DNA ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्त कर दिया 'पीएम केयर्स फंड' पर याचिका देने वालों का एजेंडा
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DNA ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्त कर दिया 'पीएम केयर्स फंड' पर याचिका देने वालों का एजेंडा

आज हम कांग्रेस और उसके एजेंडे पर चलने वाले उन लोगों की बात करेंगे, जो संख्या में तो कम हैं, लेकिन अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं. ये लोग हर बात को मुद्दा बनाकर सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं और अदालत का समय बर्बाद करते हैं. पीएम केयर्स फंड (PM Cares Fund) के मामले में भी इन लोगों ने यही किया है.

DNA ANALYSIS: सुप्रीम कोर्ट ने ध्वस्त कर दिया 'पीएम केयर्स फंड' पर याचिका देने वालों का एजेंडा

नई दिल्ली: आज हम कांग्रेस और उसके एजेंडे पर चलने वाले उन लोगों की बात करेंगे, जो संख्या में तो कम हैं, लेकिन अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं. ये लोग हर बात को मुद्दा बनाकर सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं और अदालत का समय बर्बाद करते हैं. पीएम केयर्स फंड (PM Cares Fund) के मामले में भी इन लोगों ने यही किया है. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर ऐसे लोगों का एजेंडा ध्वस्त हो गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फंड पर ऐसे लोगों की हर आपत्ति को खारिज कर दिया और पीएम केयर्स फंड पर अपनी मुहर लगा दी है. ये लोग सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (Centre for Public Interest Litigation) CPIL नाम के एक एनजीओ के जरिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और ये मांग कर रहे थे कि पीएम केयर्स फंड में जमा हुए पैसों को नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड यानी NDRF में ट्रांसफर कर दिया जाए क्योंकि, इनके मुताबिक पीएम केयर्स फंड, वर्ष 2005 के डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट का उल्लंघन करता है और राष्ट्रीय आपदा के समय, सरकार को मिला कोई भी दान, अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में जाना चाहिए, ना कि ये पैसा पीएम केयर्स फंड में जाना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज ये याचिका खारिज दी.

राजनीतिक एजेंडे की वजह से पीएम केयर्स फंड के पीछे पड़े
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने अपने फैसले में ये कहा है कि ये दोनों फंड एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. पीएम केयर्स फंड एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है, जिसमें आम लोग सीधे और स्वेच्छा से दान करते हैं, जबकि संसद में पारित कानून के तहत बने एनडीआरएफ में मुख्य योगदान केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जमा रकम से होता है.

इसलिए पीएम केयर्स फंड में जमा रकम को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में ट्रांसफर करने की मांग कानून के मुताबिक सही नहीं है. पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के नाते पीएम केयर्स फंड का सीएजी ऑडिट भी जरूरी नहीं है. आपको पता होगा कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जब से प्रधानमंत्री ने पीएम केयर्स फंड शुरू किया, तब से कुछ लोग अपने राजनीतिक एजेंडे की वजह से पीएम केयर्स फंड के पीछे पड़ गए थे.

इसमें कांग्रेस पार्टी खासतौर पर राजनीति कर रही थी. आज सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस की भी बड़ी हार हुई है. क्योंकि, सोनिया गांधी और राहुल गांधी शुरुआत से ही पीएम केयर्स फंड के खिलाफ हमले कर रहे थे और पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे थे. कांग्रेस और उसका एजेंडा चलाने वाले लोग ये कह रहे थे कि जब राष्ट्रीय आपदा के समय केंद्र सरकार के दूसरे राहत कोष हैं, तो फिर पीएम केयर्स फंड बनाने की जरूरत क्या थी?

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में टिक नहीं सके
यही लोग कह रहे थे कि पीएम केयर्स फंड में दान देने वाली कंपनियों को टैक्स से छूट दी गई है, जिससे इस फंड में करोड़ों रुपये जमा हुए, लेकिन इस रकम को किस तरह से खर्च किया जा रहा है, इस पर कोई पारदर्शिता नहीं है. लेकिन पीएम केयर्स फंड पर उठे सभी सवाल, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में टिक नहीं सके. कोर्ट ने केंद्र सरकार की इन दलीलों को स्वीकार किया कि पीएम केयर्स फंड दूसरे सरकारी फंड्स से अलग है और इसे आपात स्थिति में जरूरत के मुताबिक विशेष मदद पहुंचाने की मंशा से बनाया गया है, और जिसमें आम लोग अपनी स्वेच्छा से दान देते हैं.

कोरोना संकट के बीच 28 मार्च को बनाए गए पीएम केयर्स फंड पर प्रधानमंत्री के ऐलान और उनकी अपील के बाद इस फंड में करीब साढ़े छह हजार करोड़ से ज्यादा का डोनेशन आया था जो पिछले 2 वर्ष में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को मिली रकम से तीन गुना ज्यादा था. प्रधानमंत्री की एक अपील पर देश के लोगों ने 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये तक पीएम केयर्स फंड में दान किये थे.

