आप इन दिनों जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में रोशनी जमीन घोटाले में शामिल हुए लोगों की लिस्ट की चर्चा सुन रहे होंगे. नेताओं, उनके रिश्तेदारों, अधिकारियों और बड़े व्यापारियों के नाम इस लिस्ट में है. लेकिन आपको कोई ये नहीं बता रहा कि ये घोटाला आखिर था क्या, इसे रोशनी घोटाला (Roshni Act Land Scam) क्यों कहते हैं?
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नई दिल्ली: इस देश में एक घोटाला ऐसा भी था जिस पर मीडिया की कभी नज़र ही नहीं पड़ी और अगर पड़ी भी तो इसके बारे में आपको विस्तार से कुछ बताया नहीं गया. हम जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में इतिहास के सबसे बड़े घोटाले यानी रोशनी ज़मीन घोटाले की बात कर रहे हैं.
आप इन दिनों जम्मू-कश्मीर में रोशनी जमीन घोटाले (Roshni Act Land Scam) में शामिल हुए लोगों की लिस्ट की चर्चा सुन रहे होंगे. नेताओं, उनके रिश्तेदारों, अधिकारियों और बड़े व्यापारियों के नाम इस लिस्ट में है. लेकिन आपको कोई ये नहीं बता रहा कि ये घोटाला आखिर था क्या? इसे रोशनी घोटाला क्यों कहते हैं और इसके केंद्र में करोड़ों रुपये की कीमत वाली वो ज़मीनें क्यों हैं जिन्हें कौड़ियों के भाव बेचा गया था. इस घोटाले में शामिल नामों की चर्चा हम करेंगे लेकिन पहले इस घोटाले की कहानी समझ लीजिए.
इसे रोशनी घोटाला क्यों कहते हैं?
वर्ष 2001 में फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. तब विधानसभा में रोशनी एक्ट (Roshni Act) पास हुआ था. इसका मकसद ये था कि जिनके पास निश्चित समय के लिए सरकारी जमीन लीज पर है या कोई चालीस वर्ष से सरकारी जमीन पर रह रहा है तो ये जमीन हमेशा के लिए उन्हें दे दी जाए, यानी उन्हें जमीन का मालिक बना दिया जाए. इसके बदले में सरकार बाजार मूल्य पर पैसा लेगी. इस तरह से जो पैसा सरकारी खजाने में आएगा उससे जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में घर-घर बिजली की योजना चलाई जाएगी. यानी घर घर रोशनी पहुंचाई जाएगी. इसलिए इसे रोशनी एक्ट नाम दिया गया. इस एक्ट के ज़रिए करीब 25 हज़ार करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था.
यानी सरकारी जमीन बेच कर बिजली के लिए पैसे का इंतजाम होना था. लेकिन रोशनी एक्ट घोटाले में कैसे बदल गया ये आपको जानना चाहिए.
जम्मू के सुंजवान में फारूक अब्दुल्ला का बंगला है. वर्ष 1998 में फारूक अब्दुल्ला ने इस बंगले को बनाने के लिए करीब 16 हजार स्क्वायर फीट जमीन खरीदी थी. उन पर आरोप है कि उन्होंने इसके आस पास की 38 हजार स्क्वायर फीट जंगल की जमीन पर भी कब्जा कर लिया. जिस पर ये आलीशान बंगला बनाया गया. हालांकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अपनी वेबसाइट पर इस प्लॉट की जानकारी नहीं दी है लेकिन हमें जो जानकारी मिली है उसे जल्द ही सार्वजनिक किया जाएगा.
ऐसा ही कुछ श्रीनगर में भी हुआ. श्रीनगर (Srinagar) में फारुक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस का दफ्तर है, जिसमें नवा-ए-सुबह नामक एक ट्रस्ट का ऑफिस भी है.
वर्ष 2001 में जमीन की कीमत डेढ़ करोड़ रुपए थी. लेकिन मात्र 58 लाख रुपए जमा कर जमीन हमेशा के लिए नवा-ए-सुबह ट्रस्ट के नाम करवा दी गई. ऐसा करने में रोशनी एक्ट का इस्तेमाल किया गया. आज इस जमीन की कीमत करीब 25 करोड़ रुपए है.
हालांकि नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) का कहना है कि उन्हें जो कीमत सरकारी विभाग ने वर्ष 2001 में बताई. वही जमा करके इस जमीन का मालिकाना हक हासिल किया गया था.
वैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया है. सब कानून के मुताबिक हुआ है.
घोटाला हुआ कैसे?
जमीन के मार्केट रेट और सरकार को दिए गए पैसे के अंतर में ही रोशनी घोटाला छिपा है. आरोप है कि सरकार मे बैठे लोगों ने एक्ट बनाया- फिर महंगी जमीनों के सरकारी रेट बेहद कम करवा दिए और जमीनें कम कीमत पर खरीद लीं. जिससे सरकार को घाटा हुआ और घोटालेबाजों को फायदा.
रोशनी एक्ट के नाम पर कानूनी तरीके से गैरकानूनी काम किया गया. हाई कोर्ट के रोशनी एक्ट को असंवैधानिक बताया है. सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. अब बड़े बड़े लोगों के नाम सामने आ रहे हैं.
इन दिनों गुपकार गैंग जिस तरह से अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए सक्रिय है, उससे साफ है कि ये लोग अपने वही दिन वापस चाहते हैं जिससे ये सरकारी जमीनों पर कब्जा कर सकें, राज्य के संसाधनों को लूट सकें. सरकारी बंगलों और सिक्योरिटी का इस्तेमाल कर सकें. लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद शायद उनकी कोई चाल कामयाब नहीं होने वाली है.
रोशनी घोटाले में जम्मू-कश्मीर प्रशासन जैसे जैसे नाम सार्वजनिक कर रहा है वैसे वैसे नेशनल कॉफ्रेंस, पीडीपी, और कांग्रेस के नेताओं और उनके रिश्तेदारों के नाम सामने आने लगे हैं. कई सरकारी अधिकारी, व्यापारी और कारोबारियों के नाम भी इस लिस्ट में शामिल हैं.
राजनीतिक दलों ने इस संगठित लूट की ज़मीन कैसे तैयार की?
वर्ष 2001 में जब रोशनी एक्ट बना. तब जमीन पर कब्जे का कट ऑफ ईयर 1990 रखा गया था.
वर्ष 2005 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार ने इस समय सीमा को बढ़ाकर वर्ष 2004 कर दिया. मतलब वर्ष 1990 से 2004 के बीच जिन लोगों ने सरकारी ज़मीन लीज़ पर ली उन्हें भी मालिक बनने का मौका मिल गया. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बाद कांग्रेस को भी तब मौका मिला जब गुलाम नबी आज़ाद वर्ष 2005 में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने.
वर्ष 2007 में गुलाम नबी आज़ाद ने जमीन पर कब्जे की सीमा बढ़ाकर वर्ष 2007 कर दी.
मतलब जो भी सरकार में आया उसने अपने फायदे के लिए या अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए एक्ट में संशोधन किया.
वर्ष 2013-14 में CAG की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ था कि जम्मू कश्मीर सरकार ने इससे कमाई का 25 हजार करोड़ रुपए का जो लक्ष्य रखा था, उससे सरकार को सिर्फ 76 करोड़ रुपये की कमाई हुई और जम्मू कश्मीर में में रौशनी फैलाने के नाम पर भ्रष्टाचार का अंधेरा फैला दिया गया. अब आपको इस घोटाले से जुड़ी लगभग हर बात समझ आ गई होगी.