DNA Analysis: बड़ी-बड़ी कंपनियों ने भारत के लोगों की एक आदत को पहचान लिया है. इसलिए अब साबुन, तेल, शैम्पू, Toothpaste, Cold Drink और Chips बनाने वाली इन कंपनियों ने आपको झांसा देने के लिए एक नया काम किया है.
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नई दिल्ली: अब हम आपको भारत के आम लोगों की उस आदत के बारे में बताएंगे, जिसमें वो Toothpaste की Tube को इस हद तक निचोड़ देते हैं कि उसमें से Paste का आखिरी अंश भी निकल आए. यही काम हम Shampoo की Bottle और Chips के पैकेट के साथ भी करते हैं. लेकिन अब बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इस आदत को पहचान लिया है. और अब साबुन, तेल, शैम्पू, Toothpaste, Cold Drink और Chips बनाने वाली इन कंपनियों ने आपको झांसा देने के लिए अपने Products के पैकेट को छोटा कर दिया है और उसके दाम वही रखे हैं. ताकि आपका सामान जल्दी-जल्दी खत्म होता रहे और आप उसी दाम पर उनके नए नए पैकेट खरीदते चले जाएं. अंग्रेजी में महंगाई को Inflation कहते हैं और बड़ी कंपनियों की इस चालाकी को Shrinkflation कहते हैं, जिसके तहत सामान का दाम तो उतना ही रहता है लेकिन पैकेट में उसकी मात्रा Shrink होती चली जाती है यानी सिकुड़ती चली जाती है.
अगर आप Shrink-flation के इस सिद्धांत को अब नहीं समझते तो आपको और सरल तरीके से बताने की कोशिश करते हैं. मान लीजिए आपको किसी कंपनी के Chips काफी पसंद हैं. तो ऐसी स्थिति में आपको उस कंपनी का नाम भी याद होगा और ये भी पता होगा कि वो Chips किस पैकेट में आते हैं और उस पैकेट का रंग क्या है. लेकिन सोचिए, अगर ये कंपनी इस Chips की कीमत में कोई बदलाव ना करके, सिर्फ पैकेट में इसकी मात्रा घटा दें और पैकेट का साइज छोटा कर दें तो क्या होगा? क्या आप इस बदलाव को नोटिस कर पाएंगे. जवाब है शायद नहीं और वो इसलिए क्योंकि आपको यही लगेगा कि आपने तो उतनी ही कीमत वाले Chips खरीदे हैं, जितने के आप हर बार खरीदते हैं. जबकि वास्तविकता में आपको उतने पैसों में उस चीज की उतनी मात्रा नहीं मिलेगी, जितनी पहले मिलती थी. और इसी Business Strategy को Shrink-flation कहते हैं.
हालांकि आप सोच रहे होंगे कि आज हम इस विषय की बात क्यों कर रहे हैं? तो इसका जवाब ये है कि कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया-भर की कंपनियां इस Business Strategy को अपना रही हैं. अब ये काफी सामान्य हो गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड और यूक्रेन युद्ध की वजह से इन कंपनियों की लागत और सप्लाई चेन पर खर्च पहले से ज्यादा बढ़ गया है. मजदूरों की कमी ने भी इन कंपनियों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है. इसलिए ये कंपनियां अपना Revnue बढ़ाना चाहती हैं और इसके लिए Shrink-flation से अच्छा विकल्प इनके लिए नहीं हो सकता.
क्योंकि अगर ये कंपनियां रेवन्यू बढ़ाने के लिए अपने Product की कीमत बढ़ाती हैं तो इससे उनके उपभोक्ता कम हो सकते हैं. जबकि Shrink-flation में ऐसा कुछ भी होने का खतरा नहीं है. यानी ये काफी सुरक्षित तरीका है, जिसके बारे में आम लोगों को पता भी नहीं चलता. हम आपको कुछ उदाहरण बताते हैं...
अमेरिका में Sun Maid नाम की एक कंपनी है, जो किशमिश को Packaged Food में बेचती है. पहले इसके एक पैकेट का वजन 630 ग्राम होता था. लेकिन अब जो नया पैकेट कंपनी लेकर आई है, उसका वजन 60 ग्राम कम कर दिया गया है. और अब ये पैकेट 570 ग्राम का आता है. लेकिन इसकी कीमत में कोई बदलाव नहीं किया गया है और इसकी बिक्री में भी कोई कमी नहीं आई है.
दूसरा उदाहरण बताएं तो आपने Dove Shampoo का नाम जरूर सुना होगा. पहले ये Shampoo जिस Bottle में आता था, उसमें Shampoo की मात्रा 710 Ml होती थी. लेकिन अब जो नई Bottle है, उसमें Shampoo की मात्रा को कंपनी ने 710 Ml से 650 Ml कर दिया है. और इसकी कीमत भी उतनी ही है.
