प्रफुल्ल कुमार महंत ने हम सभी राज्यों में एनआरसी चाहते हैं. पहले, हम पश्चिम बंगाल में एनआरसी चाहते हैं.
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) पर चल रहे विवाद के बीच असम के पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने बुधवार को सरकार से पश्चिम बंगाल के निवासियों के लिये भी इसी तरह की सूची तैयार करने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल भी बांग्लादेश से ‘अवैध प्रवासियों से प्रभावित’ है.
महंत ने यह भी कहा कि असम में एनआरसी को अद्यतन करने की चल रही प्रक्रिया पुख्ता होनी चाहिए और किसी भी भारतीय को छोड़ा नहीं जाना चाहिए और असम निवासियों की अंतिम सूची में किसी भी अवैध प्रवासी का नाम नहीं शामिल किया जाना चाहिए.
‘हम सभी राज्यों में एनआरसी चाहते हैं'
महंत ने कहा,‘हम सभी राज्यों में एनआरसी चाहते हैं. पहले, हम पश्चिम बंगाल में एनआरसी चाहते हैं. वह भी बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों से प्रभावित है और पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की भाषा एवं संस्कृति समान है.’ महंत ने भी 1985 के असम समझौते पर हस्ताक्षर किया था. इस समझौते में राज्य से अवैध प्रवासियों की पहचान और उन्हें उनके देश भेजने का प्रावधान था.
महंत ने कहा कि यहां तक कि पश्चिम बंगाल के स्थानीय निवासी भी राज्य में एनआरसी के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा, ‘‘पश्चिम बंगाल में एनआरसी की अविलंब आवश्यकता है. केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल में एनआरसी का एक नोडल अधिकारी नियुक्त करना चाहिये और यह कवायद शुरू की जानी चाहिये.
महंत का बयान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस बयान के कुछ दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि असम में एनआरसी की कवायद ‘राजनैतिक उद्देश्य’ से की गई ताकि लोगों को बांटा जा सके और इससे देश में ‘रक्तपात’ और गृहयुद्ध छिड़ जाएगा.
सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है असम गण परिषद
महंत की पार्टी असम गण परिषद (अगप) असम में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है. उन्होंने छह दशक पुराने नागरिकता अधिनियम में संशोधन का भी विरोध किया. इसके जरिये अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों को नागरिकता प्रदान की जाएगी.
उन्होंने कहा, ‘हम केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि वह नागरिकता संशोधन विधेयक नहीं लाए क्योंकि यह असम समझौते को विफल कर देगा और अवैध प्रवासियों को नागरिकता की अनुमति देगा.’ नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 लोकसभा में पेश किया गया था ताकि नागरिकता कानून में संशोधन किया जा सके.
इस विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों--हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों, पारसियों और ईसाइयों को भारत में 12 के बजाय छह साल रहने पर ही नागरिकता देने का प्रावधान है, भले ही उनके पास उचित दस्तावेज भी नहीं हो.
(इनपुट - भाषा)