Mayur Sinhasan of Shah Jahan: मुगल बादशाह शाहजहां ने गद्दी पर बैठते वक्त करीब सवा खरब रुपये की लागत से मयूर सिंहासन बनवाया था, जिसे करीब 100 साल बाद नादिरशाह लूटकर ईरान ले गया. फिर वह दुनिया का सबसे कीमती सिंहासन कहां गया, इसके बारे में आज तक किसी को पता नहीं है.
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History of Mayur Sinhasan of Shah Jahan: भारत पर करीब 300 साल तक कब्जा करने वाले मुगलों के जुल्मों-सितम से जुड़ी तमाम कहानियां हैं, जिनके बारे में सुनकर आज भी लोगों का खून खौल उठता है. लेकिन इनसे इतर कुछ ऐसे किस्से भी हैं, जो कौतुहल पैदा करते हैं. ऐसा ही किस्सा है शाहजहां के मयूर सिंहासन के गायब होने का. यह मयूर सिंहासन करीब सवा अरब रुपये की लागत से 7 साल में तैयार किया गया था. इसके बाद शाहजहां (Shah Jahan) की कई पीढ़ियां इस सिंहासन पर बैठी लेकिन बाद में जब दूसरे हमलावरों ने मुगलों पर हमले शुरू किए तो यह सिंहासन एक-दूसरे से होते हुए आखिरकार लापता हो गया.
शाहजहां ने करवाया था सिंहासन का निर्माण
कहते हैं कि वर्ष 1628 में गद्दी पर बैठते ही शाहजहां ने उस्ताद साद इ गिलानी को मयूर सिंहासन (Mayur Sinhasan) बनाने का आदेश दिया था. करीब 7 साल में यह सिंहासन बनकर तैयार हुआ. इसे बनाने के लिए शाहजहां (Shah Jahan) ने सैकड़ों हीरे-मोती-माणिक और एक लाख तोला सोना दिया था. इस सिंहासन पर 3 मुस्लिम कवियों सैदा, कुदसि और कलीम की कविताएं उकेरी गई थी. इस सिंहासन के ऊपर 2 मोर की आकृतियां बनाई गई थीं. जिनकी पीठ पर रत्न जड़े हुए थे. वर्ष 1635 में शाहजहां पहली बार इस सिंहासन पर बैठा.
करीब सवा खरब रुपये है मौजूदा कीमत
उस वक्त मुगलों के दिल्ली और आगरा में 2 लाल किले थे, जिनमें उनका समान रूप से आना-जाना बना रहता था. जब मुगल शासक एक किले से दूसरे किले में जाता तो यह सिंहासन (Mayur Sinhasan) भी वहीं शिफ्ट कर दिया जाता था. इस सिंहासन की ऊंचाई 6 फीट और चौड़ाई 4 फीट थी. सिंहासन पर तीन कुशन रखे रहते थे, जिन पर शाहजहां अपने हाथ टिकाकर बैठता था. खूबसूरती और कीमत के लिहाज से यह सिंहासन दुनिया का सबसे महंगा सिंहासन था. वर्ष 1665 में उसकी कीमत 10 70 लाख रुपये बताई थी. वर्तमान में इस सिंहासन की कीमत 1 खराब 35 अरब 9 करोड़ 43 लाख रुपये बताई जाती है.
नादिर शाह लूटकर ले गया ईरान
औरंगजेब के बाद मुगल शासन कमजोर होने लगा था. मोहम्मद शाह के शासन काल में ईरान के शाह नादिरशाह ने भारत पर हमला कर दिया. उसने 1739 में करनाल के मैदान में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह को हराकर दिल्ली में प्रवेश कर लिया. इसके बाद उसने राजधानी में जमकर कत्लेआम मचाया और जो मिला, उसे लूट लिया. इनमें मुगलों का मयूर सिंहासन (Mayur Sinhasan) भी था. इसी सिंहासन में दुनिया का सबसे महंगा हीरा कोहिनूर भी जड़ा हुआ था. इसके बाद नादिर शाह वापस ईरान लौट गया.
इसके बाद लापता हो गया मयूर सिंहासन
ईरान लौटने के 8 साल बाद वर्ष 1747 में नादिरशाह का उसके ही एक करीबी ने कत्ल कर दिया. इसके बाद ईरान में अराजकता फैल गई. इसी अफरा-तफरी के दौरान ईरान से मयूर सिंहासन (Mayur Sinhasan) लापता हो गया. कहते हैं कि कोहिनूर हीरा निकालकर मयूर सिंहासन को टुकड़ों में तोड़कर अलग-अलग कर दिया गया था. नादिरशाह के बाद कोहिनूर हीरा अफगानी शासक दुर्रानी के कब्जे में आ गया. वर्ष 1809 में यह हीरा (Kohinoor Diamond) महाराजा रणजीत सिंह के कब्जे में आया. जब अंग्रेजों ने देश पर कब्जा किया तो यह हीरा उनके पास पहुंच गया. तब से लेकर आज तक यह हीरा ब्रिटिश शाही खजाने का हिस्सा है और वहां के राजा-रानी शान के साथ खास मौके पर इसे अपने मुकुट में धारण करते हैं.
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