इस आंदोलन में शामिल महिलाओं ने बताया कि पहले खाना पकाने के लिए गैस सिलेंडर नहीं मिलता था. इसकी वजह से सभी लोग जंगल से लकड़ी काटकर लाते थे और कुछ कोयले पर खाना पकाते थे.
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बिहार के दशरथ मांझी की कहानी आपने सुनी होगी, जिन्होंने अकेले पहाड़ को काटकर रास्ता बना डाला था और एक मिसाल कायम की थी. एक ऐसी ही मिसाल की कहानी ओडिशा से आई है. ओडिशा के कोरापुट जिले की महिलाओं ने भी अपने दम पर जंगल को हरा-भरा बनाकर ऐसी ही मिसाल कायम की है. यहां के आंचला गांव की महिलाओं ने खत्म हो चुके एक जंगल में हरियाली ला दी है. ये पहले के मुकाबले ज्यादा घना दिखने लगा है. इस जंगल के बीच से एक पानी की धारा भी बह चली है. अब यहां हरे-भरे पेड़ों पर पक्षियों का बसेरा है, उनकी चहचहाहट से दिल खुश हो जाता है.
कहानी की शुरुआत 30 साल पहले यानी 1990 से होती है. यहां आंचला गांव का माली पर्वत अपनी बर्बादी के कागार पर था. इसका कायाकल्प करने वाली महिलाओं ने बताया कि पर्वत के जंगल लगभग खत्म हो गए थे, यहां से बहने वाली जल की धारा भी सूख चुकी थी. इसकी वजह से दूर-दूर तक सूखे पेड़ नजर आते थे. बर्बाद होते पर्वत और सूखी नदी को देखकर यहां की महिलाओं ने इसे संवारने का संकल्प लिया.
क्या किए उपाय?
महिलाओं ने सबसे पहले खाना पकाने के लिए लड़की पर निर्भरता को कम किया. इसके लिए उन्होंने गैस चूल्हे का इस्तेमाल करना शुरू किया. वहीं जिनके पास गैस चूल्हे की व्यवस्था नहीं थी, उन्होंने एक तरीका निकाला और तीन घरों का खाना एक ही चूल्हे पर बनाना शुरू किया. इससे अचानक लकड़ी की जरूरत कम हो गई.
इसके साथ ही लोगों ने जैविक और पर्वावरण के अनुकूल खेती करने की शुरुआत की. इससे जंगल के दोबारा पनपने और तेजी से वातावरण के बेहतर करने में मदद मिली. महिलाओं के कठिन परिश्रम 250 एकड़ में पूरा जंगल हरा-भरा हो गया. पानी की धारा भी बहने लगी जिसका इस्तेमाल गांव के लोग अपने खेतों में सब्जियों को उगाने में करने लगे. खेतों से निकलने वाली सब्जियों और अन्य उत्पादों से उनकी घरेलू जरूरतें पूरी होने लगी.
लकड़ी काटने पर लगाया जुर्माना
महिलाओं ने शुरू में ही जंगल से लकड़ी काटने पर रोक लगाते हुए, इसके विपरीत लकड़ी काटने वाले पर 500 रुपये का सख्त जुर्माना लगाने का ऐलान किया. इसके लिए सकारात्मक माहौल बनाया गया. जो भी व्यक्ति लकड़ी काटता उसे उसकी गलती का एहसास कराया जाता. इससे लकड़ी काटने की घटनाओं में तेजी से कमी आई. लोग महिलाओं के इस आंदोलन से जुड़ने लगे.
महिलाओं ने जंगल की निगरानी के लिए एक चौकीदार को भी नियुक्त किया. इनकी जिम्मेदारी तय की गई कि जंगल के इलाके में कोई भी अवैध तरीके से एंट्री न करे. एक परिवार को सुबह से शाम तक जंगल की निगरानी के लिए चयन किया गया.
कैसे बर्बाद हो गया जंगल?
इस आंदोलन में शामिल महिलाओं ने बताया कि पहले खाना पकाने के लिए गैस सिलेंडर नहीं मिलता था. इसकी वजह से सभी लोग जंगल से लकड़ी काटकर लाते थे और कुछ कोयले पर खाना पकाते थे. इसके बाद महिलाओं ने इस आदत को बदला और लकड़ी काटने पर पाबंदी लगा दी. महिलाओं ने जंगल की जमीन में इमली, चंदन और नीम के पेड़ लगाए. जब ये पौधे बड़े हुए तो गांव में जश्न मनाया गया और 30 सालों में ये जंगल हरा-भरा हो गया.
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