DNA Analysis: ममता का BSF पर गंभीर आरोप, बोल रहीं पाकिस्तान की भाषा
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DNA Analysis: ममता का BSF पर गंभीर आरोप, बोल रहीं पाकिस्तान की भाषा

DNA Analysis: ममता बनर्जी की बात का सीधा मतलब ये निकाला जा सकता है कि BSF अगर सीमा पर किसी घुसपैठिये या आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करना चाहेगी तो उसे पहले पुलिस से क्लियरेंस लेना होगा.

DNA Analysis: ममता का BSF पर गंभीर आरोप, बोल रहीं पाकिस्तान की भाषा

DNA Analysis: मान लीजिए कि आप किसी बॉर्डर स्टेट में रहते हैं . अचानक एक रात सीमा पार से किसी दुश्मन देश की फौज ने हमला कर दिया या आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश की. सीमा पर मुस्तैद BSF के जवानों ने तुरंत मोर्चा संभाला और कार्रवाई शुरू कर दी लेकिन तभी उस राज्य की पुलिस बीच में आ जाए...और जिस सीमावर्ती जिले में ये हमला हुआ है, वहां के Superintendent of Police यानी SP अगर BSF के अफसरों से ये कहें कि आप हमारी अनुमति के बिना कोई ऑपरेशन नहीं कर सकते, तो ऐसी हालत में क्या होगा? क्या देश की सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ेगी? क्या आतंकवादी अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो जाएंगे?

ममता बनर्जी इसका विरोध कर रही हैं..

ये सवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान के बाद खड़े हुए हैं. ममता बनर्जी ने कहा है कि वो Border Security Force यानी BSF को इंटरनेशनल बॉर्डर के 50 किलोमीटर के दायरे में काम नहीं करने देंगी. ममता बनर्जी का ये बयान केंद्र सरकार के आदेश खिलाफ है. केंद्र सरकार ने BSF को अधिकार दिया है कि वो पश्चिम बंगाल में सीमा के 50 किलोमीटर के दायरे में कोई भी ऑपरेशन कर सकती है. केंद्र सरकार ने पिछले दिनों पश्चिम बंगाल समेत तीन राज्यों में BSF के अधिकार क्षेत्र को 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया था. तभी से ममता बनर्जी इसका विरोध कर रही हैं. अब ममता बनर्जी ने अपने राज्य की पुलिस से कहा है कि वो BSF के अधिकारियों और उनके जवानों को उनकी ड्यूटी करने से रोकें. ममता बनर्जी ने कूचबिहार जिले के SP को ये सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि BSF स्थानीय पुलिस से पूछे बिना कोई कार्रवाई नहीं करे.

..तो BSF अपना ऑपरेशन नहीं कर सकेगी

ममता बनर्जी की बात का सीधा मतलब ये निकाला जा सकता है कि BSF अगर सीमा पर किसी घुसपैठिये या आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करना चाहेगी तो उसे पहले पुलिस से क्लियरेंस लेना होगा. अगर पुलिस नहीं चाहेगी तो BSF अपना ऑपरेशन नहीं कर सकेगी. अब ममता बनर्जी के आदेश के मायने समझिए. पहले BSF के अधिकारी स्थानीय SP से बात करेंगे. फिर SP अपने सीनियर ऑफिसर से पूछेगा. सीनियर अफसर सरकार के मंत्री से इजाजत लेगा और हो सकता है कि आखिरी मुहर खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगाएं, तब जाकर BSF सरहद से 50 किलोमीटर के दायरे में कोई कार्रवाई कर सकेगी. इसमें काफी वक्त बर्बाद होगा और वो घुसपैठिया या आतंकवादी आसानी से भाग जाएगा. तो क्या ममता बनर्जी यही चाहती हैं? मामला सरहद के रखवालों को रोकने तक सीमित नहीं रहा, ममता बनर्जी ने अपने आदेश को सही ठहराने के लिए BSF पर गंभीर आरोप भी लगा दिए. उन्होंने कहा कि BSF के जवान गांवों में घुसकर लोगों की हत्या करते हैं. पशु तस्कर के नाम पर गोली मार देते हैं. फिर उनके शवों को फेंक दिया जाता है.

