आपातकाल: 25 जून का वह काला दिन जिसने भारतीय इतिहास पर छोड़ी अमिट छाप
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आपातकाल: 25 जून का वह काला दिन जिसने भारतीय इतिहास पर छोड़ी अमिट छाप

Emergency 25 June: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 को एक काला दिन कहा जाता है. इस दिन लिया गया आपातकाल का फैसला देश की बुनियाद हिलाने वाला फैसला था. तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं..

आपातकाल: 25 जून का वह काला दिन जिसने भारतीय इतिहास पर छोड़ी अमिट छाप

Emergency In India 25 June: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 को एक काला दिन कहा जाता है. इस दिन लिया गया आपातकाल का फैसला देश की बुनियाद हिलाने वाला फैसला था. तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं.. और उन्होंने ही देश में आपातकाल की घोषणा की थी. 21 मार्च 1977 तक चली इस 21 महीने की अवधि ने भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छीन लिया. देश में एक अंधेरे दौर की शुरुआत की जिसके खिलाफ अनगिनत लोगों ने आवाज उठाई. ये दिन हमें लोकतंत्र का महत्व बताता है. क्योंकि आपातकाल आजाद भारत के इतिहास का सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था. आइये आपको बताते हैं आपातकाल और इससे जुड़ी चौंका देने वाली घटनाओं के बारे में. 

भारत में क्यों लगा था आपातकाल?

पहले आपको बताते हैं कि इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने का फैसला क्यों लिया था. आपातकाल की घोषणा के पीछे कई कारण थे. जिनमें से मुख्य कारण.. इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी ठहराया जाना. विपक्षी दलों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और हड़तालें. देश में बढ़ती अर्थव्यवस्था और सामाजिक अशांति शामिल है.

भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव

आपातकाल के दौरान कई असंवैधानिक कार्रवाई की गईं. जिनमें मौलिक अधिकारों का निलंबन, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गिरफ्तारी के बिना हिरासत का अधिकार. प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप. हजारों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी. बिना मुकदमे के लोगों को गैर-कानूनी हिरासत में रखा जाना और उनको यातना देना. आपातकाल के दौरान उठाए गए कड़े कदमों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा.

हिल गई लोकतंत्र की बुनियाद

आपातकाल ने लोकतंत्र की बुनियाद हिला दी थी. इसके कारण अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को बड़ा नुकसान पहुंचा. नागरिकों के बीच भय और असुरक्षा का माहौल लंबे समय तक बना रहा. आपातकाल का जिक्र होते ही उन लोगों की भी याद ताजा हो जाती जिन लोगों ने इस कठोर फैसले को पिघलाने के लिए जी-जान लगा दी थी. लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनगिनत लोगों ने संघर्ष किया.

यातना.. अमानवीय परिस्थिति

25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के संदेह में देश में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं. हजारों राजनीतिक नेता, कार्यकर्ता, पत्रकार, वकील, कलाकार और आम नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया गया. लोगों को बिना मुकदमे के ही महीनों और सालों तक जेल में बंद रखा गया. उन्हें अक्सर क्रूर यातना और अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा.

इन दिग्गजों को जाना पड़ा जेल

आपातकाल के दौरान देश के कई दिग्गज नेताओं को सलाखों के पीछे डाला गया है. उनमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोहन सिंह, जॉर्ज फर्नांडीस जैसे कुछ बड़े नाम शामिल हैं.  प्रकाश नारायण, कुमार Ketkar, रणजीत कुमार, भगत सिंह सेठ जैसे नामी पत्रकारों को भी आपातकाल के दौरान जेल जाना पड़ा. एम.एफ. हुसैन, सुशीला शिवराम, शबाना आज़मी जैसे कलाकारों को भी सलाखों के पीछे डाला गया. आपातकाल के दौरान हुई गिरफ्तारियां भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय रहा है.

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