DNA Analysis: क्या आप जानते हैं तिरंगे का इतिहास? 22 जुलाई 1947 से पहले नहीं था भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज
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DNA Analysis: क्या आप जानते हैं तिरंगे का इतिहास? 22 जुलाई 1947 से पहले नहीं था भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज

History of National Flag and Tricolor: क्या आपको पता है 22 जुलाई 1947 से पहले भारत के पास अपना कोई राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) नहीं था. फिर हमारा ये तिरंगा कैसे बना. आज हम आपको इसका पूरा इतिहास बताते हैं.

 DNA Analysis: क्या आप जानते हैं तिरंगे का इतिहास? 22 जुलाई 1947 से पहले नहीं था भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज

History of National Flag and Tricolor: क्या आपको पता है 22 जुलाई 1947 से पहले भारत के पास अपना कोई राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) नहीं था. आज से 2 हजार 300 वर्ष पहले मौर्य साम्राज्य का अधिकार लगभग पूरे भारत पर था. लेकिन उस वक्त भी भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था.17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य ने भी भारत के अधिकांश हिस्से पर अपना प्रभाव जमा लिया था. हालांकि उस वक्त भी भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था.

रियासतों के होते थे अपने-अपने झंडे

आजादी से पहले भारत में 562 से ज्यादा रियासतें थीं और इन सभी रियासतों के भी अलग-अलग झंडे थे. गुलामी के दौर में ब्रिटिश भारत का झंडा Union Jack से प्रभावित था. जिसका भारत की संस्कृति और इतिहास से कोई संबंध नहीं था. ये ध्वज, भारत का नहीं बल्कि भारत की गुलामी का प्रतीक था. हालांकि भारत का राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में कैसे आया, इसकी कहानी भी काफी दिलचस्प है. 20वीं शताब्दी में अंग्रेजों के खिलाफ जैसे जैसे भारत की आजादी का आन्दोलन मजबूत हुआ, वैसे वैसे लोगों को एक राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) की जरूरत महसूस हुई, जो पूरे देश को एकजुट रख सके.

वर्ष 1905 में जब अंग्रेज़ों ने धर्म के आधार पर संयुक्त बंगाल का विभाजन किया, उस समय इसका ज़बरदस्त विरोध हुआ. क्रान्तिकारियों ने तय किया कि वो इस विभाजन के विरोध में एक राष्ट्रीय ध्वज डिजाइन करेंगे और इसे कलकत्ता में फहराया जाएगा. इस रणनीति के तहत वर्ष 1906 में शचिन्द्र प्रसाद बोस और सुकुमार मित्र ने एक झंडा डिजाइन किया. 

कलकत्ता में फहराया गया था पहला झंडा

इस झंडे को तब कलकत्ता के Green Park में फहराया गया था. उस समय अंग्रेज़ हिन्दू और मुसलमानों को अपनी फूट डालो, राज करो की नीति के तहत बांटना चाहते थे. इसलिए इस झंडे को इस तरह डिजाइन किया गया कि इससे हिंदू और मुसलमानों को एकजुट किया जा सके और उनके बीच साम्प्रदायिक सौहार्द रहे. इस झंडे में हरे रंग पर कमल के फूल अंकित थे. बीच में वन्दे मातरम् लिखा था और लाल रंग पर चंद्रमा और सूर्य को दिखाया गया थे.

इसके एक साल बाद वर्ष 1907 में स्वतंत्रता सेनानी भीकाजी कामा ने जर्मनी के बर्लिन में इसी तरह का एक झंडा फहराया था. हालांकि इसमें सबसे ऊपर हरे रंग की जगह केसरिया रंग को जगह दी गई थी और बीच में वन्दे मातरम् लिखा हुआ था. इसके 10 वर्षों के बाद साल 1917 में लोकमान्य तिलक और एनी बेसेंट द्वारा भी एक झंडा डिज़ायन किया गया था. ये बात उस समय की है, जब Home Rule Movement अपने चरम पर था. इसके तहत ये क्रान्तिकारी अंग्रेज़ों से पूर्ण आज़ादी की मांग नहीं कर रहे थे बल्कि वो ये चाहते थे कि अंग्रेज भारतीय नागरिकों को भी उनकी व्यवस्था में शासन करने का अधिकार दें. इसलिए इस आन्दोलन के दौरान जो झंडा (National Flag) डिजाइन हुआ, उसमें Union Jack को भी रखा गया था.

