अमेरिका का डर और युद्ध का कारोबार, ऐसे शांति बेचता है US
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अमेरिका का डर और युद्ध का कारोबार, ऐसे शांति बेचता है US

US Defeat In Guerrilla War: अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने अत्याधुनिक हथियार भी छोड़ दिए हैं. जिनपर आतंकी संगठन तालिबान ने कब्जा कर लिया है. इनकी कीमत सवा 6 लाख करोड़ रुपये है.

गुरिल्ला युद्ध में अमेरिका की हार.

काबुल: पिछले 100 वर्षों में अमेरिका (US) ने कई युद्ध लड़े. कई देशों में अपनी सेनाएं भेजीं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद वर्ष 1945 से 1990 तक सोवियत संघ (USSR) के खिलाफ लंबा शीत युद्ध लड़ा. कोरिया, वियतनाम, इराक, अफगानिस्तान और खाड़ी देशों में कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ कई वर्षों तक संघर्ष किया. केवल इन पांच लड़ाइयों पर ही उसने 328 लाख करोड़ रुपये खर्च किए.

  1. अमेरिका ने युद्ध में खर्च किए 328 लाख करोड़ रुपये
  2. अमेरिका ने बीते 100 साल में लड़े कई युद्ध
  3. अफगानिस्तान में मैदान छोड़कर भाग गया अमेरिका

अमेरिका ने युद्ध में पैसे किए बर्बाद!

ये भारत (India) की कुल अर्थव्यवस्था से दोगुना है, जो लगभग 190 लाख करोड़ रुपये है. दुनिया मानती है कि अमेरिका ने इन तमाम युद्धों को हार कर ये पैसा बर्बाद किया. लेकिन ये बात पूरी तरह सही नहीं है. अमेरिका ने कई दशकों तक दुनिया में शांति बनाए रखने और लोकतंत्र का चैंपियन बनने का ढोंग किया है. लेकिन सच ये है कि अमेरिका जिस शांति के पक्ष में है, उसकी कीमत लाखों करोड़ों में हैं. 2019 में अमेरिका ने दुनिया में 175 Billion Dollars यानी 13 लाख करोड़ रुपये के हथियार बेचे थे और 2020 में 12 लाख करोड़ रुपये के हथियार बेचे थे.

दूसरे विश्व युद्ध ने बदली अमेरिका की किस्मत

अमेरिका के एक अमीर देश बनने के पीछे उसके ये हथियार ही हैं. 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ना तो अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश था, ना ही सबसे अमीर देश था और ना ही अमेरिका का किसी और देश में शासन था. लेकिन पहले और दूसरे विश्व युद्ध ने अमेरिका की किस्मत बदल दी.

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काबुल एयरपोर्ट में घुसे तालिबानी

एक तरफ तालिबान के प्रवक्ता बिलाल करीम ने ट्वीट कर इस बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि काबुल एयरपोर्ट के मिलिट्री हिस्से में तीन महत्वपूर्ण स्थानों को अमेरिकियों ने खाली कर दिया और अब वो इस्लामिक अमीरात के नियंत्रण में हैं. अब एक छोटा सा हिस्सा ही अमेरिकियों के पास बचा है. जहां यूरोपियन देश एक दूसरे से लड़ कर कमजोर हो गए तो वहीं अमेरिका ने बड़े पैमाने पर युद्ध में दोनों पक्षों को हथियार बेचे.

आतंकी संगठनों को नहीं हरा सकता अमेरिका

हालांकि इन लड़ाइयों से दुनिया को ये भी पता चला कि अमेरिका Conventional War यानी पारंपरिक युद्ध में तो शक्तिशाली है. यानी किसी देश की सेना को तो हरा सकता है. लेकिन वो तालिबान, अल कायदा और ISIS जैसे आतंकवादी और कट्टरपंथी संगठनों से नहीं लड़ सकता है.

अमेरिका ने आज तक Psychological Warfare ही जीते हैं. उदाहरण के लिए अमेरिका ने अपने पहले परमाणु बम का सफल परीक्षण 16 जुलाई 1945 को किया था. और इसके 21 दिन बाद उसने इस परमाणु बम को जापान के हिरोशिमा शहर पर गिरा दिया था. इसके 3 दिन बाद उसने जापान के नागासाकी शहर पर एक और परमाणु हमला किया. इन दो हमलों से दुनिया इतनी डर गई कि कई देशों ने अमेरिका के सामने सरेंडर कर दिया.

