40 वर्षों तक पंजाब पर शासन करने वाले वीर योद्धा महाराजा रणजीत सिंह (Ranjit Singh) का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. उन्होंने पंजाब को न केवल सशक्त सूबे के रूप में एकजुट किया बल्कि अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया.
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नई दिल्ली: 40 वर्षों तक पंजाब पर शासन करने वाले वीर योद्धा महाराजा रणजीत सिंह (Ranjit Singh) का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. उन्होंने पंजाब को न केवल सशक्त सूबे के रूप में एकजुट किया बल्कि अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के आसपास भी नहीं फटकने दिया. दशकों तक शासन के बाद रणजीत सिंह का 27 जून, 1839 को निधन हो गया, लेकिन उनकी वीर गाथाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं.
रणजीत सिंह का जन्म पंजाब के गुजरांवाला में 13 नवंबर 1780 को हुआ था, यह इलाका अब पाकिस्तान में आता है. महाराज सिंह ने महज 17 साल की उम्र में भारत पर हमला करने वाले आक्रमणकारी जमन शाह दुर्रानी को हराकर अपनी पहली जीत हासिल की. इस जीत के साथ उन्होंने लाहौर पर कब्जा कर लिया और अगले कुछ दशकों में एक विशाल सिख साम्राज्य की स्थापना की.
12 अप्रैल, 1801 को रणजीत सिंह की पंजाब के महाराज के तौर पर ताजपोशी की गई. महज 20 साल की उम्र में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की थी. लाहौर विजय के बाद उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तार देना शुरू किया. 1802 में उन्होंने अमृतसर को अपने साम्राज्य में मिला लिया. 1807 में उन्होंने अफगानी शासक कुतबुद्दीन को हराकर कसूर पर कब्जा किया. इसके बाद 1818 में मुल्तान और 1819 में कश्मीर सिख साम्राज्य का हिस्सा बन गया. कहा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह एक आधुनिक सेना बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपनी सेना में कई यूरोपीय अधिकारियों को भी नियुक्त किया था. उनकी सेना को खालसा आर्मी के नाम से जाना जाता था. इसी ताकतवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा. एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेज कब्जा नहीं कर पाए थे.
महाराजा की एक आंख बचपन में चेचक की बीमारी से खराब हो गई थी. इस बारे में वह कहते थे, भगवान ने मुझे एक आंख दी है, इसलिए उससे दिखने वाले हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर-गरीब मुझे सभी बराबर दिखते हैं. अपने पिता के साथ महज 10 साल की उम्र में पहली लड़ाई लड़ने वाले रणजीत सिंह खुद पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को प्रोत्साहन दिया. उन्होंने पंजाब में कानून-व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मौत की सजा नहीं दी. उन्होंने तख्त सिंह पटना साहिब और तख्त सिंह हजूर सिहाब का निर्माण भी कराया.
महाराजा रणजीत सिंह ने 1801-1839 तक पंजाब पर शासन किया. उस दौर में किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि पंजाब की तरफ बुरी नजर से देख सके. 27 जून, 1839 को महाराजा रणजीत सिंह का 59 की उम्र में निधन हो गया. इसके बाद सिख साम्राज्य की बागडोर खड़क सिंह के हाथ में आई, लेकिन वह रणजीत सिंह की तरह मजबूती से उनके साम्राज्य को नहीं संभाल सके.
महाराजा रणजीत सिंह की 180वीं पुण्यतिथि के मौके पर पाकिस्तान में उनकी 8 फीट की प्रतिमा लगाई गई थी. यह मूर्ति लाहौर किले में माई जिंदियन हवेली के बाहर स्थापित की गई है. हवेली का नाम रणजीत सिंह की सबसे छोटी महारानी के नाम पर रखा गया है. इस प्रतिमा में महाराज को अपने पसंदीदा घोड़े पर बैठा दिखाया गया है. इस घोड़े को बाराज़कई वंश के संस्थापक दोस्त मुहम्मद खान ने उन्हें उपहार में दिया था. प्रतिमा का वजन लगभग 250-330 किलोग्राम है. इसे 85 प्रतिशत कांस्य, पांच प्रतिशत टिन, पांच प्रतिशत सीसा और पांच प्रतिशत जिंक से बनाया गया है.