इससे पता चलता है कि लोग जिन Products के आदि हो जाते हैं, वो उन्हें खरीदते हुए उनकी Quantity चेक नहीं करते. जैसे अमेरिका कंपनी Sun Maid ने अपने किशमिश के पैकेट में बहुत मामूली बदलाव किया है. जो पुराना पैकेट था, उसका ऊपरी हिस्सा थोड़ा चौड़ा था. लेकिन नए पैकेट में ऐसा नहीं है. पैकेजिंग में इस तरह के बदलाव देखकर लोगों को लगता है कि ये कंपनी की Marketing Strategy का हिस्सा होगा. लेकिन असल में ऐसा नहीं होता.
हालांकि आपके मन में सवाल होगा कि किसी पैकेट से थोड़े चिप्स कर देने से या बिस्किट के पैकेट से एक दो बिस्किट निकाल लेने से इन कंपनियों को क्या फायदा होता होगा? तो आपके इसके बारे में भी आपको बताते हैं. Coca-Cola कंपनी हर दिन Soft Drinks की 200 करोड़ बोतलों की बिक्री करती है. अब मान लीजिए, अगर Coca-Cola ने इस Business Strategy को अपनाते हुए अपनी हर बोतल से 0.25 लीटर Cold Drink निकाल ली तो क्या होगा. तो इससे Coca Cola 50 करोड़ लीटर की Drink बचा लेगी, जिनसे दो लीटर की 25 करोड़ और Bottles को बाजार में बेचा जा सकेगा और Coca-Cola ने ऐसा किया भी है. 2014 में कंपनी ने अपनी दो लीटर की बोतल का साइज थोड़ा छोटा कर दिया था. उसकी Quantity घटा कर 1.75 लीटर कर दी थी और इस तरह के हजारों उदाहरण आपको मिल जाएंगे.
हमारे देश में Toothpaste की Tube को लोग तब तक इस्तेमाल करते हैं. जब तक उसमें से वो एक एक अंश नहीं निकाल जाए. यानी Toothpaste की Tube को हम पूरी तरह निचोड़ लेते हैं. वह लोग ऐसा इसलिए करते हैं ताकि ये Tube अगर 20 दिन चल सकती है तो वो पांच दिन या छह दिन और चल जाए. लेकिन क्या Toothpaste बनाने वाली कंपनियां आपकी इस आदत के बारे में नहीं जानती? उन्हें आपकी इस आदत के बारे में पता है, इसलिए वो भी काउंटर करती हैं. एक उदाहरण देते हैं, आज से कुछ वर्ष पहले अमेरिका की एक बड़ी Toothpaste कंपनी अपना रेवन्यू बढ़ाना चाहती थी. कंपनी का लक्ष्य था कि अगले एक महीने में उसके Toothpaste की बिक्री दोगुनी हो जाए. तो इसके लिए इस कंपनी ने कुछ ऐसा किया, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते.
इस कंपनी ने अपने Toothpaste की Tube का Hole बढ़ा कर दिया. और इस Tube की कीमत में कोई बदलाव भी नहीं किया. इससे हुआ ये कि ज्यादा बड़ा Hole होने से Tube में से एक बार में इतना Toothpaste निकलने लगा, जितना पुराने होल से तीन बार में निकलता था. यानी पहले एक परिवार में जो एक Tube 28 दिन तक चलती थी. वो 12 से 14 में ही खत्म होने लगी. और इस तरह कंपनी के ग्राहक नहीं बढ़े लेकिन बिक्री बढ़ गई और उसका रेवन्यू भी बढ़ गया.
उपभोक्ता को अंग्रेजी में Customer कहते हैं. लेकिन बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए Customer का अर्थ होता है, ऐसा व्यक्ति.. जो अपने कष्ट से मरता रहे और उसे अपने कष्ट का इलाज उसी कंपनी के Product में नजर आए. यानी आपका कष्ट.. ही आपको इन कंपनियों का Customer बनाता है.
हालांकि आपके मन में ये सवाल होगा कि क्या ऐसा करना गैर कानूनी है? तो इसका जवाब है नहीं. ऐसा करना बिल्कुल भी गैर कानूनी नहीं है. ये वैध है और ये कंपनियां ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. इसलिए इसका एक ही समाधान है और वो ये कि आपको जागरुक होना होगा और देखना होगा कि आपको उसी कीमत में उतना सामान मिल रहा है, जितना पहले मिलता था.