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DNA Analysis: अब हम आपको प्रधानमंत्री की उस कूटनीति के बारे में बताएंगे, जिसने नेपाल को एक बार भारत के करीब ला दिया है और इस दोस्ती से चीन बेहद चिंतित है. सोमवार को बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी नेपाल के दौरे पर पहुंचे, जहां नेपाल के मौजूदा प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने उनका शानदार स्वागत किया.
दोनों नेताओं ने नेपाल के लुम्बिनी में स्थित माया देवी मन्दिर में पूजा अर्चना की. वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी का ये पांचवां नेपाल दौरा है और 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद वो पहली बार नेपाल के दौरे पर गए थे, जिसने चीन की चिंताओं को नया आकार दे दिया है.
पिछले कुछ वर्षों में चीन नेपाल के बेहद करीब आ गया था. लेकिन नेपाल में केपी शर्मा ओली की सरकार गिरने के बाद अब नई सरकार चीन को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहती और इसी बात का भारत को पूरा फायदा मिल रहा है. नेपाल अब भारत की तरफ काफी उम्मीद से देख रहा है.
#DNA : मोदी के नेपाल दौरे से चीन चिंतित!@aditi_tyagi
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— Zee News (@ZeeNews) May 16, 2022
प्रधानमंत्री मोदी ने लुम्बिनी मठ क्षेत्र में बौद्ध संस्कृति और विरासत के लिए एक नए केंद्र का भी शिलान्यास किया और इस दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री भी उनके साथ मौजूद रहे. लुंबिनी वो स्थान है जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था और कपिल वस्तु में उनका बचपन बीता था. पाली भाषा में बौद्ध धर्म को लेकर दिये गए एक ऐतिहासिक साहित्य का नाम है दथा वंसा. इस साहित्य के मुताबिक कपिलवस्तु की स्थापना इक्षवाकु वंश के राजाओं ने की थी. भगवान राम भी इक्षवाकु वंश के ही राजा थे. कहा जाता है कि कपिल वस्तु की स्थापना भारतीय दार्शनिक और ऋषि कपिल की अनुमति के बाद की गई थी जिनका जन्म भगवान बुद्ध से करीब 200 वर्ष पहले हुआ था, ऋषि कपिल ने ही समख्या सूत्र की रचना की थी और भगवान बुद्ध के विचारों और उनके जीवन पर भी कपिल का प्रभाव था.
ढाई हजार वर्ष पहले लुम्बिनी इसी कपिलवस्तु के पूर्व में था और कपिल वस्तु के शासक भगवान बुद्ध के पिता राजा शुद्धो धन थे. भगवान बुद्ध का जन्म सिद्धार्थ गौतम के रूप में हुआ था, लेकिन सत्य और ध्यान के मार्ग पर चलते हुए उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और इसीलिए वो गौतम बुद्ध कहलाए. बुद्ध का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जो जाग चुका है. लेकिन भगवान बुद्ध के इस जागरण में भारत की भी बहुत बड़ी भूमिका थी. बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे हुई थी जिसे अब बोधि वृक्ष कहा जाता है, गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला प्रवचन वाराणसी के पास सारनाथ में दिया था और उनकी मृत्यु भी आज के उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुई थी. कहा जाता है कि प्राचीन समय में कुशी नगर की स्थापना भी भगवान राम के पुत्र कुश ने की थी और आज प्रधानमंत्री मोदी नेपाल से लौटने के बाद कुशीनगर में बुद्ध के मन्दिर भी पहुंचे.
संक्षेप में कहें तो भगवान बुद्ध सिद्धार्थ के रूप में नेपाल में पैदा हुए और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति भारत में हुई. इसलिए भारत को ही बौद्ध धर्म का उदगम स्थल माना जाता है. लेकिन फिर भी भगवान बुद्ध और उनका जीवन भारत और नेपाल की संयुक्त विरासत है. बड़ी बात ये है कि भगवान बुद्ध के विचारों से ही आज भारत, चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा है.
इस दौरे से पहले अप्रैल महीने में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भी भारत आए थे और ये उनका नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला विदेशी दौरा था. यानी पिछले डेढ़ महीने में पहले नेपाल के प्रधानमंत्री भारत आए और फिर भारत के प्रधानमंत्री नेपाल गए. इससे ये पता चलता है कि नेपाल छोटे भाई के तौर पर भारत को काफी उम्मीद से देख रहा है और ये सब ऐसे समय में हो रहा है, जब नेपाल में आर्थिक संकट बना हुआ है.
