DNA: रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध को लेकर इतना आक्रामक क्यों है अमेरिका? जानें क्या है उसका फायदा
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DNA: रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध को लेकर इतना आक्रामक क्यों है अमेरिका? जानें क्या है उसका फायदा

फ्रांस जैसे देश तो युद्ध को लेकर नरम रूख अपना रहे हैं, जबकि अमेरिका युद्ध को लेकर उकसावे की राजनीति कर रहा है. हथियार बेचने के लिए अमेरिका दुनिया के किसी ना किसी देश में संघर्ष की स्थिति बना कर रखता है.

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: इन दिनों रशिया और यूक्रेन के बीच विवाद काफी चर्चा में है. ऐसे में रशिया की राजधानी मॉस्को से एक बड़ी खबर सामने आई है, जहां फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron ने रशिया के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की है.

  1. फ्रांस के राष्ट्रपति ने रशिया के राष्ट्रपति से की मुलाकात
  2. कल यूक्रेन भी जाएंगे फ्रांस के राष्ट्रपति
  3. युद्ध को लेकर उकसावे की राजनीति कर रहा है अमेरिका

फ्रांस के राष्ट्रपति जाएंगे यूक्रेन

रशिया के बाद Emmanuel Macron मंगलवार को यूक्रेन भी जाएंगे, जहां एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है. Emmanuel Macron ने अपने इस दौरे से ठीक पहले ये कह कर अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों को चौंका दिया है कि अब भी रशिया और यूक्रेन के बीच ऐसी डील हो सकती है, जिससे युद्ध की सम्भावनाओं को टाला जा सके, जबकि अमेरिका ऐसा नहीं चाहता.

युद्ध को लेकर उकसावे की राजनीति कर रहा है अमेरिका 

अमेरिका की तरफ से कहा गया है कि रशिया किसी भी पल यूक्रेन पर हमला करके युद्ध शुरू कर सकता है. इस पर उसकी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई है, जिसमें बताया गया है कि रशिया यूक्रेन पर हमला करने के लिए 70 प्रतिशत तक तैयार है. अमेरिका ने ये चेतावनी भी दी है कि अगर रशिया यूक्रेन पर हमला करता है तो उसकी सेना 48 घंटे के अन्दर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंच जाएगी और इस युद्ध में यूक्रेन के हितों का बचाव करेगी. यानी फ्रांस जैसे देश तो युद्ध को लेकर नरम रूख अपना रहे हैं, जबकि अमेरिका युद्ध को लेकर उकसावे की राजनीति कर रहा है.

अमेरिका युद्ध को लेकर इतना आक्रामक क्यों है?

दरअसल, युद्ध हो या ना हो.. दोनों ही स्थिति में हथियारों की बहुत जरूरत पड़ती है. अगर किसी देश को ऐसा लगे कि उसकी सम्प्रभुता पर खतरा पैदा हो सकता है और दुश्मन देश उस पर हमला करके उसकी शांति को भंग कर सकता है, तो ऐसी स्थिति में वो देश ज्यादा हथियार जुटाने शुरू कर देता है.

वो देश हथियारों का एक बड़ा खरीदार बन जाता है और यूक्रेन के मामले में ऐसा ही हो रहा है. यूक्रेन सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका से ही खरीदता है, ऐसे में युद्ध की आशंका या युद्ध होना, दोनों ही स्थिति में अमेरिका के लिए ये एक फायदे का सौदा है. इसीलिए वो इस संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभा रहा है. इस समय पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 37 प्रतिशत हथियार अमेरिका द्वारा ही बेचे जाते हैं.

हथियार बेचने के लिए संघर्ष की स्थिति बनाता है अमेरिका

हथियार बेचने के लिए अमेरिका दुनिया के किसी ना किसी देश में संघर्ष की स्थिति बना कर रखता है. उदाहरण के लिए पहले उसने इराक में सैन्य ऑपरेशन किए. फिर अफगानिस्तान में 20 वर्षों तक उसने तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अब वो यूक्रेन को हथियार के एक बड़े खरीदार के रूप में देख रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर यूक्रेन और रशिया के बीच युद्ध हुआ तो इसमें एक से ज्यादा देश हिस्सा लेंगे और ये देश हथियारों के लिए अमेरिका पर ही काफी हद तक निर्भर होंगे.

ज्यादातर देशों को यही लगता है कि यूक्रेन नहीं लड़ पाएगा 48 घंटे युद्ध

इसके अलावा ज्यादातर देशों को यही लगता है कि यूक्रेन 48 घंटे भी रशिया से युद्ध नहीं लड़ पाएगा. लेकिन ये भी सच है कि यूक्रेन, हथियारों का निर्यात करने वाला दुनिया का 12वां सबसे बड़ा देश है. साल 2010 तक उसकी गिनती, टॉप टेन देशों में होती थी. इसका एक कारण रशिया ही है. साल 1991 तक रशिया और यूक्रेन दोनों सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे और सोवियत संघ के लिए हथियारों के जो कारखाने स्थापित किए गए थे, उनमें से ज्यादातर यूक्रेन में थे. 1991 में जब सोवियत संघ बिखरा, तब ये कारखाने और हथियारों की तकनीक यूक्रेन को एक बड़े तोहफे के रूप में मिली और इस तकनीक को बेच कर आज भी यूक्रेन, हथियारों के क्षेत्र में एक बड़ा प्लेयर बना हुआ है.

इस मामले में diplomacy भी देखी जा रही है और सीमा पर deployment भी देखने को मिल रहा है. युद्ध की आशंकाओं के बीच यूक्रेन के नागरिक और वहां रहने वाले दूसरे देशों के लोग भी चिंता में हैं. यूक्रेन के ज्यादातर नागरिक इस संघर्ष के लिए Russia को जिम्मेदार मानते हैं और वहां की राजधानी में रशिया के खिलाफ लगातार प्रदर्शन भी हो रहे हैं. इनमें बहुत सारे लोग भारतीय मूल के भी हैं, जो युद्ध के पक्ष में नहीं है. वो चाहते हैं कि इस समस्या का समाधान Deployment से नहीं बल्कि Diplomacy से निकाला जाए.

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