इंदिरा गांधी की रैली में जब विरोधी उम्मीदवार ने छोड़ दिया शेर, जानें पूरा किस्सा
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इंदिरा गांधी की रैली में जब विरोधी उम्मीदवार ने छोड़ दिया शेर, जानें पूरा किस्सा

Zee News Time Machine: टाइममशीन में साल 1974 में हमारा देश 27 साल का हो चुका था. इसी साल स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने लंदन में परफॉर्म कर इतिहास रच दिया था और इसी साल एक अंपायर ने क्रिकेट मैदान में काटे थे. 

इंदिरा गांधी की रैली में जब विरोधी उम्मीदवार ने छोड़ दिया शेर, जानें पूरा किस्सा

Time Machine on Zee News: टाइमशीन में आज आपको बताएंगे साल 1974 के बारे में...ये वही साल था जब अमिताभ बच्चन से जीतने के लिए ऋषि कपूर ने रची थी एक साजिश. इसी साल इंदिरा गांधी की सभा में एक शेर के आ जाने से मच गई थी खलबली. इसी साल एक जीप के कारण देर से शुरू हुआ था परमाणु परीक्षण. 1974 ही वो साल था जब एक नेता के इशारे पर हो गई थी रेल हड़ताल और थम गई थी ट्रेनों की रफ्तार. इसी साल तमिलनाडु में रामलीला की जगह मनाई गई थी रावण लीला तो चलिए टाइममशीन के जरिए साल 1974 के बारे में जानते हैं.

इंदिरा गांधी की सभा में 'शेर'!

सुनकर शायद आपको यकीन ना हो पर ये सच है. साल 1974 में इंदिरा गांधी की सभा में एक शेर आ गया था. दरअसल दादरी के किसान नेता बिहारी सिंह बागी इंदिरा गांधी के करीबी थे. किसान आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की वजह से वो इलाके में काफी लोकप्रिय थे. 1974 में दादरी विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर वो चुनाव लड़ना चाहते थे. उन्होंने इंदिरा गांधी से टिकट मांगा, लेकिन उनकी मांग को अनसुना कर दिया गया. इंदिरा गांधी ने बिहारी सिंह की बजाय रामचंद्र विकल को दादरी विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. ये बात बिहारी सिंह को खल गई. वो कांग्रेस उम्मीदवार रामचंद्र विकल के खिलाफ चुनावी मैदान में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे. उन्हें चुनाव चिह्न मिला-शेर. बिहारी सिंह ने कांग्रेस के खिलाफ पूरी तरह बगावत करने की ठान ली थी. उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान ऐलान किया कि अगर इंदिरा गांधी कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में प्रचार करने आईं तो वो उनकी जनसभा में शेर छोड़ देंगे. शेर कांग्रेस उम्मीदवार को खा जाएगा और वो चुनाव जीत जाएंगे. इंदिरा गांधी की जनसभा मिहिर भोज इंटर कॉलेज के मैदान पर होनी शुरू हुई. इसी दौरान कस्बे में शेर आने की खबर से हड़कंप मच गया. दरअसल, बिहारी सिंह गाजियाबाद में चल रहे एक सर्कस से एक दिन पहले ही 500 रुपए किराए पर 24 घंटे के लिए शेर ले आए थे. इंदिरा गांधी ने जैसे ही भाषण शुरू किया. बिहारी सिंह ने बैलगाड़ी पर रखे पिंजरे में बंद शेर को जनसभा में छोड़ दिया. इसके बाद प्रशासन ने जैसे तैसे करके शेर पर काबू पाया. लेकिन बिहारी सिंह चुनाव हार गए. लेकिन उनका शेर कांग्रेस उम्मीदवार को भी ले डूबा.

जब ऋषि कपूर ने खरीदा अवॉर्ड!