दूसरी बात, नेपाल अब श्रीलंका के आर्थिक संकट से सबक लेकर चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है और उसने चीन को साफ कह दिया है कि उसे मदद के तौर पर ऐसा कर्ज नहीं चाहिए, जिसके लिए उसे भविष्य में भारी ब्याज देना पड़े. इसके अलावा नेपाल की मौजूदा सरकार ने चीन के महत्वाकांक्षी BRI प्रोजेक्ट को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया है. BRI का अर्थ है Belt and Road Initiative.
आपको याद होगा इससे पहले जब नेपाल में केपी शर्मा ओली की सरकार थी, तब नेपाल ने भारत के साथ अपने रिश्ते बिगाड़ लिए थे. उसने 2015 में लिपुलेख सीमा विवाद को उठा कर भारत के तीन इलाकों को नेपाल के नक्शे में भी दिखा दिया था. लेकिन अब नेपाल में सरकार भी बदल चुकी है और इसके साथ ही नेपाल के साथ भारत के रिश्ते भी मजबूत हो गए हैं. जबकि चीन को नेपाल ने किनारे कर दिया है.
इसका बड़ा कारण है, चीन की खतरनाक रणनीति. चीन एक बड़ी शार्क की तरह कमजोर देशों को छोटी मछलियों की तरह निगल जाना चाहता है. इनमें श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देश तो फंस चुके हैं. लेकिन नेपाल खुद को इस स्थिति में नहीं देखना चाहता और यही वजह है कि वो अपने बड़े भाई भारत पर ज्यादा भरोसा दिखा रहा है.
नेपाल और भारत का रिश्ता बड़े और छोटे भाई का रहा है. ये दोनों देशों ना सिर्फ सांसकृतिक रूप से साथ जुड़े हुए हैं. बल्कि कूटनीतिक रूप से भी दोनों देशों में काफी मित्रता रही है और इन रिश्तों का सबसे बड़ा आधार भगवान बुद्ध हैं.
माना जाता है कि बौद्ध धर्म का प्रचार और प्रसार भारत से शुरू हुआ और शुरुआत में इसका अनुसरण करने वाले ज्यादातर लोग व्यापारी थे, जो एक जगह से दूसरी जगह और एक देश से दूसरे देश में भ्रमण किया करते थे और इसी वजह से बौद्ध धर्म भारत और एशिया के कोने-कोने तक पहुंच गया. भारत के मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई थी. सम्राट अशोक ने कलिंग का युद्ध जीतने के बाद खून खराबे से व्यथित होकर बौद्ध धर्म अपना लिया था और उन्होंने भी भारत और दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रसार में बड़ी भूमिका निभाई. आज भी बौद्ध धर्म को मानने वाली 97 प्रतिशत आबादी एशिया के देशों में रहती है. भूटान, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों के लिए बौद्ध धर्म राष्ट्रीय मूल्यों और पहचान का विषय है.
भारत से निकलकर बौद्ध धर्म पूरे एशिया में फैल गया लेकिन भारत ने कभी इस पर अपनी कॉपी राइट नहीं जताया और इसकी वजह ये है कि सत्य का कोई कॉपी राइट नहीं होता और सत्य को आप किसी देश या राज्य की सीमा में बांधकर नहीं रख सकते. बौद्ध धर्म से जुड़े 8 महत्वपूर्ण स्थलों में लुंबिनी को छोड़कर बाकी सभी भारत में हैं. इनमें बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर , श्रावस्ती, राजगिर, संकास्य और वैशाली भारत में ही हैं.
इसके अलावा बौद्ध धर्म की चार सबसे प्रमुख शाखाओं में से दो का गहरा संबंध भारत से ही है. ये शाखाएं हैं थेरवाड़ा और महायान. थेरवाड़ा की ज्यादातर शिक्षाएं भारत की प्राचीन पाली भाषा में ही सहेज कर रखी गई हैं. बौद्ध धर्म की इस शाखा का गहरा प्रभाव श्रीलंका, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और थाइलैंड जैसे देशों पर है, जबकि महायान का प्रभाव चीन, नेपाल ताइवान, मंगोलिया कोरिया, जापान, वियतनाम, और सिंगापुर जैसे देशों में. इसलिए भारत और नेपाल के लिए बौद्ध धर्म संयुक्त रूप से एक सॉफ्ट पावर रहा है.