DNA Analysis: सहारनपुर में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्टेडियम में कबड्डी खिलाड़ियों को टॉयलेट में लंच करवाया गया. टॉयलेट में चावल और पूड़ियां जमीन पर रखी हुई हैं. टॉयलेट सीट्स खुली हुईं हैं और खिलाड़ी यहीं से अपनी प्लेट में खाना रखते दिख रहे हैं.
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DNA Analysis: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर स्टेडियम में कबड्डी खिलाड़ियों को टॉयलेट में लंच करवाया गया. टॉयलेट में चावल और पूड़ियां जमीन पर रखी हुई हैं. टॉयलेट सीट्स खुली हुईं हैं और खिलाड़ी यहीं से अपनी प्लेट में खाना रखते दिख रहे हैं. टॉयलेट में ही और टॉयलेट के पानी से ही पूड़ी का आटा गूंथा गया और तेल की कड़ाही भी टॉयलेट के अंदर ही रखी हुई है. टॉयलेट की जमीन पर ही पेपर बिछाकर पूड़ियां रख दी गई हैं और एक परात में चावल भी रखे गए हैं. रायता भी वहीं रखा हुआ है.
ये हमारे देश के स्पोर्ट्स सिस्टम की वो सच्चाई है जिसे हजम करना बेहद मुश्किल है. टॉयलेट में बफे सिस्टम से कबड्डी खिलाड़ियों को लंच करवाने का ये मामला 16 सितंबर का है. जब सहारनपुर के स्टेडियम में अंडर 17 स्टेट लेवल महिला कबड्डी टूर्नामेंट हुआ था. तीन दिन चले इस टूर्नामेंट में 300 से ज्यादा खिलाड़ियों ने भाग लिया था.खिलाड़ियों के ठहरने और खाने का इंतजाम स्टेडियम में ही किया गया था जहां सिर्फ खाने को ही टॉयलेट में नहीं रखा गया बल्कि लंच वहां रखने के बाद स्टेडियम के दूसरे खिलाड़ी उसी टॉयलेट का इस्तेमाल कर रहे थे. कच्चा राशन और सब्जियां भी टॉयलेट में रखी गईं.
Uttar Pradesh | A complaint of irregularity has been found during a state sports competition in Saharanpur. A video related to this, purportedly of food being kept in the toilet, is viral.
(Pics 1, 2 & 3 from the viral video) pic.twitter.com/KU0aA6Lakg
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) September 19, 2022
इस भोजन को जब कई खिलाड़ियों ने खाने से मना कर दिया तब जाकर टेबल पर लंच लगाया गया, लेकिन भोजन की क्वालिटी भी इतनी खराब थी कि कई खिलाड़ियों ने खाने से मना कर दिया. चावल खराब क्वालिटी के और अधपके थे. पूड़ियां सूखकर पापड़ बन चुकी थीं.
अब सवाल ये है कि तीन सौ खिलाड़ियों और खेल अधिकारियों के लिए इस इवेंट में ऐसे इंतजाम का जिम्मेदार कौन है ? इतने लोगों के लिए खाना तैयार करने के लिए सिर्फ 2 कारीगर क्यों लगाए गए थे ? क्या स्टेट लेवल के स्टेडियम में एक रसोईघर तक नहीं है ? क्या इतने बड़े स्टेडियम में कोई Mess या हॉल नहीं है, जहां खिलाड़ियों के खाने का इंतजाम किया जा सके? अगर नहीं था तो खाना बनाने और परोसने के लिए वैकल्पिक इंतजाम क्यों नहीं किये गये ?
सोचिये जहां खिलाड़ियों को टॉयलेट में खाना परोस दिया गया, वहां खिलाड़ियों के रहने का इंतजाम कैसा रहा होगा? ये वीडियो देखने के बाद किसी सबूत की जरूरत नहीं है, लेकिन प्रशासन का बयान भी सुन लीजिये, जो खिलाड़ियों को परोसे गए चावल की तरह ही अधपकी दलीलें दे रहा हैं.
ये खबर सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कबतक हमारे देश के खिलाड़ी यूं अपमानित होते रहेंगे. कुछ लोग कह सकते हैं कि ये तो लोकल टूर्नामेंट था तो सुविधाएं भी तो लोकल ही होंगी. यही वो सोच है जो हमारे देश के सिस्टम में दीमक की तरह चिपकी हुई है. यही लोकल टूर्नामेंट हैं, जहां भविष्य के चैंपियनों को अपने खेल को निखारने का मौका मिलता है और ऐसे ही लोकल टूर्नामेंट में जीतकर उनके अंदर देश के लिए इंटरनेशनल मेडल जीतने की ललक पैदा होती है लेकिन जब सरकारें और सिस्टम ही खिलाड़ियों के साथ भेदभाव करें और उन्हें प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित करती हैं तो ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं.
