Panjshir में Taliban की 'जीत' के पीछे पाकिस्तान? समझिए कैसे दे रहा साथ
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Panjshir में Taliban की 'जीत' के पीछे पाकिस्तान? समझिए कैसे दे रहा साथ

जिस पंजशीर पर तालिबान आज से पहले कभी कब्जा नहीं कर पाया उस पर आखिर तालिबान ने इस बार इतनी जल्दी कब्जा कैसे कर लिया? इसका सीधा सा जवाब है कि ये सब पाकिस्तान की मदद से हुआ है.

Panjshir में Taliban की 'जीत' के पीछे पाकिस्तान? समझिए कैसे दे रहा साथ

नई दिल्ली: तालिबान ने ऐलान किया है अब उसने पंजशीर पर कब्जा कर लिया है. दुनियाभर के अमन पसंद लोगों को Northern Alliance से ही एक आखिरी उम्मीद थी कि शायद वो तालिबान से टक्कर ले सके लेकिन अब वो आखिरी उम्मीद भी टूट गई है. इस युद्ध में Northern Alliance के लड़ाकों और कई नेताओं ने शहादत दी है. इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि तालिबान इस युद्ध को इतनी आसानी से इसलिए जीत पाया क्योंकि उसे पाकिस्तान की सेना मदद कर रही थी. ईरान ने अपने एक बयान में Northern Alliance के नेताओं की शहादत पर दुख जताया और कहा कि वो इस युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका की जांच करेगा. आज Zee News के माध्यम से हम भी ये मांग उठा रहे हैं कि इस बात की अंतरराष्ट्रीय जांच होनी चाहिए कि पाकिस्तान की सेना पंजशीर में तालिबान के साथ आखिर क्या कर रही थी? 

  1. तालिबान और पाकिस्तान एक दूसरे के भाईजान!
  2. जब हार रहा था तालिबान मदद के लिए आया पाकिस्तान!
  3. कश्मीर के लिए पंजशीर में तालिबान के साथ पाकिस्तान?
  4.  

पंजशीर अब तालिबान के पंजे में!

पंजशीर तालिबान विरोधी गुट का आखिरी गढ़ था लेकिन लगता है कि अब ये आखिरी किला भी ढह गया है. पंजशीर में Northern Alliance के लड़ाके पिछले कई दिनों से तालिबान से लड़ रहे थे लेकिन अब Northern Alliance इस लड़ाई को लगभग हार चुका है. हालांकि Northern Alliance के कई नेताओं का कहना है कि तालिबान के खिलाफ उनकी लड़ाई अब भी जारी है और वो मोर्चे से पीछे नहीं हटे हैं. लेकिन जो तस्वीरें पंजशीर से आई हैं वो बताती हैं कि पंजशीर अब तालिबान के पंजे में आ चुका है. पंजशीर पर कब्जा करने के बाद तालिबान के लड़ाके पंजीशर के गवर्नर हाउस में घुस गए और वहां Islamic Emirates Of Afghanistan का झंडा लहरा दिया.

पंजशीर पहुंचने वाला Zee News भारत का पहला हिंदी न्यूज चैनल

जिस समय तालिबान पंजशीर की राजधानी बजारक पर कब्जा कर रहा था तब अफगानिस्तान में मौजूद हमारे अंतरराष्ट्रीय न्यूज चैनल WION के संवाददाता अनस मलिक पंजशीर में ही मौजूद थे. पंजशीर कैसे देखते ही देखते तालिबान के कब्जे में चला गया. इस पर हमने एक Exclusive Ground Report तैयार की. Zee News भारत का अकेला ऐसा हिंदी न्यूज चैनल था जो काबुल एयरपोर्ट के अंदर जाने में सफल रहा था और हमने वहां से भी आपको एक Exclusive Report दी थी. पंजशीर पहुंचने वाला भी Zee News भारत का पहला हिंदी न्यूज चैनल है. दोनों तरफ से चल रही गोलियों के बीच से तैयार की गई ये Ground Report आपको पंजशीर के हर पहलू के बारे में बताएगी.

