DNA ANALYSIS: Diego Maradona कैसे कहलाए 'God of Football'? सीख सकते हैं ये बातें
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DNA ANALYSIS: Diego Maradona कैसे कहलाए 'God of Football'? सीख सकते हैं ये बातें

फुटबॉल के फैन्स की भाषा में माराडोना (Diego Maradona) अमर थे और अमर रहेंगे. लेकिन इस अमरता के साथ ही एक इंसान के तौर पर उनमें वो सारी खूबियां और कमियां थीं. जो उन्हें औरों से अलग भी बनाती हैं और औरों जैसा भी. उन्हें The God of Football यानी फुटबॉल का भगवान भी कहा जाता था.

DNA ANALYSIS: Diego Maradona कैसे कहलाए 'God of Football'?  सीख सकते हैं ये बातें

नई दिल्ली: आज हम सबसे पहले फुटबॉल के उस फलसफे का विश्लेषण करेंगे जिसका कद तो सिर्फ 5 फीट 5 इंच था. लेकिन उसने फुटबॉल की दुनिया के शिखर को भी छुआ और जीवन के अंधकार में गोता भी लगाया. हम फुटबॉल की दुनिया के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक Diego Maradona की बात कर रहे हैं. उन्हें The God of Football यानी फुटबॉल का भगवान भी कहा जाता था, इस भगवान ने स्वर्ग और नर्क इसी पृथ्वी पर देख लिए और 25 नवंबर को 60 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई.

खिलाड़ी जो गोल भी करता था और गलतियां भी
माराडोना एक ऐसे खिलाड़ी थे जो गोल भी करता थे और गलतियां भी. उन्हें अपने चौड़े कंधों पर फख्र था और उन्हें लगता था कि इन मजबूत कंधों की बदौलत वो किसी से भी दुश्मनी ले सकते हैं. आज हम देश के युवाओं को ये बताएंगे कि वो कौन सी बातें हैं जो वो माराडोना से सीख सकते हैं और वो कौन सी कमज़ोरियां हैं जिनकी वजह से फुटबॉल के भगवान को भी बुरे दिन देखने पड़ गए.

फुटबॉल के फैन्स की भाषा में माराडोना अमर थे और अमर रहेंगे. लेकिन इस अमरता के साथ ही एक इंसान के तौर पर उनमें वो सारी खूबियां और कमियां थीं. जो उन्हें औरों से अलग भी बनाती हैं और औरों जैसा भी.

माराडोना ने एक बार कहा था कि मैं Maradona हूं, 'जो गोल भी करता है, गलतियां भी करता है. मैं सबकुछ झेल सकता हूं, मेरे कंधे इतने चौड़े हैं कि मैं किसी से भी लड़ सकता हूं.'

ये माराडोना की वो बेबाकी थी जिसने उन्हें दूसरे शानदार खिलाड़ियों से अलग बनाया.

30 अक्टूबर 1960 को अर्जेंटीना की राजधानी Buenos Aires में जन्म लेने वाले मारोडोना 15 वर्ष की उम्र से ही प्रोफेशनल फुटबॉल खेलने लगे थे.

1982 में उन्होंने अपना वर्ल्ड कप खेला और इस टूर्नामेंट में उन्होंने 2 गोल किए. इसी साल वो स्पेन के मशहूर फुटबॉल क्लब बार्सिलोना के लिए खेलने चले गए. तब उन्हें इसके लिए आज की कीमत के हिसाब से 56 करोड़ रुपये की फीस मिली थी. इस डील के साथ ही वो उस समय दुनिया के सबसे महंगे खिलाड़ी बन गए थे. लेकिन माराडोना, बार्सिलोना में खुश नहीं थे, उन्हें लगता था कि वहां उनका दम घुट रहा है.

इसके बाद 1984 में वो इटली के एक फुटबॉल क्लब Napoli के सदस्य बन गए. ये क्लब आर्थिक रूप से तंगहाल था लेकिन फिर भी माराडोना को इसके लिए 77 करोड़ रुपये मिले. डिएगो माराडोना की फीस चुकाने के लिए इस क्लब ने बैंक से लोन लिया था. इस कमज़ोर क्लब को जॉइन करके माराडोना ने बता दिया था कि वो रिस्क लेना जानते हैं.

दो सबसे मशहूर Goals
इस बीच वर्ष 1986 में फुटबॉल वर्ल्ड कप हुआ, जिसे मारोडोना के देश अर्जेंटीना ने जीता और जीत में सबसे बड़ी भूमिका माराडोना की ही थी या यूं कह लिजिए कि उन्होंने अकेले अपने दम पर अर्जेंटीना को वर्ल्ड कप जिताया था. इस वर्ल्ड कप को माराडोना के दो सबसे मशहूर Goals के लिए याद जाता है. पहले गोल को The Hand Of God कहा गया और दूसरे को Goal of The Century.