ये देखकर मन में एक सवाल उठता है कि चीतों के लिए फाइव स्टार सुविधाओं का अरेंजमेंट करना हमारे देश के सिस्टम की प्राथमिकताओं में शामिल है. लेकिन वही सिस्टम, देश के उभरते हुए खिलाड़ियों को इज्जत के साथ भोजन करवाने को अपना कर्तव्य नहीं समझता. हमारे देश का सिस्टम और सरकारें इस बात का पूरा ख्याल रखती हैं कि बाहर से आए चीते कहां रहेंगे. क्या खाएंगे. चीतों को जरा सी भी तकलीफ ना पहुंचे. इसका पूरा इंतजाम किया जाता है . लेकिन स्टेट लेवल के टूर्नामेंट में 300 से ज्यादा कबड्डी खिलाड़ियों के खाने-पीने का ढंग से इंतजाम करने की ना तो किसी को फुर्सत मिलती है और ना ख्याल आता है.
ये हमारे सिस्टम की शौचालय से भी गंदी सोच का ही नतीजा है कि चीतों को फाइव स्टार सुविधाएं मिलती हैं और खिलाड़ियों को टायलेट में खाना परोस दिया जाता है और जब तस्वीरें वायरल हो जाती हैं तो पूरा सिस्टम ही भोला बन जाता है मानो उसे तो कुछ पता ही नहीं था. सिर्फ ठेकेदार के खिलाफ एक्शन लेकर इस जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता.
एक्शन उत्तर प्रदेश के खेल निदेशालय पर भी होना चाहिए, जिसने इस इवेंट को मैनेज किया था. प्रतियोगिता के लिए बजट पास किया था.जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश कबड्डी संघ की भी बनती है, जिसके अंडर इस कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. और स्टेडियम का मैनेजमेंट भी जिम्मेदार है, जिसने खिलाड़ियों के रहने और खाने का प्रबंध संभाला था.
हैरानी की बात तो ये भी है ये उस उत्तर प्रदेश में हुआ है जो खेलों को बढ़ावा देने के बड़े-बड़े दावे करती है और खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखारने के लिए कई स्कीम्स चलाती है. ये हाल तो तब है जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने महिला एथलीट्स को प्रमोट करने और प्रतिभाओं को निखारने के लिए पांच सौ करोड़ रुपये का भारी-भरकम बजट रखा हुआ है.
हमें ये कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन जिस तरह कबड्डी खिलाड़ियों को खाना परोसा गया, वैसे तो कोई जानवरों को भी खाना नहीं खिलाता. ऐसे हालात में भी खिलाड़ी अपमान का घूंट पीकर रह जाते हैं और अपनी मेहनत के दम पर जब नाम कमा लेते हैं तो हमारे देश के नेता खिलाड़ियों की सफलता का क्रेडिट खाने पहुंच जाते हैं.
सहारनपुर की घटना इस बात का सबूत है कि लाख दावों के बावजूद हमारे देश का सिस्टम अभी भी खिलाड़ियों के खिलाफ है और बंगाल की घटना इस बात का सबूत है कि नेताओं को जहां भी अपनी छपास वाली भूख मिटाने का मौका मिलता है वो सारी मर्यादाएं भूल जाते हैं. हमारे देश में खेल और खिलाड़ियों के लिए ना तो योजनाओं की कमी है और ना पैसे की. कमी है तो इच्छाशक्ति की .
विरोधाभास देखिये कि उभरते हुए खिलाड़ियों को खिलाने के लिए हमारे देश के सिस्टम और सरकारों की जेब तंग हो जाती है. लेकिन जब कोई खिलाड़ी ओलंपिक या राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतकर आता है तो उसके साथ फोटो खिंचवाने की होड़ मच जाती है. सरकारें, उस खिलाड़ी पर पैसों की बरसात कर देती हैं. नेता, मंत्री उस खिलाड़ी के साथ तस्वीरें लेने के लिए लालायित हो उठते हैं. ऐसा लगता है कि सारी इज्जत सिर्फ पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए बचाकर रखी जाती है और लोकल लेवल के खिलाड़ियों को इज्जत छोड़िये, ढंग का खाना खिलाने तक में सिस्टम और सरकारों के पसीने छूट जाते हैं.
सहारनपुर में महिला कबड्डी खिलाड़ियों के साथ जैसा बर्ताव किया गया. वो बर्दाश्त करने के लायक नहीं है, लेकिन हमारे खेल सिस्टम का यही वो कड़वा सच है जिससे हम नजरें तो चुरा सकते हैं लेकिन मुंह नहीं मोड़ सकते.
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