हुए कोई कार्रवाई नहीं की है कि इन लोगों ने जो बातें भी लिखीं वो भारतीय कानूनों के अनुरूप हैं और ट्विटर ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में भी बताया.
कल संसद में इस पूरे मामले पर देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सरकार का पक्ष रखा. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद एक ट्वीट करके ये दावा किया था कि पुलिस ने हिंसा के दौरान किसानों को बेरहमी से पीटा है. उन्होंने इस ट्वीट के साथ एक तस्वीर भी शेयर की थी जिसमें एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल नजर आ रहा है. हमने जब तस्वीर के पीछे का सच जानने की कोशिश की तो हमें पता चला कि ये तस्वीर भी 2019 की है. तब दिल्ली के मुखर्जी नगर में सरबजीत सिंह नाम के ऑटो ड्राइवर ने पुलिसवालों पर कृपाण से हमला कर दिया था जिसके बाद सरबजीत सिंह ने पुलिस पर थाने में उसके साथ मारपीट करने का आरोप लगाया था. लेकिन रणदीप सुरजेवाला ने ये फेक न्यूज़ फैलाई की ये तस्वीर 26 जनवरी को हुई हिंसा की है और यहां समझने वाली बात ये है कि ट्विटर ने इस फेक न्यूज़ पर भी कोई कार्रवाई नहीं की.
झूठी खबरों के नाम पर एजेंडा चलाने वालों में सिर्फ कांग्रेस के ही नेता शामिल नहीं है. दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से छपने वाला किसानों का अखबार ट्रॉली टाइम्स भी फेक न्यूज़ फैला चुका है. इस अखबार ने 5 फरवरी को एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें दावा किया गया था कि दिल्ली पुलिस पर सिंघु बॉर्डर के स्टेज के नजदीक 2 बम फेंके गए हैं. इस रिपोर्ट का दिल्ली पुलिस ने खंडन किया था, लेकिन ट्विटर ने इसके बावजूद कोई एक्शन नहीं लिया.
ट्विटर के डबल स्टैंडर्ड्स के कुछ और उदाहरण हैं. जैसे कंपनी ने सरकार को लिखे अपने जवाब में कहा है कि उसने मीडिया संस्थान, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं के खिलाफ इसलिए कोई एक्शन नहीं लिया क्योंकि, ट्विटर का मानना है कि ऐसा करने से इन लोगों के अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उल्लंघन होगा. लेकिन यहां समझने वाली बात ये है कि खुद ट्विटर ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान न्यूयॉर्क पोस्ट के अकाउंट को एक हफ्ते के लिए निलंबित कर दिया था. इसकी वजह ये थी कि New York Post ने जो बाइडेन के बेटे हंटर बाइडेन के चीन के साथ संदिग्ध रिश्तों को उजागर किया था और ट्विटर के इस कदम का वहां के चुनावों पर गहरा असर पड़ा था.
अमेरिका के नेशनल मीडिया रिसर्च सेंटर की एक स्टडी के मुताबिक, वहां के 27 प्रतिशत वोटर्स को न्यूयॉर्क पोस्ट की इस खबर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और इनमें से 13 प्रतिशत लोगों ने ऐसा माना कि अगर उन्हें इसके बारे में पता होता तो वो बाइडेन के समर्थन में वोट नहीं करते. यानी ट्विटर के इस कदम से अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव सीधे सीधे प्रभावित हुआ है.
अब हम यहां एक और उदाहरण आपको बताते हैं कि 4 नवंबर 2020 को जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए एक ट्वीट किया था, तब ट्विटर ने बिना किसी देरी के ट्रंप के ट्वीट को डिलीट कर दिया था. लेकिन जब भारत में कुछ नेता ईवीएम मशीनों पर सवाल उठाते हैं और चुनाव आयोग की छवि को खराब करने की कोशिश करते हैं, तो ट्विटर इन नेताओं पर कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझता.
इससे आप Twitter के दोहरे मापदंडों का अंदाजा लगा सकते हैं.
अब हम आपको ये बताते हैं कि इन दोहरे मापदंडों पर ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी के क्या विचार हैं. 2018 में एक इंटरव्यू में जैक डोर्सी ने खुद ये माना था कि ट्विटर के ज्यादा कर्मचारी लेफ्ट की विचारधारा से प्रेरित हैं. तब उन्होंने ये भी माना था कि ट्विटर के ऐसे कर्मचारी जिनकी विचारधारा अलग है, वो खुद को कंपनी में सुरक्षित महसूस नहीं करते और उन्हें अपनी राय बताने में डर महसूस होता है.
अगर आज के डिजिटल युग का विश्लेषण करें तो ऐसा लगता है कि भारत दो हिस्सों में बंट चुका है. एक हिस्सा उन लोगों का है जो कितनी भी फेक न्यूज़ फैला लें, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती और दूसरा हिस्सा उन लोगों का है जिनका अकाउंट सिर्फ इसलिए बंद कर दिया जाता है क्योंकि, वो सच के साथ खड़े होते हैं.
डिजिटल युग ने आज भारत के लोगों को वेरिफाइड और अन में बांट दिया है. मौजूदा समय में दुनिया में ट्विटर पर लगभग 5 करोड़ यूजर्स अनवेरिफाइड हैं, यानी उनके अकाउंट के आगे ब्लू टिक नहीं लगा हुआ है और जिन लोगों के अकाउंट्स को ट्विटर ने वेरिफाइड माना है, उनकी संख्या 28 करोड़ के आसपास है.
इस गतिरोध के बीच एक एप्लीकेशन की देश में काफी चर्चा हो रही है. इस ऐप का नाम है, Koo और कई केंद्रीय मंत्रियों ने इस ऐप पर अपना अकाउंट बनाया है. ऐसा लगता है कि सरकार इससे ट्विटर को कड़ा संदेश देने की कोशिश कर रही है.
आज आपको सच और झूठे के बीच की दूरी भी समझनी चाहिए. असल में सत्य का मार्ग बिल्कुल सीधा होता है लेकिन इस रास्ते पर चलने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति और अनुशासन दिखाना पड़ता है. लेकिन झूठ के रास्ते पर चलने के लिए आपको कुछ नहीं करना पड़ता. ये रास्ता बहुत छोटा होता है और हमारे देश के बहुत से लोगों को शॉर्ट कट ही पसंद है.
सरल शब्दों में कहें तो हमारे आज के इस विश्लेषण का सार ये है कि बड़ी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां नेटवर्किंग के नाम पर भारत में वही काम कर रही हैं, जो अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के नाम पर किया था. यानी ये कंपनियां भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों को निगल जाना चाहती हैं और आज आपको इससे सावधान हो जाना चाहिए.