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ये अमेरिका के डर की जीत थी. लेकिन इसके बाद दुनिया ने कभी इस बात का विश्लेषण नहीं किया कि अमेरिका ने 1945 के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार बनाए लेकिन इनमें से एक का भी इस्तेमाल नहीं किया. लेकिन फिर भी दुनिया अमेरिका का लोहा मानती है.

अमेरिका सिर्फ अफगानिस्तान की लड़ाई ही नहीं बल्कि अपने आधुनिक हथियार भी मैदान में छोड़कर भाग गया है. जिसका नतीजा ये है कि अब तालिबान अपनी खुद की एक सेना बना रहा है. तालिबानियों के पास इस समय अमेरिका के सवा 6 लाख करोड़ रुपये के हथियार हैं. ये रकम भारत के रक्षा बजट से लगभग दोगुनी है. इनमें 75 हजार गाड़ियां, 200 से ज्यादा हवाई जहाज और Helicopters, 6 लाख से ज्यादा आधुनिक बंदूकें और राइफल्स हैं.

तालिबान के पास इस समय जितने Black Hawk Helicopters हैं. उतने दुनिया के 85 प्रतिशत देशों के पास भी नहीं हैं. इसके अलावा तालिबानियों के पास Night Vision Devices और Body Armour हैं. इतना ही नहीं तालिबान के कब्जे में अब वो Biometric Devices भी हैं, जिनमें उन अफगानियों के Finger Prints और Eye Scan हैं जिन्होंने इतने वर्षों तक अमेरिकियों की मदद की थी.

जो लोग काबुल एयरपोर्ट के रास्ते किसी भी तरह अफगानिस्तान से भाग जाना चाहते हैं उनमें से कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने वर्षों तक तालिबान से छिपकर अमेरिका की सेना और वहां की सरकार के लिए काम किया था. लेकिन अब Biometric Devices की वजह से तालिबान इन लोगों की पहचान कभी भी कर सकता है और इनमें से जो लोग 31 अगस्त से पहले अफगानिस्तान छोड़कर नहीं जा पाएंगे, उन्हें तालिबान मार भी सकता है.

काबुल एयरपोर्ट पर हमले की आशंका अमेरिका समेत कई देशों ने जताई थी. दुनियाभर के News Channels पर पहले से ही ये बताया जा रहा था कि शाम को काबुल एयरपोर्ट के किसी गेट के बाहर ISIS के आतंकवादी आत्मघाती हमला कर सकते हैं. यानी ये एक ऐसा हमला था जिसकी तारीख, दिन और समय सब पहले से तय था और दुनिया के बड़े-बड़े और शक्तिशाली देशों को इसकी जानकारी थी. लेकिन फिर भी ये Super Powers मिलकर भी इस हमले को रोक नहीं पाईं.

जो अमेरिका अपने एक भी सैनिक की मौत को पूरी गंभीरता से लेता है, उसके 13 सैनिक इस हमले में मारे गए और वो इन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाया. यानी वो दिन दूर नहीं है जब आतंकवादी अपने हमलों का Plan पहले से ही दुनिया के सामने रखने लगेंगे और बाकायदा एक कैलेंडर जारी करके बताएंगे कि वो कहां और कब हमला करने वाले हैं. सबको इन हमलों की जानकारी होगी, मीडिया पहले से खबरें चलाने लगेगा. ये देश अपने लोगों को चेतावनी देंगे लेकिन गलत नीतियों की वजह से इन हमलों को शायद रोक नहीं पाएंगे.

ये भी हो सकता है कि आने वाले दिनों में Google Map पर ऐसा कोई नया Feature आ जाए जो आपको Traffic का Update देने के साथ-साथ ये भी बता पाएगा कि आज किस-किस रास्ते पर Blast होने वाले हैं और आपको घर से निकलते हुए कौन से रास्ते से बचना चाहिए.

ये स्थिति सिर्फ इसलिए आई है क्योंकि वर्षों तक इन देशों ने आतंकवाद को आतंकवाद समझा ही नहीं और भारत जैसे देशों से कहते रहे कि भारत में आतंकवाद फैलाने वाले लोग तो सरकार से नाराज युवा हैं, जो अपने लिए सिर्फ आजादी मांग रहे हैं.

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