फादर स्टेन स्वामी को Unlawful Activities (Prevention) Act के तहत NIA ने गिरफ्तार किया था और भीमा कोरेगांव की हिंसा भड़काने में उनकी प्रमुख भूमिका थी. NIA ने कहा है कि उसके पास फादर स्टेन स्वामी के खिलाफ ठोस सबूत थे.
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नई दिल्ली: आज हम आपको एक ऐसी खबर के बारे में बताते हैं, जिस पर हमारे देश का एक वर्ग आंसू बहा रहा है. ये खबर भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी फादर स्टेन स्वामी की मौत से जुड़ी है, जिस पर विपक्षी नेता, हमारे देश के मुट्ठीभर लिबरल्स और बुद्धिजीवी ये कह कर देश के खिलाफ दुष्प्रचार फैला रहे हैं कि इस देश की सरकार, न्यायिक व्यवस्था और सिस्टम ने एक 84 साल के एक सामाजिक कार्यकर्ता की जान ले ली, लेकिन क्या ये बात सही है? आज हम आपको इसके बार में भी बताना चाहते हैं. सबसे पहले आपको इस पूरी खबर के बारे में बताते हैं.
फादर स्टेन स्वामी भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी थे, लेकिन एक दिन पहले मुंबई के होली फैमिली हॉस्पिटल में उनकी मौत हो गई. उनकी मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया है. फादर स्टेन स्वामी को पार्किंसन नाम की बीमारी भी थी और उन्होंने जेल में रहते हुए पानी पीने के लिए सिपर बोतल भी मांगी थी. ये सब बातें हम आपको इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि इन्हीं बातों को आधार बना कर ये कहा जा रहा है कि फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु इस देश के लिए शर्मनाक है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.
इस समय हमारे पास ये दस्तावेज हैं, जिनमें बताया गया है कि फादर स्टेन स्वामी मासूम नहीं थे, बल्कि उन्हें यूएपीए (Unlawful Activities (Prevention) Act) के तहत NIA ने गिरफ्तार किया था और भीमा कोरेगांव की हिंसा भड़काने में उनकी प्रमुख भूमिका थी.
NIA ने कहा है कि उसके पास फादर स्टेन स्वामी के खिलाफ ठोस सबूत थे. एनआईए ने इस मामले में विशेष अदालत में एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की थी, जिसके बाद अदालत ने स्टेन स्वामी को जेल भेज दिया था.
-उनके खिलाफ धारा 120-B यानी आपराधिक षड्यंत्र रचने.
-धारा 121- यानी देश के खिलाफ विद्रोह करने.
-और धारा 124-A- यानी देश की चुनी हुई सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाने जैसे आरोप थे.
लेकिन इसके बावजूद हमारे देश का एक वर्ग उनकी मृत्यु को लेकर आंसू बहा रहा है. बड़ी बात ये है कि 21 मई को स्टेन स्वामी ने अस्पताल में भर्ती होने की अपील की थी और जिस अस्पताल में वो भर्ती थे, उसका चुनाव भी उन्होंने खुद ही किया था. लेकिन ये झूठ फैलाया गया कि 84 साल के एक सामाजिक कार्यकर्ता की पुलिस की हिरासत में मौत हो गई, जबकि फादर स्टेन स्वामी की मौत को डॉक्टरों ने स्वाभाविक बताया है. इसके बावजूद इसे इंस्टीट्यूशनल मर्डर कहा जा रहा है.
बड़ी बात ये है कि इस पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी सक्रिय हो गई हैं. संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स कमीशन ने इस पर ट्वीट किया और लिखा कि वो फादर स्टेन स्वामी की मौत से दुखी है और विचलित है. इसमें ये भी लिखा गया है कि कोरोना के दौरान भारत में जिन लोगों को बिना किसी कानूनी आधार के गिरफ्तार किया गया है, उन लोगों को छोड़ देना चाहिए.
-संयुक्त राष्ट्र का ह्यूमन राइट्स कमीशन पाकिस्तान के आतंकवाद पर कुछ नहीं कहता.
-चीन में उइगर मुसलमानों के दमन पर अपनी आवाज नहीं उठाता.
-फिलिस्तीन और इजरायल के बीच संघर्ष पर कुछ नहीं कहता. वहां लोगों के मानव अधिकारों की बात नहीं करता.
-और चीन में जो सैकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्ता जेल में बंद हैं, उन पर भी संयुक्त राष्ट्र का ह्यूमन राइट्स कमीशन कुछ नहीं कहता.
-यही नहीं जब अमेरिका ने आतंकवादी संगठन तालिबान से बात की, तब भी ह्यूमन राइट्स कमीशन ने कुछ नहीं कहा.
लेकिन भारत में जिस व्यक्ति पर हिंसा भड़काने के आरोप हैं, जिस पर UAPA के तहत केस दर्ज था और जिसके खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल हो चुकी थी, उसकी स्वाभाविक मृत्यु पर संयुक्त राष्ट्र की ये संस्था इस तरह एजेंडा चलाती है.
हालांकि इस पर विदेश मंत्री ने भी एक बयान जारी करते हुए कहा है कि फादर स्टेन स्वामी को कानून के आधार पर ही गिरफ्तार किया गया था और उनके खिलाफ NIA की ठोस दलीलों को देखते हुए अदालत ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी.
भारत के स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर ने 14 वर्षों तक जेल की सजा काटी थी और उन्हें अंग्रेजी सरकार ने काला पानी में भयंकर यातनाएं भी दी थीं, लेकिन सोचिए हमारे देश के ये लोग उनके लिए कभी आंसू नहीं बहाते.