बात 1973 की है. जब ऋषि कपूर ने बॉलीवुड में डेब्यू किया था. उसी दौरान अमिताभ बच्चन का करियर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था. अमिताभ बच्चन की फिल्म जंज़ीर और ऋषि की डेब्यू फिल्म बॉबी एक ही दिन रिलीज़ हुईं. जहां एक तरफ बॉबी ब्लॉकबस्टर बनी और उस साल की सबसे ज़्यादा कमाने वाली फिल्म भी बनी तो वहीं अमिताभ की जंजीर साल की चौथी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से अमिताभ बच्चन कई साल तक ऋषि कपूर से नाराज़ रहे. दरअसल, सिर्फ अमिताभ को हराने के लिए ऋषि कपूर ने साल 1974 में फिल्मफेयर अवॉर्ड खरीदा था. फिल्म बॉबी के लिए ऋषि कपूर को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड दिया गया, जिसे उन्होंने 30 हजार में खरीदा था. खुद ऋषि कपूर ने इसका खुलासा अपनी किताब खुल्लम-खुल्ला में किया था. पीआरओ तारकनाथ गांधी मेरे ऑफिस में आए और कहा कि अगर आप 30 हजार रुपये देंगे तो आपको अवॉर्ड दिया जाएगा. मैंने ऐसा किया, लेकिन मुझे ये कहते हुए शर्म आती है कि मैंने वो अवॉर्ड खरीदा था. 
 
जीप की वजह से परमाणु परीक्षण लेट!

भारत ने  18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में अपना पहला सफल परमाणु परीक्षण किया था. इस परीक्षण को नाम दिया गया ‘स्माइलिंग बुद्धा’. इस परमाणु परीक्षण के लिए जहां अमेरिका ने परमाणु सामग्री और ईंधन की आपूर्ति रोक दी थी. वहीं, दूसरी तरफ रूस ने भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और परमाणु परीक्षण में मदद की, लेकिन क्या आप जानते हैं इस पोखराण परमाणु परीक्षण में देरी एक जीप की वजह से हुई थी? दरअसल 18 मई के दिन परमाणु परीक्षण की सारी तैयारियां पूरी की जा चुकी थीं. विस्फोट पर नज़र रखने के लिए मचान को 5 किमी दूर लगाया गया था. आखिरी जांच के लिए वैज्ञानिक वीरेंद्र सेठी को परीक्षण वाली जगह पर भेजना तय हुआ. जांच के बाद परीक्षण स्थल पर जीप स्टार्ट ही नहीं हो रही थी. विस्फोट का समय सुबह 8 बजे तय किया गया था. वक्त निकल रहा था और जीप स्टार्ट न होने पर सेठी दो किमी दूर कंट्रोल रूम तक चलकर पहुंचे थे. इस पूरे घटनाक्रम की वजह से परमाणु परीक्षण के वक्त को 5 मिनट बढ़ा दिया गया. 18 मई 1974 को सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर  राजस्थान के पोखरण में विस्फोट किया गया था, जिसकी गूंज 8 से 10 किमी दूर तक सुनी गई. इस गोपनीय प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी इंडियन न्यूक्लियर रिसर्च इंस्टिट्यूट भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के तत्कालीन निदेशक राजा रमन्ना को दी गई थी. 1967 से लेकर 1974 तक 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने इस प्रोजेक्ट पर कड़ी मेहनत की. इस परमाणु परीक्षण को 'स्माइलिंग बुद्धा' इसलिए कहा गया क्योंकि ये उस साल बुद्ध पूर्णिमा पर हुआ. रिपोर्ट्स बताती हैं कि परीक्षण के बाद डॉ. रमन्ना ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से कहा था कि बुद्ध मुस्कुराए हैं.