लेकिन यही बात उन लोगों को खटक गई, जो हर बात को राजनीतिक एजेंडे से देखते हैं, जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा पीएम केयर्स फंड की डिटेल्स भी दी जा चुकी थी. इसमें कोरोना वायरस से लड़ने के लिए 3100 करोड़ रुपये दिए गए थे जिसमें 2 हजार करोड़ रुपये वेंटीलेटर्स खरीदने के लिए, एक हजार करोड़ रुपये प्रवासी मजदूरों की देखभाल के लिए और 100 करोड़ रुपये वैक्सीन रिसर्च में मदद करने के लिए दिए गए थे.

कांग्रेस का ध्यान हमेशा चंदे पर
जब देश कोरोना वायरस से लड़ रहा है, तो कांग्रेस को पीएम केयर्स फंड के पैसों की चिंता थी और सोनिया गांधी और राहुल गांधी इस बात पर जोर लगा रहे थे कि पीएम केयर्स फंड का पैसा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में चला जाए, क्योंकि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की मैनेजिंग कमेटी में कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष भी शामिल होता है, लेकिन पीएम केयर्स फंड की मैनेजिंग कमेटी में कांग्रेस की जगह नहीं है, इसी से कांग्रेस परेशान थी.

हम आपको ये भी बता चुके हैं कि कांग्रेस पार्टी की संस्था राजीव गांधी फाउंडेशन को, कांग्रेस की सरकार के दौरान, सरकारी विभागों, सरकारी संस्थाओं और कंपनियों से खूब चंदा मिलता था. 2005 से 2008 तक कई बार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से भी राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा मिला था. इसलिए कांग्रेस का ध्यान हमेशा चंदे पर रहता है.

और इसी वजह से राजनीतिक तौर पर कांग्रेस ने पीएम केयर्स फंड के खिलाफ एजेंडा चलाया और अपने उस सिंडिकेट के जरिए सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले को लेकर गए, जो हर मामले में एक्टिव हो जाते हैं. फिर चाहे वो रफाल का मामला हो, फिर चाहे वो राम मंदिर का मामला हो या फिर अब पीएम केयर्स फंड का मामला हो यानी ये लोग, देश में हो रहे किसी भी नए बदलाव के खिलाफ हैं.

18 वर्ष बाद भारत को नई तकनीक वाले नए लड़ाकू विमान मिलते हैं, तो इन लोगों को अच्छा नहीं लगता. दशकों बाद अयोध्या का मुद्दा, शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ जाता है और 500 वर्ष के लंबे इंतजार के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू होता है, तो ये बात भी इन लोगों को पसंद नहीं आती. क्योंकि ये हमेशा ऐसे मुद्दों को अटकाए रखना चाहते हैं.

इस तरह की सोच वाले लोग सुप्रीम कोर्ट का दुरुपयोग करते हैं. निर्भया के दोषियों को फांसी न दी जाए, इसे लेकर ये सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. इसी तरह से आतंकवादी याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए ये लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. इसी तरह के लोग विकास दुबे जैसे अपराधियों के एनकाउंटर और हैदराबाद में बलात्कार के आरोपियों के एनकाउंटर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं.

EVM के खिलाफ अभियान चलाया
इन्हीं लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन EVM के खिलाफ अभियान चलाया था और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गए थे. ये लॉबी हर बार सुप्रीम कोर्ट में हार कर आती है, लेकिन अपने राजनीतिक एजेंडे में सुप्रीम कोर्ट का कीमती समय बर्बाद कर देती है. इस देश के आम लोग सुप्रीम कोर्ट में जाने के बारे में सोचने की हिम्मत भी नहीं करते, जबकि ये लोग अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके, बात बात पर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं.

यानी एक तरह से इन्होंने अपने एजेंडे पर सुप्रीम कोर्ट को घुमा रखा है. ये बात आप इसी से समझ सकते हैं कि Centre for Public Interest Litigation यानी CPIL नाम के जिस एनजीओ ने पीएम केयर्स फंड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. उसके सदस्य वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण हैं.  प्रशांत भूषण को पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की अवमानना का दोषी माना था.

और अब उन्हें अवमानना की सजा से बचाने के लिए, मुहिम चलाकर, सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाया जा रहा है. इनके खिलाफ कोई फैसला सुना दे तो सुप्रीम कोर्ट के 41 वकील इनके समर्थन में खड़े हो जाते हैं. ये वो लोग हैं जो फैसला अपने पक्ष में आए तो कहते हैं कि सत्य की जीत हो गई और अगर फैसले इनके खिलाफ आ जाए तो ये बोलते हैं कि दाल में कुछ काला है.

यही लोग बिना किसी हिचकिचाहट के सुप्रीम कोर्ट के जजों पर सरकार से मिलीभगत और भ्रष्टाचार के आरोप लगा देते हैं. आपको याद होगा कि जब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, अपने कार्यकाल में तीन और जजों के साथ मिलकर, तब के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, तो रंजन गोगोई को यही लोग बहुत पसंद करते थे और उन्हें हीरो बना दिया था. लेकिन जैसे ही रंजन गोगोई ने चीफ जस्टिस रहते रफाल और राम मंदिर जैसे मामले निपटाए, तो इन लोगों के लिए वो बुरे हो गए.

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