Hijab Case: हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा बताते रहे मुस्लिम पक्ष का अब ये कहना है कि कोर्ट को ये तय करने के बजाए कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, इसे सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के तौर पर देखना चाहिए.
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Hijab Case and Muslim Side Argument: हिजाब मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में मुस्लिम पक्ष का रुख बदला हुआ नज़र आ रहा है. अभी तक हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा बताते रहे मुस्लिम पक्ष का अब ये कहना है कि कोर्ट को ये तय करने के बजाए कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, इसे सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के तौर पर देखना चाहिए. यही नहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि कोर्ट को कुरान शरीफ की व्याख्या करने से बचना चाहिए. अदालतों को कुरान की सही सन्दर्भ में व्याख्या के लिए विशेषज्ञता हासिल नहीं है.
कर्नाटक HC के फैसले पर सवाल उठाया
सोमवार को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील यूसुफ मुछला ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने बड़ी ग़लती की है. हाईकोर्ट को क़ानून की व्याख्या करने से बचना चाहिए था और सिर्फ एक राय के आधार पर किसी नतीज़े पर पहुंचने से बचना चाहिए था. कोर्ट के पास क़ानून की सही संदर्भों में व्याख्या के लिए स्थापित नियमों की जानकारी नहीं है. संवैधानिक व्यवस्था भी यही है कि कोर्ट को धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या करने से बचना चाहिए. ये कोर्ट का काम नहीं है कि वो लोगों को बताए कि कैसे वो धर्म का पालन करे.
SC ने सवाल उठाया
मुस्लिम पक्ष की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाया. जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा कि मैं आपकी बात नहीं समझ पा रहा.आपकी ही हाई कोर्ट में दलील थी कि हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा है. ऐसे में उन दलीलों के मद्देनजर हाई कोर्ट को ये तो तय ही करना था कि ये अनिवार्य धार्मिक परंपरा है या नहीं और अब आप कह रहे है कि हाई कोर्ट को ऐसा नहीं करना चाहिए था.
9 जजों की बेंच के सामने भी यही दलील देंगे?
वकील यूसुफ मुछला ने जवाब दिया कि किसी ने उत्साह में आकर हाईकोर्ट ये दलील दे दी होगी. पर कोर्ट को अपनी सीमा का ध्यान रखना चाहिए कोर्ट को ये साफ कर देना चाहिए था कि हम ये तय नहीं कर सकते कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य धार्मिक परम्परा है या नहीं. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि आपकी दलीलों में विरोधाभास है. आप ही कह रहे है कि नौ जजों की बेंच को तय करना चाहिए. अगर ये मामला भी नौ जजों की बेंच को भेजा जाता है तो आप वहां भी ये दलील देंगे कि आप इस पर सुनवाई नहीं कर सकते.
'हिजाब पहनना या नहीं, ये व्यक्तिगत अधिकार'
यूसुफ मुछला ने कहा कि मेरा कहना है कि कुछ संवैधानिक मसलों पर संविधान पीठ सुनवाई कर सकती है. पर जहां व्यक्तिगत अधिकार की बात है, वहां अनिवार्य धार्मिक परम्परा पर विचार ही नहीं होना चाहिए. जब एक मुस्लिम महिला हिजाब पहनती है तो ये उसकी इच्छा है कि वो इन ड्रेस में ख़ुद को सशक्त महसूस करें और साथ ही अपनी गरिमा और निजता के अधिकार की रक्षा कर सके. कुरान गरिमा बनाये रखने की बात करती है और उस लिहाज़ से ये हर मुस्लिम महिला की इच्छा है कि वो हिजाब पहना ज़रूरी समझे या नहीं.
कर्नाटक HC में याचिकाकर्ताओ की दलील
इससे पहले कनार्टक हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा है. इस साल 15 मार्च को दिए फ़ैसले में हाईकोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म के पालन का राज्य का आदेश सही है. इस आदेश को याचिका कर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इसके अलावा कुछ याचिकाकर्ताओं ने हिजाब पहनने को मुस्लिम लड़कियों का अधिकार बताते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
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