दावा! इस चीज को सूंघने से जल्दी मर सकता है कोरोना, मरीज भी होंगे ठीक
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दावा! इस चीज को सूंघने से जल्दी मर सकता है कोरोना, मरीज भी होंगे ठीक

एक प्राइवेट अस्पताल के परीक्षण में पाया गया कि iNO (इनहेल्ड नाइट्रिक ऑक्साइड) थेरेपी लेने वाले कोरोना रोगी उन मरीजों की तुलना में जल्दी ठीक हो थे, जिन्हें स्टैण्डर्ड ट्रीटमेंट दिया जा रहा था. स्टडी में यह भी पाया गया कि आईएनओ (iNO) थेरेपी में मृत्यु दर भी शून्य थी.

सांकेतिक तस्वीर

नई दिल्ली: कोरोना के इलाज को लेकर भारत में हुई एक नई स्डटी में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ लड़ाई में नाइट्रिक ऑक्साइड (Nitric oxide) सफल और किफायती गेमचेंजर इलाज साबित हो सकती है. यह दावा कोच्चि के अमृता अस्पताल के डॉक्टरों और अमृता विश्व विद्यापीठम में स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में किया गया है.

  1. डॉक्टरों ने किया कोरोना को मारने का दावा
  2. इस चीज को सूघने से फौरन मरेगा कोरोना!
  3. डॉक्टरों के दावे पर चर्चा का दौर है जारी

कोरोना का रामबाण इलाज

अस्पताल के डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने कहा है कि नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) को सूंघने से कोरोना को नाक में मारने में मदद मिल सकती है. यह अध्ययन इंफेक्शियस माइक्रोब्स एंड डिजीज जर्नल में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पाया कि नाइट्रिक ऑक्साइड ने कोरोना वायरस को मार डाला था. इतना ही नहीं, यह मेजबान कोशिकाओं के लिए वायरस के प्रभावी लगाव को भी रोक सकता है.

पहले इस काम में होता था इस्तेमाल

आपको बता दें कि नाइट्रिक ऑक्साइड का उपयोग लंबे समय से चिकित्सा स्थितियों जैसे कि ब्लू बेबी सिंड्रोम (Blue Baby Syndrome) और लंग्स एंड हार्ट ट्रांसप्लांट के रोगियों के इलाज के लिए किया जाता है. 

 

कई चरण में परीक्षण

एनबीटी में प्रकाशित खबर के मुताबिक अमृता स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर बिपिन नायर ने परीक्षणों के पीछे के विचार के बारे में कहा कि NO को कोविड-19 के उपचार के विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए. हमें इसका विचार एक स्वीडिश समूह द्वारा की गई स्टडी से आया है. इस शोध में सुझाव दिया था गया कि यह चमत्कारी गैस भी सार्स-को-2 वायरस को रोकने में कारगर साबित हो सकती है. क्योंकि यह जैव रासायनिक परिवर्तनों को प्रेरित करती है, जो सीधे वायरस के स्पाइक प्रोटीन को प्रभावित करते हैं.

कैसे हुआ अध्ययन

अमृता अस्पताल की टीम ने मरीजों के एक छोटे समूह पर परीक्षण किया. इस काम के लिए चुने गए 25 रोगियों में से 14 को स्टैण्डर्ड ट्रीटमेंट के साथ-साथ iNO थेरेपी दी गई, जबकि 11 रोगियों को सिर्फ नॉर्मल प्रोटोकाल वाला ट्रीटमेंट दिया गया. जिसके नतीजों की तुलना में पता चला कि iNO थेरेपी लेने वाले रोगियों में वायरल लोड काफी कम हुआ था.

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