और अब चीन की बात. कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई थी लेकिन अब चीन में सब सामान्य हो चुका है लेकिन दुनिया की स्थिति अच्छी नहीं है. अब चीन ग्लोबल इकोनॉमी को ICU में भेजकर पूरी दुनिया को वेंटिलेंटर की सप्लाई कर रहा है. इस महामारी की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था संकट में है लेकिन एक देश है जो इससे उभर रहा है और जिसे इसका सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है.
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दुनिया बहुत बड़े संकट में हैं. इस संकट को समझना होगा. अगर हम भी इस संकट के चपेट में पूरी तरह से आ गए तो फिर बचना मुश्किल होगा. क्योंकि दुनिया का बहुत बुरा हाल है. पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण के मामले साढ़े 5 लाख से भी ज़्यादा हो चुके हैं. पिछले 24 घंटे में साढ़े 26 हज़ार से भी ज़्यादा नए मामले आए. पिछले 24 घंटे करीब 12 सौ लोगों की जान जा चुकी है. आज ही स्पेन में करीब 6 हज़ार नए केस आए. जर्मनी में करीब साढ़े 5 हज़ार नए मामले आए. ईरान में करीब तीन हज़ार नए मामले आए. ब्रिटेन में करीब तीन हज़ार और अमेरिका में करीब 471 नए मामले आए. लेकिन इस वायरस को दुनिया भर में फैलाने वाले चीन में सिर्फ 55 नए मामले आए हैं.
और अब चीन की बात. कोरोना वायरस की शुरुआत चीन से हुई थी लेकिन अब चीन में सब सामान्य हो चुका है लेकिन दुनिया की स्थिति अच्छी नहीं है. अब चीन ग्लोबल इकोनॉमी को ICU में भेजकर पूरी दुनिया को वेंटिलेंटर की सप्लाई कर रहा है. इस महामारी की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यस्था संकट में है लेकिन एक देश है जो इससे उभर रहा है और जिसे इसका सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है. इसलिए आज हम इस महामारी के पीछे चीन की भूमिका को लेकर हमारी सीरीज़ का दूसरा भाग आपको दिखाएंगे.
1999 में किताब आई थी, जिसे चीन के दो बड़े सैन्य अधिकारियों ने लिखा था . इस किताब का नाम था- UNRESTRICTED WARFARE: CHINA’S MASTER PLAN TO DESTROY AMERICA”. इस किताब का सार ये था कि चीन अमेरिका को सैन्य शक्ति या तकनीक के दम पर नहीं हरा सकता . इसलिए उसे अमेरिका को बर्बाद करने के लिए दूसरे तरीके अपनाने होंगे. इस किताब में कहा गया है कि सीधे युद्ध करने की बजाय दूसरे तरीके अपनाकर अमेरिका को ज्यादा गहरी चोट पहुंचाई जा सकती है .
उदाहरण के लिए चीन पैसों के दम पर अमेरिका में ऐसे लोगों को फौज तैयार कर सकता है जो अपनी ही सरकार की नीतियों का विरोध करे और सरकार का काम काज मुश्किल कर दें. इस किताब में आर्थिक युद्ध का भी जिक्र है . जैसे चीन अपनी व्यापारिक नीतियों को इस हद तक बदल दे कि अमेरिका को बैठे बिठाए लाखों करोड़ों डॉलर्स का नुकसान होने लगे. इसके अलावा, इस किताब में अमेरिका के नेटवर्क सिस्टम को भी निशाना बनाने का सुझाव दिया गया है, ताकि परिवहन, वित्तीय संस्थाओं और संचार प्रणाली को नष्ट करके, अमेरिका को घुटनों पर लाया जा सके . अगर आज के दौर में किसी देश का नेटवर्क ठप हो जाए तो उस देश में सारी आवाजाही रूक जाएगी, बैंक बर्बाद होने लगेंगे, यातायात पूरी तरह से बंद हो जाएगा और सड़कों पर कोहराम मच जाएगा.
