भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटकर 5.7 फीसदी, तीन साल के निचले स्तर
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भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटकर 5.7 फीसदी, तीन साल के निचले स्तर

जीडीपी की वृद्धि दर की तुलना एक साल पहले की समान तिमाही से करें तो इसमें काफी अधिक गिरावट दर्ज की गई है. वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही के दौरान जीडीपी की रफ्तार 7.9 फीसदी थी.

सालाना आधार पर विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन भारी गिरावट के साथ 1.2 प्रतिशत रह गया (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: चालू वित्त वर्ष की जून में खत्म हुई तिमाही के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी 5.7 फीसदी की वृद्धि दर के साथ 31.10 लाख करोड़ रुपये रही, जबकि पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के दौरान इसकी वृद्धि दर 6.1 फीसदी थी.

अगर हम जीडीपी की वृद्धि दर की तुलना एक साल पहले की समान तिमाही से करें तो इसमें काफी अधिक गिरावट दर्ज की गई है. वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही के दौरान जीडीपी की रफ्तार 7.9 फीसदी थी.चीन ने जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून तिमाहियों दोनों तिमाहियों में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. इससे पिछली तिमाही :जनवरी मार्च : में भारत की जीडीपी की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रही थी. 2016-17 की पहली तिमाही की संशोधित वृद्धि दर 7.9 प्रतिशत थी. इससे पहले जनवरी-मार्च, 2014 में जीडीपी की वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत दर्ज हुई थी.

सालाना आधार पर विनिर्माण क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन भारी गिरावट के साथ 1.2 प्रतिशत रह गया. एक साल पहले समान तिमाही में यह 10.7 प्रतिशत रहा था. इसकी मुख्य वजह यह रही कि एक जुलाई को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने की वजह से कंपनियां उत्पादन के बजाय पुराना स्टॉक निकालने पर ध्यान दे रही थीं.

कार, एफएमसीजी और परिधान कंपनियों का ध्यान अपना स्टॉक निकालने पर
अलग से जारी एक अन्य आधिकारिक आंकड़े के अनुसार जुलाई महीने में आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर घटकर 2.4 प्रतिशत पर आ गई है. मुख्य रूप से कच्चे तेल, रिफाइनरी उत्पादों, उर्वरक और सीमेंट उत्पादन में गिरावट से बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर घटी है. नयी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था जीएसटी को लेकर अनिश्चितता की वजह से कार, एफएमसीजी और परिधान कंपनियों का ध्यान अपना स्टॉक निकालने पर था.

पिछले साल नवंबर में ऊंचे मूल्य के नोटों को बंद किए जाने से जनवरी मार्च तिमाही में आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुईं और जीडीपी की वृद्धि दर घटकर 6.1 प्रतिशत पर आ गई. जून तिमाही में यह और घटकर 5.7 प्रतिशत पर रह गई. मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने जीएसटी से पहले स्टॉक घटने को जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट की प्रमुख वजह बताया है. कंपनियों को नई व्यवस्था के अनुरूप अपने मौजूदा स्टॉक की नए सिरे से लेबलिंग करनी पड़ी.

अनंत ने हालांकि कहा कि जीडीपी की वृद्धि दर में गिरावट का नोटबंदी से कोई संबंध नहीं है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़े बाजार की उम्मीदों से कम रहे हैं. बाजार का अनुमान था कि जीडीपी की वृद्धि दर जनवरी मार्च के 6.1 प्रतिशत के आंकड़े से कुछ ऊंची रहेगी. आंकड़ों के अनुसार कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर भी कम रही है. पहली तिमाही में इस क्षेत्र में जीवीए 2.3 प्रतिशत रहा, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 2.5 प्रतिशत था.

पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन ने कहा कि पहली तिमाही में जीएसटी की वजह से जीडीपी कमजोर रहने का अनुमान लगाया जा रहा था. सेन ने कहा, ‘‘जहां तक मेरा मानना है, यह मेरे विचार से 0.4 प्रतिशत कम रही है. मैं पूरे साल के लिए इसके 6.3 प्रतिशत से नीचे रहने की उम्मीद कर रहा हूं.’’ क्रिसिल के डी के जोशी ने जीडीपी आंकड़ों को ‘निराशाजनक‘ बताया. उन्होंने कहा कि उम्मीद की जा रही थी कि वृद्धि 6.5 प्रतिशत रहेगी.

एंजिल ब्रोकिंग के फंड मैनेजर मयूरेश जोशी ने कहा कि ‘‘आर्थिक वृद्धि दर पर यह दबाव जाहिरा तौर पर नोटबंदी के विलंबित प्रभाव और एक जुलाई को लागू माल एवं सेवा कर (जीएसटी) से पहले उत्पादन गतिविधायों में गिरावट के चलते रहा क्यों कि विनिर्माताओं की मुख्य चिंता जीएसटी से पहले पुराने माल के निकालने की हो गयी थी.’

जिन आर्थिक गतिविधियों ने सालाना आधार पर सात प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर्ज की उनमें व्यापार, होटल, परिवहन और संचार तथा प्रसारण, लोक प्रशासन और रक्षा से संबंधित सेवाओं के अलावा बिजली, गैस, जलापूर्ति तथा अन्य यूटिलिटी सेवाएं शामिल हैं. इस अवधि में कृषि, वन एवं मत्स्यपालन, खनन, विनिर्माण, निर्माण और वित्तीय, बीमा, रीयल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं की वृद्धि दर क्रमश: 2.3 प्रतिशत, -0.7 प्रतिशत, 1.2 प्रतिशत, 2 प्रतिशत और 6.4 प्रतिशत रही.

इस बीच, जुलाई अंत तक देश का राजकोषीय घाटा बजट अनुमान के 92.4 प्रतिशत पर पहुंच गया. इसकी वजह विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा खर्च पहले करना है. वित्त वर्ष 2016-17 की समान अवधि में यह लक्ष्य का 73.7 प्रतिशत रहा था.

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