भारत-पाकिस्तान के बीच तीर्थयात्रा पर समझौता

आजादी के करीब 27 साल बाद यानी 1974 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था और ये समझौता था तीर्थयात्रा को लेकर हुआ था. दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच 1974 से पहले तक आने-जाने के लिए हवाई सुविधा उपलब्ध नहीं थी. भारत की ओर से समझौता एक्सप्रेस ट्रेन दिल्ली से अटारी तक और पाकिस्तान की ओर लाहौर से वाघा तक चली, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच 1974 में हुए एक समझौते के मुताबिक, दोनों देशों के तीर्थयात्री एक दूसरे के देशों के धार्मिक स्थलों की यात्रा कर सकते हैं. वर्ष 1974 के धार्मिक स्थलों की यात्रा पर भारत-पाकिस्तान प्रोटोकॉल तंत्र के तहत, भारत से बड़ी तादाद में सिख तीर्थ यात्री पाकिस्तान के धार्मिक स्थलों की यात्रा पर जाते हैं. इसी तरह से पाकिस्तानी तीर्थयात्री भी भारत में धार्मिक स्थलों पर घूमने आते हैं. हालांकि, इस तीर्थयात्रा समझौते के बाद से काफी कुछ बदल भी गया है. करतारपुर कॉरिडोर की शुरूआत के साथ ही श्रद्धालुओं की सारी परेशानी लगभग खत्म हो गई है. 

आखिर किसने मनाई रावणलीला?

हर साल हम दशहरा मनाते हैं और दशहरे पर रावण का पुतला फूंकते हैं. ये बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दशहरे पर हर साल देशभर में अलग-अलग जगहों पर रामलीला का आयोजन होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1974 में भारत में ही रावण लीला का आयोजन किया गया और रावण की बजाय भगवान श्रीराम और माता सीता के पुतले फूंके गए थे? सुनने में आपको अजीब लगेगा लेकिन ये सच है . दरअसल 1974 में तमिलनाडु में रावणलीला का आयोजन किया गया था. दक्षिण भारत के महान दलित चिंतक पेरियार ने अपनी मृत्यु से एक साल पहले एक नोट लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा कि द्रविड़ समाज को रामलीला के विरोध में रावण लीला मनानी चाहिए. बस फिर क्या था इसके बाद 1974 में पेरियार की पत्नी मनियमनी और पेरियार द्वारा गठित संगठन द्रविदर कषग़म  की सदस्य के.वीरमणि ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ख़त लिखकर उनसे अनुरोध किया कि वो रामलीला और रावण-कुंभकर्ण दहन कार्यक्रम में शामिल न हो, साथ ही इंदिरा गांधी को धमकी भी दी गई कि अगर वो इन कार्यक्रमों में शामिल होती हैं तो उनका पुतला फूंका जाएगा. हालांकि, सरकार की ओर से इसका कोई जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद DMK के 5 हजार कार्यकर्ताओं ने 25 दिसंबर 1974 को चेन्नई के कार्यालय में रावण लीला का जश्न मनाया और भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के पुतले फूंके. घटना के बाद पुलिस ने  मनियमनी के साथ द्रविदर कषग़म के तेरह अन्य कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया और उन पर मुकदमा भी चलाया गया. हालांकि, 1976 में कोर्ट ने ये  कहते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया कि कार्यक्रम के आयोजनकर्ताओं का मक़सद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं था.

34 साल बाद भारत आईं उधम सिंह की अस्थियां!