कुल मिलाकर चीन हमेशा से जानता है कि वो पारंपरिक युद्ध में शायद अमेरिका और उसके सहयोगियों से जीत नहीं पाएगा..लेकिन युद्ध के गैरपारंपरिक तरीके अपनाकर वो दुनिया को ज़ोर का झटका दे सकता है . चीन ने लगभग दो महीनों में इस वायरस पर काबू पा लिया और अब वुहान समेत चीन के तमाम शहरों में सड़कें गुलज़ार होने लगी हैं, फैक्ट्रियों में काम शुरू हो गया है, रेस्टोरेंट और सिनेमा हॉल खोले जाने लगे हैं और जीवन पटरी पर लौट रहा है . लेकिन बाकी की दुनिया इस समय ICU में हैं और तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी के दौर में जाने वाली हैं.
एक अनुमान के मुताबिक इस महामारी की वजह से पूरी दुनिया की जीडीपी को करीब 200 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. ये भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था के लगभग बराबर है. अर्थव्यवस्था संभालकर रखने के लिए दुनिया भर की सरकारों को अब अपना खज़ाना खाली करना पड़ रहा है और एक अनुमान के मुताबिक ये खर्च 525 लाख करोड़ रुपये के बराबर है. यानी भारत की अर्थव्यस्था से भी दो गुना ज्यादा जबकि इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है.
चीन में आईफोन का निर्माण करने वाली कंपनी Foxconn ने फिर से काम शुरू कर दिया है. बड़ी-बड़ी कार निर्माता कंपनियां जैसे BMW, फोर्ड, टेस्ला, Volkswagen और होंडा ने भी अपना प्रोडक्शन फिर से शुरू कर दिया है. इतना ही नहीं चीन वायरस से उभरने के बाद अब पूरी दुनिया को इससे लड़ने के लिए उपकरण बेच रहा है. स्पेन ने चीन से 3 हज़ार 500 करोड़ कीमत के मेडिकल उपकरण खरीदे हैं. इनमें साढ़े 5 करोड़ फेस मास्क, 50 लाख रैपिड टेस्ट किट्स, 950 वेंटिलेटर और एक करोड़ 10 लाख दस्ताने शामिल हैं. चीन में इस समय जरूरत से ज्यादा वेंटिलेटर उपलब्ध हैं और अमेरिका की कई बड़ी कंपनियां चीन से इन्हें खरीद रही हैं.
अमेरिका अब दुनिया में कोरोना वायरस का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है और अमेरिका में संक्रमण के 86 हज़ार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. ये जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस, जर्मनी और भारत में अब तक सामने आए कुल मामलों से भी ज्यादा है. इसका सीधा असर अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा ह. अमेरिका की सरकार पर इस समय 750 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है . ये भारत की कुल अर्थव्यवस्था का तीन गुना है. 2003 में अमेरिका पर 360 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ था. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दूसरे विश्वयुद्ध को छोड़ दिया जाए तो अमेरिका पर कर्ज़ का ये बोझ पिछले 150 वर्षों में सबसे ज्यादा है.
कोरोना वायरस की वजह से अमेरिका में बेरोज़गारी भी ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है. पिछले सप्ताह अमेरिका के 30 लाख से ज्यादा लोगों ने खुद को बेरोज़गार घोषित किया है. आखिरी बार 1982 में बड़ी संख्या में एक साथ लाखों अमेरिकियों ने खुद को बेरोज़गार घोषित किया था लेकिन तब भी ये आंकड़ा सिर्फ 6 लाख 95 हज़ार था . जबकि इस बार इससे 5 गुना ज्यादा लोग बेरोज़गार होने का दावा कर रहे हैं.
इस महामारी ने अमेरिका की अर्थव्यस्था की कमर तोड़कर रख दी है. अर्थव्यस्था के मामले में यूरोप की हालत पहले ही बहुत अच्छी नहीं थी और अब स्थिति और गंभीर हो गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में सेवाओं और वस्तुओं की मांग 60 प्रतिशत तक कम हो सकती है जबकि अर्थव्यवस्था को 10 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है . इस महामारी की वजह से यूरोप के पर्यटन उद्योग को हर महीने 8 हज़ार 200 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.
भारत भी इससे अछूता नहीं है, विशेषज्ञों के मुताबिक सिर्फ लॉकडाउन की वजह से ही भारत की अर्थव्यवस्था को 9 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. ये भारत की कुल GDP का 4 प्रतिशत है.