रास्ते बयां कर रहे हालात

अफगानिस्तान का पंजशीर प्रांत काबुल से 150 किलोमीटर दूर मौजूद है. ये तालिबान विरोधी Northern Alliance का आखिरी गढ़ था लेकिन अब ये किला भी लगभग ढह गया है. काबुल से परवान प्रांत के चारीकार तक का रास्ता करीब डेढ़ घंटे का है. लेकिन रास्ते में सुनसान सड़कें ये बताने के लिए काफी हैं कि कुछ सौ किलोमीटर आगे पंजशीर को लेकर कितनी भंयकर लड़ाई छिड़ी है. यहीं से एक रास्ता पंजशीर के लिए जाता है और एक बगराम एयरपोर्ट की तरफ. चारिकार से 30 किलोमीटर और काबुल से दो घंटे की दूरी पर जबल सराज शहर है जो दोनों तरफ से ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. इस जगह पर सोवियत संघ की सेनाओं को शिकस्त खानी पड़ी थी. यहीं पर वो जगह भी है जिसे सोवियत सेना के टैंकों की कब्रगाह कहा जाता है.

ऐसा था पंजशीर के प्रवेश द्वार का नजारा

जबल सराज से हमारी टीम शतुल पहुंची जहां से पंजशीर घाटी की शुरुआत होती है. हमें इसी रास्ते पर बड़ी संख्या में तालिबानियों की बख्तरबंद गाड़ियां दिखाई दीं जो पंजशीर में प्रवेश कर रही थीं. पंजशीर के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर जो दावा तालिबानी लड़ाकों ने किया वो कुछ ही घंटों में सच साबित हो गया और तालिबानियों ने पंजशीर प्रांत की राजधानी बजारक में गर्वनर हाउस पर अपना झंडा लहरा दिया. तालिबान के हमले में Northern Alliance के प्रवक्ता फहीम दश्ती की भी मौत हो गई. फहीम दश्ती ना सिर्फ दुनिया के लिए Northern Alliance की आवाज थे बल्कि वो अफगानिस्तान के बहुत मशहूर पत्रकार भी थे. फहीम दश्ती कई वर्षों से तालिबान के खिलाफ लड़ रहे थे. वर्ष 2001 में जिस दिन तालिबान और अल कायदा के आतंकवादियों ने अहमद शाह मसूद को मारा था, उस दिन फहीम दश्ती अहमद शाह मसूद के साथ ही मौजूद थे लेकिन वो इस आतंकवादी हमले में किसी तरह बच गए थे. फहीम दश्ती अफगानिस्तान की सरकार के बड़े नेता अब्दुल्ला अब्दुल्ला के भतीजे भी थे. अब्दुल्ला अब्दुल्ला अफगानिस्तान में नई सरकार बनाने को लेकर लगातार तालिबान के साथ बातचीत कर रहे हैं.

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विरोधी गुट ने तालिबान के दावे किए खारिज

पंजशीर की लड़ाई में Northern Alliance के जनरल अब्दुल वदूद जारा (Abdul Wudud Zara) भी मारे गए हैं. जनरल अब्दुल वदूद जारा भी अहमद शाह मसूद के करीबी रिश्तेदार थे. जबकि तालिबान ने पंजशीर पर कब्जे का ऐलान करते हुए कहा है कि इस दौरान किसी आम नागरिक की जान नहीं गई है और तालिबान पंजशीर के लोगों के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगा. हालांकि Northern Alliance ने तालिबान की जीत के दावों को नकार दिया है. तालिबान विरोधी इस गुट के बड़े नेता अहमद मसूद ने कहा है कि वो खून की आखिरी बूंद तक तालिबान के खिलाफ लड़ेंगे. लेकिन उन्होंने इस दौरान सबसे बड़ा आरोप पाकिस्तान पर लगाया है. उन्होंने कहा है कि पंजशीर में पाकिस्तान की सेना तालिबान की मदद कर रही है. पाकिस्तान की मदद से ही तालिबान पंजशीर में बमबारी कर रहा है और Drone हमले कर रहा है. 

