500 वर्षों के इंतज़ार के बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. लेकिन काशी (Kashi) में 350 सालों का इंतजार अभी बाकी है.
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वाराणसी: 500 वर्षों के इंतज़ार के बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. लेकिन काशी (Kashi) में 350 सालों का इंतजार अभी बाकी है.
भोलेनाथ की नगरी पर विवाद
भोलेनाथ की नगरी में बाबा के धाम पर विवाद आज तक जारी है. मामला वाराणसी की जिला अदालत में में भी चल रहा है. जिसमें तीन पक्ष हैं. पहला खुद स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर यानी खुद साक्षात भगवान शिव, वैसे ही जैसे अयोध्या में रामलला विराजमान खुद पार्टी थे. कोर्ट ने वकील विजय शंकर रस्तोगी को भगवान शिव का वाद मित्र नियुक्त किया है. दूसरा पक्ष, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड है और तीसरा पक्ष, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी है.
पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने की मांग
वर्ष 2018 में हिंदू पक्ष ने अदालत से मांग की है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराया जाए. ताकि ये विवाद को हल हो सके लेकिन इस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी. जी न्यूज़ के पास काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े अहम दस्तावेज हैं. 83 साल पुराने दस्तावेज़ से विवाद में नया मोड़ संभव है.
1991 से शुरू हुई मुकदमे की शुरुआत
काशी विश्वनाथ विवाद में अभी जो मुकदमा चल रहा है ,उसकी शुरुआत 1991 में हुई थी. यानी ये लगभग 30 साल पुराना मुकदमा है. लेकिन हकीकत में ये कानूनी विवाद कई दशक पुराना है. स्वतंत्रता से पहले 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था. तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी. ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और कोर्ट से मांग की थी कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की जमीन घोषित की जाए. 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया. लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई.
अंग्रेज अफसरों ने अदालत में दिया मंदिर का नक्शा
इसी केस की सुनवाई के दौरान अंग्रेज अफसरों ने 1585 में बने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर का नक्शा भी पेश किया. इसमें बीच का जो हिस्सा है वहीं पर प्राचीन मंदिर का गर्भगृह बताया जाता है. यह नक्शा जब कोर्ट में पेश किया तो अंग्रेज अफसरों ने बताया कि इसके ही कुछ हिस्से में मस्जिद बना दी गई है. इसी नक्शे के बीच के स्थान पर एक मस्जिद बनी हुई है, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है. ऐसा दावा किया जा रहा है कि इस मस्जिद की पश्चिमी दीवार आज भी वही है जो प्राचीन मंदिर में हुआ करती थी. इसे देखकर ऐसा लगता है कि मस्जिद को जल्दीबाजी में बनवाया गया था.
अदालत ने माना मंदिर का अस्तित्व
वर्ष 1937 में वाराणसी जिला अदालत का जो फैसला आया था, उसमें एक जगह जज ने कहा है कि ज्ञानकूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का मंदिर है, क्योंकि कोई दूसरा ज्ञानवापी कूप बनारस में नहीं है. जज ने यह भी लिखा है कि एक विश्वनाथ मंदिर है और वो ज्ञानवापी परिसर के अंदर ही है. इसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर AS आल्टेकर का बयान दर्ज किया गया था, जिसमें उन्होंने स्कंद पुराण समेत कई प्राचीन ग्रंथों को quote करते हुए बताया था कि ज्ञानवापी कूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग है.
स्कंदपुराण में भी काशी विश्वनाथ मंदिर का वर्णन
अयोध्या के बाद, काशी विश्वनाथ को हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर देखा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अयोध्या भगवान राम की नगरी है तो काशी यानी वाराणसी को भगवान शिव की नगरी माना जाता है. यहां भी मंदिर-मस्जिद का झगड़ा औरंगजेब के शासन काल से ही शुरू हुआ. ज्ञानवापी मस्जिद के इस विवाद में 18 अप्रैल 1669 का ये दस्तावेज भी बेहद महत्वपूर्ण है. ये कागज़ हिंदू पक्ष वाराणसी की उस अदालत में भी जमा करा चुका है.ये एक एतिहासिक दस्तावेज है जिसे 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब के एक दरबारी की तरफ से जारी किया गया था. मूल रूप से इसे फारसी में लिखा गया था. इसका हिंदी में अनुवाद करके अब अदालत में जमा कराया गया है.
औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने का दिया था आदेश
इसमें लिखा है कि औरंगज़ेब को ये खबर मिली है कि, 'मुलतान के कुछ सूबों और बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं. और इन पाठशालाओं में हिंदु और मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदमाशी भरे ज्ञान, विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं. धर्म संचालक बादशाह ने ये सुनने के बाद सूबेदारों के नाम ये फरमान जारी किया है कि वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं गिरा दें. उन्हें इस बात की भी सख्त ताकीद की गई है कि वो सभी तरह के मूर्ति पूजा संबंधित शास्त्रों का पठन पाठन और मूर्ति पूजन भी बंद करा दे.'
