24 अप्रैल को लॉ कमीशन ने खत लिखकर चुनाव आयोग से लोकसभा के साथ सभी विधानसभा चुनाव(वन नेशन, वन इलेक्शन) पर विचार मांगे थे. उसके जवाब में इस रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग ने यह सुझाव दिया है.
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी लिहाज से एक देश-एक चुनाव (वन नेशन, वन इलेक्शन) की वकालत लंबे समय से करते रहे हैं. यानी लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों की बात बीजेपी कहती रही है लेकिन पीएम मोदी का जोर इस बात पर रहा है कि इसके लिए सभी दलों के बीच सर्वसम्मति बननी चाहिए. मौजूदा सियासी हालात को देखते हुए बीजेपी के इस प्रस्ताव पर विभिन्न दलों के बीच आम सहमति बनना थोड़ा मुश्किल दिखता है. उसका एक बड़ा कारण तो यह है कि सभी राज्यों के अलग-अलग वर्षों में चुनाव होते रहे हैं. इस कारण लोकसभा चुनावों के साथ सभी विधानसभा चुनावों से कई तरह की व्यावहारिक दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं.
इसी कड़ी में द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग के एक पैनल ने वन ईयर, वन इलेक्शन(एक साल, एक चुनाव) का प्लान बी सुझाया है. दरअसल 24 अप्रैल को लॉ कमीशन ने खत लिखकर चुनाव आयोग से लोकसभा के साथ सभी विधानसभा चुनाव(वन नेशन, वन इलेक्शन) पर विचार मांगे थे. उसके जवाब में इस रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग ने यह सुझाव दिया है कि उसकी जगह एक साल में होने जा रहे सभी विधानसभा चुनावों को एक साथ कराया जा सकता है. दरअसल लॉ कमीशन ने वन नेशन, वन इलेक्शन के मुद्दे पर पांच संवैधानिक और 15 सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर राय मांगी थी. इसी पर अपना जवाब देते हुए चुनाव आयोग ने ये सुझाव दिया है.
...तो हमें एक साथ चुनाव कराने में कोई दिक्कत नहीं : मुख्य चुनाव आयुक्त
सहूलियत
जनप्रतिनिधित्व एक्ट, 1951 के सेक्शन 15 के तहत यदि किसी विधानसभा का कार्यकाल छह महीने से अधिक बचा है तो निर्वाचन आयोग, चुनाव की अधिसूचना नहीं जारी कर सकता. इससे कम अवधि का समय होने पर ही इस तरह की अधिसूचना चुनाव आयोग जारी करता है. इससे ये होता है कि कई बार एक ही साल में कई राज्यों में होने वाले चुनाव का समय अलग हो जाता है. इसको इस तरह समझा जा सकता है कि 2017 की शुरुआत में पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में तो चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव करा लिए लेकिन छह माह से अधिक का अंतर पड़ने के कारण गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव साल के अंत में हुए. चुनाव आयोग ने सरकार को इसी नियम में संशोधन का सुझाव दिया है ताकि अधिसूचना जारी करने की मियाद छह से बढ़ाकर यदि नौ-दस महीने हो जाए तो संबंधित साल में होने वाले सारे चुनावों को एक साथ कराया जाना संभव हो सकेगा.
हालांकि इसके साथ ही ये भी सही है कि चुनाव आयोग ने एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनावों के प्रस्ताव का समर्थन किया है. उसने इसमें आने वाली व्यावहारिक दिक्कतों के मद्देनजर प्लान बी भी सुझाया है. पिछले दिनों 16 मई को लॉ कमीशन के साथ हुई बैठक में भी आयोग ने सरकार के इस सुझाव के प्रति समर्थन दोहराया.