आंखों में ना तो मौत का खौफ, ना ही माथे पर कोई शिकन, बस दिल में जो बदले की आग थी, वो शांत नहीं हो रही थी और आखिरकार वो हिंदुस्तान के गुनहगार से बदला लेकर ही माने. ऐसा करने वाले कोई और नहीं बल्कि सरदार उधम सिंह थे, जिनके बलिदान की कहानी पर हर हिंदुस्तानी को गर्व है. 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड सरदार उधम सिंह ने अपनी आंखों से देखा. उन्होंने अपनी आंखों से ब्रिटिश सरकार की क्रूरता और खूनी नरसंहार देखा और फिर इस हत्याकांड के गुनहगार जनरल डायर को मारने को ही अपनी ज़िंदगी का मकसद बना लिया. लेकिन जनरल डायर की 1927 में  ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई, फिर सरदार उधम सिंह के आक्रोश का निशाना बना जलियावाला बाग नरसंहार के वक़्त पंजाब का गवर्नर रहा माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर, उसने जलियावाला बाग नरसंहार को सही ठहराया था. 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में बैठक थी. वहां माइकल ओ’ ड्वायर भी स्पीकर्स में से एक था. यहीं, ऊधम सिंह भी अपनी किताब में बंदूक छिपाकर ले गए और मौका मिलते ही उन्होंने दो गोलियां जनरल ओ ड्वायर पर दाग दीं, जिससे वहीं उसकी मौत हो गई और इस तरह सरदार उधम सिंह ने जलियावाल बाग हत्याकांड का बदला पूरा किया. सरदार उधम सिंह को 4 जून 1940 को माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर की हत्या का दोषी ठहराया गया. उन्हें 31 जुलाई, 1940 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. भारत 1947 में आज़ाद हुआ तो सरदार उधम सिंह की कुर्बानी की याद हर हिंदुस्तानी के दिल में थी. सरदार उधम सिंह को फांसी दिये जाने के 34 साल बाद यानी 1974 में उनकी कब्र को खोदकर उनके पार्थिव शरीर को निकाला गया और एयर इंडिया के विशेष विमान से भारत लाया गया. दिल्ली एयरपोर्ट पर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और शंकर दयाल शर्मा मौजूद थे. ज्ञानी जैल सिंह ने ऊधम सिंह का अंतिम संस्कार किया और उनकी चिता को मुखाग्नि दी. इसके बाद 2 अगस्त 1974 को उनकी अस्थियों को इकट्ठा करने के बाद सात कलशों में रखा गया और इनमें से एक को हरिद्वार, एक को किरतपुर साहिब गुरुद्वारा और एक को रउजा शरीफ भी भेजा गया. जबकि सातवें और आखिरी कलश को  जलियांवाला बाग ले जाया गया. 2018 में यहां बाग के बाहर ऊधम सिंह की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई, जिसमें वह अपनी मुट्ठी में खून से सनी मिट्टी उठाए हुए दिख रहे हैं.

मैदान पर अंपायर ने काटे क्रिकेटर के बाल

अगर आपसे ये कहा जाए कि क्रिकेट के मैदान पर एक अंपायर ने एक क्रिकेटर के बाल काटे तो क्या आप इस पर यकीन कर पाएंगे. शायद नहीं, लेकिन हां ये सच है कि साल 1974 में एक अंपायर ने एक मशहूर क्रिकेटर के बाल काटे थे और ये कोई और नहीं बल्कि सुनील गावस्कर थे. दरअसल साल 1974 में टीम इंडिया इंग्लैंड दौरे पर गई थी और टेस्ट मैच हो रहा था. भारत-इंग्लैंड के बीच चल रहे उस मैच में टीम इंडिया बल्लेबाजी कर रही थी. मैदान पर सुनील गावस्कर बल्लेबाजी करते हुए लगातार परेशानी में दिख रहे थे और बाल उनकी आंखों पर आ रहे थे. अब क्योंकि हवा काफी तेज़ थी तो ऐसे में गावस्कर अंपायर डिकी बर्ड के पास गए और बताया कि उनके बाल आंखों के आगे आ रहे हैं, जिससे उन्हें परेशानी हो रही है. अंपायर ने गावस्कर की परेशानी झट से समधान निकाला और तुरंत कैंची निकाली और गावस्कर के बाल काट दिए. सुनील गावस्कर दुनिया के एकमात्र ऐसे बल्लेबाज हैं, खिलाड़ी हैं जिसके बाल किसी नाई ने नहीं बल्कि मैदान पर अंपायर ने काटे हैं.

एनएसजी की शुरूआत

भारत ने 1974 में पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया .और ये कारनामा करने वाला वो उस वक्त छठा देश बना. .इस परमाणु परीक्षण के साथ ही भारत के नए सफर की शुरूआत भी हो गई. परमाणु परीक्षण के बाद ही 1974 में ही परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी न्यूक्लिअर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) का गठन किया गया. एनएसजी न्यूक्लियर सप्लायर देशों का एक ग्रुप है. एनएसजी में अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन समेत 48 देश सदस्य हैं.
जब इस समूह का गठन हुआ, उस वक्त सिर्फ सात देश ही सदस्य थे. NSG में 48 देशों को रखा जाता है, जो परमाणु हथियार और परमाणु प्रौद्योगिकी के व्यापार को संचालित करता है. इस ग्रुप के सदस्य देश परमाणु से जुड़े सामान का आयात-निर्यात कर सकते हैं, उन्हें किसी भी लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी. लेकिन ग्रुप ये सुनिश्चित करता है कि इसका इस्तेमाल सिर्फ मानव हित के लिए ही किया जाए. ग्रुप के मेम्बर इस परमाणु सप्लाई का इस्तेमाल अपने देश की सेना के लिए भी नहीं कर सकते हैं. एनएसजी का कोई स्थायी कार्यालय नहीं है और ये ग्रुप आम तौर पर सालाना बैठक करता है.