2 सितंबर 1669 को मंदिर को ध्वस्त किया गया
इसके बाद औरंगजेब को ये जानकारी दी जाती है कि उनके आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है. यानी एक एतिहासिक दस्तावेज़ खुद इस बात की पुष्टि करता है कि औरंगज़ेब के आदेश पर ही काशी विश्वनाथ मंदिर को नुकसान पहुंचाया गया था. हालांकि अदालत इस दस्तावेज़ को कितना महत्वपूर्ण मानती है. ये अदालत पर निर्भर है.
इतिहासकार भी इस पूरे मामले को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं. अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया आगे बढ़ने के साथ ही हिंदुओं के बड़े तबके में ज्ञान वापी मस्जिद के विवाद को जल्द से जल्द खत्म करने मांग उठने लगी है.
ये है काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
- काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है.
- भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे. सबसे पहले 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था. इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था. लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही.
- 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं.
- वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई.
- वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं.
- तब से ही यह विवाद आज तक जारी है और यह मामला कोर्ट में भी चल रहा है. 2018 में हिंदू पक्ष ने अदालत से मांग की है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराया जाए. ताकि ये विवाद को हल हो सके.
ध्वंस के बाद नए स्थान पर बना मंदिर
अभी जिस काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा होती है वो ज्ञानवापी परिसर से कुछ ही दूरी पर है. इसे वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था. 1853 में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर के शिखर पर 880 किलो सोना जड़वा दिया था. लेकिन मूल मंदिर के लिए हिंदू पक्ष का दावा लगातार बना हुआ है. अभी इसका मुकदमा वाराणसी जिला अदालत में चल रहा है.
क्या है मंदिर का विवाद
- हिंदू पक्ष का मानना है कि काशी में भगवान विश्वनाथ का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग ज्ञानवापी परिसर में मौजूद है.
- 1669 में औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवा दिया. इसे ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है.
- हिंदू पक्ष चाहता है कि ज्ञानवापी परिसर की जगह खुदाई कराई जाए, क्योंकि मूल शिवलिंग और प्राचीन मंदिर के अवशेष वहीं मौजूद हैं.
- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वहां पर कोई मंदिर नहीं था. जिस मस्जिद को विवादित बताया जा रहा है वो यहां शुरू से ही है.
- यह मुकदमा 1991 में हिंदू पक्ष की तरफ से दायर किया गया था.
- इसमें 3 प्रमुख मांगें रखी गईं. पहली मांग यह थी कि पूरे ज्ञानवापी की जमीन को मंदिर का अंश घोषित कर दिया जाए.
- दूसरी मांग थी कि मुस्लिमों को यहां से बेदखल कर, वर्तमान ढांचे को गिराकर हिंदुओं को कब्जा सौंप दिया जाए.
- तीसरी मांग थी कि हिंदुओं ने मूल शिवलिंग के स्थान पर मंदिर के पुनर्निर्माण की इजाजत हो और मुसलमान इसमें
कोई व्यवधान न डाल सकें.
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मुस्लिम पक्ष मामले पर सुनवाई नहीं चाहता
23 सितंबर 1998 को वाराणसी जिला अदालत का फैसला आया जिसमें कहा गया कि पहले पूरे ज्ञानवापी परिसर का धार्मिक स्वरूप तय किया जाना चाहिए. इसका मतलब ये कि 15 अगस्त 1947 को ये जगह मंदिर थी या मस्जिद? वाराणसी जिला अदालत के फैसले पर बाद में हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया. इसके 20 साल बाद 2018 में एक बार फिर से सुनवाई शुरू हुई, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने सुनवाई पर एक बार फिर से स्टे ऑर्डर ले लिया.
मंदिर की दीवार पर ही बना दिया मस्जिद का गुंबद
हिंदू पक्ष अपने दावे के समर्थन में सबसे बड़ी दलील ज्ञानवापी मस्जिद की इन दीवारों के आधार पर देता है. इसकी एक दीवार को देखकर लगता है कि वो मस्जिद के निर्माण का हिस्सा नहीं है. ज्ञानवापी परिसर की कई तस्वीरें भी हिंदू पक्ष ने सबूत के तौर पर कोर्ट में कई तस्वीरें पेश की हैं. काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इसका वर्णन स्कंद पुराण समेत कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. लेकिन पिछले साढ़े तीन सौ साल से करोड़ों लोगों की आस्था के इस केंद्र पर विवाद का ग्रहण लगा हुआ है.