दुश्मनों वाली भाषा बोल रहीं ममता

सबसे बड़ी बात कि ममता बनर्जी ने BSF पर आरोप तो लगा दिया लेकिन इसके लिए कोई सबूत नहीं दिया. ममता बनर्जी ने ये भी कहा कि जब वो रेल मंत्री थीं तब उन्हें इस तरह की घटनाओं की जानकारी मिली थी. ममता बनर्जी वर्ष 1999 से 2001 तक और 2009 से 2011 तक रेल मंत्री रह चुकी हैं. अगर थोड़ी देर के लिए उनके दावे को सही मान भी लें, तब भी सवाल उठता है कि उन्होंने उस समय से ये मुद्दा क्यों नहीं उठाया. ममता बनर्जी ने वो भाषा बोली है, जो अक्सर पाकिस्तान बोलता है. पाकिस्तान भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ प्रोपेगेंडा करता है. मनगढ़ंत आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश करता है. पाकिस्तान से हम इसी शैली की उम्मीद करते हैं. लेकिन दुख तब होता है जब अपने ही देश की एक मुख्यमंत्री उन रखवालों के बलिदान, त्याग और वीरता का सम्मान करने की बजाए उन्हें हत्यारा बताने लगती हैं. ममता बनर्जी को ये नहीं भूलना चाहिए कि उनके एक बयान से BSF के लाखों अधिकारियों और जवानों के दिल को कितनी ठेस पहुंची होगी. ये वो रखवाले हैं जो अपनी जान की बाजी लगाकर मातृभूमि की रक्षा करते हैं. क्या ममता बनर्जी का ये बयान उनका मनोबल तोड़ने की कोशिश नहीं है?

ममता BSF को बेगुनाहों का हत्यारा कैसे बता सकती हैं?

सोचने वाली बात है कि एक मुख्यमंत्री के जिम्मेदार पद पर बैठीं ममता बनर्जी BSF को बेगुनाहों का हत्यारा कैसे बता सकती हैं? क्या उन्हें ये नहीं पता कि उनके राज्य के सीमावर्ती इलाकों के लोग उसी BSF को भगवान का दर्जा देते हैं. ज़ी मीडिया ने कूचबिहार में स्थानीय लोगों से बात की. उनका कहना था कि बॉर्डर पर BSF की तैनाती से वो सुरक्षित महसूस करते हैं. घुसपैठ और तस्करी का खतरा कम हो गया है, अगर BSF ना हो तो उनकी सुरक्षा और सम्मान दोनों खतरे में पड़ जाएंगे. 

आखिर ममता ने BSF पर ये आरोप क्यों लगाए? 

क्या इस गुस्से, इस कटुता की जड़ें राजनीतिक तो नहीं हैं? दरअसल केन्द्र सरकार ने 11 अक्टूबर 2021 को एक नया Notification जारी किया था, जिसके तहत कुल 12 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में Border Security Force यानी BSF के अधिकार क्षेत्र को नए रूप से तय किया गया था. ये वो राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश थे, जिनकी सीमा पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों से लगती है, जहां आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ, ड्रग्स की तस्करी और हथियारों की स्मगलिंग की ख़बरें आती रहती हैं. केन्द्र सरकार समय-समय पर ये तय करती है कि Border States में BSF सीमा से कितने किलोमीटर के दायरे में बिना पुलिस की इजाजत के तलाशी अभियान और गिरफ़्तारी जैसी कार्रवाई कर सकती है. इसी के तहत पिछले साल केंद्र सरकार ने पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में BSF के अधिकार क्षेत्र को 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया गया था. इनके अलावा राजस्थान और गुजरात में भी BSF सीमा से 50 किलोमीटर के दायरे में काम कर सकती है.

ममता के निशाने पर बीजेपी

जब केंद्र सरकार ने ये फैसला लिया, तब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी का शासन था. ममता बनर्जी अब भी सत्ता में हैं. पंजाब और बंगाल दोनों राज्यों में BSF का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने का विरोध किया गया. और इन दोनों राज्यों की विधान सभाओं में इसके खिलाफ प्रस्ताव भी पारित किए गए थे. वहीं, ममता ने भी ये कहते हुए विरोध किया था कि अब BSF या केंद्रीय सुरक्षा बल राज्य के अधिकारों औऱ पुलिस के कामकाज में दखलंदाजी करेंगे. ममता बनर्जी एक बार फिर इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रही हैं. कहने को वो BSF का विरोध कर रही हैं लेकिन असल में उनके निशाने पर बीजेपी है.

BSF के खिलाफ ममता बनर्जी का बयान

BSF के खिलाफ ममता बनर्जी का बयान संविधान के नजरिये से भी खिलाफ है. भारत एक संघीय गणतांत्रिक देश है. संविधान में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा है. देश की सुरक्षा से जुड़े विषय केंद्र सरकार के पास हैं. इसमें राज्यों को अपने विचार रखने का अधिकार है लेकिन आखिरी फैसला केंद्र सरकार का ही होता है. सीमा पर सेना या अर्धसैनिक बलों की तैनाती भी इसी दायरे में आती है. BSF एक्ट 1968 के सेक्शन 139 के मुताबिक केंद्र सरकार BSF के अफसरों और जवानों की जिम्मेदारियां और उनके अधिकार निश्चित कर सकती है. केंद्र सरकार ही ये तय करती है कि किस बॉर्डर स्टेट में BSF का अधिकार क्षेत्र कितना होगा. राज्य सरकार केंद्र के आदेश को बदल नहीं सकती है. इस कानून के तहत सीमा सुरक्षा बल को अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार है, जो किसी अपराध में शामिल है, जिसके खिलाफ शिकायत की गई है, या जिसके बारे में कोई खुफिया जानकारी है. सबसे बड़ी बात, इतने दायरे में सीमा सुरक्षा बल का सबसे निचले रैंक का अधिकारी भी Magistrate के आदेश और Warrant के बिना CRPC यानी Code of Criminal Procedure के तहत कार्रवाई कर सकता है.

