50 करोड़ के घी का अभिषेक, देश का सबसे अलग उत्सव.. जहां बहती है शुद्ध घी की नदी
Advertisement
trendingNow12470246

50 करोड़ के घी का अभिषेक, देश का सबसे अलग उत्सव.. जहां बहती है शुद्ध घी की नदी

Ghee Festival: वर्तमान में रूपाल की पल्ली बनाने के लिए ब्राह्मण, वणिक पटेल, बुनकर, नाई, पिजारा, चावड़ा, माली, कुम्हार आदि अठारह समुदाय मिलकर काम करते हैं. कहते हैं, यह पल्ली सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है.

50 करोड़ के घी का अभिषेक, देश का सबसे अलग उत्सव.. जहां बहती है शुद्ध घी की नदी

Rupal Village in Gujarat: गुजरात के गांधीनगर में रूपाल गांव के अत्यंत प्रसिद्ध वरदायिनी माताजी की पल्ली पर 50 करोड़ के घी का अभिषेक किया गया. पल्ली जहां से भी गुजरी वहां घी की नदियां बहने का दृश्य निर्मित हो गया. गांव की परंपरा के अनुसार इस घी का उपयोग गांव के ही विशेष समुदाय के लोग करते हैं. इस समाज के लोग पल्ली से गुजरते ही बर्तनों में घी भर लेते हैं. कई श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी करने के लिए घी चढ़ाया गया. पांडव काल से चली आ रही पल्ली की यह परंपरा आज भी कायम है.

गांव में घी की नदी बहती है

असल में हर साल की तरह इस साल भी रूपाल गांव में घी की नदियां बहती नजर आईं. पल्ली की विशेषताओं में घी अभिषेक प्रमुख है. पल्ली में लाखों श्रद्धालुओं द्वारा लाखों लीटर घी चढ़ाया गया. हजारों सालों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक पल्ली आसु सूद नोम के दिन निकलती है. पांडवों के वनवास काल की कहानी से जुड़ी यह परंपरा आज भी कायम है. पल्ली पूरे गांव के 27 चौराहो पर होते हुए पुन: मंदिर पहुंचती है. 

गांव के सभी चौराहो पर पल्ली पर घी का अभिषेक किया जाता है. हजारों श्रद्धालु पल्ली पर भी का अभिषेक कर अपनी मन्नत पूरी करते हैं. हालांकि इस बार माताजी के गोख में कबूतरों को देखकर श्रद्धालुओं में एक अलग ही खुशी देखने को मिली.

आज तक कोई अप्रिय घटना नहीं घटी 
नॉम के दिन पल्ली रात को नीकलती है. उनावा के ठाकोर समुदाय के लोग इस पल्ली को प्रस्थान कराते हैं. गांव के हर चौराहे पर बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं, जो एक पल के लिए डरा देता है. लेकिन आज तक पल्ली में कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.

पल्ली क्या है?
पल्ली क्या है, ये सवाल हर कोई पूछता है. पल्ली का अर्थ है मां के लिए घोड़े रहित लकड़ी का रथ. सबसे पहले पांडवों ने सोने की पल्ली बनाई. उल्लेख है कि उसके बाद पाटन के राजा सिद्धराज ने खिजड़ा की लकड़ी से पल्ली बनवाई. वर्तमान में रूपाल की पल्ली बनाने के लिए ब्राह्मण, वणिक पटेल, बुनकर, नाई, पिजारा, चावड़ा, माली, कुम्हार आदि अठारह समुदाय मिलकर काम करते हैं. कहते हैं, यह पल्ली सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है.

पल्ली प्रथा कहाँ से आई?
पांडव काल से शुरू हुई वरदायनी माता की परंपरा रूपाल गांव में आज भी जीवित है. वरदायी की माता पल्ली के साथ तीन किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं. वरदायिनी माता देवस्थान संस्था के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्री रामचन्द्र अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वन में गये. फिर, भरत मिलाप के बाद श्री श्रृंगी ऋषि के आदेश पर, उन्होंने लक्ष्मण और सीतामाता के साथ श्री वरदायीनी की माँ की पूजा और प्रार्थना की, श्री वरदायी माँ ने प्रसन्न होकर भगवान श्री राम चंद्र को आशीर्वाद दिया और उन्हें एक दिव्य वस्तु दी थी. लंका के युद्ध में भगवान श्री रामचन्द्र ने इसी बाण से अजेय रावण का वध किया था.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news