जॉर्ज के इशारे पर रेलवे का चक्का जाम!

किसी शख्स की ताकत का अंदाजा आप इसी से लगा लीजिए कि उसके एक इशारे पर देश की पूरी रेलगाड़ी का चक्का जाम हो गया. मामला साल 1974 का है, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के एक इशारे पर भारतीय रेलवे मानो पल भर में थम सी गई. दरअसल, 1974 की इस रेलवे हड़ताल के वक्त तीन वेतन आयोग लगने के बावजूद रेल कर्मचारियों की सैलरी में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी. इसी बीच जॉर्ज फर्नांडिस नवंबर 1973 में ऑल इंडिया रेलवे मैन्स फेडरेशन के अध्यक्ष बने. उन्हीं के नेतृत्व में 8 मई 1974 को रेल  कर्मचारियों ने मुंबई में हड़ताल शुरू कर दी. उससे ना सिर्फ मुंबई, बल्कि पूरा देश ही थम सा गया. हड़ताल की एक दूसरी वजह ये भी थी कि वह 8 घंटे काम की मांग कर रहे थे, क्योंकि रेलवे स्टाफ को लगातार काम करना पड़ता था. इस हड़ताल का एक अहम मुद्दा रेल कर्मचारियों को न्यूनतम बोनस भी था. इस हड़ताल से समूचे देश में और मजदूर जगत में एक बुनियादी बहस भी शुरू हो गई  थी कि बोनस का सिद्धांत क्या हो ? इस रेलवे हड़ताल से देश भर से करीब 17 लाख लोग शामिल हुए. इस हड़ताल के असर ने जॉर्ज फर्नांडीस को राष्ट्रीय स्तर के फायर ब्रांड नेता की पहचान
दी. कहा तो ये भी जाता है कि इस रेलवे हड़ताल ने इमरजेंसी की नींव रख दी थी.

लंदन में लता मंगेशकर ने रचा इतिहास

स्वर कोकिला लता मंगेशकर की आवाज़ ही उनकी पहचान है और अगर ये कहें कि लता मंगेशकर की आवाज़ ने हिंदुस्तान को एक अलग पहचान दी तो गलत नहीं होगा. अपनी सुर साधना के दम पर लता मंगेशकर ने सुरीले अंदाज़ को सात समंदर पार तक पहुंचाया. उनके नाम पर कई ऐसे रिकॉर्ड दर्ज हैं, जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुके हैं. उन्होंने विदेश में भी हिंदुस्तान का नाम रोशन किया. साल 1974 में लता मंगेशकर ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की, वो लंदन के मशहूर रॉयल अल्बर्ट हॉल में लाइव परफॉर्मेंस देने वाली पहली भारतीय कलाकार बनीं. लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में जब लता दीदी परफॉर्म करने आईं तो पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा. दर्शकों से खचाखच भरे इस हॉल में लता दीदी ने अपने मनपसंदीदा और सुपरहिट गाने गाए. इस लाइव कॉन्सर्ट में लतादीदी ने 'आजा रे परदेसी', 'इन्हीं लोगों ने' और 'आएगा आने वाला' जैसे हिट गाने गाए. इतना ही नहीं इस लाइव शो की रिकॉर्डिंग की 1 लाख 33 हज़ार से ज्यादा कैसेट्स बिकी थीं. लता मंगेशकर ने विदेश में परफॉर्मेंस की शुरूआत के लिए ब्रिटेन को चुना और फिर उन्होंने रॉयल अल्बर्ट हॉल में अपने नगमों और तरानों से अपनी परफॉर्मेंस को हमेशा के लिए यादगार बना दिया.
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