'Vaccines बचाने के मकसद से लिया COVID Patients को 3 महीने बाद टीका देने का फैसला'
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'Vaccines बचाने के मकसद से लिया COVID Patients को 3 महीने बाद टीका देने का फैसला'

सरकार की ओर से फैसला किया गया था कि कोरोना संक्रमित होने पर रिकवर हो चुके लोगों को तीन महीने बाद ही वैक्सीन की पहली डोज लग सकती है. स्वास्थ्य मंत्रालय के फैसले से साफ है कि कोरोना से ठीक हुए लोग 3 महीने तक वैक्सीनेशन नहीं करा सकते हैं.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: देश में कोरोना के बढ़ते प्रसार के साथ इस महामारी पर लगाम कसने के लिए वैक्सीनेशन भी काफी तेजी से किया जा रहा है. इस बीच दिल्ली-महाराष्ट्र समेत कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी का हवाला देकर 18 से 44 वर्ग के लिए टीकाकरण अभियान को रोक भी दिया है. इसके साथ ही वैक्सीन की कमी के मुद्दे पर केंद्र और राज्यों के अपने-अपने तर्क हैं.

  1. 'सबको एक साथ टीका मुमकिन नहीं'
  2. 'ज्यादा रिस्क वालों का पहले वैक्सीनेशन'
  3. कई राज्यों ने रोका 18+ का टीकाकरण

'एक साथ नहीं दे सकते टीका'

इस बीच सरकारी पैनल के प्रमुख की ओर से जानकारी दी गई है कि कोरोना से रिकवर होने वालों को तीन महीने बाद वैक्सीन देने का फैसला टीके की बचत के लिए किया गया है. सरकारी पैनल के प्रमुख ने कहा कि सभी व्यस्कों का एक साथ वैक्सीनेशन नहीं किया जा सकता क्योंकि पहले सबसे जरूरतमंद वर्ग को टीका लगाना ज्यादा जरूरी है. बता दें देश में 18 की उम्र पार चुके लोगों के लिए भी 1 मई से टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया गया है.

बीते बुधवार को सरकार की ओर से फैसला किया गया था कि कोरोना संक्रमित होने पर रिकवर हो चुके लोगों को तीन महीने बाद ही वैक्सीन की पहली डोज लग सकती है. स्वास्थ्य मंत्रालय के फैसले से साफ है कि कोरोना से ठीक हुए लोग 3 महीने तक वैक्सीनेशन नहीं करा सकते हैं.

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'वैक्सीन बचाने के लिए फैसला'

नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप के प्रमुख नरेंद्र अरोड़ा ने कहा, 'यह फैसला वैक्सीन डोज बचाने के लिए किया गया है. हमने पहले रिकवर होने के तीन महीने, छह महीने और 9 महीने बाद वैक्सीनेशन करने के समय पर विचार किया था लेकिन बाद में तीन महीने का वक्त तय किया गया.'  उन्होंने कहा कि वैक्सीन की कमी को देखते हुए पहले सबसे ज्यादा रिस्क वाले लोगों को इसकी डोज देना प्राथमिकता है. 

अरोड़ा ने कहा कि वैक्सीनेशन के लिए 45 की उम्र पार कर चुके लोग हमारी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर हैं क्योंकि सबसे ज्यादा मृत्यु दर और संक्रमण दर भी इस आयु वर्ग के लोगों की है.  

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