चीन की लापरवाही ने पूरी दुनिया में लाखों करोड़ों लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है और अब इसी वजह से अमेरिका की एक अदालत में चीन के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया गया है . जिसमें चीन से 20 ट्रिलियन डॉलर्स यानी 1500 लाख करोड़ रुपये का मुआवज़ा मांगा गया है . ये रकम चीन की मौजूदा GDP से भी ज्यादा है .
चीन के खिलाफ केस फाइल करने वाले वकील का दावा है कि ये चीन ने कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के तौर पर निर्मित किया था और ये एक तरह का प्रायोजित आतंकवाद है. इसलिए चीन को ये हर्ज़ाना देना चाहिए. अब आपको ये समझना चाहिए कि आर्थिक नुकसान के बावजूद चीन कैसे अब भी फायदे में हैं. चीन ने अब विदेश से आने वाले यात्रियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. इनमें चीन के वो नागरिक भी शामिल हैं जो विदेशों में रहते हैं. यानी दुनिया में तबाही मचाने के बाद अब चीन खुद को पूरी तरह से सुरक्षित कर रहा है.
चीन अब दुनिया भर में फिर से सामान बेचने लगा है और चीन के उद्योगपति भी मौके का फायदा उठाकर बड़े पैमाने पर दुनिया के अलग अलग देशों में निवेश कर रहे हैं . यानी चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस अब चीन के लिए ही एक अवसर बन गया है. चीन ने कैसे खुद को तो बचा लिया और दुनिया को संकट में डाल दिया. इसे आपको एक उदाहरण से समझना चाहिए.
चीन की राजधानी बीजिंग में इस वायरास से सिर्फ 8 लोगों की मौत हुई और चीन के ही शंघाई में इस वायरस से सिर्फ 5 लोग मारे गए. वुहान से बीजिंग की दूरी 1100 किलोमीटर है जबकि शंघाई सिर्फ 830 किलोमीटर दूर है. लेकिन इन शहरों में ये वायरस इतनी तेजी से नहीं फैला जबकि वुहान से 12 हज़ार किलोमीटर दूर अमेरिका, साढ़े 8 हज़ार किलोमीटर दूर इटली, साढ़े 5 हज़ार किलोमीटर दूर ईरान और 10 हजार किलोमीटर दूर स्पेन में इस वायरस ने हज़ारों लोगों की जान ले ली है. ज़ाहिर है इस समय अगर सिर्फ चीन की अर्थव्यस्था बड़ी हो रही है तो फायदा भी चीन को ही हो रहा है.
कहा जाता है कि वर्ल्ड ऑर्डर हमेशा बदलता रहता है और नई महाशक्तियां एक दूसरे की जगह लेती रहती हैं. 1956 में Suez नहर संकट के दौरान ब्रिटेन सरकार की नाकामी की वजह से ब्रिटेन वर्ल्ड ऑर्डर में पीछे हो गया था और अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन गया था. ऐसा ही आज भी हो रहा है. चीन से निकला ये वायरस इस वर्ल्ड ऑर्डर को बदलने में सक्षम है और चीन अमेरिका को पीछे धकेलने के लिए बिल्कुल तैयार है. लेकिन लाखों लोगों को संक्रमित करके और हज़ारों लोगों की मौत की वजह बनकर चीन महाशक्ति नहीं बन सकता क्योंकि चीन को कुछ तीखे सवालों के जवाब देने होंगे:
सवाल ये है कि दुनिया की अर्थव्यस्था को होने वाले 200 लाख करोड़ रुपये की भरपाई कौन करेगा?
भारत की अर्थव्यवस्था को होने वाले 9 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
भारत के जो हज़ारों लोग आज पलायन को मजबूर हैं उनके नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
भारत में जिन लोगों को साढ़े 4 हज़ार रुपये में कोरोना वायरस का टेस्ट कराना होगा, उसकी भरपाई कौन करेगा?
चीन जब तक इन सवालों के जवाब नहीं देता. उसकी मंशा पर सवाल उठते रहेंगे और शक की सुई उसकी तरफ घूमती रहेगी.