Guanvapi Row: ज्ञानवापी में कैसे मिली पूजा करने की इजाजत, फैसला सुनाने वाले जज ए के विश्वेश ने बताया
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Guanvapi Row: ज्ञानवापी में कैसे मिली पूजा करने की इजाजत, फैसला सुनाने वाले जज ए के विश्वेश ने बताया

Judge Ajay Krishna Vishwesh: वाराणसी के जिला जज बनने से पहले डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश यूपी के कई अहम न्यायिक पदों पर तैनात रहे. ज्ञानवापी केस की सुनवाई करने के साथ ही उनका नाम एक बार फिर से चर्चा में आ गया.

Guanvapi Row: ज्ञानवापी में कैसे मिली पूजा करने की इजाजत, फैसला सुनाने वाले जज ए के विश्वेश ने बताया

Ajay Kumar Vishwesh Interview: ज्ञानवापी पर दो बड़े फैसले सुनाने वाले वाराणसी जिला अदालत के जज रहे जस्टिस (रिटायर्ड) एके विश्वेश ने ज़ी न्यूज़ (ZEE NEWS) से एक्सक्सूलिव बातचीत में ज्ञानवापी में पूजा शुरू कराने के अपने बड़े फैसले के पीछे की वजह बताई है. पूर्व जज एके विश्वेश ने कहा, 'उन्होंने ज्ञानवापी मामले में साक्ष्यों के आधार पर दिया फैसला. क्योंकि कोर्ट भावनाओं पर नहीं बल्कि सबूतों के आधार पर फैसले करता है. ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश भी इन्‍होंने दिया था. इस सर्वे में बताया गया है कि मस्जिद परिसर में ऐसी कई चीजें मिली हैं जिनसे साबित होता है कि ये पहले मंदिर था.

रिटायरमेंट के दिन सुनाया ज्ञानवापी पर फैसला

जज डॉ अजय कृष्‍ण विश्वेश ने रिटायरमेंट के दिन अपने ऐतिहासिक फैसले में व्‍यास तहखाने (दक्षिणी तहखाना) में स्थित मूर्तियों की पूजा, राग-भोग करने की इजाजत दी थी. उनका फैसला आते ही करीब 31 साल बाद देर रात व्‍यास के आंशिक साफ-सफाई के साथ तहखाने में दीपक जलाने के साथ पूजा की गई. यही आदेश देने के बाद वो रिटायर हो गए थे. कोर्ट का आदेश आने के बाद रातोरात तहखाने से बैरीकेडिंग हटा दी गईं. इसके बाद तड़के ही पूजा के लिए लोग जुटने लगे. इसके बाद से मामला सुप्रीम कोर्ट गया. सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट जाने को कहा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कमेटी को कोई राहत नहीं दी.

डॉ अजय कृष्‍ण विश्वेश हरिद्वार के रहने वाले हैं. 7 जनवरी, 1964 को जन्में जस्टिस विश्वेश बचपन से मेधावी रहे हैं. कानून पर उनकी गहरी पकड़ है. उन्होंने 1984 में LLB और 1986 में LLM किया. 20 जून, 1990 को उनकी न्‍यायिक सेवा की शुरुआत हुई. पहली पोस्टिंग उत्‍तराखंड के कोटद्वार में मुंसिफ मजिस्‍ट्रेट के पर हुई. आगे वह चार जिलों बदायूं, सीतापुर, बुलंदशहर और वाराणसी के जिला जज रह चुके हैं. 

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