ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) द्वारा की गई एक रिसर्च के मुताबिक कोविड-19 के संक्रमण से ठीक होने के बाद भी हर 10 में से 6 मरीजों को सांस लेने में तकलीफ थी.
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नई दिल्ली: ये खबर खासकर उन लोगों के लिए है जो कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो चुके हैं और ये सोचकर निश्चिंत हैं कि उन्हें अब डरने की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन एक नई रिसर्च के मुताबिक ठीक होने के बाद भी ऐसे लोगों को सांस लेने में तकलीफ, थकान, चिंता और डिप्रेशन जैसे लक्षण परेशान करते रहेंगे. यानी स्वस्थ होने के बाद भी इनका जीवन दोबारा कभी सामान्य नहीं होगा.
- ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) द्वारा की गई एक रिसर्च के मुताबिक कोविड-19 के संक्रमण से ठीक होने के बाद भी हर 10 में से 6 मरीजों को सांस लेने में तकलीफ थी.
- जांच में ये भी पता चला कि कोविड-19 के 60 प्रतिशत मरीजों के फेफड़े, 29 प्रतिशत मरीजों की किडनी, 26 प्रतिशत के हार्ट और 10 प्रतिशत मरीजों के लिवर ठीक से काम नहीं कर रहे हैं.
- कुछ मरीजों के एक से अधिक ऑर्गन्स में समस्याएं हुईं और स्वस्थ होने के कई महीनों बाद भी मरीजों के ऑर्गन्स में सूजन और जलन जैसी दिक्कतें थीं.
- हर 10 में से 5 मरीज ऐसे भी थे जिन्हें थकान की समस्या थी और कई मरीजों में चिंता और डिप्रेशन के लक्षण भी मौजूद थे.
- ब्रिटेन के मरीजों में ये लक्षण कोरोना से संक्रमित होने के 2 से 3 महीने बाद भी दिखाई दे रहे थे.
- ब्रिटेन में विशेषज्ञों ने लंबे वक्त तक चलने वाले कोरोना वायरस के इन लक्षणों को 'Long Covid' का नाम दिया है.
स्टडी का दावा
ये स्टडी ब्रिटेन में 50 मरीजों पर की गई है और ये भारत के उन 67 लाख लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो कोरोना वायरस से रिकवर हो चुके हैं. डॉक्टरों के मुताबिक कोरोना वायरस का संक्रमण ठीक होने में 14 दिनों का समय लगता है. इंफेक्शन ठीक होने के बाद हो सकता है आपको अस्पताल से छुट्टी मिल जाए. लेकिन कोरोना वायरस के कुछ लक्षण स्वस्थ होने के बाद भी आपके शरीर में मौजूद रहेंगे.
कोरोना का आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव
कोरोना वायरस का संक्रमण सिर्फ आपके शरीर को ही नहीं, आपके परिवार को आर्थिक रूप से तोड़ सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 20 करोड़ परिवार कोरोना वायरस के महंगे इलाज का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं. यानी इस बार देश में चीन की सेना या चीन के सामान की घुसपैठ नहीं हुई है. बल्कि चीन से शुरू हुए कोरोना वायरस की वजह से भारत के 20 करोड़ परिवारों पर बड़ा संकट आ गया है. आप इस खबर को दिल्ली के उदाहरण से समझ सकते हैं.
- एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली के 80 प्रतिशत परिवार हर महीने 25 हजार रुपये से कम खर्च करते हैं और हर महीने इतना खर्च करने के मामले में दिल्ली पूरे देश में नंबर वन है.
- यानी अगर दिल्ली के किसी परिवार में 5 व्यक्ति हैं तो हर एक व्यक्ति पर औसत खर्च 5 हजार रुपये है.
- हालांकि परिवार में किसी एक व्यक्ति को भी अगर Covid-19 का इंफेक्शन हुआ तो उस इलाज के खर्च से ही परिवार टूट सकता है.
