Adam Harry: भारत के पहले ट्रांसजेंडर पायलट को करनी पड़ रही फूड डिलीवरी, DGCA ने नहीं दिया लाइसेंस
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Adam Harry: भारत के पहले ट्रांसजेंडर पायलट को करनी पड़ रही फूड डिलीवरी, DGCA ने नहीं दिया लाइसेंस

India first Trans pilot: एडम हैरी सबसे पहले तब सुर्खियों में आए, जब वह देश के पहले ट्रांसजेंडर पायलट बने थे. हालांकि, उनके इस सपने पर तब ग्रहण लग गया, जब डीजीसीए के मेडिकल टेस्ट में वह पास नहीं हो पाए और उन्हें लाइसेंस नहीं मिला. आइए जानते हैं, क्या है पूरा माजरा.

Adam Harry: भारत के पहले ट्रांसजेंडर पायलट को करनी पड़ रही फूड डिलीवरी, DGCA ने नहीं दिया लाइसेंस

India first Trans pilot Adam Harry: एडम हैरी 2019 में भारत के पहले ट्रांसजेंडर ट्रेनी पायलट बने. वर्ष 2020 में, केरल सरकार ने एडम को एक कमर्शियल पायलट बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए सपोर्ट किया और उन्हें राजीव गांधी एकेडमी फॉर एविएशन टेक्नोलॉजी (Rajiv Gandhi Academy for Aviation Technology) में दाखिले के लिए मदद की. लेकिन उनके सपने तब टूट गए, जब नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने उन्हें हार्मोन थेरेपी और लिंग डिस्फोरिया का कारण बताते हुए उड़ान भरने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया. आज आलम यह है कि एडम को गुजारा चलाने के लिए फूड डिलीवर करना पड़ रहा है.

मेडिकल टेस्ट ने गुजरना पड़ा

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एडम हैरी को कई मेडिकल टेस्ट से गुजरना पड़ा. इस दौरान उनसे कई असहज ट्रांसफोबिक प्रश्न भी पूछे गए और बाद में कड़े साइकोमेट्रिक मूल्यांकन के आधार पर डीजीसीए द्वारा उन्हें अनफिट घोषित कर दिया गया, जिसने उनके सपनों पर रोक लगा दी.

 
 
 
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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लाइफ पर निगेटिव इंपेक्ट

यूनाइटेड किंगडम की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं (NHS) के अनुसार, लिंग डिस्फोरिया उस बेचैनी के बारे में बताता है, जहां एक व्यक्ति अपने जैविक लिंग और लिंग पहचान के बीच एक बेमेल संबंध महसूस करता है. यह फीलिंग डिप्रेशन और एंग्जायटी को जन्म दे सकती है, जो व्यक्ति के जीवन को और बाधित कर सकती है और उनके दैनिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है.

12 साल की उम्र से अलग पहचान बनानी की शुरू

एडम की मेडिकल टेस्ट के लिए डीजीसीए के एप्लीकेशन फॉर्म में Non-Binary Gender का कोई प्रावधान नहीं था. एडम ने एक फीमेल के तौर पर जन्म लिया था, लेकिन 12 साल की उम्र में, उन्होंने एक महिला के रूप में अपनी पहचान से अलग होना शुरू कर दिया. जब वह 17 वर्ष की आयु तक पहुंचा, तब तक उसके माता-पिता को विश्वास हो गया था कि वह मानसिक समस्याओं से जूझ रहा है और उसे अपने लिंग डिस्फोरिया पर मदद लेने के लिए एक मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया. इसके बाद एडम दक्षिण अफ्रीका में ट्रांसफर हो गया, जहां वह अपने माता-पिता और समाज के दबाव से दूर अपनी लिंग पहचान को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकता था.

साउथ अफ्रीका से पायलट का लाइसेंस किया हासिल

उन्होंने जोहान्सबर्ग में लैंसरिया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एविएशन एकेडमी से एक निजी पायलट लाइसेंस हासिल किया. वर्ष 2020 में, केरल सरकार ने उन्हें तिरुवनंतपुरम में राजीव गांधी एकेडमी फॉर एविएशन टेक्नोलॉजी में नामांकित करके उनके उड़ान के सपने का समर्थन करने के लिए 23.34 लाख की राशि मंजूर की. एडम अपने जैविक लिंग से अपने संक्रमण का समर्थन करने के लिए सेक्स हार्मोन थेरेपी दवा ले रहा है. DGCA के अनुसार, वह तब तक पायलट बनने के योग्य नहीं हो सकता जब तक वह इस थेरेपी पर नहीं है. उन्होंने एडम को सलाह दी कि इलाज पूरा होने के बाद दोबारा मेडिकल जांच कराएं. सच्चाई यह है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को यह थेरेपी जीवन भर लेनी होगी. हालांकि, अब एडम ने डीजीसीए के मेडिकल सर्टिफिकेट देने से इनकार करने पर हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर करने का फैसला किया है.
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