पाकिस्तान के नापाक इरादे कामयाब?
जिस पंजशीर पर तालिबान आज से पहले कभी कब्जा नहीं कर पाया. जिस पंजशीर पर 1980 और 90 के दशक में मुजाहिदीन कब्जा नहीं कर पाए. जिस पंजशीर पर अमेरिका और सोवियत संघ की सेनाएं कभी कब्जा नहीं कर पाईं, उस पर आखिर तालिबान ने इस बार इतनी जल्दी कब्जा कैसे कर लिया? इसका सीधा सा जवाब है कि ये सब पाकिस्तान की मदद से हुआ है. जो एक्सपर्ट कहते थे कि काबुल पर तालिबान का कब्जा होने में कम से कम तीन महीने लगेंगे वो गलत साबित हुए तालिबान ने ये काम सिर्फ 6 दिन में कर दिया. वजह ये थी कि अफगानिस्तान से भागने की जल्दबाजी में अमेरिका अपने पीछे लाखों की संख्या में आधुनिक हथियार छोड़ गया जो तालिबान के हाथ लग गए और तालिबान ने एक हफ्ते से भी कम समय में काबुल पर कब्जा कर लिया. इसी तरह पंजशीर के बारे में दावा था कि इस पर तालिबान शायद कभी कब्जा कर ही नहीं पाएगा लेकिन पंजशीर भी सिर्फ 20 दिनों में तालिबान के हाथ में आ गया.

पाकिस्तान इस तरह कर रहा तालिबान की मदद
Northern Alliance के तमाम बड़े नेताओं का दावा है कि पंजशीर की लड़ाई तालिबान पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर लड़ रहा है. पंजशीर के ऊपर लगातार पाकिस्तानी वायुसेना के Drones उड़ रहे हैं और वो पंजशीर के अलग-अलग इलाकों पर बम गिरा रहे हैं. दरअसल, पंजशीर काबुल से 150 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पूर्व की दिशा में है. पंजशीर प्रांत में सात जिले हैं और ये पूरा इलाका हिंदुकुश के ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है इसलिए पंजशीर में घुसना किसी भी बाहरी सेना के लिए बहुत मुश्किल है. पंजशीर में घुसने का एक मात्र रास्ता पंजशीर नदी है लेकिन जब कोई सेना यहां से घुसने की कोशिश करती है तो वो पहाड़ों पर बैठे पंजशीरी सैनिकों के सीधे निशाने पर होती है इसलिए भी आज तक बड़ी से बड़ी सेनाएं पंजशीर में घुसने की हिम्मत नहीं कर पाईं. पंजशीर पर हमले का एक रास्ता ये है कि यहां हवाई हमले किए जाएं. अब पाकिस्तान सीधे तौर पर तो अपनी वायुसेना को यहां हमला करने भेज नहीं सकता इसलिए पाकिस्तान की सेना Drones का इस्तेमाल कर रही है. ये Drones सटीक निशाना लगाने में सक्षम होते हैं और सिर्फ चुनी हुई जगह पर ही हमला करते हैं. अगर बिना दुनिया की नजर में आए पंजशीर के किसी नेता को मारना हो तो Drone सबसे बढ़िया उपाय है. अब तालिबान के पास तो Drone Technology है नहीं इसलिए वो पाकिस्तान की मदद ले रहा है.

अल्पसंख्यक Vs बहुसंख्यक की लड़ाई भी
कुल मिलाकर पंजशीर में पाकिस्तान की छाप हर तरफ दिखाई दे रही है लेकिन दुनिया ये सब देखकर भी चुप है. दूसरी बड़ी बात ये है कि पंजशीर की पौने दो लाख की आबादी में से ज्यादार ताजिक है. अफगानिस्तान में ताजिक की सबसे बड़ी आबादी पंजशीर में ही रहती है. अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह भी मूल रूप से ताजिक हैं जबकि बाकी के अफगानिस्तान में पश्तून बहुसंख्यक हैं. अफगानिस्तान की कुल आबादी में पश्तूनों की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है जबकि ताजिक की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है यानी ये लड़ाई अल्पसंख्यक Vs बहुसंख्यक की लड़ाई भी है. पंजशीर के ऊत्तर पूर्व में बदख्शां प्रांत है, जहां Uzbek और ताजिक मूल के लोग बहुसंख्यक हैं. बदख्शां प्रांत की सीमा Tajikistan से मिलती है. तालिबान के पिछले शासन के समय पंजशीर के साथ-साथ बदख्शां भी आजाद था क्योंकि यहां रहने वाले लोगों को जरूरत की सारी चीजें सीमा से लगे ताजिकिस्तान से मिल जाती थी लेकिन इस बार तालिबान ने बदख्शां प्रांत पर पहले ही कब्जा कर लिया था. इसलिए इस बार पंजशीर की सप्लाई लाइन कट गई.

