छठ पर्व की शुरूआत नहाय खाय से होती है। 4 दिन के इस पर्व का पौराणिक महत्व बहुत ज़्यादा है। छठ का व्रत सबसे पहले यवन मुनि की पत्नी सुकन्या ने, अपने पति को रोगमुक्त करने के लिए किया था। व्रत के सफल अनुष्ठान के बाद न सिर्फ यवन मुनि का बुढ़ापा चला गया बल्कि उनकी आंखों की रोशनी भी वापस आ गई। सूर्य उपासना का ये पर्व महाभारतकालीन है। वैसे तो यह व्रत महिला पुरुष दोनों ही कर सकते हैं लेकिन छठ से ज्यादातर जुड़ी पौराणिक कहानियों में महिलाओं ने ही इस व्रत को किया है।
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नई दिल्ली : छठ पर्व की शुरूआत नहाय खाय से होती है। 4 दिन के इस पर्व का पौराणिक महत्व बहुत ज़्यादा है। छठ का व्रत सबसे पहले यवन मुनि की पत्नी सुकन्या ने, अपने पति को रोगमुक्त करने के लिए किया था। व्रत के सफल अनुष्ठान के बाद न सिर्फ यवन मुनि का बुढ़ापा चला गया बल्कि उनकी आंखों की रोशनी भी वापस आ गई। सूर्य उपासना का ये पर्व महाभारतकालीन है। वैसे तो यह व्रत महिला पुरुष दोनों ही कर सकते हैं लेकिन छठ से ज्यादातर जुड़ी पौराणिक कहानियों में महिलाओं ने ही इस व्रत को किया है।
महाभारत के समय अपना राज्य गंवा चुके पांडव जब वन-वन भटक रहे थे, तब पांडवों की यह दुर्दशा द्रौपदी से देखी नहीं गई। उन्होंने सूर्यदेव की उपासना की थी। कहते हैं कि सूर्यदेव की कृपा से ही पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य मिला था। ऐसी मान्यता भी है कि लंका विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे, तो दीपावली मनाई गई । लेकिन जब राम का राज्याभिषेक हुआ तो उन्होंने और सीता जी ने तेजस्वी संतान पाने के लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य की उपासना की थी।
एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के बीच वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। कहते हैं कि प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान की रची माया हैं। इसीलिए बच्चों के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि छठी मैय्या की पूजा से बच्चे के अशुभ ग्रह शांत हो जाते हैं।
सूर्य को अर्घ्य देकर पूरी करें मनोकामना
छठ पर्व सूर्य की आराधना का पर्व तो है। लेकिन अगर आप रोज़ सूर्य को जल का अर्घ्य देते हैं तो उसका बहुत फल मिलता है। भगवान सूर्य को नमस्कार करने का फल, सभी देवताओं को नमस्कार करने के बराबर है। भगवान सूर्य की आराधना करने वाले को बुद्धि, सिद्धि, धन, वैभव, सौभाग्य और आरोग्य मिलता है।
-भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से पहले स्नान की परंपरा।
-स्नान के बाद भगवान सूर्य का ह्रां ह्रीं स: मंत्र से ध्यान और आचमन करें।
-फिर देवताओं और ऋषियों के तर्पण और स्तुति के बाद, भगवान सूर्य को जल से अंजलि दें।
-स्नान के बाद खखोल्काय नम : मंत्र का जाप करें।
-सूर्यदेव को हृदय से स्मरण करते हुए जल का अर्घ्य दें।
सूर्य को जल अर्घ्य देने का शास्त्रीय विधान
-पहले एक तांबे का बर्तन लें।
-बर्तन पर लाल चंदन से सूर्य मंडल बनायें।
-बर्तन में कनेर का फूल,लाल चंदन, कुश और तिल डालें।
-फिर घुटने के बल बैठकर, तांबे के बर्तन को सिर से लगायें।
-ह्रां ह्रीं स: मंत्र के जाप से सूर्य को अर्घ्य दें।
जो भी इस तरह से सूर्य देव को जल का अर्घ्य देता है, वह हर पाप से मुक्त हो जाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उनकी पूजा के बारे में भी भविष्य पुराण में बताया गया है। भविष्य पुराण के ब्रम्ह पर्व में भगवान व्यास ने, भीष्म पितामह से सूर्य के स्वरुप के बारे में बताते हुए कहा है कि- भगवान सूर्य का रंग जपाकुसुम की तरह लाल है। वह श्वेत पद्म पर विराजे हैं। एक मुख और दो भुजाओं वाले सूर्य देव, सभी अलंकारों से विभूषित हैं। वह लाल रंग का वस्त्र धारण करते हैं और सभी ग्रहों के बीच स्थित हैं। कहते हैं कि जो भी मनुष्य सूर्य के इस रुप का ध्यान करते हैं, उन्हें बहुत जल्दी सिद्धि मिल जाती है। उनसे सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं और ऐसे लोगों के लिये, जीवन में असंभव कुछ भी नहीं रहता। जो लोग रविवार को सूर्य की उपासना करते हैं वह अमर हो जाते हैं। ग्रहण के दिन भगवान सूर्य का पूजन करने वाले को सारी अभीष्ट सिद्धियां मिलती हैं।