संतुलन को बिगाड़ना चाहती हैं ममता

जहां BSF का अधिकार क्षेत्र खत्म होता है, वहां से सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य की पुलिस के पास होती है. लेकिन ममता बनर्जी इस संतुलन को बिगाड़ना चाहती हैं. पश्चिम बंगाल में 23 जिले हैं, जिनमें से 10 जिलों की सीमा बांग्लादेश से मिलती है. अगर BSF के काम में दखल दिया गया तो इन सीमावर्ती जिलों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है. सवाल है कि क्या ममता बनर्जी को राष्ट्रीय सुरक्षा से अधिक चिंता अल्पसंख्यकों के वोट बैंक की है? वो अल्पसंख्यक वोटर्स की हमदर्दी बटरोने की कोशिश कर रही हैं. अगर ममता बनर्जी के आदेश को लागू कर दिया जाए तो सारा मामला राज्य सरकार और उसकी पुलिस के पास चला जाएगा, जहां ऐसे मुद्दों पर फिर राजनीति होगी और इस बात की आशंका बढ़ जाएगी कि राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं, बल्कि वोट बैंक पॉलिटिक्स को देखते हुए फैसले लिए जा सकते हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इस बारे में हमने कुछ एक्सपर्ट से भी बात की कि क्या राज्य सरकार को ऐसा करने का हक़ है. रक्षा विशेषज्ञ और BSF के पूर्व ADG एस के सूद ने कहा कि अर्धसैनिक बलों के मामले में अंतिम फैसला केंद्र सरकार ही लेती है. BSF भारत के पांच सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आता है और इसमें ढाई लाख से भी ज्यादा सैनिक और अधिकारी हैं . इसे दुनिया का सबसे बड़ा सीमा सुरक्षा बल माना जाता है. पिछले 5 साल में इस BSF के 78 जवानों ने देश की रक्षा करते हुए शहादत दी है. BSF को लेकर ममता बनर्जी के बयान पर बीजेपी ने आरोप लगाया कि वो भारत के दुश्मनों की जुबान बोल रही हैं और सुरक्षा बलों का मनोबल गिरा रही हैं. राजनीति दुनिया के हर देश में होती है, लेकिन वही देश मजबूत होकर उभरता है जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को राजनीति से अलग रखा जाता है. अफसोस है कि भारत में सेना और अर्धसैनिक बलों को भी सियासत में घसीट लिया जाता है. यहां पर देश को BSF यानी बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स के गौरवशाली इतिहास के बारे में  जानना चाहिए.

कब हुआ BSF का गठन?

वर्ष 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध लड़ा गया था, तब देश में सीमाओं की सुरक्षा राज्यों की पुलिस करती थीं. 1962 के युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु को ये सुझाव दिया गया कि सीमा सुरक्षा का काम पुलिस से लेकर किसी विशेष Force को देना चाहिए. और इसके बाद ही Indo-Tibetan Border Police का गठन किया गया, जो अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में सीमा की रखवाली करती है. 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद BSF का गठन किया गया, जिसे पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी दी गई. वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश बना, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद पंजाब में BSF के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाया. वर्ष 1972 में पंजाब में BSF सोलह किलोमीटर के दायरे में कार्रवाई कर सकती थी. बाद में इस इलाके को ज़रूरत के हिसाब से कम और ज्यादा किया जाता रहा. कई मौक़ों पर ऐसा भी हुआ, जब कुछ सरकारों और नेताओं ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए BSF के अधिकार क्षेत्र को घटाया और इन राज्यों में आतंकवादी गतिविधियां और ड्रग्स की तस्करी बढ़ती चली गई. हालांकि ये मामला लोकतंत्र की समस्याओं से भी जुड़ा है. हमारे देश में ऐसी कई पार्टियां हैं, जो विचारधारा के नाम पर दुश्मन देश से दोस्ती करती हैं. आतंकवादियों को चरमपंथी और क्रान्तिकारी कहा जाता है. लोकतंत्र इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी में लपेट कर Legalize कर देता है. इसलिए आपको इस खतरे से सावधान होने की भी जरूरत है.

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