उन्होंने ये दोनों गोल क्वार्टर फाइनल में चार मिनट के अंतराल में इंग्लैंड के खिलाफ किए थे. इनमें से जो पहला गोल था वो उन्होंने अपने सिर से किया था. फुटबॉल में इसे हेडर कहा जाता है. लेकिन असल में ये गोल उन्होंने अपने सिर से नहीं, बाएं हाथ से किया था. लेकिन ये बात रेफरी की नजर में आने से बच गई और ये गोल, इंग्लैंड के लिए घातक साबित हुआ. मैच के बाद जब माराडोना से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'A little from the head and a little from the Hand of God'. तब से इसे Hand of God गोल कहा जाने लगा. 

इसके ठीक चार मिनट के बाद माराडोना ने एक और चमत्कारिक गोल किया. ये गोल करने के लिए वो अपनी टीम के हाफ से इंग्लैड के गोल पोस्ट तक दौड़े. इस दौरान उन्होंने इंग्लैंड के लगभग हर खिलाड़ियों को छकाया और बिजली की रफ्तार से दौड़ते हुए ये शानदार गोल किया. इंग्लैंड की टीम World Cup से बाहर हो गई. यानी Maradona ने चार मिनट के अंदर अपने अच्छे और बुरे, दोनों रूप दिखा दिए, Hand Of God, गोल में उनकी धोखेबाज़ी छिपी थी, जबकि Goal Of The Century दागकर उन्होंने बताया दिया कि वो कितने क्षमतावान हैं.

इसके बाद उन्होंने इटली के क्लब Napoli के साथ अपना सफर जारी रखा. ये क्लब इटली के नेपल्स में था जो उस समय इटली का सबसे पिछड़ा हुआ शहर था और यहां तब ड्रग माफियाओं का आतंक हुआ करता था. इस क्लब की हालत अच्छी नहीं थी और इसे Back Banchers क्लब कहा जाता था क्योंकि इसमें कोई भी अच्छा खिलाड़ी नहीं था. लेकिन माराडोना ने आते ही इस क्लब का खेल और किस्मत दोनों पलट दिए.

1987 में माराडोना ने इस क्लब को इटली की एक बड़ी चैंपियनशिप जिताई और ये क्लब बड़े बड़े क्लब्स को चुनौती देने लगा.

माराडोना के जीवन का इंटरवल
इसके बाद भी वो अपने क्लब Napoli को सफलता दिलाते रहे. लेकिन इसी दौरान उनका जीवन सेंटर हाफ पर आ गया था. आप इसे माराडोना के जीवन का इंटरवल भी कह सकते हैं क्योंकि, यहां से उन्होंने अपने लक्ष्यों तक बढ़ने की कोशिश तो जरूर की लेकिन वो चुनौतियों को छका नहीं पाए.

1991 में Cocain Drugs लेने के आरोप में उन पर 15 महीनों का प्रतिबंध लगा दिया गया और उन्हें इटली से वापस लौटना पड़ा.

1994 में वो फिर World Cup के लिए मैदान पर लौटे लेकिन एक बार फिर उनके ड्रग्स लेने की पुष्टि हुई और उन्हें वापस भेज दिया गया, इसी के साथ उनका अंतरराष्ट्रीय करियर समाप्त हो गया.

1997 में उन्होंने एक और बार Drug Test में फेल होने पर अपनी रिटायरमेंट की घोषणा कर दी, तब वो 37 साल के थे ।

माराडोना का फुटबॉल करियर 21 साल का था. लेकिन सिर्फ 14 वर्ष तक ही उन्होंने अपना सर्वोत्तम प्रयास किया और फिर धीरे धीरे वो पहले नशे की गिरफ्त में गए और फिर बीमारियों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया.

कुल मिलाकर Diego Maradona दो तरह का जीवन जी रहे थे, जब वो गलतियां करते थे, नशा करते थे, जेल जाते थे, जरूरत से ज्यादा शराब पीते थे, तो वो Diego हो जाया करते थे. लेकिन फुटबॉल के मैदान पर उनकी Maradona वाली छवि लौट आती थी. लेकिन ड्रग्स की लत ने धीरे धीरे Maradona को एक तरह से मार दिया और सिर्फ Diego बचा.

लेकिन Diego और Maradona में क्या फर्क था इसे समझने के लिए आपको उनकी शुरुआत के बारे में जानना होगा.

माराडोना के दो ही सपने थे...
डिएगो माराडोना के पिता एक फैक्ट्री में मजदूर थे और उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता. वो और उनका परिवार एक स्लम में रहा करते थे.