दिल्ली के परिवारों का खर्च और अस्पतालों के बिल की तुलना
- दिल्ली में Covid-19 के इलाज के खर्च की लिमिट तय है. इसके मुताबिक दिल्ली के अस्पतालों में एक मरीज के लिए 10 दिनों तक ICU का खर्च 1 लाख 50 हजार रुपये तक है.
- अगर ICU के साथ वेंटिलेटर का भी 10 दिनों तक इस्तेमाल किया जाए तो यही खर्च अधिकतम 1 लाख 80 हजार रुपये तक होगा.
- यानी कोरोना संक्रमण के 10 दिनों के इलाज का औसत खर्च डेढ़ लाख से लेकर 1 लाख 80 हजार रुपये तक है. इलाज का ये बिल दिल्ली के 80 प्रतिशत परिवारों के महीनेभर के खर्च के मुकाबले 5 गुना से लेकर 7 गुना तक ज्यादा है. उससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि ये बिल तो तब आएगा जब प्राइवेट अस्पताल सरकार के तय रेट के हिसाब से ही बिल वसूल रहे हों.
- दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल में कोरोना के इलाज में ICU में 10 दिन बिताने पड़ जाएं तो बिल 7 लाख से 10 लाख रुपए से कम नहीं आएगा.
कोरोना ने आर्थिक-शारीरिक-मानसिक तौर पर बीमार किया
अब आप सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर दिल्ली के परिवारों के लिए ये खर्च इतना ज्यादा है तो देश के बाकी राज्यों का क्या हाल होगा. भारत में रहने वाले वो लोग जो इतना पैसा खर्च नहीं कर सकते उनके पास दो ही विकल्प हैं पहला ये कि वो अपना इलाज कराएं और दूसरा ये कि वो इस इलाज के लिए लोन लें. लेकिन समस्या ये है कि इलाज जितना लंबा चलता है उसका खर्च भी उतना ही बढ़ता जाता है. कोरोना वायरस ने लोगों को आर्थिक, शारीरिक और मानसिक तौर पर बीमार कर दिया. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च भले ही ब्रिटेन में हुई हो, लेकिन इसके नतीजे ब्रिटेन तक ही सीमित नहीं हैं. भारत के मरीजों में भी ऐसे ही लक्षण दिखाई दे रहे हैं.
कोरोना वायरस की कीमत चुका रही पूरी दुनिया
- चीन से शुरू हुए इस वायरस के कारण दुनिया को लगभग 58 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
- ये सिर्फ एक अनुमान है. हो सकता है कि असली नुकसान इससे कहीं ज्यादा हो.
- ये नुकसान 110 लाख करोड़ रुपये तक भी जा सकता है.
- इस समय दुनिया के आधे से ज्यादा वर्कर्स को अपनी नौकरी जाने की डर सता रहा है.
- 27 देशों में हुए एक सर्वे के मुताबिक भारत के 54 प्रतिशत वयस्कों को डर है कि अगले 12 महीनों में उनकी नौकरी छूट सकती है.
गलती चीन ने की, चालान पूरी दुनिया भर रही
पिछली तिमाही यानी जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीने में चीन की जीडीपी की रफ्तार 4.9 प्रतिशत रही है, और इस समय चीन दुनिया का एकमात्र बड़ा देश है जिसकी अर्थव्यस्था घटने के बदले बढ़ रही है. इस साल एशिया में चीन की ग्रोथ सबसे ज्यादा है. पूरी दुनिया को कोरोना महामारी में फंसाकर चीन अपनी रफ्तार बढ़ा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक कोरोना संक्रमण की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 24 प्रतिशत सिकुड़ गई है और अमेरिका को करीब 117 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है और ये आंकड़े पहले लगाए गए अनुमान से कहीं अधिक हैं. यानी गलती चीन ने की है लेकिन चालान पूरी दुनिया भर रही है.