करगिल युद्ध के दौरान भी पाकिस्तान ने बोला था झूठ
शनिवार को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के चीफ आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद काबुल पहुंचे थे और उन्होंने तालिबानी नेताओं से मुलाकात की थी. कहा जा रहा है कि ISI के चीफ ने तालिबानी नेताओं से कहा है कि वो अपनी नई सरकार में हक्कानी नेटवर्क को ज्यादा से ज्यादा भूमिका दें. भले ही पाकिस्तान इस बात से इनकार करता है कि पंजशीर में उसके सैनिक मौजूद हैं लेकिन दुनिया पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड जानती है. 1999 में जब करगिल युद्ध की शुरुआत हुई थी तब कई दिनों तक पाकिस्तान ने ये नहीं माना था कि इसमें उसकी सेना शामिल है. तब भी पाकिस्तान ने कहा था कि आतंकवादियों ने भारत के खिलाफ विद्रोह कर दिया है और इसमें उसका कोई हाथ नहीं है लेकिन करगिल युद्ध में शुरुआत से पाकिस्तान की सेना शामिल थी. जब धीरे-धीरे भारत ने इसके सबूत दुनिया के सामने रखे तो पाकिस्तान को ये मानना पड़ा कि इस लड़ाई में उसकी सेना शामिल थी. अब पाकिस्तान पंजशीर में भी ऐसा ही कर रहा है. 

मतलब की दोस्ती पर इस्लाम के ठेकेदार चुप क्यों?
इस बीच तालिबान ने अपनी सरकार के गठन के समारोह में शामिल होने के लिए पाकिस्तान, चीन, Turkey, कतर और Russia को न्योता भेजा है हालांकि ये साफ नहीं है तालिबान सरकार का गठन कब तक करेगा. तालिबान ने पाकिस्तान को न्योता क्यों भेजा गया है, ये आप अच्छी तरह समझते हैं. चीन को इसलिए न्योता दिया गया है क्योंकि चीन अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश कर सकता है. अफगानिस्तान के Wakhan Corridor की सीमा चीन के शिनजियांग (Xinjiang) प्रांत से मिलती है. शिनजियांग वही प्रांत है जहां बड़ी संख्या में वीगर मुसलमान रहते हैं. चीन वीगर मुसलमानों को नियंत्रित करने के लिए तालिबान की मदद भी ले सकता है. विडंबना ये है कि अफगानिस्तान में बुर्का ना पहनने पर सजा दी जाती है जबकि चीन बुर्का पहनने पर सजा देता है यानी चीन और तालिबान दोनों ही मुसलमानों पर अत्याचार कर रहे हैं और इस्लाम के ठेकेदार इस मतलब की दोस्ती पर चुप बैठे हैं.