माराडोना के आठ भाई बहन थे और इसलिए उनका परिवार अपनी जरूरतें पूरी करने में भी सक्षम नहीं था. माराडोना जब सिर्फ तीन वर्ष के थे तो उन्हें गिफ्ट में एक फुटबॉल मिली थी. वो फुटबॉल के प्यार में पड़ गए और बस यहीं से उनका महान खिलाड़ी बनने का सफर शरू हुआ.

माराडोना जब सिर्फ 8 वर्ष के थे तो वो एक स्थानीय क्लब के लिए ट्रायल देने गए. वहां मौजूद कोच फुटबॉल खेलने की उनकी क्षमता देखकर हैरान रह गए और उन्होंने ये मानने से इनकार कर दिया कि वो सिर्फ 8 साल के हैं. उनका खेल देखकर ऐसा लगता था कि उनका जन्म ही फुटबॉल खेलने के लिए हुआ है. 

माराडोना के दो ही सपने थे. एक अपने देश अर्जेंटीना के लिए खेलना और दूसरा अपने देश को वर्ल्ड कप जिताना और सिर्फ 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने ये दोनों सपने पूरे कर लिए थे.

तीसरी बार ड्रग्स लेते पकड़े जाने के बाद फुटबॉल से संन्यास
वर्ष 1991 में उन पर पहली बार ड्रग्स लेने के आरोप लगे और उन पर 15 महीनों का बैन लगा दिया गया. इसी दौरान उन पर आपराधिक संगठनों से संबंध रखने के भी आरोप लगे और इटली में उनके खिलाफ जांच शुरू हो गई. वर्ष 1994 के World Cup से पहले माराडोना ने एक बार फिर ड्रग्स ली और वो वर्ल्ड कप नहीं खेल पाए.

इसके बावजूद वो अपनी ड्रग्स की लत छोड़ नहीं पाए और वर्ष 1997 में तीसरी बार ड्रग्स लेते हुए पकड़े जाने के बाद उन्होंने फुटबॉल से संन्यास ले लिया. लेकिन शराब और नशे की लत ने उनका साथ नहीं छोड़ा और लोग कहने लगे कि वो Slow Motion Suicide कर रहे हैं.

रिटायरमेंट के बाद माराडोना और ज्यादा अस्वस्थ हो गए. वो जरूरत से ज्यादा शराब पीते थे और उनका वजन बढ़कर 128 किलोग्राम तक पहुंच गया था.

Maradona ने वर्ष 2000 से 2005 के बीच क्यूबा की राजधानी हवाना में अपने नशे की लत का इलाज कराया था. 

इस दौरान वो क्यूबा के तत्कालीन राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के दोस्त बन गए और उन्होंने अपनी एक टांग पर Fidel Castro के चेहरे वाला Tatoo भी गुदवाया था. लेकिन ये इलाज भी उनकी ज्यादा मदद नहीं कर सका.

बचपन की दोस्त से की थी शादी
माराडोना ने 1984 में अपनी बचपन की दोस्त क्लॉडिया से विवाह किया था. ये विवाह 2004 तक चला और फिर दोनों ने तलाक ले लिया. Maradona और Claudia की दो बेटियां भी थीं. लेकिन इसके अलावा भी उनके कई महिलाओं से संबंध रहे जिनसे उनकी कई संतानें हुईं, इनमें से कुछ को तो उन्होंने अपनी संतान माना. लेकिन कई महिलाओं के दावे, उन्होंने नहीं माने. कहा जाता है कि माराडोना 10 से 11 बच्चों के पिता बने थे, इसलिए कुछ लोग मज़ाक में कहते हैं कि उन्होंने खुद की अपनी फुटबॉल टीम बना ली थी.

लेकिन जब माराडोना की मृत्यु आई तो उनके पास सिर्फ उनकी बेटियां मौजूद थीं. यानी जिस महान खिलाड़ी के साथ कभी करोड़ों प्रशंसक खड़े रहते थे, जिसके पास जीवन की सारी सुख सुविधाएं थी, पैसा था, नाम और शोहरत थी. उसका अंतिम समय आने पर ये सब चीजें बहुत दूर जा चुकी थीं और सिर्फ उनकी बेटियां उनके साथ मौजूद थीं.

वर्ष 2008 में पहली बार कोलकाता आए
Diego Maradona भारतीय फुटबॉल से काफी प्रभावित थे. वर्ष 2008 में पहली बार वो कोलकाता आए थे. उनके इंतजार में कोलकाता के फुटबॉल प्रशंसक पूरी रात एयरपोर्ट के बाहर इंतजार करते रहे। जब मारोडोना एयरपोर्ट से बाहर निकले तब प्रशंसकों की दीवानगी देखकर वो हैरान थे. उस समय माराडोना ने कहा था कि मुझे नहीं पता था कि भारत में मेरे चाहने वाले इतनी बड़ी संख्या में हैं.