हालांकि आज जो तिरंगा (Tiranga) भारत की शान है, उसे डिजाइन करने में पिंगली वैंकैया का बहुत बड़ा योगदान था. वो एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनका जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ था.

पिंगली वेंकैया ने बनाया तिरंगे का डिजाइन

वर्ष 1916 से लेकर वर्ष 1921 तक पिंगली वेंकैया ने 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों (National Flag) पर गहराई से अध्ययन किया और वर्ष 1921 में Congress के सम्मेलन में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का अपना बनाया हुआ Design पेश किया. उस Design में मुख्य रुप से लाल और हरा रंग था. जिसमें लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था. बाकी समुदायों को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने उस Design में सफेद पट्टी डालने की बात कही. महात्मा गांधी ने ही झंडे के बीच में चरखे को शामिल करने की सलाह दी थी क्योंकि वो चरखे को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति का प्रतीक मानते थे. उनका कहना था कि चरखा भारत के लोगों को आत्म निर्भर बनने के लिए प्रेरित करेगा और इससे आज़ादी का आन्दोलन भी मजबूत होगा.

अगस्त 1931 को कांग्रेस ने अपने वार्षिक सम्मेलन में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित किया. हालांकि तब इस ध्वज में लाल रंग को हटा कर केसरिया रंग शामिल किया गया. केसरिया रंग को हिम्मत, त्याग और बलिदान का प्रतीक माना जाता है. यानी अब इस ध्वज में, केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियां थीं और बीच में चरखा था. 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज से रूप में स्वीकार किया. लेकिन इस ध्वज में चरखे की जगह अशोक चक्र को शामिल किया गया. ये एक नीला चक्र था, जिसे अशोक का धर्म चक्र भी कहा जाता है.

भारत की विशाल सीमाओं का प्रतीक है अशोक चक्र

तिरंगे (Tiranga) में धर्म चक्र को क्यों शामिल किया गया? इसकी भी एक वजह है. धर्म चक्र का इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक ने किया था. ये धर्म चक्र सम्राट अशोक के भारत की विशाल सीमाओं का प्रतीक है. उस वक्त पूरा भारत एक शासन व्यवस्था के सूत्र में बंधा हुआ था और सम्राट अशोक के राज में पूरा पाकिस्तान और आज का बांग्लादेश भी मौजूद था. हालांकि बहुत सारे लोग ये भी सवाल पूछते हैं कि आखिर तिरंगे में चरखे को क्यों हटाया गया.

तो इसके दो बड़े कारण थे. पहला कारण ये था कि तिरंगे (Tiranga) पर चरखा होने से ये पीछे से उल्टा दिखता था. दूसरा कारण ये था कि चरखा भारत के गांवों की आत्मनिर्भरता को दर्शाता था. जबकि नेहरू देश में बड़े बड़े उद्योग स्थापित करना चाहते थे. इसलिए उनका मानना था कि इस पर अशोक चक्र होना चाहिए. उस जमाने में H.V. Kamat भी इस झंडे में एक संशोधन चाहते थे. उनका कहना था कि अशोक चक्र के अन्दर स्वास्तिक चिन्ह होना चाहिए. हालांकि जब उन्होंने अशोक चक्र को तिरंगे पर अंकित देखा तो उन्हें लगा कि स्वास्तिक चिन्ह को इस पर जगह देना सही नहीं होगा.

पहली बार नेहरू ने फहराया था तिरंगा

इसलिए इस संशोधन को उन्होंने खुद वापस ले लिया. 16 अगस्त 1947 को जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया था. इस तिरंगे को दिल्ली से करीब 70 किलोमीटर दूर मेरठ से मंगवाया गया था. 1947 में मेरठ के खादी विभाग को ये सूचना दी गई कि पहले स्वतंत्रता दिवस पर फहराया जाने वाला तिरंगा मेरठ में तैयार किया जाएगा. इसके लिए स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया के द्वारा डिजाइन किया गया तिरंगा दिल्ली से मेरठ भेजा गया .

मेरठ में तिरंगा (Tiranga) तैयार करवाने की एक खास वजह थी. और वो ये कि भारत के पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ था. और इसकी शुरुआत ब्रिटिश आर्मी के भारतीय सिपाहियों ने मेरठ से की थी.

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