Clean Ganga pollution check: गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए लंबे समय से चल रही तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद ये अभियान अब तक कहां तक पहुंचा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी हालात बेहद गंभीर बने हुए हैं. गंगा जैसी अहम नदी को स्वच्छ बनाने की कोई नई पहल करनी पड़ रही है.
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Clean Ganga project Unclean river toxic waste increase: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की जांच में गंगा नदी के प्रदूषण को लेकर बेहद डरावना खुलासा हुआ है. पॉल्यूशन पर काबू करने के लिए बनाए गए इस संस्थान ने इसी साल मार्च के महीने में उत्तराखंड से लेकर यूपी, बिहार से होते हुए झारखंड और पश्चिम बंगाल के 94 जगहों से गंगा जल की जांच की थी. पतित पावनी गंगा की इस 5500 किलोमीटर की विशाल यात्रा में गंगा घाटों के किनारे जैसे-जैसे प्रदूषण बोर्ड की टीम आगे बढ़ी तो नालों से तमाम गंदा पानी मोक्षदायिनी गंगा में मिलते हुए देखा गया. नालों से प्लास्टिक, कूड़ा करकट, नदी के किनारे शवों का जलाना और कंकालों का मिलना गंगा नदी को लगातार प्रदूषित कर रहा है. यानी ऐसी कौन सी गंदगी नहीं है जो गंगा में आकर नहीं मिलती. ऐसे में एक बार फिर साफ हो गया कि भागीरथ की लाई गंगा बीते दो सालों में प्रदूषण की मार से और मैली हो गई है.
'गंदा पानी सीधे गंगा नदी में गिर रहा'
इस रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि गंगा नदी के पानी को पीना तो दूर उससे नहाना भी मुश्किल है. यूपी हो या बिहार गंगा जल में बढ़ रहे प्रदूषण की बड़ा वजह सॉलिड और लिक्विड वेस्ट है. पॉल्यूशन बोर्ड ने कई जगह गंगा जल की शुद्धता की जांच की. अधिकतर जगहों के गंगा वाटर में कोलीफॉर्म जीवाणुओं की कुल संख्या करीब 35 हजार के पार थी, जबकि ये संख्या अधिकतम 5000 होनी चाहिए थी. पटना के घाटों पर गंगा जल का प्रदूषण बीते दो साल में दस गुना बढ़ा है. गंगाजल में भारी मात्रा में मिले कोलीफॉर्म खतरनाक जिवाणु है. बढ़े हुए कोलीफॉर्म की मुख्य वजह बगैर ट्रीटमेंट किए शहर के सीवेज को सीधे गंगा नदी में गिराया जाना है. अकेले पटना में 150 एमएलडी गंदा पानी प्रतिदिन सीधे गंगा नदी में जा रहा है.
बी टू बी में हालत और खराब
बी टू बी यानी पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से बिहार के बेगूसराय के बीच 500 किलोमीटर की दूरी में गंगा और इसकी उप धाराओं के पानी में 50 से ज्यादा केमिकल्स पाए गए हैं. यानी केमिकल प्लांट से प्रदूषण की समस्या पर भी अभी तक जरा भी काबू नहीं पाया जा सका है. ये रासायनिक अपशिष्ट न सिर्फ मनुष्यों बल्कि जलीय जीवों के लिए भी जानलेवा हैं. गंगा जल में केमिकल्स के बढ़ने की वजह र्मास्युटिकल, एग्रोकेमिकल और लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स (कॉस्मेटिक) की बढ़ी मांग को बताया गया है.
बेशक नमामि गंगे योजना के तहत गंगा किनारे बसे शहरों में चार दर्जन से अधिक कारखानों को बंद कर दिया गया हो और नदी किनारे मल-मूत्र विसर्जित करने की आदतों को बदलने के लिए अभियान चलाया जा रहा हो, लेकिन अधिकारिक स्तर पर ही ये स्वीकार किया गया कि अभी भी गंगा किनारे बसे शहरों की कुल शुद्धिकरण क्षमता उस मात्रा की 60% ही है जितनी मात्रा में सीवरेज की गंदगी नदी में गिरती है. यानी करीब 30 से 40 फीसदी गंदगी अभी भी किसी परिशोधन के बिना ही नदी जल में प्रवाहित कर दी जाती है.
गंगा सफाई अभियान के 42 साल
गंगा में बढ़ते प्रदूषण की ओर पर्यावरण एजेंसियों का ध्यान पहली बार सन 1979 में गया. 1984 में जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगा के प्रदूषण पर चिंता जताई तो अगले ही साल गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत की गई. इसे ही गंगा कार्य योजना भी कहा जाता है. करीब 15 साल चलने के बाद और नौ सौ करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर देने के बाद भी इस योजना को मार्च 2000 में इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि कार्य योजना अपेक्षित परिणाम नहीं दे पा रही थी.
इसके पहले ही सन 1993 में गंगा कार्य योजना- द्वितीय शुरू कर दी गई थी. फिर फरवरी 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथारिटी नामक संस्था का गठन किया गया और कार्य योजना में गोमती, गोदावरी, दामोदर और महानंदा नदियों को भी शामिल कर लिया गया. इसके भी नतीजे नहीं निकले तो 2011 में गंगा नदी की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का गठन एक पंजीकृत सोसायटी के तौर पर किया गया. आगे मोदी सरकार के आने के बाद 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ.
नमामि गंगे की शुरुआत
मोदी सरकार ने गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. करीब 9 साल बाद 13 फरवरी 2023 को केंद्रीय जल शक्ति (जल संसाधन) राज्य मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने संसद को बताया कि नमामि गंगे कार्यक्रम गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने में कारगर रही है. जबकि पॉल्यूशन बोर्ड की रिपोर्ट कुछ और कहती है.
नए अभियान से जगी आस
हाल ही में कहा गया था कि सरकार नदी किनारे स्थित 4000 गांवों से निकलने वाले लगभग 2400 नालों को चिह्नित करके इनकी ‘जियो टैगिंग’ करेगी. सरकार इनसे ठोस कचरा प्रवाहित होने से रोकने के लिए एक उपकरण ‘एरेस्टर स्क्रीन’ लगाएगी. ये उपाय गंगा नदी में अलग-अलग वजहों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए पहले से जारी कोशिशों के इतर अलग से किया जा रहा है. ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि गंगा मैया की सफाई के महाअभियान में शामिल सभी पक्षकार अपनी भूमिका को समझते हुए नई ऊर्जा से काम करेंगे ताकि मानव सभ्यता को बचाए रखने के लिए सबसे जरूरी जरूरतों तत्वों में से एक 'पानी' के इस सबसे पवित्र और बड़े स्त्रोत को बचाया जा सके.