माराडोना ने अपने इस कोलकाता दौरे के समय पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु से भी मुलाकात की थी. कोलकाता से वापस जाते समय माराडोना ने वादा किया था कि वो दोबारा कोलकाता जरूर आएंगे.
अपने वादे के मुताबिक वर्ष 2017 में माराडोना एक बार फिर कोलकाता आए लेकिन ये उनका निजी दौरा था. कोलकाता में माराडोना का Statue भी है. इस Statue में वो वर्ल्ड कप ट्रॉफी लिए हुए हैं.

माराडोना ने दुनिया को सिखाया कि अगर आपके सपने बड़े हों और आप उसके लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए तैयार हैं तो गरीबी और दूसरी चुनौतियां आड़े नहीं आतीं.

अकेले अपने दम पर देश को वर्ल्ड कप जिताया
दुनिया में​ लियोनेल मेसी, क्रिस्टियानो रोनाल्डो और पेले जैसे महान खिलाड़ी भी हुए हैं. इन सभी खिलाड़ियों की टीमों में और भी अच्छे और शानदार खिलाड़ी थे. लेकिन 1986 में जब माराडोना ने अपने देश को वर्ल्ड कप दिलाया तब उनकी टीम में एक भी अच्छा खिलाड़ी नहीं था. अर्जेंटीना की टीम एक भी मैच जीतने की स्थिति में नहीं थी. लेकिन माराडोना ने अकेले अपने दम पर अपने देश को वर्ल्ड कप जिताया. इटली के कमज़ोर क्लब Napoli को भी माराडोना ने अपने खेल के बूते शिखर तक पहुंचाया. वो एक शानदार टीम मैन थे और उनके लिए अपनी टीम की जीत से महत्वपूर्ण कुछ नहीं था. शायद इसलिए फुटबॉल के दूसरे सबसे महान खिलाड़ी पेले ने माराडोना को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि उन्हें यकीन है कि एक दिन दोनों खिलाड़ी स्वर्ग में फुटबॉल खेलेंगे.

1986 में इंग्लैंड के खिलाफ किए गए Hand Of God Goal और Goal Of The century में 4 मिनट का अंतर था, एक में धोखेबाज़ी थी तो दूसरे में विशुद्ध खेल का प्रदर्शन. ये गोल करके माराडोना ने सिखाया कि अपनी छवि आप किसी भी क्षण बेहतर कर सकते हैं.

दोस्तों का साथ कभी नहीं छोड़ा
Diego Maradona दोस्तों के दोस्त थे और उन्होंने अपने दोस्तों का साथ कभी नहीं छोड़ा. उनकी मित्रता वेनेजुएला के पूर्व राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज़ और वर्तमान राष्ट्रपति निकोलस मादुरो से भी थी और वो क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के भी दोस्त थे. दुनिया इन नेताओं के विरोध में रही है. लेकिन माराडोना आखिरी दम तक इनका समर्थन करते रहे और कभी इनके खिलाफ कुछ नहीं कहा. लेकिन माराडोना में कुछ कमियां भी थीं.

Maradona अपनी सफलता को संभाल नहीं पाए
-सबसे बड़ी कमी ये थी कि वो अपनी सफलता को संभाल नहीं पाए वो अजेंटीना के सबसे बड़े स्टार खिलाड़ी थे और वो अपने क्लब Napoli के लिए भी किसी भगवान से कम नहीं थे, लेकिन नशे और जरूरत से ज्यादा पार्टियां करने की लत उन्हें लग चुकी थी और उन्होंने कई अपराधियों को भी अपना दोस्त बना लिया था और उनकी इन्हीं आदतों ने उन्हें गर्त में पहुंचा दिया.

-जब वो शानदार खिलाड़ी हुआ करते थे तभी उन्होंने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना छोड़ दिया था, वो जरूरत से ज्यादा शराब पीने लगे थे और उनका वज़न बेतहाशा बढ़ने लगा था. एक खिलाड़ी होने के बावजूद अपनी फिटनेस पर ध्यान ना देना उनकी बहुत बड़ी कमी थी.

-उनकी तीसरी कमी ये थी कि वो नियमों का उल्लंघन करने के लिए बदनाम थे, इटली के क्लब के लिए खेलते हुए उन्होंने कभी Tax का भुगतान नहीं किया. इतनी दौलत होने के बावजूद वो टैक्स देने से बचते रहे. इटली की सरकार का उनपर अब भी 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है.

-और उनकी सबसे बड़ी कमी ये थी कि वो अपने रिश्तों के प्रति ईमानदार नहीं थे, उन्होंने कई महिलाओं के साथ संबंध बनाए, उनकी कई संतानें हुई. लेकिन वो खुद को इनका पिता मानने से इनकार करते रहे. यानी फुटबॉल के मैदान पर ईमानदारी से अपनी टीम को जिताने वाला खिलाड़ी, असल जिंदगी में रिश्तों के प्रति बेईमान बना रहा.

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