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ये समीकरण समझना भी जरूरी
10 वर्षों तक अफगानिस्तान में लड़ने के बाद जब वर्ष 1989 में सोवियत संघ की सेनाएं वापस लौटीं तो इसका सबसे बड़ा फायदा अमेरिका को हुआ क्योंकि अफगानिस्तान में हारने के बाद ही सोवियत संघ टूट गया और Russia की ताकत कमजोर हो गई. अब जब अफगानिस्तान में 20 वर्षों तक लड़ने के बाद अमेरिका वहां से भागा है तो इसका सबसे ज्यादा फायदा चीन उठाना चाहता है. कतर तालिबान के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कतर ही पिछले डेढ़ वर्षों से तालिबान और दुनिया के दूसरे देशों के बीच बातचीत करा रहा है. Turkey एक तरफ Nato का सदस्य है दूसरी तरफ वो खुद को दुनिया में बड़ी इस्लामिक ताकत के रूप में स्थापित करना चाहता है. टर्की के उस्मानिया साम्राज्य का करीब चार शताब्दियों तक एशिया, अफ्रीका और यूरोप जैसे महाद्वीपों पर एक छत्र राज था, जब उस्मानिया साम्राज्य का अंत हुआ तो टर्की खुद को यूरोप का हिस्सा बनाना चाहता था लेकिन अब टर्की के राष्ट्रपति Recep Tayyip Erdoğan ने अपना सारा ध्यान एशिया की तरफ केंद्रित कर दिया है. जिसमें अफगानिस्तान बहुत अहम है. अफगानिस्तान के गेम में पांचवे बड़े खिलाड़ी का नाम Russia है. जिसे 1989 में मुजाहिदीनों के हाथों हारकर इसी अफगानिस्तान से भागना पड़ा था लेकिन अब अमेरिका की दुर्गति के बाद Russia मुजाहिदीनों से ही निकले तालिबानियों के साथ दोस्ती करना चाहता है. कुल मिलाकर ये पांचों देश एक नया World Order बनाना चाहते हैं, जिसमें चीन और Russia सबसे बड़ी महाशक्ति होंगे.

PAK को बचाने में जुटा पश्चिमी मीडिया
अफगानिस्तान में पाकिस्तान आग लगा रहा है लेकिन पश्चिमी मीडिया अब भी पाकिस्तान को बचाने में जुटा है. 98 वर्ष पुराना BBC जैसा संस्थान पाकिस्तान को बचाने के लिए एक एक्सपर्ट से भिड़ गया. दरअसल BBC ने अफगानिस्तान के हालात पर एक कार्यक्रम किया. जिसमें अमरिकी लेखिका और राजनैतिक विशेषज्ञ Christine Fair को बुलाया गया. इसमें Christine Fair ने कहा कि पाकिस्तान दुनिया को दिखाता है कि वो फायर ब्रिगेड की तरह आग बुझाता है जबकि सच ये है कि पाकिस्तान आग लगाता है. तब BBC की एंकर ने कहा कि पाकिस्तान इससे इनकार करता है और अगर पाकिस्तान ऐसा करेगा तो इससे उसको ही नुकसान होगा. तब Christine Fair ने कहा कि पाकिस्तान ऐसे खतरे उठाता है. चाहे वो भारत पर खतरनाक आतंकवादी हमले हों, चाहे तालिबान को समर्थन देना हो. लेकिन Christine Fair अपनी बात पूरी करतीं उससे पहले ही BBC की एंकर ने उन्हें टोकना शुरू कर दिया और कहा कि अभी उनके साथ पाकिस्तान का कोई अधिकारी या प्रवक्ता मौजूद नहीं है. इतना ही नहीं इस एंकर ने ये भी कह दिया कि पाकिस्तान इन सब आरोपों से इनकार करता है कि पाकिस्तान ने ही तालिबान को बनाया है और बिना Christine Fair का जवाब सुने इस कार्यक्रम को खत्म कर दिया.

आतंकवाद को मान्यता देने की कोशिश?
यानी ये एंकर पूरी तरह से पाकिस्तान के प्रवक्ता की तरह बात कर रही थीं और उसी के Propaganda को आगे बढ़ा रही थीं. ये हाल देखकर लगता है कि एक दिन आतंकवादियों के प्रवक्ता दुनिया भर के Television Studios में दिखाई देंगे. जैसे बड़े-बड़े राजनयिक TV Studios में आते हैं वैसे ही आतंकवादी भी आएंगे और ऐसे News Anchors उन्हीं की बात को आगे बढ़ाएंगे. धीरे-धीरे आतंकवाद मान्यता की तरफ बढ़ रहा है और BBC जैसे संस्थानों ने संपादकीय संतुलन के नाम पर इसकी शुरुआत कर दी है.

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