मेट्रो परियोजनाओं को किफायती बनाने और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने पर होगा जोर
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मेट्रो परियोजनाओं को किफायती बनाने और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने पर होगा जोर

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मेट्रो नीति 2017 को मंजूरी दे दी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में शहरी विकास मंत्रालय द्वारा देश भर के लिये प्रस्तावित एक समान मेट्रो नीति को मंजूरी दी गयी.

शहरी विकास मंत्रालय द्वारा देश भर के लिये प्रस्तावित एक समान मेट्रो नीति को मंजूरी दी गयी (फाइल फोटो)

नयी दिल्ली: केन्द्र सरकार ने भविष्य में मेट्रो परियोजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर तय किये गये मानकों के तहत ही मंजूरी देते हुये मेट्रो परिचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाकर इसे किफायती बनाने पर जोर दिया है. इस बाबत केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मेट्रो नीति 2017 को मंजूरी दे दी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में शहरी विकास मंत्रालय द्वारा देश भर के लिये प्रस्तावित एक समान मेट्रो नीति को मंजूरी दी गयी.

  1. इस समय सात शहरों में कुल 370 किमी में मेट्रो परिचालन किया जा रहा है
  2. लखनऊ सहित 12 शहरों में 530 किमी की मेट्रो परियोजनायें अभी निर्माणाधीन हैं
  3. चार साल में मेट्रो का देशव्यापी परिचालन विस्तार 900 किमी तक ले जाने का लक्ष्य  

बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि देश भर में सार्वजनिक परिवहन के त्वरित साधनों के तहत मेट्रो रेल के तेजी से होने वाले विस्तार को देखते हुये नयी नीति में भविष्य की जरूरतों के मुताबिक मानक तय किये गये हैं. इनमें उन्ही महानगरों की मेट्रो परियोजनाओं को शहरी विकास मंत्रालय से मंजूरी मिलेगी जिनकी आबादी 20 लाख से अधिक हो.

जेटली ने बताया कि नयी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये तीन मॉडल तय किये गये हैं. इसमें पहले मॉडल के तहत राज्य सरकार शत प्रतिशत व्यय स्वयं वहन कर सकती है. दूसरा मॉडल केन्द्र और राज्य सरकार की आधी आधी भागीदारी से जुड़ा है और तीसरा मॉडल सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी (पीपीपी) से जुड़ा है. हालांकि नयी नीति में केन्द्रीय सहायता वाले मॉडल के तहत परियोजना के निर्माण के बाद परिचालन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को अनिवार्य करने की शर्त जोड़ी गयी है जिससे परिचालन लागत में सरकार का बोझ कम कर इसे किफायती बनाया जा सके.

उन्होंने स्पष्ट किया कि मेट्रो परिचालन बेहद खर्चीला विकल्प है इसलिये परियोजना की मंजूरी मांगने वाली राज्य सरकार को यह साबित करना होगा कि संबद्ध शहर में मेट्रो से इतर सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधन मुहैया कराने के बावजूद इसे सुलभ बनाना मुमकिन नहीं हो पा रहा है. इसके अलावा बीआरटी सहित सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों को मेट्रो के साथ ही विकसित करने की कार्ययोजना भी संबद्ध राज्य सरकार को मेट्रो परियोजना के साथ पेश करना होगा.

इस दौरान शहरी विकास सचिव दुर्गाशंकर मिश्रा ने बताया कि मंत्रालय के पास पहले से विचाराधीन लगभग 15 मेट्रो परियोजनाओं के प्रस्तावों को अब संबद्ध राज्य सरकारों को नयी नीति में नियत मानकों के मुताबिक नये सिरे से पेश करना होगा. उन्होंने बताया कि मंत्रालय के पास भोपाल सहित अन्य शहरों में लगभग 600 किमी की परियोजनायें विचाराधीन हैं. 

इस समय दिल्ली, कोच्चि, मुंबई, सहित सात शहरों में कुल 370 किमी में मेट्रो परिचालन किया जा रहा है जबकि हैदराबाद, नागपुर, अहमदाबाद, पुणे और लखनऊ सहित 12 शहरों में 530 किमी की मेट्रो परियोजनायें अभी निर्माणाधीन हैं. सरकार का लक्ष्य अगले चार साल में मेट्रो का देशव्यापी परिचालन विस्तार 900 किमी तक ले जाने का लक्ष्य है. 

नयी नीति के तहत पूरे देश में एक ही कानून के जरिये मेट्रो परियोजनाओं का संचालन और मंजूरी आदि की प्रक्रिया तय करने के लिये एकीकृत कानून बनाया जायेगा. अभी दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन (डीएमआरसी)अधिनियम के प्रावधान में तय मानकों के तहत ही देश के अन्य शहरों में मेट्रो परियोजना के प्रस्तावों को मंजूरी दी जाती है.

हाल ही में शहरी विकास मंत्रालय ने नया कानून बनने तक मेट्रो परिचालन संबंधी किसी भी शहर के प्रस्ताव को विचारार्थ स्वीकार करने पर रोक लगा दी थी. नयी नीति के तहत राज्य सरकार को मेट्रो का विकल्प अपनाने के साथ परिवहन के अन्य साधनों को भी समानांतर विकसित करने के लिये एकीकृत परिवहन प्रणाली विकसित करनी होगी जिसमें मेट्रो स्टेशनों को फीडर बस सहित अन्य साधनों के माध्यम से गंतव्य को जोड़ते हुये सार्वजनिक परिवहन को आसान और सुलभ बनाया जा सके.

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